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Showing posts from August, 2020

अभद्र बोल वाले भोजपुरी गीत -- क्या भाषा जनित भेदभाव का मुद्दा है , या की यह नज़ाकत और नफासत की कमियां है ?

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 सुशांत सिंह राजपूत विषय में से एक और सामाजिक तथा क्षेत्रीय संस्कृति विषय सामने निकल कर बाहर आया है। The Print समाचार पत्रिका के लिये कार्य करने वाली पत्रकार सुश्री ज्योति यादव जी ने संदिग्ध रिया चक्रवर्ती के लिये प्रयोग किये गये आपत्तिजनक शब्दों का मुआयना किया और अपनी तफ़्तीश का कोण यह रखा है कि आखिर क्यों सुशांत तथा उनके परिजनों में मधुर संबंध नहीं थे । रिया चक्रवर्ती के लिए प्रयोग किये गये आपत्तिजनक शब्द अधिकतर सुशांत के fans और भोजपुरी-भाषी समर्थक पक्ष से आये हैं, जिनमे रिया पर काला जादू , बंगालन जादूगरनी इत्यादि जातिसूचक शब्दों का प्रयोग किया गया है । पत्रकार सुश्री ज्योति यादव जी (मूलनिवास हरियाणा) का लेख प्रत्यक्ष तौर पर रिया के बचाव में तो नही हैं, हालांकि यह सुशांत के परिजनों के सम्बंधो को कुछ सामाजिक और क्षेत्रीय चलन के आधार पर मुआयना करता है, कि कहीं सुशांत , उनके पिता और अन्य परिजनों में मधुर सम्बद्ध नही होने का कारण "वही पुराना" मानसिकता का कारण तो नही है जो कि उत्तर भारतीय परिवारों -- विशेषतौर पर बिहारी परिवारों में - देखने को मिलता है - एक आदर्श पुत्र श्रवण कुमा

The amount of interest that the Common people put in the Justice Karnan matter and Prashant Bhushan lawsuit matters -- the difference in the amount is NOT an outcome of the society's prejudicial leanings

The amount of interest that the Common people put in the Justice Karnan matter and Prashant Bhushan lawsuit matters -- the difference in the amount is NOT an outcome of the society's prejudicial leanings  Dilip Mandal ji is apparently not able to judge with a high resonating conviction, whether Justice Karnan matter was a case of personal incompetence , or of prejudice and discrimination ! What part of the Justice Karnan episode is bearing the Discrimination angle, Dear Mandal ji must make-up his mind on that and refrain from spreading Caste-based prejudice without sufficient logical backing on prejudice aspects of the case matter from those angles where there is none ! In summary, the Dilip Mandal ji 's tale is becoming like a short story , where a stupid man in a Fools' country is crying out how people are being racially prejudiced towards him by not buying and eating the poison from his shop, whereas few "high caste others" are selling that same poison whic

Justice कर्णन और प्रशांत भूषण मामले में क्या भिन्नता है ?

  सच मायने में दिलीप जी का लेख , जब वह प्रशांत भूषण और जस्टिस कर्णन मामले में समानता देख लेते हैं , भिन्नता नहीं, तब दलित और पिछड़ों की बेवकूफ़ी का खुलासा होता है ! जब तक दलित और पिछड़ा इतने rational न हो जाएं की court को प्रक्रियों और उनके तर्कों को न समझ ले, तब तक दलित और पिछड़े यह तथाकथित "भेदभाव" झेलते रहेंगे ! जो की वास्तव में तो दलित-पिछड़ों की बौद्धिक अयोग्यता होगी ! Justice कर्णन ने पहले तो एक गुप्त पत्र लिखा था , खु द सर्वोच्च न्यायालय की जजों को ही भेज दिया था ! जबकि प्रशांत भूषण के ट्वीट का मामला था । यानी भूषण ने सीधे आमआदमी (जनता) के समक्ष बात रखी थी, न की private पत्र में !! भूषण जनहित मामले के लिये जगप्रख्यात व्यक्ति हैं । दलित पिछड़ा वर्ग में देशहित, जनहित, इत्यादि के लिए ऐसे लड़ने वाला कोई शायद विरले ही मिलेंगे ! Justice कर्णन पहली बार जनता में नज़र ही आये जब उनको सज़ा सुनाई गयी । कर्णन जी ने सुनवाई के लिए सर्वोच्च न्यायालय के आमंत्रण तक को नकार दिया था , और सज़ा तो उनके इसके उपरान्त दी गयी। यानी कर्णन जी अडिग खुद ही नही थे, न ही लड़ने को तैयार थे ! court को प्रक्रियात

भेदभाव और अयोग्यता में क्या कुछ भी अन्तर नहीं होता है?

भेदभाव  और अयोग्यता  में क्या कुछ भी अन्तर नहीं होता है?*  यदि आपकी दुकान का सामान कम विक्रय हो रहा है, तो क्या इसका कारण आपके संग हो रहा भेदभाव माना जा सकता है? यदि आप अभद्र बोल वाले गीत लिखते है जिस पर लोग आपत्ति ले लेते हैं, तो क्या यह मान सकते हैं कि आपके संग भाषागत भेदभाव किया जा रहा है ( "क्यों कि कुछ elite किस्म के लोग अंग्रेजी भाषा मे अभद्र शब्दों को मान लेते हैं, मगर..." ) आत्म मंथन के लिए हमारे समक्ष सवाल यह है कि :--  क्या भेदभाव और बाजार में विफल हो जाने में कोई अंतर नही होता है? दिलीप मंडल और ऐसे कुछ दलित-पिछड़ा "चिंतक" , बुद्धिजीवी , लोग तो कम से कम अयोग्यता और भेदभाव में कुछ भी अन्तर नही मानते हैं !! उनके अनुसार यदि जस्टिस कर्णन मामले को कम तवज़्ज़ो दी गई है , प्रशांत भूषण मामले से , तो यह समाज के भेदभाव नियत को दर्शाता है ! न कि कर्णन मामले की कमजोरियों के प्रति समाज की जगरूतकता को ! दिलीप मंडल जी जैसे दलित-पिछड़ा "बुद्धिजीवी" ऐसे लोग हैं जो कि बाजार के तौर तरीकों से अनभिज्ञ है, मगर वह इसे अपनी अयोग्यता , अपनी कमी नही मानते हैं, बल्कि समाज

समाजवादी देश में इंसानों के चरित्र , स्वभाव पर टिप्पणी

 समाजवादी देश में इंसानों के चरित्र , स्वभाव पर टिप्पणी  __ समाजवादी तंत्र किसी भी समाज मे हो, वो इंसान को "पंगु"("help less, power less,  pathological detachment disorder) बनाते है यह बात सुन कर कई लोगो को अटपटी लगेगी, मगर एक theory तो यह भी कही जा सकती है कि किसी भी देश मे कैसा राजनैतिक तंत्र है, इसका गहरा असर उस देश के प्रत्येक नागरिक के दिन प्रतिदिन के बात-व्यवहार, उसके आचरण, उसके मनोविज्ञान पर भी असर डालति है। इस theory को समझने के लिए हम उल्टा प्रदेश के समाजवादी तंत्र का उदाहरण लेते हैं। किसी भी देश मे समाजवादी तंत्र आने पर तंत्र के तमाम संसाधन सरकारी नियंत्रण में आ जाते हैं। तब उस देश मे "आला अधिकारियों" , ऊंचे पद/"ताकतवर" मंत्रियों की धाक से ही तंत्र नागरिको को सेवा देता है, अन्यथा तंत्र प्रत्येक नागरिक तक सरकारी सहायता/अनुदान पहुंचने में एक बाधक बन जाता है । अपने ही नागरिक को कोई सहायता दे सकने में अवरोधक। ऐसा समाजवादी तंत्र बारबार "विशाल जनसंख्या" , "पैसे की कमी" इत्यादि दुहाई दे कर खुद के असहाय होने का justification देता