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Showing posts from May, 2020

जापान ने कोरोना संक्रमण को कैसे परास्त किया-- जापानियों का अनुशासन या फिर बौद्ध धर्म की शिक्षा

जापान के बारे में बताया जा रहा है कि उन्होंने corona संक्रमण को करीब क़रीब हरा दिया हैं। और जापानियों ने  कर दिखाया है बिना कोई test kit की सहायता से, न ही कोई दवा ईज़ाद करके ! तो फ़िर उन्होंने यह कैसे कर दिया? मात्र mask और gloves(दस्तानों) की सहायता से! जापानी लोगों का "अनुशासन" बहोत चर्चित चीज़ है, दुनिया भर में। अगर कोई ऐसा कार्य हो जो कि विस्तृत सामाजिक स्तर पर समन्वय प्राप्त करने पर ही सफ़लता दे सकता है, तब जापान ही ऐसा एकमात्र देश होगा जो कि ऐसा समन्वय वास्तव में प्राप्त कर सकता है! ऐसे समन्वय को ही हम भारतीयों की छोटी बुद्धि के अनुसार "अनुशासन" बुलाया जाता है। क्योंकि हम सैनिकिया टुकड़ियों में एकसाथ क़दम ताल करते समय ही एकमात्र पल है जब आबादी के छोटे टुकड़े का आपसी परमसहयोग का अनुभव करते हैं। सैनिकों में यह आपसी सहयोग बाहर से पिटाई/हिंसा इत्यादि "बाहरी ज़बरदस्ती" के मार्ग से लाया जाता है, जिस प्रशिक्षण के दौरान इसे निरंतर "अनुशासन" बुलाया जाता है। मगर जापानियों में यह "अनुशासन" 'बाहरी' नही है। अभी दक्षिण कोरिया ने जब ऐसा ही कुछ c

Theoretical संभावना का प्रमाण पर्याप्त माना जाना चाहिए था, Emperical प्रमाण से तो मिली-भगत होने की गंध आती है

EVM के विषय मे केस तो तब ही ख़त्म हो जाना चाहिए था जब court में मामला theoretical प्रमाणों से आगे निकल कर emperical सबूतों पर आ गया था। जब निर्वाचन आयोग ने evm की fixing की theoretical संभावनाओं को खंडन करके न्यायालय के समक्ष अपनी दलील दी कि कोई emperical प्रमाण आज तक नही मिला है कि evm मे छेड़छाड़ हुई है, तब ही वास्तव में चैतन्य जनमानस को समझ लेना चाहिए था कि केस अब बेवजह घसीटा जा रहा है। और असल बात यह है कि निर्वाचन आयोग और न्यायालय में मिली-भगत हो चुकी है। मान लीजिए कि किसी परीक्षा के दौरान कक्षा में कोई छात्र cheating कर रहा है।  सवाल आपके चैतन्य से यह है कि आप invigilator (निरक्षक) द्वारा कब , किस प्रमाण के आने पर यह मान लेंगे की वो छात्र cheating कर रहा था? अगर निरक्षक उस छात्र के पास से ज़ब्त करि गयी किसी chit , या किताब को दिखा दे तो क्या यह पर्याप्त सबूत नही होगा कि cheating करि गई है? दुनिया भर के न्यायायिक मानक में इतना सबूत पर्याप्त माना जाता है कि chit अथवा कुछ अन्य पदार्थ /दस्तावेज़ की प्राप्ति करि गयी है। मगर यदि फिर भी कोई प्रधानाध्यापक किसी निरक्षक के इतने सबूत को स्वीकार न

अक़्सर जो सभी उच्च गुणों और मूल्यों के पालन करने का दावा करते हैं, वो कुछ भी पालन नही कर रहे होते हैं

भक्त कहते हैं कि हिंदुत्व में सब ही कुछ है - सहिष्णुता है, सहनशीलता है, पंथ निरपेक्षता भी है, प्रजातंत्र भी है, समानता भी है !! अक्सर करके जब कोई सभी अच्छे विचारों को अपनाने की कोशिश करता है तब वह अनजाने में Mix-up कर बैठता है। विचारों को उनके उचित क्रम में रखना एक परम आवश्यक ज़रूरत होती है, अन्यथा एक horrible mix तैयार हो जाता है, जो की ज़हर की तरह घातक हो सकता है। विचारों के Mix up और उसके घातक परिणामों को समझने के लिए  एक उदाहरण लेते हैं। कल्पना करिये कि किसी व्यक्ति के पास में Kent-RO की पानी स्वच्छ बनाने वाली मशीने है। kent की मशीन पानी को reverse osmosis विधि से filtre करने के दौरान काफ़ी सारा दूषित जल , जो की देखने में स्वच्छ ही लगता है, उसे एक pipe से निष्काषित करती रहती है। वो लोग जो की "सभी " अच्छे, उच्च आदर्शों के पालम करने का दावा करते हैं,  अक़्सर वह बौड़मता से ग्रस्त हो जाते है, और वो उस दूषित निकास जल को वापस अपने पानी के ग्लॉस में मिला देते हैं, "जल संरक्षण' के अच्छे उच्च आदर्श के पालन करने के नाम पर। !  कल्पना करिये की आप बौड़म लोगों से कैसे तर्क करके उनके

भारतीय समाज में कुछ गैर-संवैधानिक आरक्षण कारणों के चलते विज्ञान और छदमविज्ञान को मिश्रित कर देने वाले वाले मिश्रण वर्ग ने देश के अध्यात्म को कब्ज़ा किया हुआ है और छेका हुआ है।

10/05/2020 शायद अंग्रेज़ी भाष्य लोग इस लेख को कभी भी न पढ़े।  मगर जो आवश्यक चितंन यहां प्रस्तुत करने की ज़रूरत है वह यह कि भारतीय समाज में कुछ गैर-संवैधानिक आरक्षण  कारणों के चलते विज्ञान और छदमविज्ञान को मिश्रित कर देने वाले वाले मिश्रण वर्ग ने देश के अध्यात्म को कब्ज़ा किया हुआ है और छेका हुआ है। भारत की ज्ञान गंगा में पिछले चंद सालों से सामाजिक चिंतन में शुद्धता और पवित्रता लाने वाली संस्थाएं कमज़ोर पड़ती चली गयी हैं क्यों कि राष्ट्र प्रेम और राष्ट्रवाद के मार्ग से सही और ग़लत का मिश्रण कर देने वाले वर्ग ने देश पर राजनैतिक कब्ज़ा जमा लिया है ! यह वर्ग विज्ञान को उनके प्रक्रियाओं से पहचान कर सकने में असक्षम में, बस विज्ञान को उनके उत्पाद से ही पहचान पाता है। और क्योंकि अभी राजनैतिक वर्चस्व में है, तो फिर तमाम तिकड़म प्रयासों से उत्पाद पर label बदल कर धर्म का लगा देता हैं, जिससे समाज में धर्मान्ध व्यापक होने लगी है। क्यों करता है वो ऐसा? क्योंकि वह खुद नाक़ाबिल लोग का मिश्रण वर्ग है - जो विज्ञान चिंतन शैली से नावाक़िफ़ है। वो नही समझ सकता है कब क्या , क्यों किसी विचार को वैज्ञानिक मानते है, और कब

व्यंग अक्सर करके तुकों को उल्टा कर देते हैं।

व्यंग अक्सर करके तुकों को उल्टा कर देते हैं। व्यंग सुनाई पड़ने में हास्य रस से भरपूर होते हैं, और इसलिये चिंतनशील मस्तिष्क को बंधित कर देते हैं समालोचनात्मक विचारों को शोध करने में। इसलिये व्यंग हास्य में ही अक्सर उल्टी-बुद्धि , या अंधेर नगरी आदर्शों को प्रचारित किया जाता है। अगर लोग गंभीर अवस्था में होंगे तो ग़लत बात को तुरंत अस्वीकार कर देंगे। तो फ़िर उनको उल्टी बुद्धि का ज़हर कैसे बचा जा सकता है ?  उत्तर है - व्यंग हास्य की चाशनी में डुबो कर !

हम लोग lockdown यानी देशबन्दी में समाधान को ढूंढ कर ग़लत कर रहे हैं।

10/05/2020 कभी कभी सोचता हूँ कि हम लोग lockdown यानी देशबन्दी में समाधान को ढूंढ कर ग़लत कर रहे हैं। देशबन्दी से हम शायद शुतुरमुर्ग की तरह रेत में मुंह छिपा कर खुद को यह समझा रहे है कि ख़तरा टल गया है। घरों में कौन कौन रहने की क्षमता रखता है? जवाब सचाई से सोचिये गा। बहकावे में मत आइये की घरों में रहने से देश को महामारी से बचा लेंगे। हर कोई इतना सामर्थ्य का नही है - आर्थिक, शारीरिक तौर पर - की घरों में दुबक कर बैठ ले, और अन्य समस्याओं से निपट ले। घर की चार दीवारें सभी को वैसी सुरक्षा नही देती है जो आप समझें हुए हैं जब आप मंद बुद्धि हो कर जरूरत से ज़्यादा ज़ोर देकर जनता से अपील करते है कि घरों में रहिये, सुरक्षित रहिये। सचाई यह है कि अब हमें दूसरी रणनीतियां भी टटोलनी पड़ेंगी। मिसाल के तौर पर, test करने पर ज़ोर देने की रणनीति, जिससे हम industry भी चला सकें। चाइना की सरकार ने जब wuhan में देशबन्दी करि थी, तब सिर्फ lockdown करके वह महामारी से जीत नही गए थे। उनकी सम्पूर्ण रणनीति का दूसरा हिस्सा यही था - घर घर जा कर test करना । बिना इन कदम को उठाये आखिर कितने दिनों हम देशबन्दी करके बैठे रहेंगे ? क्

ऐसा क्यों हुआ यूपी बिहार के समाजों में? क्यों यहां के लोग आर्थिक शक्ति बनने में कमज़ोर पड़ते चले गए?

यूपी बिहार के लोगो की आर्थिक हालात देश मे सबसे ख़स्ता हाल है। यहां के गरीब इंसान के परिवार के बच्चे सिर्फ राजनीति की बिसात पर पइदा बनने के लिए ही जन्म लेते हैं। कुछ बच्चे तो बड़े हो कर कौशल हीन मज़दूर बन कर दूसरे सम्पन्न राज्यों में प्रवास करके, झुग्गी झोपड़ियों में रहते हुए मज़दूरी करते हैं, उन राज्यों के मालिक के शोषण, मार और गालियां, उनके घमंडी हीन भावना का शिकार बनते है, और बाकी बच्चे देश की सेनाओं और पैरामिलिट्री में भर्ती को कर बॉर्डर पर भेज दिए जाते हैं, गोली खाने। ऐसा क्यों हुआ यूपी बिहार के समाजों में? क्यों यहां के लोग आर्थिक शक्ति बनने में कमज़ोर पड़ते चले गए? गौर करें तो यह सिलसिला आज से नही , बल्कि पिछले कई शताब्दियों से है । क्या गलतियां है? क्यों ऐसा हुआ? मेरा अपना मत है कि इसका कारण छिपा हुआ है यूपी बिहार में प्रायः पायी जाने वाली धार्मिकता में। प्रत्येक समाज को सशक्त और विकास के पथ पर अग्रसर करने की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी होती है - आपसी विश्वास । और आपसी विश्वास का जन्म और स्थापना होती है उस समाज के प्रचुर धार्मिक मूल्यों से। दिक्कत यूँ है कि यूपी बिहार के समाजों में प्रायः

क्या आप जानते हैं कि बहिन मायावती क्यों उत्तर प्रदेश से आये प्रवासी मज़दूरों को कांग्रेस पार्टी द्वारा प्रदान मदद के विरुद्ध मोर्चा खोल कर खड़ी हो रहीं है ?

क्या आप जानते हैं कि बहिन मायावती क्यों उत्तर प्रदेश से आये प्रवासी मज़दूरों को कांग्रेस पार्टी द्वारा प्रदान मदद के विरुद्ध मोर्चा खोल कर खड़ी  हो रहीं है ? बहन मायावती न तो प्रवासी मज़दूरों को खुद कोई मदद करने के लिए आगे बढ़ीं हैं, और न ही वह चाहती हैं की कोई और पार्टी आगे आये।  क्यों? क्या प्रवासी मज़दूरों में दलित -पिछड़ा वर्ग नहीं है ? क्या यह सब सवर्ण लोग है ?  नहीं।   सन २०११ में जब मायावती जी की उत्तर प्रदेश में सरकार  थी और विधान सभा चुनाव आने वाले थे, तब कांग्रेस पार्टी की चुनावी भाषण में राहुल गाँधी ने उत्तर प्रदेश के गरीब जनसँख्या के भयावह सत्य से परिचय खुल्ले मंच से करवा दिया था।  की उत्तर प्रदेश की आत्मदाह करती राजनीति ने पार्क  और अम्बेडकर के मूर्तियों, हाथियों  की मूर्तियों के निर्माण में यूँ  जन धन व्यर्थ किया है की यहाँ की शिक्षा व्यवस्था , चिकित्सा व्यवस्था जब स्वाहा हो चुके हैं। राहुल गाँधी ने खुले शब्दों में कह दिया था कि यूपी के लोग आज महाराष्ट्र और पंजाब में जा कर गरीब मज़दूरी करते हैं , भीख मांगते हैं, झुग्गी झोपड़ियों और चौल में रहा कर , कैसे भी दरिद्रता में गुज़ारा करत

Secularism-विरोधी तंत्र मूर्ख तंत्र होते हैं

मूर्खों के देश में विज्ञान अस्तित्व नही करता है। वैज्ञानिक सत्य कुछ नही होता है, कोई भी वस्तुनिष्ठ मापन पैमाना नही होता है। मूर्खों को लगता है कि सब वैज्ञानिक सत्य भी तो कहीं न कहीं इंसानी हस्तक्षेप से प्रभावित किये जा सकते हैं। यानी सब किस्म के सत्य राजनैतिक वर्चस्व के द्वारा संचालित होते हैं। जो राजनैतिक वर्चस्व बनायेगा, वही तय करेगा की वैज्ञानिक सत्य क्या है। विज्ञान दो प्रकार के होते हैं। perfect scien ce और imperfect science । imperfect science के अस्तित्व को मूर्ख देश में कला-बोधक विषय के समान मानते हैं। यानी इस विषय के सवाल को मूर्ख नागरिक पूर्णतः व्यक्तिनिष्ठ मानते है - यानी, जिसका राजनैतिक वर्चस्व होगा, सत्य वही होगा। कुल मिला कर मूर्ख देश के लोग राजनैतिक वर्चस्व को ही सत्य का अंतिम पायदान समझते हैं। वह सत्य की तलाश नही करते है, अनुसंधान या शोध धीरे-धीरे उनके देश में खुद ही घुटन से दम तोड़ देते हैं, क्योंकि कोई इंसान इतनी मानसिक बुद्धि का बचता ही नही है जो सत्य की तलाश में यह सब मार्ग पर चल  कर साधना करे । मूर्ख देश के सभी नागरिक राजनैतिक वर्चस्व की आपसी लड़ाई में

Secularism जीवन शैली के शिखर उदाहरण

Secularism एक सांस्कृतिक आचरण होता है। चार महिलाओं की जीवनी को टटोलें।  Bill gates, microsoft computer उत्पाद , और दुनिया के सबसे अमीर आदमियों में शुमार , इनकी पुत्री जेनिफर कैथरीन गेट्स ने इसी साल जनवरी माह में engagement करि है egypt(मिस्र) देश के मूल वाले अमेरिकी मुस्लिम नयाल नासर के संग। पूरी दुनिया को जो केहना है, करती रहे, कहती रहे, मगर मैडम को तनिक फ़र्क नही है अपने जीवन निर्णय लेने में।  यही secularism सांस्कृतिक आचरण की निशानी है। दूसरा व्यक्ति है, norway के crown pince की पत्नी Mette-Marit. वो पहले एक waitress थीं , शादी शुदा थी, ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं है। मगर जब भी  Crown prince श्री हाकों (श्री Haakon) को उनसे ब्याह करना था, इनको दुनिया की लोकलाज का कोई असर नही पड़ा ! यह secularism की निशानी है। तीसरी व्यक्ति हैं barrack obama जी की पुत्री, Malia Ann Obama. अमेरिक का इतिहास में प्रथम अश्वेत राष्ट्रपति श्री ओबामा जी की पुत्री बड़े ही बिंदास तरीके से श्वेत boyfriend के संग रहती हैं। और चौथी महिला हैं ईमरान खान की पत्नी Jemima Goldsmith.इमरान से निकाह किया, कितने ही साल वहां पाकिस्

Misgovernance, Democracy and Indian soldiers and the police constables

16 April 2020 A stitch in time, saves nine. A timely speech , speaking clearly about the extension or the completion , as reasonable, about the lockdown Could have saved the people the miseries of life , and also saved the police from the guilt of having to use their hard acquired military forces against the common citizen whose only longing is to succeed to find his way back to home. The common man longing to return back home is something similar to the soldier standing at the battlefront , craving to get back home. The migrant worker is BUT  the economy variant of that classical military version whom we have known through our movies and other literature. It is such a sorrow that the bad style of governance by the political leadedhsip is exposing the foot soldiers of the Economy, aka the migrant workers, to the violent forces received at the hand of the ever obedient attitude of the  police constable who so have long ago abjured their inner divine power of the CO
संघ का बारबार आरोप यह है कि भारत का इतिहास मार्क्सिस्टवादियों ने ऐसा लिखा है जिसमे प्राचीन और पैराणिक भारत को "सही से दर्शाया नही गया"। संक्षेप में यदि हम संघियों की बात सुने तो वह कहना यह चाहते हैं की हिन्दू धर्म वाले भारत को मौज़ूदा इतिहासकार गौरान्वित नही करते हैं, जबकि मुग़लों और ब्रिटिशों वाले भारत को करते हैं। वैसे मनोविज्ञान की जानकारी में सबसे प्रथम तो यही ज्ञान सांझा कर ली जाये कि बारबार अ पने आसपास गौरव ढूंढना एक मनोरोग होता है। इसे narcissism पुकारते हैं। हिन्दी चलन भाषा में इसे घमण्ड कहा जाता है। घमंडी व्यक्ति ऐसे सत्य को स्वीकार नही करते हैं जिससे उनको स्वयं के श्रेष्ठ होने का अहसास नही मिलता हो। ऐसे इंसान cause and effect में गलतियां करते हैं, क्योंकि यदि कोई ऐसे cause सामने आये जो उनके "गौरव" के अनुरूप नही हो, तब वह उसे अस्वीकार कर देते हैं।स्वाभाविक है, यदि cause की पहचान उचित नही होती है, तब ईलाज़ भी गलत होता है। ऐसे लोग अपने परिवार, समाज और पूरे देश को तक तबाह कर बैठते हैं। उदाहरण में रावण को देखिये जिसने परिवार और देश तबाह किया, और मौजूदा में north

Monotheist धर्म और Polytheist धर्म

Monotheist धर्म और Polytheist धर्मों में सांस्कृतिक फांसले ठीक वैसे ही हैं जैसे अशिक्षित मिठाईवाले के बेटा के विदेश से डॉक्टरी की पढ़ाई करके घर लौटने पर दिखते हैं। Polytheist धर्म फ़िट बैठते हैं अशिक्षित मिठाईवाले की भूमिका में , जबकि monotheist धर्म उसकी विदेश से शिक्षित हो कर लौटी संतान के समान होते है। Polytheist धर्मों ने दुनिया भर में जहां भी रहे , समाज में भयंकर अंतर द्वन्द को जन्म दिया। monotheist धर्म का जन्म इस द्वन्द की प्रतिक्रिया से प्राप्त समझदारी और चेतना में हुआ है। एक प्रकार से समझें तो monotheist धर्म एक निवारण थे। शायद यूसु मसीह के बाद से polytheist धर्मो का उत्थान पूरी तरह से समाप्त हो गया। और जितने भी पुराने polytheist धर्म थे, वो सब के सब अपने अनुयायिओं में अप्रिय हो कर बंद होते चले गये। क्या कारण रहे होंगे इनके लोगों में अप्रिय होने में? दुनिया भर से polytheist पंथ के अनुयायी तब्दील हो कर नये युग की चेतना में प्रवेश कर गये, और monotheist धर्मो में धर्म परिवर्तित हो गये। शायद ही कुछ एक पिछड़ी, जड़ भूमियों में कुछ polytheist धर्म बाकी रह गये हैं, जैस