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Showing posts from April, 2023

फिलॉसोफी की पढाई करने का क्या लाभ होता है

 फिलॉसोफी की पढाई करने का सबसे बड़ा लाभ यह होता है कि इंसान Root Cause Analysis(RCA ) करने में श्रेष्ठ बनता है।   प्रत्येक इंसान इस संसार को अपने अनुसार बूझ रहा होता है ।  ऐसा करने उसके जीवन संघर्ष के लिए आवश्यक होता है।  संसार को चलाने के लिए कई  सारी शक्तियां बसी हुई है।  सफल जीवन के लिए इंसान को इन शक्तियों के अनुकूल या प्रतिकूल होकर जीना होता है।  इसलिए उसको दो बातों का बौद्ध प्रतिपल लेना पड़ता है:- 1) किस विषय में कौन सी वाली शक्तियां प्रभावकारी है ?  2)और इस पल, उस विषय में उसे अपने जीवन निर्णयों को उन शक्तियों के अनुकूल लेना या प्रतिकूल लेना हितकारी होगा ?  प्रत्येक इंसान अपने अपने अनुसार विषयों के पीछे गहरे गर्त में छिपे " क्यों? " के सवाल को बूझता है।  ये " क्यों? " से भरा हमारा जीवन -इसके पीछे में ये ऊपर वाली सच्चाई छिपी बैठी है।   क्या आपने कभी सोची थी ये बात ? हम इंसान लोग हर पल गुत्थियां क्यों सुलझाते रहते हैं? क्यों हमें सच या सत्य की तलाश बनी रहती है ? क्यों हम सच को ढूंढ रहे होते है ? और क्यों हमें अक्सर सच का सामना करने में डर लगने लगता है ? ये ऊपर लि

राजनीति आदर्शों से करनी चाहिए, या पैंतरेबाजी से ?

आदर्श परिस्थितियों में सत्ता को प्राप्त करने का मार्ग उच्च मूल्यों की स्थापना के प्रस्ताव से होने चाहिए। जनता को केवल उस व्यक्ति को नेता मानना चाहिए, जो समाज को बेहतर मानवीय मूल्य (दया, क्षमा, दान, आपसी सौहार्द, विनम्रता, करुणा, इत्यादि) से शासन करे।  मगर वास्तविक धरातल पर जनता तो खुद ही मैले और कपट मन की होती है। वो ऐसे व्यक्तियों को चुनती है जो ऐसे मार्ग , पैतरेबाजी करते दिखाई पड़ते हैं, जैसा कि आम व्यक्ति के मन में कोई निकृष्ट अभिलाषा होती है। जनता खुद ही अपनी बर्बादी का गड्डा खोदती है, और बाद में अपने नेताओं को दोष देती फिरती है। जब जनता के मन में कपट करना एक उच्च , बौद्धिक गुण smart व्यवहार समझा जाने लगता है, तब सत्ता प्राप्ति के लिए नेतागण mind game (बुद्धि द्वंद) से छल करने लगते हैं। वो ढोंग, कपट, छल, कूट का प्रयोग करके जनता को लुभाते हैं, और सत्ता में पहुंच कर निजी स्वार्थ को पूर्ण करने लगते हैं। समाज के सामने बहोत कम ऐसे उदाहरण हैं जब किसी नेता ने वाकई में ,यानी बहुत उच्च मानक से उच्च मूल्यों की स्थापना के लिए संघर्ष किया हो। विश्व पटल पर भारत से ऐसा एक नाम गांधी जी का है। ये

क्यों हो रहा है विश्व व्यापक प्रजातंत्र का पतन?

 क्यों हो रहा है विश्व व्यापक प्रजातंत्र का पतन? क्योंकि शायद प्रजातंत्र अव्यवहारिक, निरर्थक हो गए हैं समाज को स्थिर और उन्नत बनाए रखने में? क्या ऐसा कहना सही है? यदि समाज में विज्ञान औ प्रोद्योगिकी नही बढ़ रही हो, तब शायद प्रजातंत्र निर्थक हो जाते हैं। अलग अलग गुटों को बारी बारी से जनधन को लूट खसोट करने का मौका देते है बस, और कुछ नहीं। इस प्रकार से प्रजातंत्र मूर्खता और पागलपन का दूसरा पर्याय समझे जा सकते हैं।  इसी लिए कुछ अंतर के साथ नए प्रकार के चरमवादी प्रजातंत्र निकल आए हैं। शुरुआत दक्षिणपंथियों ने करी है। समूचा तंत्र जीवन पर्यंत हड़प लेने की पद्धति लगा दी है, प्रत्येक संस्था पर अपने लोगो तैनात करके।  इनमे स्थिरता है या नहीं, समाज और दुनिया को शांति देने का चरित्र है या नही , ये अभी देखना बाकी है।   फिलहाल ये नए चरमवादी प्रजातंत्र परमाणु बमों की धमकी पर विश्वशांति कायम कर रहे हैं। जो कि अत्यंत असुरक्षित है,कभी भी खत्म हो सकती है, एक छोटी सी चूक से। देश के भीतर ये तंत्र तीव्र असंतुष्टि को जन्म दे रहे हैं। ये अमीर गरीब के फासले बढ़ा रहे हैं। बेरोजगारी और शोषण ला रहे हैं, भ्रष्टाच