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Showing posts from July, 2019

The Sea Stabilization debate around Marine Radars

The problem of human mind is its tendency to become fixated with any IDEA that it receives with overwhelming emotions. Even as the young seafarers started to understand the importance of the STW (Speed through Water) feed to the ARPA for the purpose of Collision Avoidance , the debates around HOW and WHY such action is important , it seems to be leading TO A FIXATION among many young seafarers so much that they seem to be becoming oblivious of the importance of the SOG (speed over ground) Feed to the ARPA !! Debating often tends to create the Fixated Advocacy of some idea, so much that people begin to judge the purpose and utility of an idea exclusively with respect to what FIXATION they bear in their minds. The STW Data Feed on the ARPA seems to generate one such incidence. The advocacy of the 'STW Vs SOG' Debate leads, at one point, to discuss the TCPA and CPA. Theoretically, the TCPA and the CPA will not be affected whether a RADAR is fed with STW or the SOG. This conditi

भारत की हज़ारों वर्षों की ग़ुलामी के अलग अलग root cause analysis

ऐसा क्यों हुआ की भारत भूमि ने विभीषण पैदा किये, जय चाँद पैदा किया , मीर जफ़र पैदा किये , मगर कमांडर नेल्सन नहीं ? भारत के पश्चिमी राज्यों में यह समझा जाता है की भारत देश को हज़ारों वर्षों की ग़ुलामी, हर एक आक्रमणकारी के हाथों शिकस्त और उत्पीड़न इस लिए देखना पड़ा क्योंकि यहाँ गद्दार पैदा हुए थे, जबकि भारत हर जगह श्रेष्ठ था । root-cause-analysis  अपने आप में एक पूर्ण साधना होती है, वैज्ञानिक चिंतन शैली में । cause and  effect  के बारे में तो सभी ने पढ़ा-सुना हुआ होगा । मगर  क्या आपने कभी यह एहसास किया है कि आपके आसपास में मौजूद व्यक्ति समूह हर कोई एक ही तःथ्यों से लबाबोर घटना में अलग-अलग cause का निष्कर्ष निकालता है । और फिर जब हर एक के cause  अलग-अलग  होते हैं , तब फिर उसके 'गुन्हेगार',( - Culprit ), भी अलग होते हैं, सज़ाएं भी अलग किस्म की होती हैं, इलाज भी अलग ही होते है । बड़ा सवाल है की यह कैसे पहचान करि जाएगी की इतने तमाम causes  की सूची में से सटीक वाला कौन सा है, जिसको यदि सत्य मान कर इलजा किया जायेगा तब effect (या नतीजे ) प्राप्त होंगे वह हितकारी और संतुष्टि देने वाले हों

निजीकरण विषय मे भारत की जनता में मतविभाजन

देश इस समय निजीकरण विषय पर दो वर्गों में विभाजित है। एक मत के अनुसार निजीकरण नही किया जाना चाहिए (रलवे , इत्यादि का) और उसे यूँ ही सरकारी रेलवे विभाग के हाथों सौंप कर चलते रहने देना चाहिए। यह *समाजवादी* सोच के लोग है। *समाजवाद* में सरकार ही व्यापारिक संपत्ति की स्वामी होनी चाहिए। और दूसरे मत के अनुसार आम नागरिक को उसका अधिकार मिलना चाहिए, अपनी जरूरत और अपनी जिंदगी खुद से चलाने का। तो व्यापार के अधिकार भी उसे मिलने चाहिए। उसको हर एक क्षेत्र में व्यापार का अवसर मिलना चाहिए , कुछ बुनियादी क्षेत्र छोड़ दें तो - राष्ट्रीय सुरक्षा, बुनियादी रोटी, कपड़ा, मकान और चिकित्सा को। यह *निजीकरण* का वर्ग है , जिसको *समाजवादी* सोच में अक्सर *"पूंजीवादी*" के आरोपी नाम से पुकारा जाता है। (चर्चा को आगे बढ़ाने के लिए हम यही नाम प्रयोग करेंगे , " *पूंजीवादी* " , हालांकि कोशिश करेंगे कि इस नाम के अभिप्राय में संयुक्त आरोप से खुद के चिंतन को मुक्त रखते हुए दोनों पक्षों को बराबर की सुनवाई दें।) समाजवादियों के अनुसार व्यापार के ऊपर सरकार का स्वामित्व होना चाहिए। सरकार अभी तक UPSC द्वारा चयन

समाजवादी प्रजातंत्र और गैर-समाजवादी प्रजातंत्र

भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में पाई जाने वाली प्रजातंत्र के प्रति समझ बहोत भिन्न है वास्तविक प्रजातंत्र से। ग्रामीण क्षेत्रों में यह समझा जाता है कि सभी infrastructure project करवाना पंचायत सभा की जिम्मेदारी होती है, जो कि वह सरकारी विभग, PWD के बदौलत करवाती है। और इन सब के बीच प्रजातंत्र यह होता है कि पंचायत सभा में सदस्य आते कैसे हैं - पंचायत चुनाव से, गाँव वालों के वोट से। तो ग्रामीण सोच के अनुसार जब तक सदस्यों की नियुक्ति किसी चुनावी प्रक्रिया से हो रही है, वह प्रजातंत्र ही है। इसमें मौलिक अधिकार, अधिकारों का हनन , निजी व्यापार और उद्योग के अवसर , इत्यादि विषयों पर चिंतन नही है। छोटे, ग्रामीण स्तर पर यह सब मुद्दे  प्रभावकारी होते भी नही है। भारत मे जहां भी आदर्श ग्राम को निर्माण करवाया गया है, वहां व्यवस्था ऐसे ही चलती आयी है, और उसको ही प्रजातंत्र नाम से पुकारा गया है। तो औसत भारतीय जनता स्वाभाविक तौर पर उद्योगों और बड़े infrastructure projects को सरकार के हाथों से चलते , पूरा होते देखती आयी है। वह यही देखना चाहेगी सदैव के लिए भारत मे। और इस तरह की व्यवस्था को ही *प्रजातंत्र* कह

एक Simulator और Emulator में क्या अंतर होता है ?

एक Simulator और Emulator में क्या अंतर होता है? छोटे बच्चों की खिलौने वाली train तो देखी ही होगी आप सभी ने। कभी उसके कार्य करने के तरीके को किसी असली की train से तुलना करिये। खिलौने वाली train को बनाने में बस एक साधारण से , छोटी dc motor लगती है, चार पहिये, जिनमे से दो गियर के माध्यम से dc motor से जुड़ते हैं, एक बैटरी और एक-आध बल्ब सजावट देने के लिए की train एक दम असली जैसी लगे छोटे बच्चों को। इस सब सामानों को जोड़ कर एक train की खाल जैसे बक्से में बंद कर दिया जाता है, और हो गई train तैयार !! यह एक simulator है। अब बात करते हैं Emulator की। कुछ ऊँची ब्रांड की दुकान , (जैसे कि Hamleys) में आपने शायद कभी महँगी वाली train देखी होगी। वह न सिर्फ scale model होते है, बल्कि उनके अंदर के कलपुर्जे असली ट्रैन की तरह ही काम करने के लिए बनाए गए होते हैं। कुछ एक ट्रेन तो चलाने के लिए वाकई में डीजल लेती हैं। इंजिन के अंदर वाकई का एक छोटा सा इंजिन होता है, जो कि डीज़ल या पेट्रोल से combustion करके चलता है। वही shaft से पहिए से जुड़ता है, और पहिया घूमता है। यह emulator है। यह ज्यादा सटीकता से असल f

For the cause of success of Indian Democracy and Indian Constitution, we the people of India need to STOP living in awe of the UPSC Services !!!

For the cause of success of Indian Democracy and Indian Constitution, we the people of India need to STOP living in awe of the UPSC Services !!! भारत के प्रजातंत्र और भारत के संविधान को विफल होने का एक सांस्कृतिक कारण भी है। वह यह है कि हमारे देश में नौकरशाही को विशेष सम्मान से देखने का चलन है, बजाये शंका के। हम नौकरशाही को कटघरे में खड़े ही नही करते हैं, बल्कि सिर पर बैठा कर इज़्ज़त से नवाज़ते है की देश की सबसे प्रतिष्ठित career यही है। भारत में बहोत सारे माता-पिता अपने बच्चों को बचपन से ही 'लोक सेवा'(राजा के सेवक वाली सेवा का परिवर्तित नाम) में जाने की इच्छा से शिक्षा प्रदान करवाते हैं। लोकसेवा आयोग से चयन हुई नौकरी हमारे देश में सबसे कमाऊ और सुरक्षित पेशा है।  हालांकि प्रतिवर्ष चयन थोड़ी ही संख्या में होता है, मगर असफल हुए अभ्यार्थी आजीवन लोकसेवा के मोह में लिपटे हुए जीवन गुज़ारते हैं, और उस सेवा से सम्मान और प्रतिष्ठा को जोड़े रेहते हैं। तो स्वाभाविक तौर पर ही हम "राजा के सेवक"(King's servant ) को मंदबुद्धि बन कर लोकसेवक (Public Servant) मान लेते हैं। हम उसे सवाल

Train , श्रमिक कानून , नौकरशाही और भारत का समाजवादी प्रजातंत्र

Question: So that’s the way all drivers urinate ? Since no pantry vendors goes into drivers cabin so he should stop train at road side dhabas and eat pakoda chai ? Answer: All Government mantries feel very happy with such events as it gives them the sense of exclusivity, ownership. Answer 2: Ideally, if the "chai paida" food of train driver is also an issue ,(or the lack of toilet to go for urinating),  then it becomes "part of duty"(a necessary component, a tool that is required to complete the task) and therefore that should be afforded by the Railways. That is the way it is done in Shipping industry , and also in the airline industry The railways must not create condition and force the worker to take such measures as stopping the train to have his food, (or to go for urinating). Also, another engineering modification that can be considered by loco design engineer to overcome the labour law challenges , is that they adopt "tube" designs for the main

Socialist Democracy एक खुल्ला आमंत्रण है पूँजीवाद को - corporate manslaughter और नौकरीपेशा ग़ुलामी को

भारत का तंत्र उल्टे विधि जन्म लिया हुआ है। इसलिए यहां उल्टी गंगा बहती है। हमारे यहां शासक के सेवकों ने चतुराई से अपने सार्वजिक चरित्र की पहचान को बदल दिया है। वह खुद को " लोक सेवक " बुलाते हैं। वह देश की "सम्मानित" संस्थान से "देश की सबसे कठिन परीक्षा" प्रवीण करके आते है UPSC नाम से ।  यह सब जानकरी प्रत्येक भारतिय की बुद्धि में उसे बचपन से ही दी गयी है। इसलिए औसत भारतीय प्रजातंत्र की समझ बस यह रखता है कि प्रजातंत्र का अर्थ और अभिप्राय है शासन में शामिल होने का अवसर मिल जाना। बस। औसत भारतीय प्रजातंत्र को समाजो के आपसी संघर्ष की लड़ाई से निकाल निराकरण के तौर पर नही समझता है। वह यह सोचने के काबिल अभी भी नही बन पाया है कि समाज को ग़ुलाम उसके भीतर से ही किया जाता है, जब एक वर्ग दूसरे के ऊपर हावी होने के तरीके ढूंढने लगता है। मगर यह सामाजिक संघर्ष होते ही क्यों है? इसका जवाब है प्राकृतिक शक्तियों के वितरण न्याय (distributive justice) में। प्रकृति ने हर एक व्यक्ति को अलग तरह से दूसरे के मुकाबले सशक्त बनाया है । कोई भी समाज दूसरे के बराबर क्षम

ICC World Cup Final मैच में किस्मत के अंश, भारतीय दर्शन और इंग्लिश दर्शन की तुलना

सचिन तेंदुलकर का  भी मानना है की ICC  World  Cup  के फाइनल में tie मैच से उत्पन्न अवरोध को पार करने का उचित तरीका boundary  shots  की गिनती करने के बजाए एक और super  ओवर करवाना चाहिए था । एक बड़ा सवाल , दर्शन शास्त्र से सम्बंधित, यह है की इंग्लॅण्ड जो की वैश्विक स्तर  पर दुनिया के सबसे बेहतरीन शैक्षिक विश्व विद्यालयों का देश है, जहाँ oxford है, जहाँ Cambridge  है, क्या वहां इस प्रकार के अटपटे नियम के पीछे कोई भी सोच नहीं रही होगी ? यहीं पर हम लोग कुछ देखने में चूक कर रहे हैं । बनारस की भूमि पर से भारतीय दर्शन की एक अद्भुत ज्ञान गंगा बहती है , जिसे आम आदमी ब्रह्मज्ञान नाम से जानते-सुनते है । इसे अंग्रेजी में Theosophy  पुकारा जाता है । theosophists  अक्सर करके अपने आस-पास की घटनाओं में उसके कारणों की तलाश करते हुए ईश्वर की इच्छा हो समझने में युगन करते रहते है । क्या यह संभव है कि अंग्रेज़ी दर्शन के अनुसार जब कोई मैच दो बार के प्रयासों के बाद भी tie  हो जाये तो यह मान लेना चाहिए की ईश्वर के अंश ने अपनी इच्छा प्रकट करि है दोनों प्रतिद्वन्द्वियों की योग्यता बराबर है ? बरहाल, यहाँ दर्शन

Socialist Democracy is a disguised form of idiocracy.

प्रश्न:   यह समाजवादी प्रजातंत्र (Socialist Democracy ) क्या चीज़ होती है ? उत्तर : एक socialist democrat के तर्क कुछ निम्म तरिके से पढ़े जा सकते हैं :- " हाँ  मुझे चाहिए आज़ादी , मुझे प्रजातंत्र चाहिए। मुझे मेरे अधिकार चाहिए। लेकिन मैं  थोड़ा सा मंदबुद्धि हूँ, थोड़ा मूर्ख सा हूँ, इसलिए सरकार  को मेरा बाप बन कर मुझे उल्लू बनाए जाने से, ठगे जाने से बचने के प्रबंध करने चाहिए। चाहे बदले में सरकार के आदमी मेरी आज़ादी ले लें, मेरा प्रजातंत्र खत्म कर दें। पर मुझे, मेरी ही बेवकूफियों का शिकार होने से बचा ले । और फिर अगर भ्रष्टाचार बढ़ेगा तो हम आंदोलन करेंगे, अगर सरकार  टैक्स निचोडेगी , महंगाई बढ़ाएगी तब हम आंदोलन करेंगे, संघर्ष करेंगे । असल में हमें संघर्ष करते रहने वाली मानसिक बीमारी ही ।" ~~  समाजवादी प्रजातान्त्रिक व्यक्ति   The socialist democrat Socialist Democracy is nothing but a disguised form of idiocracy.

आखिर एक समाजवादी प्रजातांत्रिक व्यक्ति क्या होता है ?

आखिर एक समाजवादी प्रजातांत्रिक व्यक्ति क्या होता है? प्रजातंत्र का उत्थान वास्तव में एक संघर्ष में से हुआ है। प्रजातंत्र ने राजतंत्र की तरह प्रकृति के नैसर्गिक शक्ति में से जन्म नही लिया है। इससे पहले वाली व्यवस्था, - राजतंत्र ने प्रकृति की नैसर्गिक शक्तियों में से जन्म लिया था। दुनिया मे जहां जहां इंसानी सभ्यता ने जन्म लिया, वहां समयकाल में धीरे धीरे राजतंत्र नामक राजनैतिक प्रशासन व्यवस्था ने स्वयं-भू जन्म लिया था। इंसानों के समूह को एक नेतृत्व की आवश्यकता स्वतः पड़ने लगी थी तीन प्रमुख कारणों से- 1) पड़ोसी से अपनी सुरक्षा के लिये, 2) आपसी विवादों को हल करने के लिए, और 3) किसी बड़े स्तर के सामाजिक कार्य की पूर्ति के लिये तमाम मानव संसाधन और भौतिक संसाधनों को संघटन बद्ध करके किसी भीमकाय project में लगाने के लिए। आगे समयकाल में राजतंत्र से सभी समाजों में दिक्कतें पैदा होने लगी। दिक्कतें थी - 1) राजा का भेदभाव और पूर्वाग्रही आचरण 2) अयोग्य राजा , जो कि मानव संसाधनों को और भौतिक संसाधनों को उचित भीमकाय project में केंद्रित नही कर सकता था। 3) परिवारवाद में फंस कर जनहित की

ICC World Cup 2019 का फाइनल मैच और प्रजातंत्र की सोच

Reporter: Sir, What if number of boundaries would also have been equal for both the teams? ICC: We would then compare 10th standard mark-sheets of both the captains and decide. 😋😀😋😀  At the supreme court Public  : How do you judge the seniority of a person when two persons are elevated to Supreme Court Judge on the same date ? Supreme Court Collegium  : Of the two persons, the One who is from our kith and kinship , whatever criteria that he is senior with respect to the other, we declare that criteria to be the decisive factor for judgement of the seniority . Public  : 🤔😲🤕🤒😡 😋😊😀😁 ______--------________----- हालांकि ICC World Cup 2019 के फाइनल मैच में बार बार टाई होने पर विजेता को चुने जाने के तरीके की भारतीयों में सब तरफ आलोचना करि जा रही है, मगर तरीके के भीतर की सोच पर कहीं कोई ध्यान नही दे रहा हैं। एक औसत भारतिय के लिए ICC की सोच शायद कहीं ज्यादा विकराल पड़ जाती है। औसत भारतीय के लिए यह दिक्कत भरा हो रहा है सोचना की शायद ICC ने नियम

Lord's के मैदान में वर्ल्ड कप फाइनल में किस्मत का खेल

दो बहोत ही चमत्कारी बातें हुई इस मैच में। बेन stokes को बाउंडरी पर लपका गया, मगर फील्डर का पैर सीमा रेखा से छू गया। यह नियम के अनुसार छक्का हुआ। और कुछ ही गेंदों बाद जब 4 बाल पर नौ रन चाहिए थे, जो की इस बड़े मैदान में इंग्लैंड को मुश्किल पड़ सकते थे,  stokes दो रन चुराने के लिए दौड़ रहे थे तब सीमा रेखा से फैंकी गयी गेंद stokes के bat के टकरा कर चौक्के पर चली गयी। नियम के अनुसार यह छहः रन माने गये! अद्भुत, विरले। इंग्लैंड को अंतिम दो गेंदों में तीन रन चाहिए थे, और दो विकेट बाकी थे। अंतिम-पूर्व गेंद पर एक विकेट रन ऑउट हुआ, दूसरा रन चुराने की कोशिश करते हुए। अब अंतिम बाल पर वापस दो रन चाहिए थे, और एक ही विकेट बाकी था। वापस दूसरा रन चुराने के चक्कर में अंतिम खिलाड़ी ऑउट हो गया। फिर यह मैच tie हुए, और उसके बाद पहली बार super over का प्रयोग करना पड़ा। जो की वापस tie ही हुआ। new zealand को super over की अंतिम बाल पर दो रन चाहिए थे , और फिर वही दोहर गया। इस बार new zealand के खिलाड़ी दूसरा रन चुराने के चक्कर में रन ऑउट हो गये। super over भी tie घोषित हुआ। मगर नियम के अनुसार super over यदि tie

Old Trafford में भारत की पराजय के विषय पर

उठती हुई और तेज़ी से आती गेंद (rising, upp'ish delivery) भारत की कमज़ोरी बन गयी। old trafford का मैदान बड़ा था। इंसान में एक चरित्र होता है। pinch hitting करना मात्र एक ताकत की बात नही है, बल्कि एक चरित्र है। इस तरह के चरित्र वाले व्यक्ति अक्सर आदतन ही ऐसा करते हैं। और उनके खेलने के तरीकों में भी कही यह आदत बस जाती है। मिसाल के तौर पर, rising upp'ish delivery को वह आदतन ही गेंद में पहले से बसी हुई गति का सहारा लेते हुए कही पर cut मारते हुए wickets के पीछे ही कहीं boundary तक पहुंचा देना चाहते हैं। यह सब उनसे उनका pinch hitting का चरित्र आदतन करवाता है। मगर old trafford मैदान के बड़े आकार ने यहाँ आदत को कमज़ोरी में बदल दिया। पहले के चार player को wicket के पीछे ही शिकार बनाये जाने की रणनीति बनाई गयी। 5 fielders उसी क्षेत्र में थे, wicket keeper के अलावा। और wicket के आगे मात्र चार, दो leg side में, दो off side में। मानो को खुल्ला challenge था इतने बड़े और खाली पड़े मैदान में wicket के आगे कही कोई shot खेल कर दिखाओ।  रोकने वाले ज्यादा fielder थे ही नही उस भूक्षेत्र में, मगर मानो