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Showing posts from January, 2023

साहित्य (यानी कहानियां , कविताओं, फिल्मों, टीवी नाटकों , उपन्यासों इत्यादि) को छोटे बच्चों को कैसे पढ़ाया जाना चाहिए?

साहित्य (यानी कहानियां , कविताओं, फिल्मों, टीवी नाटकों , उपन्यासों इत्यादि) को छोटे बच्चों को कैसे पढ़ाया जाना चाहिए?  साहित्य पढ़ाने का उद्देश्य क्या होता है?   हिंदी cartoon, वीर द रोबोट boy , और जापानी कार्टून डोरेमॉन, या s inchan में क्या अंतर है?    भारतीय संस्कृति में साहित्य के पठान का उद्देश्य बच्चों को किसी विशेष सोच, संस्कृति, नैतिकता, और धर्म को स्मरण करवाना होता है। जब हम भारत में निर्मित हुए छोटे बच्चों के टीवी वाले cartoon कार्यक्रमों, जैसे की vir the robot boy को देखते हैं और फिर उनकी तुलना किसी अन्य देश (अथवा संस्कृति) से करते है, जैसे की doreamon (जापानी) तब आपको इस भेद का आभास खुद ब खुद होने लग जाता है। जापानी कार्टून अपने बच्चों के जहन (conscience) में कोई पूर्व निर्धारित नैतिकता, धर्म या सही–गलत प्रवेश करवाने की चेष्टा नहीं कर रहे दिखते हैं, जबकि भारतीय कार्टून ऐसा करते महसूस किए जा सकते हैं।   मातापिता की अपने बच्चों से कुछ अपेक्षा होना जाहिर बात है और जो कि सभी देशों की संस्कृतियों में प्रायः दिखाई पड़ती है। अंतर सिर्फ ये है कि भारतीय संस्कृति में अपेक्षा में

ब्राह्मणवाद क्या है? इसको कैसे समझा जाये?

ब्राह्मणवाद क्या है? इसको कैसे समझा जाये? महान यूनानी दार्शनिक और चिंतक, एरिस्टोटल , जिनके पास अपने समय के समाज वालों के बहुत सारे सवालों और प्रकृति के रहस्यों का जवाब था , वे अक्सर लोगों के सवालों के जवाब देते-देते  विवादों और शास्त्रार्थों में दूसरो के साथ उलझ जाया करते थे। इस भीषण बौद्धिक द्वन्द के दौरान वे अपने जवाब को उचित सिद्ध करने की चेष्ट करते थे, और कई कई बार वे सिद्ध भी हो जाया करते थे। इसलिये उनके समाज के मान्य लोगों में उनका बहुत सम्मान हुआ करता था। अपने समर्थकों से प्ररित हो कर एरिस्टोटल ने ही ऐसे उपवन तथा वाटिकाओं को आरम्भ किया था जहां वे अपने शिष्यों के संग विचरण करते हुए समाज के सवालों का और प्रकृति के रहस्यों पर विमर्श करते हुए उनके गुत्थीयों को तलाशते थे। एरिस्टोटल के वे उपवन तथा वाटिका ही अकादमी कहलाने लगे जहां तत्कालीन यूनानी समाज के समृद्ध और उच्च कोटि वर्ण के लोग अपने बालको को एरिस्टोटल के पास भेजा करते थे विमर्श करते करते अपनी बौद्धिक कौशल को प्रवीण करने के लिए। वह अकादमी (academy ) भविष्य में जा कर ये आधुनिक कालीन पाठशालाओं की नींव बनी।  मगर एरिस्टोटल तक अप

संघी लोग आतंकवाद किसको समझते हैं? क्या गलती है उनमें

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गैर–ब्राह्मण हिंदू समाज में ब्रह्म की पूजा क्यों नहीं करी जाती है

कहते हैं की गैर–ब्राह्मण हिंदू समाज में ब्रह्म की पूजा नहीं करी जाती है। धरती पर सिर्फ एक ही मंदिर था, पुष्कर (राजस्थान) में, जहां कि ब्रह्मा की पूजा होती थी। जानते हैं क्यों? पुराने लोग आपको बताएंगे कि तीनों महादेवों में सिर्फ ब्रह्म जी की ही पूजा नहीं करी जाती है क्योंकि उन्होंने एक बार झूठ बोला था । मगर आजकल ऐसा नहीं है। दरअसल ये चलन टीवी के युग में चुपके से ब्राह्मणों ने साजिश करके बदल दिया है ! क्योंकि ब्राह्मण लोग खुद को ब्रह्म की संतान बताते हैं, तो फिर वो कैसे अपने परमपिता, ब्रह्मा, की संसार में ऐसी अवहेलना होते देख सकते हैं। इसलिए उन्होंने थोड़ा हिंदूवाद, धर्म-पूजा पाठ, आस्था का चक्कर चलाया और नई पीढ़ी को हिंदू – मुस्लिम करके बेवकूफ बना लिया है। पुराने लोग आपको शायद ये भी बताते कि कैसे हिंदुओं का कोई भी त्रिदेव अवतार जिसकी पूजा हुई है संसार में, वो ब्राह्मण वंश में नहीं जन्मा। और यदि किसी त्रिदेव ने ब्राह्मण वंश में जन्म लिया भी, —तो फिर उसकी पूजा नहीं करी गई संसार ने। जैसे कि, — राम चंद्र जी — विष्णु अवतार, क्षत्रिय वंश में थे, और संसार में पूजा होती है भगवान क

क्यों एक इंजीनयर या डॉक्टर को कदापि IAS IPS नहीं बनाना चाहिये

किसी IIT, AIIMS से पढ़े व्यक्ति को IAS IPS बना कर ये सोचना कि देश अब अच्छे से चलेगा, ये तो कुछ ऐसा हुआ कि पढ़ाई में अच्छे लड़के को क्लास का मोनिटर बना कर सोचना कि पूरी क्लास अब बेहतर परफॉर्म करेगी !  घंटा!  उल्टे समाज को ज़रूरतमंद professional इंजीनयर और डॉक्टर से वंचित कर दिया,और कुछ नहीं । सांस्कृतिक इतिहास की कहानी ये बताती है कि अच्छे प्रजातंत्र में professional प्रधान होता है क्योंकि वो समाज की ज़रूरतों को पूरा करता है। न कि सरकारी मुलाज़िम, जो केवल प्रशासनिक कार्य देख रेख करता है। अच्छे लड़के को मोनिटर नियुक्त कर देने से बाकी छात्र अच्छे पेंटिंग अच्छे डांस, अच्छे गणित,  या अच्छे जीवविज्ञान नहीं पढ़ने लग जाते हैं। उल्टे वो अच्छे बच्चा भी मोनिटर बन जाने पर पढ़ाई लिखाई और अपने कौशल से ध्यान भंग हो जाने से भटक जाता है।  कोई भी सरकारी मुलाज़िम कभी भी professional नहीं हो सकता है। professional सैदव market से कमाता है, अपनी सेवा या उत्पाद बेच कर। सरकारी मुलाज़िम की तरह जनता से जबरन जमा करवाये टैक्स में से तंख्वाह नहीं लेता है - एक सुरक्षित, निश्चित आय, जो कभी नहीं घटती हो - चाहे देश में सूखा प

Some management philosphy quotes

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जन्मजात पंडित और व्यक्तिव का confidence का भारत के जनमानस पर धाक

हमारे एक मित्र, मxxष मिश्रा , कुछ भी लेख लिखते समय confidence तो ऐसा रखते हैं जैसे विषय-बिंदु के 'पंडित' है, जबकि वास्तव में ग़लत-सलत होते हैं। तब भी, उनके व्यक्तित्व में confidence की झलक होने से उनके लाखों followers है ! सोच कर मैं दंग रह जाता हूँ कि देश की कितनी बड़ी आबादी अज्ञानी है, जिसका कि जगत को पठन करने का तरीका ही मxxष मिश्रा जैसे लोगों के उल्टे-शुल्टे लेखों से होता है, सिर्फ इसलिये क्योंकि मxxष जी जन्मजात पंडिताई का confidence रखते हुए लोगों को आसानी से प्रभावित कर लेते हैं । भारतीय सांस्कृतिक परिवेश में तमाम प्रबंधन शिक्षा के गुरु लोग ऐसे ही नहीं बार-बार ' व्यक्तिव में confidence ' रखने की बात दोहराते रहते हैं। बल्कि वो लोग तो सफाई भी देते रहते हैं कि अगर आप के व्यक्तिव में confidence है, तब अगर आप ग़लत भी हो, तब भी आप अपनी बात को जमा सकते हैं। प्रबंधन गुरु लोग ग़लत नहीं हैं। हमारे देश की आबादी में औसत आदमी किताबी अध्ययन करने वाले बहोत ही कम हैं। ऐसे हालात में लोगों को किसी भी विषय पर सही-ग़लत का फैसला करने के संसाधन करीब न के बराबर होते हैं। ये देश अज्ञानियों

आरएसएस का देश के बौद्धिक चिंतन, जागृति पर दुष्प्रभाव

आरएसएस ने देश भर में तमाम 'सरस्वती शिक्षा मंदिर' स्कूल चलाये, बहोत जनसेवा करि हुई है, मगर इसके साथ ही देश के समाज में ज़हर भी खूब फैलाया है। जैसा कि आरएसएस का प्रचलित उपनाम है, रॉयल सेक्रेट सर्विस, आरएसएस ने एक किस्म की विध्वंसक मानसिकता का प्रसार भी किया हुआ है, जो बाल्यकाल से ही ब्रेनवाश करके एक ऐसे समाज की नींव डालता है जो कि गुप्तचरों द्वारा संचालित होता है। यदि कोई समाज सेक्रेट सर्विसेस के द्वारा चलाया जाये तब वो कैसे, किसी एक वर्चस्ववादी वर्ग के द्वारा हड़प लिया जाता है, और वो देश किस प्रकार के आत्मघाती और तबाही मंज़र को देखता है, इसे समझने के लिए आपको जिस देश की ओर देखना चाहिए, वो है रूस । रूस और हिटलर के जमाने वाली जर्मनी के इतिहास के जानकार लोग ये बताएंगे आपको कि कैसे सेक्रेट सर्विसेस के बल पर प्रशासन किया जाने वाला समाज किसी एक वर्ग के द्वारा अपने  समाज के दूसरे वर्गों  पर वर्चस्व की दास्तान बन गया। वो देश तकनीक और उद्योगिक विकास से तो वास्तव में दूर भाग रहा होता है, हालांकि एक आभासीय मकड़जाल , एक भ्रम अपने इर्दगिर्द बांध लेता है (और खुद से ही खुद के फैलाये झूठों का शिकार

What is the difference between Caste and Community

What is the difference between caste and community ?  To be able to fully appreciate the differences, sometimes we have to first make an understanding of the similarities. The principle applies well in the present case.  Caste and Community have almost no difference in their lexical meaning. They both refer to the social group of people. The difference between the two is only of the sociological context , which reveals how the types of groups are formed and how they conduct.  We all must have heard the term community being used in reference to social groups as the Gujarati Community, the Minority Community, the Indian community (in context of some overseas setlled Indians), and so on and so forth. And then you must have wondered as to why we don't use the word Caste , instead, in the above cases.  And that particular thought must have brought you to contemplate over what is the difference between the two words. Because otherwise your dictionary will tell you almost the same mea

बच्चों की शिक्षा के प्रति मातापिता के लिए नया, उभरता उत्तरदायित्व

ज्यों ज्यों इंटरनेट पर अकादमी विषय ज्ञान का संग्रह बढ़ता जा रहा है, त्यों त्यों competitive exams भी मुश्किल होते चले जा रहे हैं। आज मातापिता की मुश्किल ये नही है कि किताबें महंगी है। मुश्किल है कि इतने सारे ज्ञान को अपने बच्चों में सोखा कैसे जाए।   बच्चों की मित्रमंडली और दिनचर्या को प्रतिदिन ज्ञान को सोख सकने के अनुकूल बनाए रखना वास्तविक चुनौती हो चुकी है। Coaching classes, online study courses, का बाजार खड़ा हो चुका है। और सभी कि उस तक पहुंच बन चुकी है। बच्चे में बाज़ार के ज्ञान को सोखते हुए अपनी रचनात्मकता को बनाए रखना भी एक चुनौती बन गई है बाजार में रखा अकादमी ज्ञान भेड़चाल को बढ़ावा दे रहा है। बच्चे अब पहले से और अधिक run–of–the–mill "श्रेष्ठ ज्ञाता" बन जा रहे हैं। Unsolved mysteries, unknown questions, puzzles को सुलझाने में बौद्धिक क्षीर्ण। ऐसा होने से बचा लेना मातापिता के नया, उभरता उत्तरदायित्व है।

कहाँ से, कैसे आये हैं भारत के उद्योगपति

भारत में अधिकांश उद्योगपति कोई व्यवसायिक श्रमकर्ता नहीं है अपने उद्योग के क्षेत्र में। वे सब के मात्र निवेशक के तौर पर प्रवेश करके उस उद्योग के स्वामी बने है। और उनके पास निवेश करने की पूंजी कहां से आई है? पुराने जातिगत पेशे तथा सामुदायिक प्रथाओं से तैयार करी है ये पूंजी<  जब अन्य जातियां अंतर्द्वंद से ग्रस्त थी, समाज की अर्थनीति में पैसे का चलन नहीं हुआ करता था, वे सब ब्राह्मणों के धार्मिक प्रपंच बहकावे में जातपात कर रही थी, कुछ मारवाड़ी समुदाय अंतरिक विश्वास और सहयोग करने वाली प्रथाएं अपना रहे थे, जिस सहयोग और विश्वास का प्राप्त करने का साधन बन रही थी — मुद्रा, यानी पैसा। अहीर अभी गाय पशु को ही अपना धन मानता था, जबकि व्यापारी समुदाय गाय से निकाले हुए दूध को बेच कर प्राप्त हुई मुद्रा को अपना धन मानता था। कुम्हार और बढ़ाई अभी राजा की शाबाशी और गले से निकली स्वर्णमाला को अपने बेहतर कारीगरी कौशल का ईनाम मानता था, व्यापारी समुदाय राजा को कर दे कर दोस्ती कर लेने में ईनाम समझता था। ऐसे ये मारवाड़ी और मेवाड़ी लोग(अधिकांशतः जैन परिवार के लोग) धनवान बन गए और वही आगे चल कर बिरला, अदानी