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Showing posts from November, 2021

आकृति माप का सत्यदर्शन कर सकना भी बोधिसत्व प्राप्त करने के लिए आवश्यक होता है

जब कोरोना संक्रमण से उत्तर प्रदेश, बिहार , दिल्ली में अपार मृत्यु हो रही थी, तब भक्तगणों ने मामले को दबाने के लिए sm पर शोर उठाया था कि, " कितने सारे लोग ठीक भी तो हो कर लौट रहे हैं, मीडिया उनकी बात क्यों नही करता? ये तो negativity फैलाने की साज़िश करि जा रही है। " चिंतन का ये तरीका दिमाग को अफ़ीम खिलाने वाला है। कैसे? संसार में प्रत्येक विषय के दो या अधिक पहलू होते हैं। बोधिसत्व प्राप्त करने के लिए मनुष्य को सत्य परिस्थिति से दोनों पक्षों को तो देखना ज़रूरी होता है, मगर इसका अर्थ ये नही है कि सदैव सभी पक्षों को समान आकृति माप में करके देखना होता है।  कहने का अर्थ हैं की यदि कोई एक पक्ष अन्य से अधिक विराट हो रहा हो, तब सत्य दर्शन के अनुसार उसकी विराटता को देख और पकड़ सकना सही बोधिसत्व होगा।  अगर कोई व्यक्ति सही आकृति माप के दर्शन नही कर रहा हो, या ऐसा नही करने को प्ररित करता हो, तब वो जरूर कोई छलावा कर रहा है। सोचिये, पेट्रोल और गैस के दाम बढ़ने से जनता को हुए कष्टों पर यदि ये कहने लग जाएं कि,  " भाई, दाम के बढ़ने से, महंगाई के आने से ये भी तो देखिये कि उस लोगों को फायदा पहुँ

भाग २ -इतिहासिक त्रासदी के मूलकारक को तय करने में दुविधा क्या है?

 ज़रूरी नहीं है कि इतिहास का अर्थ हमेशा एक ऐसे काल, ऐसे युग का ही लिखा जाये जिसको जीने वाला, आभास करने वाला कोई भी इंसान आज जीवित ही न हो। इतिहास तो हम आज के युग का भी लिख सकते हैं, जिसे जीने और आभास करने वाले कई सारे इंसान अभी भी हमारे आसपास में मौज़ूद हो। और वो गवाही दे कर बता सकते हैं कि ये लिखा गया इतिहास के तथ्यों का निचोड़,मर्म , सही है या कि नहीं। मोदी काल के पूर्व मनमोहन सिंह के कार्यकाल तक का भारत का सामाजिक इतिहास टटोलते हैं। हमारा समाज एक गंगा- जमुनवि तहज़ीब पर चल रहा था। अमिताभ बच्चन मनमोहन देसाई की बनाई फ़िल्म 'अमर-अकबर-एंथोनी' में काम करके सुपरस्टार बन रहे थे। फ़िल्म भी सुपरहिट हो रही थी, और कलाकार अमिताभ भी । शाहरुख खां अपने 'राहुल' की भूमिका में फिल्मों में भी हिट हो रहा था, और फिल्मों के बाहर भी लड़कियों में लोकप्रिय था। इससे क्या फ़ायदा हो रहा था कि सामाजिक संवाद को कि भारत आखिर मुग़लों का ग़ुलाम कैसे बना था? फायदा ये था कि समाज में न्याय और प्रशासन तो कम से कम निष्पक्ष हो कर कार्य कर रहे थे। मीडिया को सीधे सीधे भांड नही बुलाता था हर कोई। सेना के कार्यो पर श्रे

इतिहासिक त्रासदी के मूलकारक को तय करने में दुविधा क्या है?

देखिये, इतिहास में ज्यादा कुछ नही रखा है जिसके लिए हम आपसी संघर्ष करके अपना भविष्य बर्बाद कर लें। मगर संक्षिप्त में संघ के 'हिंदुत्व' पक्ष और विरोधी liberal पक्ष में जो disagreements हैं, वो ये कि संघ कहता है कि हिन्दू लोग बहोत अच्छे,भोले, शांतिप्रिय लोग थे और मुग़लों ने इनकी धार्मिक प्रवृत्ति का फ़ायदा उठा कर आक्रमण करके इनके देश को ग़ुलाम बना लिया। और liberal पक्ष जो की वो भी हिन्दू है, उसका दावा है कि हिन्दू सिर्फ मुग़लों से नही, बल्कि हर एक आक्रमणकारियों से रौंदा गया क्योंकि हिन्दू आन्तरिक पक्षपात,भेदभाव और ऊंच नीच करने वाला , ब्राह्मणी कुतर्कों से संचालित दो-मुँहा समुदाये था, जिसके चलते ये कदापि कोई राजनैतिक और सैन्य शक्ति बन ही नही सकता था। Liberals के अनुसार , जो हुआ इतिहास में, ये तो कर्मो का फल था। हिन्दू क्या है? वास्तव में ब्राह्मणों का फैलाया कुतर्क और धूर्त प्रथाओं का नाम है, ' ब्राह्मण धर्म "(व्यंग), जो ब्राह्मणों को समाज पर वर्चस्व बनाने का षड्यंत्र के समान है। 19वीं शताब्दी में, बाबा अम्बेडकर के संघर्षों से आरक्षण नीति के आने से पूर्व, आज के जो " स

Criticism of the Civil Services in India and what confused role they assume on themselves hampering the proper functioning of the society

The Civil Services in India have been laid on the lines of Caste System only. And they are, without iota of doubt , unique in the world.  The passing of entrance exam to the Civil Services is equitable with the " dwij " event of the Caste System. Once the " dwij " has occurred and the "janeyu dharan" is done, the person is an upper caste for life and forever , and thence he can enjoy all the pleasures even when the rest of the people in the country are crying and dying of poverty, unemployment, calamities. Just like the how the mandir donations feed the priest and these donations guarantee for the Pandit-class of people that their private economy will stay no matter how hard is the drought in the country ,the civil services get their income from public money , and have a guaranteed private economy, no matter how hard is the inflation for rest of every person ! Pandit Nehru has repeated "Casteism" in a new avatar in the foundational roots when lay