Posts

Showing posts from September, 2018

स्वयंसेवक संघ की बदलती धुन की प्रशंसा

राष्ट्रीय स्वयंसवेवक संघ के हाल के एक काम की प्रशंसा तो करनी ही पड़ेगी।  वह यह कि इन लोगों ने यह बात सबसे तीव्रता से पकड़ ली है कि भारत मे जनसंख्या के अनुपात में कहीं अनेक और विविध विचारधाराएं है। और दूसरा यह कि कोई भी विचारधारा इतनी उत्तम और विकसित नही हो पाई है कि देश की एक बहुमत जनसंख्या को यह प्रेरणाप्रद आभास दे सके। बाकी अन्य खेमे तो आज तक बचकाने दर्शन पर ही जम चुके है, और आज़ादी के 70 सालों बाद भी बस यहीं तक कि बौद्धिक क्षमता रखते है कि "हर आदमी की अपनी-अपनी विचारधारा होती है, हमें सभी की विचारधारा का सम्मान करना चाहिए।" इस बार-बार दोहराए जाने वाले कथन के आगे सभी पार्टियों की बुद्धि समाप्त हो जाती है। यह शायद आज भी भारत मे बहोत कम लोग समझते हैं कि राष्ट्र निर्माण के लिए तमाम विचारधाराओं में प्रतिस्पर्धा करनी पड़ती है, जिनमे से वह राष्ट्र निर्माण का सूत्र बन सकने योग्य सर्वोत्तम विचारधारा निकालनी पड़ती है जिस पर चलने के लिए समाज के हर इंसान को प्रेरित किया जा सके, जिसे अधिकतर इंसान सहर्ष स्वीकार करने स्वयं उसका अनुसरण कर सकें।  शायद इसी समझ से संघ ने संघोष्ठियों का एक दौर

लोक सेवा तंत्र -- समाज के आर्थिक विकास की सबसे बड़ी बाधा

(लेकिन मनीष भाई), मेरे को हाल फिलहाल के अनुभवों से लगने लगा है कि दुनिया भर में जो कुछ उद्योगनागरियों का पतन को हम देखते हैं, उसका वास्तविक कारण वामपंथ नहीं (साम्यवाद , Communism) नही है बल्कि उद्योग और तकनीकी में छिपी विशेषताएं हैं। वामपंथ एक विशेषण नाम है, जिसका उदगम संसदीय आचरण से निकलता है। संसद में बहुमत गुट अध्यक्ष के दाई आ8र बैठता है, और अल्पमत गुट बाई ओर। बाई साइड को वामहस्त बुलाते है, इसलिए इसलिये यह विशेषण उपनाम है। असल विचारधारा का नाम साम्यवाद है। साम्यवाद का केंद्रीय विचार तो सारी दुनिया मे ही स्वीकृति किया गया है। वही welfare state के नाम से हर जगह अपनाया गया है। सभी विधानों में, शास्त्रों में , धार्मिक ग्रंथों में - जनकल्याण को ही सर्वोच्च कानून बताया जाता है। public welfare इस the utmost law। अन्तर तो सिर्फ इसको निर्वाहन में है। प्रजातन्त्र में public welfare के नाम पर private property का गला नही घोटा जाता है, जबकि Communism बहोत उतावला रहता है public welfare के नाम पर private property का गला घोटने से। दिक्कत है कि हम और आप कुछ पुरानी छवि के चलते वामपंथ को labour यू

Both- the Faith and the Sciences can make the man Ignorant!

The quirky challenge before human mind is to continuously make distinction between what is POSSIBLE and what is FEASIBLE . In resolving the problem, some people fail more often than the others. And it is those failed people who are called the ignorant ones by those others. The continuum of POSSIBILITY spreads to infinite , just like how the universe is spread. The boundary of FEASIBILITY is ever shifting , just like how much farther the man-made space craft has travelled till today. People who lose track of the boundary, they become the ignorant ones. Now , the INFINTE realm of POSSIBILITY exist at both the places - In the Sciences , as well as as the Faith . So that is the commonality between the Science and the Faith . That , man can fooled and be brought into ignorance using either of the two - the Faith , as well as the Sciences !! ☝ Astonishing, isn't it?👌 That , even the Sciences can make a man ignorant !

Dharmic Faith- the cosmic knowledge of how the same man imbibes the Good and the Evil within him.

When Fighting the evil there is one danger every fighter who stands for the Good must know. Evil has a very cunning power to enter the mind, mentality and body of the fighters of the Good, when the Good starts employing those tactics which are typically evil in themselves.    In Ramayana, Rama knew about this particular quality of the evil. Hence , immediately after arrowing down Ravan, he asked Laxman to sit  by the leg side of Ravan and apologise the great learner and a great devotee , and all the Good that Ravan had. Ram knew that the Good and the Evil , both live in the same human being . The victory or the defeat of any is only a matter of what the conscitiousness of that human being allows to be promoted in his own self. This is the definition of the Sanatan Dharm , where the Dharm is all about self-identifications of the good and the Evil. There is no good and evil given as a commandment by any supreme being or his prophet. It is all about your own self recognition. Therefore t