गहरी बातें क्या होती है

12th Fail फ़िल्म में DySP दुष्यंत सिंह मनोज को बोलता है कि अगर बड़ा अधिकारी बनना है तो cheating करना छोड़ दो।

बात Self Honesty की करनी थी दुष्यंत सिंह को, मगर चूंकि मनोज अभी अंतर्मन से संबंधित गहरे विषयों और उनकी बातों से नावाकिफ था, तो उसी बात को हल्के शब्दों में ऐसे ही कह दिया गया, "cheating करना छोड़ दो"।

अंतर्मन के गहरे विषय, जिन्हें किताबी पढ़ाई के तौर पर तो इंसान psychology, philosophy जैसे विषयों की किताबों से पढ़ सकता है, मगर ऐसा जरूरी नहीं है। गहरी बातों का साधु जनों, बड़े बुजुर्गों, तजुर्बेकार लोगो के साथ उठ बैठ कर भी सरीख पकड़े जा सकते हैं।

आम आदमी , जो गहरी बातों से वाकिफ नहीं होता है, यदि उससे गहरे सवाल किया जाए कि वह कोई फिल्म क्यों पसंद करता है, कोई खाना क्यों पसंद करता है, कही जाना क्यों पसंद करता है, तब उसे जवाबो से पता चल जाता है कि वह अभी अपने ही मन की गहराइयों में उतरना नहीं सीखा है, और उसके जवाब वही छिछले से, चलन वाले निकलते है। मसलन , —
" फलाना फिल्म इस लिए पसंद है क्योंकि सभी ने इसकी तारीफ करी है", 
"फलाना खाना , (जैसे McDonalds बर्गर, या KFC चिकन) अच्छे लगते है*
या कि, "फलाना जगह जा कर मजा आता है, सुंदर लगता है, scene होता है, Beautiful होता है"

हल्के व्यक्ति विशेषणों (adjectives) को ही कारण (reason) बताने लग जाते है, क्योंकि वह अपने मन की गहराई में उतर कर अभी सवालों के गहरे समंदर को तैर कर पार लगाना नहीं सीखे होते हैं कि ये सभी विशेषण (adjectives) , जैसे कि Tasty food, delicious meal , beautiful place, scenic views, mazedaar action, superhit film, की सच्चाई क्या है, ये क्या होते हैं इन्हें कौन तय करता है, हम किसी व्यक्ति, वस्तु को किसी adjective से सुसज्जित किस तरह से, किस आधार पर करते है।

गहरे बातों में सवाल कुछ ऐसे होते है, जो ये तलाशते है कि adjectives क्या है, इंसान इन्हें लागू करने के अपने नियम विकसित कर पाया है या नहीं, अपने adjectives को दुनिया के सामने सिद्ध करने का साहस अपने भीतर विकसित करने में कितना सफल हुआ है।

Self honesty को प्राप्त कर सकने की कठिन साधना के मार्ग में ये सब पड़ाव आते है। Self Honesty को जागृत करने के लिए इंसान को अपने महसूस करने अंगों को अपने चिंतन करने वाले मस्तिष्क के संग गठजोड़ में लाने की योग साधना से गुजरना पड़ता है।

चिंतन मन कोई एक सीधा, आलू के जैसा अंग नहीं होय है। वैज्ञानिक बताते है की चिंतन मन कई परतों में होता है, प्याज के जैसा। बाहरी चिंतन मन अलग होता है, अंतर्मन अलग। बाहरी मन गणित और भौतिकी के तार्किक सवालों को हल कर सकता है। मगर अंतर्मन अंधा और बेहरा होता है, वह गणित भौतिकी में तेज नहीं होता है। वह भावनाओं को पढ़ने में तेज होता है। वह mood को समझता है, और कला संबंधित विषयों में तेज होता है। अंतर्मन असल वह स्थान होता है जहां से इंसान तमाम adjectives में से उचित का चुनाव करता है। अंतर्मन को टटोलने से इंसान गहरे सवालों के सागर के तट तक पहुंचता है, उसको तैरना सीखता है। वह मुक्ति प्राप्त करना आरम्भ करता है , दुनिया के "manipulations", जहां relative view, apparent view, illiusion और uninoculare view से स्वतंत्र हो कर वह true view का concept समझ पाता है। उसे दुनिया की राजनीति के छल और धार्मिक रिवाजों के असत्य, मिथ्या दिखाई पड़ने लगती है।

अंतर्मन को पढ़ने की शक्ति, अर्थात बोध
अंतर्मन समझने से इंसान न केवल अपने भीतर को टटोलता है, बल्कि वह दूसरे व्यक्ति के मन को भी टटोलना सीख लेता है। दूसरा व्यक्ति जबान और शब्दों से कुछ भी कहे, मगर अंतरिम टटोलने की शक्ति के प्रयोग से उसकी मंशा(intentions) और उसका अंतरिक उद्देश्य (motive ) समझ में आने लग जाता है।

प्राचीन युग में भी अंतर्मन को साधने के , साधना मतलब पढ़ना और नियंत्रण करना, के प्रयत्न शुरू हो चुके थे। प्राचीन यूनान में gymnastics का आरंभ कुछ ऐसे हुआ था। हवा में लहराता, घूमता हुआ शरीर मस्तिष्क के नियंत्रण से नहीं, बल्कि अंतर्मन के नियंत्रण से वह तमाम अदभुत क्रियाएं कर पाता है, जिसे देख कर लोग चकित रह जाते हैं। Gymnastics एक योग साधना है, जिसमें शरीर वैसे क्रिया करता है, प्रकट मस्तिष्क से आजाद हो कर, जैसा कि अंतर्मन सोच रहा होता है। 

 पूराने समय में अंतर्मन साधने के लिए ऐसा कर पाना सर्वोच्च मानक।था। हालांकि आज के समय में व्यक्ति बहुत आगे निकल।चुके हैं। आज psychology और तमाम गहरे विषयों के विज्ञान निकल आए है , जिनको साधने से इंसान और भी बहुत कुछ प्राप्त कर सकता है अन्य क्षेत्रों में। जैसे advertising और sales के क्षेत्र में लोगों के दिमाग को नियंत्रित कर लेना की उसके उत्पाद खरीद लें। ऐसे लेख, फिल्म या कहानी लिख लेना जो लोगों को पसंद आ जाए और वह पैसे खर्च करके उसे देखने जाएं।

अंतर्मन को मूक, मौन रह कर भी साधा जा सकता है, और अत्यधिक संवाद कर के भी। मौन व्यक्ति जिस विधि से अंतर्मन को साधता है वह होती है introvert , जबकि अत्यधिक संवादों में लिप्त हो कर अंतर्मन को साधने की विधि को बोलते है extrovert . और कुछ लोगों दोनों के मिश्रण का प्रयोग करते है,वह ambivert कहलाते हैं।

अंतर्मन को साधने से self honesty के शिखर तक ले जाने वाला वो द्वार खुलता है, जहां से इंसान नई खोजें करता है, और अपने को सिद्ध कर सकने की योग्यता को विकसित कर लेता है। अब वह तर्क करना सीख लेता है कि जिसे वह beautiful वाले विशेषण से नवाज रहा है, वह क्यों सही है। वह adjectives का चयन अपनी बुद्धि से करने लगता है, दुनिया के कथन के प्रभावी से नहीं।

भारतीय समाज अभी अंतर्मन और self honesty के बौद्धिक विषयों के जान सागर के तट से बहुत दूर निवास कर रहा है। वह नावाकिफ है अंतर्मन और उसको साधने से प्राप्त होने वाली शक्तियों, क्षमताओं और योग्यताओं से।







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