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Showing posts from 2024

गहरी बातें क्या होती है

12th Fail फ़िल्म में DySP दुष्यंत सिंह मनोज को बोलता है कि अगर बड़ा अधिकारी बनना है तो cheating करना छोड़ दो। बात Self Honesty की करनी थी दुष्यंत सिंह को, मगर चूंकि मनोज अभी अंतर्मन से संबंधित गहरे विषयों और उनकी बातों से नावाकिफ था, तो उसी बात को हल्के शब्दों में ऐसे ही कह दिया गया, "cheating करना छोड़ दो"। अंतर्मन के गहरे विषय, जिन्हें किताबी पढ़ाई के तौर पर तो इंसान psychology, philosophy जैसे विषयों की किताबों से पढ़ सकता है, मगर ऐसा जरूरी नहीं है। गहरी बातों का साधु जनों, बड़े बुजुर्गों, तजुर्बेकार लोगो के साथ उठ बैठ कर भी सरीख पकड़े जा सकते हैं। आम आदमी , जो गहरी बातों से वाकिफ नहीं होता है, यदि उससे गहरे सवाल किया जाए कि वह कोई फिल्म क्यों पसंद करता है, कोई खाना क्यों पसंद करता है, कही जाना क्यों पसंद करता है, तब उसे जवाबो से पता चल जाता है कि वह अभी अपने ही मन की गहराइयों में उतरना नहीं सीखा है, और उसके जवाब वही छिछले से, चलन वाले निकलते है। मसलन , — " फलाना फिल्म इस लिए पसंद है क्योंकि सभी ने इसकी तारीफ करी है",  "फलाना खाना , (जैसे McDonalds बर्गर, या

Why do the poor people like, admire and observe the politics with so much enthusiasm

Politics, as seen in the newspaper, stands at the intersection of laws, governance, and realpolitik. Often, this is what poor people admire and look up to because it offers them a chance to reach it. The system of democracy allows them to make their way to this opportunity. They need not excel in the craft of public administration, policy-making, or discharging judicial functions. They only need to engage in some realpolitik, such as supporting certain seniors and betraying a few others at the opportune moment. That is enough to bring them the fruits of politics.

क्या वैज्ञानिक सम्बन्ध होता है खराब राजनीतिक माहौल और विभित्स rape प्रकरणों के बीच में

कोलकता रेप केस के बाद उठी सरगर्मी के दौरान एक यूट्यूब कार्यक्रम निर्माता बताते हैं कि रेप, विशेषतौर पर जघन्य रेप, जहां युवती कें शरीर पर बेहद दर्दनाक कारणों से उत्पन्न घावों के निशान पाए गए हों, या कि शरीर के संग कोई बेहद दर्दनाक सलूक किया गया हो, या कि एकं अधिक रेपिस्ट शामिल थे और बेहद क्रूर , बेरहमी से दुराचार हुआ हो, उसके पीछे के कारण सिर्फ तमाम रेपिस्ट के अंदर की क्रूरता तक शामिल नहीं रहता है । मनोविज्ञान के विशेषज्ञ बताते हैं कि इस तमाम घटनाक्रम के कारण के अलावा नए, अनजान और ठीक से नहीं पहचाने जाने वाले करने — सामाजिक और राजनैतिक परिवेश तक आते है। शोधकर्ताओं ने पाया है कि ऐसे विभित्स रेप कांड प्रायः ऐसे देशों, प्रांतों, क्षेत्रों में अधिक होते है जहां पर कि प्रशासन में Due Process को पालन नहीं किए आने के आरोप गहन लगते रहते हैं। क्या संबंध होता है खराब प्रशासन व्यवस्था और विभित्स रेप कंडो के बीच में? शोधकर्ताओं ने इस पहली का उत्तर देने के लिए theory दी है कि जब प्रशासन में Due Process को पालन नहीं करने की प्रवृत्ति होती है, तब ऐसे प्रशासन अनजाने में एक सामाजिक संदेश भी भेजत

क्या था भारत की आज़ादी की लड़ाई का सच

 भारत की आजादी के बारे में एक बड़ा विचित्र अनकहा सत्य ये है कि जिन लोगों और जिन जातिय/सामुदायिक वर्गों ने तमाम आक्रमणकारियों से मिलीभगत करके देश को गुलाम बनवाया था, वही लोग अथवा वर्ग, जब सितम, शोषण झेलने को नहीं बना, तब विद्रोह कर गए, और इस विद्रोह को नाम दिया  आजादी की लड़ाई ! और आज ये ही वर्ग, जातियां उत्सव मनवाने का ढोंग करते है कि मानो इनका कोई  हाथ कभी था ही नहीं देश को गुलाम बनवाने में  !  यकीन मानिए, इन्होंने आजतक अपने कर्मों को कबूला नहीं किये है, बल्कि ये आजादी पर्व के पीछे से दुबारा सभी सच-से-अनजान देशवासियों को अपने शोषण का दास बनाना चाहते हैं। 

चल क्या रहा है भारत के प्रजातंत्र में

 गरीब, दरिद्र, शोषण को सहन करता रोज़मर्रा जीवन में प्रतिपाल, आम आदमी अपने जीवन की व्यथा का जब मुआयना करता है तब वह अपनी परिस्थिति का कारण ढूंढता है — शक्तिहीन होना। ऐसे हालातों में उसे शक्ति तक पहुंच सकने का सबसे सस्ता, आसान और तुरत मार्ग दिखाई पड़ता है — प्रजातंत्र व्यवस्था में चुनाव जीत कर। और इसकेलिए शैक्षिक क्षेत्र वाला परिश्रम भी नहीं लगता है ,जिसके लिए अतिरिक्त समय और धन संसाधन लगते हों।  प्रजातंत्र व्यवस्था में गरीब आदमी को शक्ति सत्ता तक की पहुंच देने वाला "मंत्रीपद", जहां तक जाने के लिए केवल वाकपटुता , दुस्साहस और सही व्यक्ति की चाटुकारी लगती है। ये वह असल कारण है भारत भूमि में कि लोगों को प्रजातंत्र क्यों चाहिए होता है। आज भारत में ऐसी नस्ल के मंत्री-नेता सर्वोच्च पदों तक विराजमान हो चुके हैं, जिनका उद्देश्य एक स्वस्थ समाज, सुशासन, नैतिक और आर्थिक उन्नति नहीं है उनको केवल Indicators प्राप्त करने है जनता को मुंह दिखाने भर को कि वह अच्छा शासन दे रहे है, वह नाकाबिल नहीं है। वीभत्स बलात्कार,आत्महत्या, भीषण दरिद्रता ऐसी वाली मंत्री-नेता गिरी का परिणाम है, क्योंकि असल

Wokism क्या है?

Wokism क्या है? संस्कृत भाषा में एक श्लोक है, — "अतिरूपेण वै सीता अतिगर्वेण रावणः । अतिदानाद्  बलिर्बद्धो ह्यति सर्वत्र वर्जयेत् ।।" अर्थात — अत्यधिक  सुन्दरता के कारण सीताहरण हुआ, अत्यंत घमंड के कारण रावण का अंत हुआ, अत्यधिक दान देने के कारण राजा बाली को बंधन में बंधना पड़ा, अतः सर्वत्र अति को त्यागना चाहिए । English में कहा जाता है, Excess of everything is bad Wokism एक किस्म का excess होता है, तब जब समाज किसी जागृति को अतिरिक्त सीमाओं में जा कर करने लग जाता है। ऐसे में , कई सारे लोग जब अति से पीड़ित होने लगा जाते है, तब वह इस enlightenment यानी जागृति के प्रति प्रतिरोध में खड़े होने लगते है । वह enlightenment को अब woke बुलाने लग जाते हैं,   और खुद वह anti woke बन जाते हैं।

Critical Thinking और What If Analysis की कबलियात

Critical Thinking की प्रतिभा को बालको में प्रोत्साहन देने की बात तो सभी कोई करता है, मगर जमीन स्तर पर इसको कैसे विकसित करा जा सकता है बालको में, इस पर कोई विशेष मंथन नही हुआ है। Critical Thinking कोई नैसर्गिक प्रतिभा नही होती है, जो जन्मजात निकलती हो। ये जन्म उपरांत ही विकसित करी जा सकती है, और इसके आरंभिक बीज पर्यावरण से प्राप्त होते हैं।  ये केवल किताबो को पढ़ने से नही आती हैं। इसका मूल जन्मस्थान होता है, संवाद। आपसी संवाद। ये वो स्थान है जहां से critical thinking निकलती है। इसका अर्थ है कि जितनी चपलता और शालीनता किसी भी बालक को उसके मित्रमंडली में मिलेगी, तमाम तरह के संवाद करने के लिए, उतना ही वह बेहतर तरीके से मंथन करने की प्रतिभा को अपने भीतर बीज बो सकेगा। इसका अर्थ ये भी है कि महज आज्ञाकारी हो जाना , और नीत दिन बैग उठा कर स्कूल जाने से कोई बालक एक बेहतर critical thinking नही विकसित कर सकता है अपने भीतर में। और न ही दुनिया भर की किताबो को पढ़ने से ये प्रतिभा प्राप्त करो जा सकती है। तो इसका अर्थ हुआ कि critical thinking केवल संवाद यानी बेहतरीन आपसी चर्चा और बातचीत कर

भारत भूमि पर भाषा संबंधित विवादो के कुछ विचित्र पहलुओं पर

दक्षिण भारतीय समुदायों की राजनैतिक बिसात में भाष्य विवाद मौहरा बना रहा है पिछले कई दशकों से। शायद इसलिए कि कभी अतीत में किसी केंद्रीय सरकार की नीति में हिंदी को अनिवार्य करने की कोशिश हुई थी। हालांकि तब से ही गलती सुधार में तमिल भाषा को भी बराबर तवज्जो देने की पहल हुई, मगर नेताओ लोग कहां आसानी से अपने मुहारों को गवाना चाहते हैं। वह कैसे भी करके पुराने छोटे जख्मों को कुरेद कुरेद का नासूड बनाने में माहिर लोग होते हैं। मौजूदा में तमिल और कन्नड़ लोग हिंदी और हिंदी भाष्य लोगों से लगभग घृणा करने लगे हैं। इस कदर की अब वह english को lingua franca बनाना चाहते हैं, जबकि english तो भारतीय मूल की भाषा ही नहीं है ! इधर हिंदी भाषी में भी English medium, Hindi medium का चक्कर है। Hindi medium लोग कम अकल, bigot समझे तो जाते हैं ही, बन भी जाते हैं parochial विचार वातावरण के चलते ! उधर English Medium वालो को पश्चिमीकरण से ग्रस्त,अपने ही देश और संस्कृति के प्रति पूर्वाग्रह से पीड़ित माना तो जाता है ही, वातावरण के चलते ऐसे बन भी जाते है !! अंत में हिंदी भाषियों का कोई माई बाप नही बचता है, क्यो

Retirement Day and the trip of Nostalgia

*Long write up. Discretion to skip it is advisable 🤓* Every month, toward the end of the month, many people nearing retirement visit my office to get my approval signatures for permits to bring their families into the port area for a visit. Many of them seek approval to bring as many as 35 or even 40 people. It seems as though they want to bring their entire village into this high-security port to show every family member and neighbor where they spent their working life. Their salaries, drawn from their work here, helped them build their homes and support their families. I always ask each retiree about their length of service with our organization, where their children are now, what they are doing, where they have built their own homes, and their plans for retirement, their second innings  As I listen to their responses, I often reflect on my own journey and that of my late father, who quietly returned home on his retirement day and went to a temple to offer his thanks to the almighty

Text of my voice message to my course mates on our 25th Anniversary meet

Something should be spoken out By each one of us, to all of us About life, about experiences about learning and about our collective legacy to our children That , how we started, Twenty-five years ago, on April 26th, 1998, our paths converged in a manner scripted by fate. Each of us hailing from diverse corners of India, we found ourselves united by a common thread - an arduous examination that served as our gateway to a shared destiny. Though the process may have been fraught with controversies, the telegram from the Shipping Corporation of India served as our beacon, summoning us to muster and embark on a voyage of professional growth. In hindsight, we ponder upon the roads not taken, the alternative paths we might have traversed. Some among us heeded the call of their true calling, veering towards different career streams. Yet, for those of us who remained steadfast in our maritime pursuit, the journey unfolded as a testament to perseverance and dedication. So, what would you or me

बोध की बात को शब्दों में पिरो कर प्रसारित नहीं किया जा सकता है। बोध की बात व्यक्ति को खुद की अक्ल लगा कर पकड़नी पड़ती है

अब, जब प्रकाश को अकेला ही सलोनी से चुपके से जा कर मिलने और उसके घर में रह कर लौटने का नतीजा भुगतने का अनुभव मिल चुका है, तो अब पलट कर घटना का what–if समीक्षा करिए , अपने दिमाग की थोड़ी सी वर्जिश करते हुए, कि क्या होता — क्या बातचीत चल रही होती— यदि प्रकाश  यही सलोनी से मिलने जाने के लिए हमसे पूछ कर के जाने की कोशिश कर रहा होता। संभव है कि हम प्रकाश को मना कर रहे होते , मगर तब हमे उसे यह समझना बेहद मुश्किल हो रहा होता कि उसे सलोनी से क्यों नहीं मिलना चाहिए। हम शायद प्रकाश से बेहद तर्क वितर्क कर रहे होते , — तमाम किस्म की घटनाओं की दुहाई दे रहे होते, — पूराने और मिलते जुलते अपनी जिंदगी की खट्टे मीठे अनुभवों को सांझा कर रहे होते इस उम्मीद के संग की शायद बात का निचोड़ वह खुद की अक्ल लगा कर पकड़ने में समर्थ हो जाएगा। शायद हमारे लिए बेहद मुश्किल होता सीधे, एक पंक्ति के संक्षिप्त तथ्यिक ज्ञान की तर्ज पर अपनी बात को कह गुजरना, क्योंकि इस मामले में तमाम भावनात्मक पहलू, सामाजिक धार्मिक पहलू भी तो थे ,जिनको की प्रकाश (या उसके जैसा कोई भी नौसिखिया इंसान) केवल बोध से ग्रहण कर सकता । मगर ऐ

बोध और ज्ञान का अंतर

बोध और ज्ञान के बीच का अंतर घना होता है। ज्ञान शब्दों से त्वरित किया जा सकता है, एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक। मगर बोध में मानव हृदय की भावना भी सम्मलित होती है, इसलिए वह शब्दों से त्वरित नहीं किया जा सकता है। बोध, यानी realisation , अंदर से आई जागृति होती है. इसमें सूझबूझ, सहूलियत, दूरदर्शिता, आगामी अपेक्षा, प्रेम, द्वेष, जैसे तरल वस्तु भी मिश्रित होते हैं ज्ञान के संग में। इसलिए एक इंसान को बोध अलग हो सकता है, दूसरे इंसान से, सामान विषय ज्ञान पर ! जबकि ज्ञान महज कोई तथ्यिक , वस्तुनिष्ठ बात होती है। ऐसे कई सारे विषय होते हैं इंसानी संबंधों और इंसानी आदान प्रदान के दौरान , जहां किसी अमुक व्यक्ति के किसी निर्णय , कर्म, कथन, इत्यादि के पीछे में अप्रकट  कारणों के पीछे कई विचार हो सकते हैं। अगर कारण खुद से प्रकट भी किए गए हो, तो भी छलावा या गलती की संभावना भी तो होती है। ऐसे में, सत्य या वास्तविक कारण का ज्ञान नहीं किया जा सकता है, उसे केवल बोध करना होता है । बोध के लिए प्रचलित भाषा में दूसरे शब्द अक्सर प्रयोग किया जाता है - "बूझ लेना"। बोध निर्मित करने के लिए प

Is there a difference between complimenting someone and giving a bribe

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When goras do it, it's obligatory bottle of scotch. When it's done by brown smelly indians, it's corruption Xxxxxx_____xxxxx_______xxxxxx Long ago, I read on Harward Business School website , that Giving Complimentary presents is a kind of Expression of one's feeling, joy happiness satisfaction Therefore, "tipping" is protected under Freedom Of Expression Rights !! The forceful extortion of complement, by misconduct, or by underperforming, That's illegal Xxxxxx_____xxxxx_______xxxxxx Warning: a Long Post below The tragedy of socialist countries, or those countries where the labour exploitation has been culturally accepted common practice (such as India) The social cultural and religious acceptance of the Free Will is low , Therefore, as a cultural predisposition, No man does any task properly of his own free will , The giver and the reciever both are in a state of perpetual tussle to achieve psychological dominance over each other.

भीड़ में जाने पर क्या झेलना पड़ता है

बचपन में जब कभी train से जाना होता था, तब sleeper boggie में बैठी भीड़ के संग में बैठा पड़ता था। भीड़ किसको कहते हैं?  ढेर सारे आदमी जब एक साथ इक्कठे हो जाते हैं, उसे भीड़ कहते है।  दिक्कत क्या है भीड़ में? हर एक इंसान का अलग चालचलन, अलग उठने बैठने का तरीका, अलग खाने पीने, और self cleaning का तरीका होता है। कोई मुंह खोल कर चबाता है, कोई मुंह बंद करके,  कोई नाक से सांस लेता है, कोई मुंह से। किसी के मुंह से बदबू आती है, किसी के नहीं। कोई नाक में उंगली डाल कर सफाई कर देता है, यूं ही खुल कर सबके सामने नाक में जमा मलबा निकाल कर, कोई हिचकता है और केवल बाथरूम में जा कर सफाई करता है। कोई तो ऐसी सफाई करके हाथ तक साफ नहीं करता है; बस यूं ही चुप मार कर बैठ जाता है। कोई hygiene समझता है, पूरी सफाई करता है , हाथो से लेकर चहरे तक की। कोई गला खराश करके यूं ही कही, अपने आसपास या बगल में थूक देता है,  और कोई बाथरूम में। ये सब देख कर अंदर से गंदगी में घिर जाने की बेहद घृणा वाली feeling आने लगती है , अपने भीतर में। और हमारा अपना खाना पीना , सांस लेना गंदा लगने लग जाता है। ये होता है भीड़ का चरित्र। इतने

दुर्घटना से सुरक्षा पर एक मौलिक चिंतन

दुर्घटना से सुरक्षा पर एक मौलिक चिंतन (स्कूल के दिनो मे पाठ्यक्रम में पढ़ाई  गई किसी कहानी की धुंधली सी स्मृति पर आधारित) लेखक के राशिफल में आज लिखा हुआ था कि उसके संग कोई दुर्घटना घट सकती है । लेखक सुबह उठते ही अखबार में अपना राशिफल पढ़ता था, और उसके अनुसार अपनी दिनचर्या की योजना करता था। अब आज वो सुबह से ही परेशान था कि उसके संग घटने वाली दुर्घटना से बचने के लिए वह क्या कर सकता है। रोज सुबह तो वह तैयार हो कर ऑफिस के किए निकल जाता था। मगर आज सोचने लगा कि ऑफिस जाऊं , कि नहीं। कहीं रास्ते में कोई अमीरजादे की सरपट दौड़ती कार उसे ठोकर मार गई, तो? कहीं कोई स्मगलिंग का सामान ले जा रहा ट्रक पुलिस से बचने के चक्कर में तेज दौड़ाते हुए उसे कुचल कर निकल गया, तो? कहीं कोई सरपट दौड़ती स्कूटर उसके बगल से निकली, जिसके हवा के झौंके में उसकी पतलून फंस गई और स्कूटर वाला उसे घसीटता हुआ आगे ले गया, जिससे उसके सर पर चोट लगी, आघात हुआ और वह मर गया , तो? लेखक ने सोचा कि सबसे सटीक तरीका किसी दुर्घटना से बचने का, बस यह है कि घर के बाहर ही मत निकालो! ये सोच कर वह वहीं पास में रखे सोफे में ठप्प करके बैठ

Chor गीत से संबंधित कुछ प्रश्नावली

 Reference  song "Chor" by Justh 1) गीत के बोल का सारांश क्या है आपके अनुसार ?  2) अगर सारांश है ज्ञान और बोध को प्राप्त करने से, तो आपके अनुसार क्या क्या करना पड़ता है, (या कि पड़ सकता है) ज्ञान प्राप्त करने के लिए। 3) क्या क्या, और कितना त्याग करने को तैयार है गीतकार बोध और ज्ञान की प्राप्ति के लिए 4) बोध, ज्ञान और मोक्ष में क्या अंतर होता है, आपके अनुसार ? 5) आपके क्या लगता है,गीतकार की चाहता इस चारो में से क्या है — बोध? ज्ञान ? मुक्ति ? मोक्ष ? 6) त्याग क्यों आवश्यक है? 7) मोह कैसे हमारा मार्ग रोकता है ये (बोध, ज्ञान, मोक्ष etc प्राप्त करने के लिए? आपकी क्या राय है? 8)!मोह को त्याग करने की बात किस अन्य ग्रंथ में कही गई है, आपकी जानकारी के अनुसार? 9)!मोह को त्याग कर देने को क्या पुकारा गया है? उससे क्या मिलता है जीवन में,? इंसान के हृदय में? निर्णय ले सकने की योग्यता में? 10) निर्मोह प्राप्त किए इंसान का व्यवहार , आचरण कैसा हो जाता है? क्या प्रस्तावित किया है भगवद गीता ग्रंथ में इसके बारे में? 11) भवसागर में डोलती नैय्या में हिचकोले खाता हुआ व्यक्ति, जो परेशान है, sea sic

Song "Chor" by Justh, Sitting Choreography

  Chor, by Justh, Sitting Choreograph y इसकी मुद्राओं को जरूर देखना  कि, किस मुद्रा के प्रयोग से कौन सा भाव को दिखाने का प्रयत्न किया गया है,  और क्यों उस मुद्रा का चुनाव हुआ , उस भाव के लिए,  अगर  क्या उससे भी भिन्न आप किसी और उपयुक्त मुद्रा का चुनाव समझते किसी भाव के लिए

Debate : Wrtitten homework is educational,

Speaking for the topic  Homework is what work we get from the School to be completed at home. Many people say that there should not be any home work given from school - written , project styled, or whatever — to be completed at home because, such work make little children to be at loss of time to do their own wishful activities where they may find learning on their own. Many people think that true learning not what we get from the school , but we explore out by ourselves. And so, homework become a hurdle on the path. Then, teachers argued back that home work shoudl not be given in the form of written work, but instead in some other style, say a project, where there is Application to be done of whatever knowledge the child has learnt in the classroom. So far , I agree with whatever has been argued by people standing on both the sides. But I would also like to make own addition in this, that the homework in the form of written work is not that mucn a bad idea because we actually do n

सर्वोच्च न्यायालय में Computer तथा Electronics प्रौद्योगिकी संबंधित विषयों पर मूढ़ता पर एक विचार

बात 1993 की है, जब हम नौवि क्लास में थे । Computer विषय की अध्यापिका, श्रीमती अनुजा अग्रवाल मैडम हम लोगों को तत्कालीन सुप्रचलित Programming Language, GW—Basic, में RND नामक Statement पर लेक्चर देते हुए बता रही थी की Random Numbers क्या होते हैं, और कैसे computers के उपयोग को Casino, Computer Games जैसे कि Wheel of Fortune, Roulette, Poker Games के लिए मार्ग खोल देते हैं। हम छात्र लोगो का सवाल जाहिर सा उठा टीचर से — कि, क्या Computers पर आधारित Gambling Machines पर भरोसा किया जा सकता है ? क्या इन machines के भीतर के computers पर कोई दूसरी program लिख करके अपने इच्छा अनुसार वाले random numbers नही generate करवा सकता है कोई , जैसे कि casino का मालिक खुद ही । अनुजा मैडम का जवाब धमाकेदार था, और आजतक याद है — कि, हां ऐसा किया जा सकता है । वास्तव में computer और electronics प्रौद्योगिकी कि इंसानों द्वारा बनाई गई कृतिम दुनिया में कुछ भी uncontrolleable नहीं होता है। सिर्फ आसमान में चमके और गिरने वाली बिजली ही सच्चे मायनों में संसार में वाकई में Random होती है, जिसकी भविष्यवाणी नही करी जा स

Making assumptions is an essential and inevitably evil tool for life to survive and thrive

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  Axxxxxx :   Having an opinion about a government official just basis a fwd msg is incorrect. Assumption should not be made on the basis of scanty information.  Hopefully DGS investigation report about this incident is made public for all of us to know the truth and what mitigation measures have been taken by them to prevent this in future Even the UKHO and the Mariner's Handbook doesn't want the Mariners to place as much reliance on the information that they supply, as much as you want us to depend of the DGS investigation report ! 🤦‍♂            Also,  The lines read,  "Assumption shall not be made on ..." So, don't read it like , "Assumptions are not allowed to be made ..."  🤨 Open you mind , Making assumptions is an essential and inevitably evil tool for life to survive and thrive.             In the wild, all animals immediately run for their life the moment the birds sitting in the top the                   trees    start cawing . That assumptio

Which class of people can be aptly called as "Cattle" ?

"People from U.P, Bihar side are cattle , and I am a Jatt ." ~ common psychology of masses A cattle ,more honestly speaking, is the one who doesn't have control over his mind , his thoughts, his words and his actions. The one who acts out of a compulsive behaviour is truely worth being labelled a cattle. Someone who is driven by opinions conposed by someone else,, sees others  from an imagery drawn by someone else, he is in real sense a cattle .  The one who cannot overcome the sweeping perception of his mind to uncontrollably see every other person as belonging to a certain malevolent category , such a person genuinely is the one who deserves to labelled as " a cattle" .

आधुनिक Competetive Examination System की दुविधा

आधुनिक शिक्षा तंत्र की अजीब दुविधा हैं। Competetive exams के संबद्ध में — यहां कमाना ये करी गई होती है कि छात्र को विषय के बारे में कुछ गहराई से ज्ञान होना चाहिए। मगर, साथ में समय बद्ध भी कर दिया जाता है। यानी, गहरा जानने- जानने के चक्कर में गहराई में कतई उतरे का जोखिम नहीं लेना है, अन्यथा भटक जायेंगे और समय रेखा पर मात खा जायेंगे ! विषय में गहराई से जानने का अर्थ होता है उसके दर्शन को पकड़ना।! मगर, competetive exams system तंत्र चाहता है कि आप philosophy पढ़ने में बिना समय जाया किए,  बिना philosophy पढ़े ही उसे गहराई से जान ले !! अधिकांश छात्र यहां पर मात खा रहे होते हैं। गहरे से समझने की मजबूरी उनको ऐसे ऐसे स्थानों पर गहराई में ले जाती हैं, जहां वह philosophy को ही सुनने से मंत्रमुग्ध हो कर भटकने लग जाते हैं ! और समय रेखा पर मात खा बैठते हैं ! अब, विशेष समस्या जो सामने आ निकल कर आ रही है, क्या आपने उसे बूझ कर उसका निराकरण समझ लिया है ? ये कि, बिना philosophy पढ़े ही गहराई से ज्ञान कैसा अर्जित किया जा सकता है ? इसका केवल एक ही समाधान है -- कि कोई गुरु पहले से ही मा

What woman want ...& ...what everybody wants

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The Charvaks philosophy 

Spiritual (या Thought Leader) क्या होता है, क्यों चाहिए होता है, और क्या दिक्कत होती है उसके चयन में

Spiritual Leader एक thought leader होता है, जिसकी समझ ज्यादा परिपक्व होती है। क्या मतलब हुआ परिपक्व का? परिपक्व मतलब mature का? वो जो कि घटनाओं को व्यापकता से देखें और बूझे, समय रेखा पर भी और भूगौलिक स्थानों पर भी। वो व्यक्ति जो इंसानों को न केवल उनके नाम, जाति या धर्म से चिन्हित करता हो, बल्कि वो जो कि इंसानों को उनके चरित्र, प्रकृति, बौद्ध, तर्क, चिंतन शैली जैसे तरल पैमानों से भी सटीकता से पहचान कर सके और अनुमान बांध सके कि किसकी क्या प्रतिक्रिया, क्या आने वाला व्यवहार हो सकता है। ये होता है spiritual लीडर। Thought leader भी अक्सर वही होता है, क्योंकि वह समुदाय को उनके विचारो की दिशा देता है। कि किस प्रयोजन में सभी सदस्यों को मिलजुल कर, एक साथ युग्न करना चाहिए। सभी स्वस्थ मस्तिष्क वाले इंसानों को एक spiritual / thought leader की अपने जीवन में कमी का बोध होता है । सभी इंसान ढूंढ रहे होते हैं अपने लिए एक गुरु को, जो कि उन्हें संसार से अवगत करवाता रहे, क्योंकि संसार में कदम कदम पर रहस्य, अज्ञानता, खतरा, धोखे,असुरक्षा, होती है। आवश्यक नही कि जन्म देने वाला पिता, (या माता, या दो

Spiritual Leader या Thought Leader कौन होता है?

Spiritual Leader एक thought leader होता है, जिसकी समझ ज्यादा परिपक्व होती है। क्या मतलब हुआ परिपक्व का? परिपक्व मतलब mature का? वो को कि घटनाओं को व्यापकता से देखें और बूझे, समय रेखा पर भी और भूगौलिक स्थानों पर भी। वो व्यक्ति जो इंसानों को न केवल उनके नाम, जाति या धर्म से चिन्हित करता हो, बल्कि वो जो कि इंसानों को उनके चरित्र, प्रकृति, बौद्ध, तर्क, चिंतन शैली जैसे तरल पैमानों से भी सटीकता से पहचान कर सके और अनुमान बांध सके कि किसकी क्या प्रतिक्रिया, क्या आने वाला व्यवहार हो सकता है। ये होता है sporitual लीडर। Thought leader भी अक्सर वही होता है, क्योंकि वह समुदाय को उनके विचारो की दिशा देता है। कि किस प्रयोजन में सभी सदस्यों को मिलजुल कर, एक साथ युग्न करना चाहिए।

अगर बढ़ा अधिकारी बनना हैं तो Cheating करना छोड़ दो

12th Fail में एक दृश्य है, जब dySP साहब, दुष्यंत सिंघ (Priyanshu), मनोज को बताते हैं कि एक बड़ा पुलिस अधिकारी बनने के लिए cheating करना छोड़ना होता है। "Cheating करना छोड़ना"  क्या मतलब हुआ इसका?  क्या सिर्फ exams में फर्रे बना कर पास कर लेना छोड़ देने भर की बात थी? गहरा अर्थ कुछ भी नहीं था? कि सिर्फ इतना कर लेने भर से UPSC का कठिन interview पास हो जाता ? लोगो के सवालों का उचित, संतुलित, संतोषजनक जवाब देने की कला आ जाती ? Interview कहीं भी हो, उद्देश्य सवाल जवाब या Kaun Banega Crorepati के GK Quiz जैसा नही रह जाता है।interwiewer के सवाल व्यक्तिनिष्ठ होते हैं, एक सवाल का जवाब दूसरे सवाल को जन्म देता रहता है, बातचीत का समां बंधने लगता है, जो कि आगे केवल तब ही बढ़ता है जब सामने वाला जवाब कुछ संतोषजनक सा देता सुनाई पड़ता है, मगर हर बार कुछ थोड़ी सी कमी रह जाती है interviewer के मन में और उसे पूरा करने के लिए वह दूसरा कोई सवाल पूछ लेता है। ये सिलसिला होता है interview में।  तो इसने cheating छोड़ देने का क्या लाभ मिल जाता है, एक संतोषजनक जवाब देने में? बात personal honesty में एक ख

Nationalism is important, but .....

.....But sometimes I think that, Trying to undo the existing system which has emerged from the historical facts of its own,  Will lead to severe situation of wars and conflicts all over the world  Imagine, When every other nation will start to give a call for nationalism to its citizens, Resulting in a bloated sense of nationalistic ego of all these nations coming in a conflict with each other, just to prove its point and the superiority , It will so happen that nationalism will lead to great distructiion in the world which is already laden with nuclear weapons. The Wikipedia, under the page about the Narcissism discusses about a variant of the malice,, called as the Nationalistic Narcissism,  wherein the psychopathic patient starts to get his pleasure trip by boasting about the glories and achievements of his nation, the "ego trips" To an untrained eye, such a patient may only look innocuous and a simple patriot, displaying his love for his beloved motherland , Until the tim

EVMs के प्रति बढ़ते जन अविश्वास के प्रभाव

Sam pitrodha, जो कि overseas Congress के अध्यक्ष हैं, वे भी अभी हाल ही में चुनाव आयोग से EVM के प्रति बढ़ते हुए जन अविश्वास पर पत्राचार कर चुके हैं। जितना जितना जन अविश्वास बढ़ेगा, उतना ही ये बात बैठने लगेगी कि अब भारत में level playing field नहीं बचा है। छत्तीसगढ़ में  कांग्रेस नेता धीरज साहू के घर income tax और ED की रेड में करीब ३००करोड़ नकदी पकड़े जाने के बाद पूर्व आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन का व्यक्तव्य कि electoral bonds के चलते ये तो जाहिर हो गया है कि सत्ताधारी पक्ष cheque में पैसा चलाएगा और विपक्ष का रोकड़ा ED से पकड़वाएगा, ये वापस level playing field की बढ़ती कमी की ओर प्रकाश डाल रहा है। ऐसे हालातों में अब कई सारे लोगों का देश से मोहभंग होना जाहिर होने लगता है। दक्षिण भारत से भाजपा करीबन पूरी तरह साफ़ हो गई है, जो वापस इशारा दे रहा है कि मोह भंग बढ़ रहा है, level playing field के प्रति लोग चिंतित होने लगे हैं। अमेरिका और कैनाड में केंद्र सरकार की जासूसी कार्यवाही में खालिस्तान समर्थक नेताओं की हत्या, जिन्हे कि वे दोनों देश महज अपना आम नागरिक मानते हैं, मामले का पकड़े जान

छोटे बालकों को किस्से और कहानियां सुनाने के महत्व के बारे में

एक बड़ी चुनौती ये रहती है कि बच्चों को चेतनावान या विवेकशील कैसे बनाया जाए । इस विषय पर बात करते हुए, सबसे पहले तो यह समझना जरूरी है कि 'ज्ञानवान' अलग होता है और 'चेतनावान' (या विवेकशील) अलग । ज्ञान तो किताबो से मिल जाता है मगर चेतना को अपने अंदर से निकलना होता है। चेतना दिमाग की वह क्रिया होती है जिसके माध्यम से इंसान निर्णय लेता है कि असली और नकली ज्ञान को कैसे भेद किया जाए; कौन सा ज्ञान कब और कहां सार्थक है और कहां निरर्थक है; नया ज्ञान कब और कहां प्रस्तुत कर रहा है और वह क्या है; किस व्यक्ति से क्या ज्ञान सांझा करना चाहिए और कब मूक रह जाना उचित होता है। ये सब बातें बच्चों को ज्ञान बना कर प्रसारित नहीं करी जा सकती है। ये सब conceptual है, यानी अपने विवेक से प्रत्येक बालक को तय करना सीखना होता है। और यहां हमें विवेक और ज्ञान के मध्य का अंतर दिखाई पड़ जाता है। जरूरी नहीं कि जो बालक (या व्यक्ति) ज्ञानवान हो, वह विवेकशील भी हो। विवेक के माध्यम से इंसान खुद के निर्णय लेना सीखता है, जबकि ज्ञान के माध्यम से केवल सवालों के जवाब देना सीखता है। मानव मस्तिष्क नैसर्ग