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Showing posts from March, 2019

हिन्दू योग और बौद्ध योग में अंतर

योग जिसने दुनिया में भारत को पहचान दिलवायी, यह योग वो वाला नही था जो वैदिक धर्म से निकलता था। बल्कि वह जो बौद्ध धर्म के अनुयायिओं वाला योग था। अभी कुछ-एक वर्ष पहले थाईलैंड में एक छात्र दल मनोरंजन क्रीड़ा के खोजी अभियान के दैरान एक भूमिगत गुफा में प्रवेश कर गया था। फिर वह लोग नीचे उतरते चले गये और कक्षाओं व्यूह के बीच अपना रास्ता भूल बैठे थे। बहोत जबर्दस्त बचाव अभियान के बाद एक ब्रिटिश दल ने उन्हें बहोत दिनों बाद बचा लिया। हालांकि बचाव अभियान के दौरान थाईलैंड के अपने नौसैनिक दस्ते के एक सदस्य ने अपनी जान खो दी थी। बाहर निकलने पर छात्र दल ने बौद्ध योग संस्कृति के माध्यम से अपने मन और शरीर की क्रियाओं को नियंत्रित करने को अपना जीवन रक्षक प्रेरणा स्रोत बतलाया था। छात्र दल के शीर्ष ने न सिर्फ अपनी जान बचायी, बल्कि योग द्वारा विकसित सब्र, धैर्य जैसे गुणों से समूचे दल को विचलित होने से रोक, नियंत्रण बनाये रखा, विद्रोह नही होने दिया और सीमित भोजन, वायु, प्रकाश, और निराशा से भरे माहौल में भी किसी को टूटने नही दिया था। यह अंतर है बौद्ध धर्म के योग क्रिया और तथाकथित हिन्दू योग क्रिया

कथा वाचन और u turn लेती वर्तमान काल की राजनीति

सत्य के साथ मे मुश्किल यह होती है कि वह औझल ही रहता है और फिर लंबे समय के उपरांत तभी प्रकट होता है जब कोई शोध, अन्वेषण या अविष्कार किया जाता है। सत्य  की आवश्यकता इंसान और समाज को इसलिए होती है क्योंकि इसके बिना तो समाज मे शांति,विकास और  समस्याओं का समाधान मुमकिन नहीं होता है। इतिहास के विषय मे सत्य के अप्रकट होने से समाज मे अपनी दिक्कतें घटने लगती हैं। सामाजिक इतिहास के तथ्य तम्माम समाजों को आपसी संपर्क होने पर तुरंत प्रतिक्रिया करने का प्रेरक होते हैं। वर्तमान काल के कूटनीतिज्ञ इसीलिए सामाजिक इतिहास के आसपास के तथ्यों को एक समान प्रमाणित होने देने से बचना चाहते हैं। क्योंकि एक ही बार में  बड़ी तादाद में वोटों को किसी एक के पक्ष में, या विरुद्ध में स्थानांतरित करने का सबसे आसान युक्ती इतिहासिक तथ्यों की मदद से अलग-अलग कथा  【 narrative  】 लिखने से ही बनती है। तभी तो सामाजिक तथ्यों में वही स्वतंत्रता संग्राम, वही गांधी और वही नेहरू है, मगर दोनों पक्षों की कथाएं अलग-अलग हैं इन सब इतिहासिक तथ्यों के प्रति। कथा रचना और इतिहास को समझाने के बीच मे बहोत ही महीन अंतर होता है। कारण

इंजिनीरिंग प्रौदयोगिकी की अंतर्मयी सीमाएं और नागरिकों की जान से खिलवाड़

( निम्मलिखित लेख एक गैर-अभियांत्रिकी प्रोफेशनल द्वारा लिखा गया है, जिसमे वह अपने स्वयं के व्यवसाय से प्राप्त अभियांत्रिकी की सैद्धांतिक ज्ञान के आधार पर विषय चर्चा करना चाहता है। ) मुम्बई में कल शाम विश्वविख्यात छत्रपति शिवाजी महाराज रेल टर्मिनल   के समीप एक नागरिक पैदलगामी पुल यकायक ध्वस्त हो गया, जिसमे कुछ जानें भी गयी है। बड़ी बात यूँ है की पिछले ही वर्ष इसी तरह से एक एल्फिंस्टोन पुल   भी " यकायक " ध्वस्त हुआ था और जिसमे जानें भी गयी थी। जैसा की होता है, कई सारे लोगों ने दावा किया है की उन्होंने अपने सोशल मीडिया के माध्यम से अपने पुराने पोस्ट के द्वारा इन पुलों के असुरक्षित होने की चेतावनी नगरमहापालिका को भेजी थी। तो इन लोगों के अनुसार यह घटनाएं " यकायक " सिर्फ दिखने मात्र हैं, क्योंकि इन पुलों के रखरखाव से संबद्ध सरकारी संस्थाएं अपने कार्य में लापरवाही करते हुए उनकी चेतावनियों को अनदेखा करती हैं, जिसकी वजह से अंत में यह दुर्घटनाएं एक के बाद एक हो रही है। सरकारी नौकरशाह की लापरवाही विषय   में लोगो के ध्यान ज्यादातर भ्रष्टाचार की ओर जाता है जिसमे की प

ग़ुलामी और दासता में क्या अंतर है? पूर्वी संस्कृति में स्वतंत्रता के अभिप्राय क्या है?

ऑफिस के कंपाउंड में एक खुल्ली जगह पर एक कैंटीन हैं। कैंटीन वाले ने अंदर ही एक बड़े से पिंजड़े में दो तोते पाले हुए हैं। वो रोज़ दोपहर में पिंजरे को एक-दो घंटे के लिए खोल देता है। तोते बाहर आते हैं, उड़ कर इधर उधर पेड़ो की डालियों पर बैठते हैं। शायद थोड़ा मटरगश्ती करते है। फिर कैन्टीनवाला एक छड़ से उनको थोड़ा परेशान करता है, या शायद इशारा करता है। दोनों ही तोते थोड़े समय मे खुद ही उड़ते हुए आ कर पिंजरे में बैठ जाते हैं, और फिर पिंजरे का दरवाजा बंद कर दिया जाता है। फिर बगल में 10-12 कबूतरों वाला पिंजरा है। उनके साथ भी यही सिलसिला दोहरता है। अब दोनों ही पक्षियों के संग यह पूरा सिलसिला प्रतिदिन कई सालों से होता आ रहा है। कहने का मतलब है कि जो लोग यह सोचते हैं कि पंक्षी का निवास आज़ादी से खुल्ले आकाश में उड़ना है, तो वो लोग शायद गलत है। अगर आराम से रोज़ाना भोजन यूँ ही आसानी से मिलता रहे, और संग में रहने को सुरक्षित छत्र-छाया, और फिर थोड़ी-सी एक-आध घंटों की आज़ादी, तो फिर यह तथाकतीत ग़ुलामी तो पंक्षियों को भी खराब नहीं लगती हैं। बड़ी बात सोचने वाली यह है कि ग़ुलामी और पालतू बनाये जाने में

क्यों राष्ट्रवाद गुंडागर्दी की अंतिम शरणस्थली होती है

अगर राष्ट्रवाद ही गुंडागर्दी की अंतिम शरणस्थली है , तो वह सिर्फ इसलिए नही कि राष्ट्रवाद के नाम पर सारे दुष्कर्मों को मान्य साबित किया जाता है, बल्कि इसलिए कि राष्ट्रवाद से नैतिकता की वह लकीर ही नष्ट हो जाती है जिससे सत्कर्म और दुष्कर्म का भेद किया जाता है। ~राल्फ बार्टन पैरी