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Showing posts from January, 2021

धर्म प्रचारकों और धर्म सुधारकों के मध्य की राजनीती क्रीड़ा

 भारत की साधुबाबा industry में बतकही करने वाले ज़्यादातर साधुबाबा लोग के अभिभाषण एक हिंदू धर्म के प्रचारक(promoter) के तौर पर होते हैं, न कि हिंदू धर्म के सुधारक(reformer ) के तौर पर। अगर आप गौर करें तो सब के सब बाबा लोग सिर्फ़ और सिर्फ़ धर्म की तारीफ़ , प्रशंसा के पक्ष से ही अपनी बात को प्रस्तावित करते हैं, आलोचना(-निंदा) कभी भी कोई भी नही करता है। यह प्रकृति एक प्रचारक (promoter) की होती। इन सब के व्याख्यान बारबार यही दिखाते है, सिद्ध करने की ओर प्रयत्नशील रहते हैं कि "हम सही थे, हमने जो किया वह सही ही था, हमने कुछ ग़लत नही किया"। मगर एक सुधारक की लय दूसरी होती है। सुधारक गलतियों को मानता है; सुधारक का व्याख्यान ग़लत को समझने में लगता है।  दिक्कत यूँ होती है कि सुधारक को आजकल "apolgists" करके भी खदेड़ दिया जाता है। उसके विचारों को जगह नही लेने दी जाती है जनचिंतन में।  वैसे promoter और reforme r के बीच का यह "राजनैतिक खेल" आज का नही है, बल्कि सदियों से चला आ रहा है।  धार्मिक promoters हमेशा से ज़्यादा तादात में रहे हैं धार्मिक reformers के। reformatio

one core property that describes the Consciousness

Among other things about what the Consciousness is,  one core property that describes the Consciousness as per the physicists , is the ability of the Universe to receive a feedback from its own self, and then, to use that feedback to improve upon itself - in other words , to grow wiser by gaining from own experience  भौतिकशास्त्रियों के अनुसार अंतर्ज्ञान का एक गुण यह होता है कि व्यक्ति अथवा पदार्थ अपने स्वयं के दर्शन एक बाह्य दृष्टिकोण से करने की क्षमता विकसित कर लेता है और फ़िर इस प्रकार बुद्धिमान बनने लगता है। अपने स्वयं के प्रति प्राप्त ज्ञान से आत्म-सुधार करता है और सुन्दरता, निर्मलता, व्यवस्था और पवित्रता को प्राप्त करने लगता है।

the most tangible difference between Communism and a genuine gold-standard Democracy

  Another thing -- the most tangible difference between Communism and a genuine gold-standard Democracy is that - the Communist(/socialist) are resistive to the holding of Private Properties and the Rights.

noam chomsky के विचार एक anarchist के विषय पर

महान विचारक noam chomsky एक anarchist के महत्व पर प्रकाश डालते हुए बताते हैं कि anarchist वो होते हैं जो कि राज्य को उसकी हदों में रहने पर बाध्य बनाये रहते हैं जिससे कि राज्य व्यक्ति से बड़ा न हो जाये । anarchist का अर्थ उपद्रवी नही होता है, क्योंकि उपद्रवी तो insurgent कहलाता है। anarchist का अर्थ होता है वो जो की सदैव राज्य नीति का विरोधी और आलोचक होता है। कोई भी नीत perfect कभी भी नहीं बनाई जा सकती है, सिर्फ एक best नीत ही बनाई जा सकती है -समय और हालात के माकूल। तो इसका अर्थ हुआ कि नीति कभी भी परिपक्व नही होती है, उसे निरंतर बदलते रहना आवश्यक क्रिया है dynamic equilibrium क़ायम रखने के लिए।    तो ऐसे में anarchists ही वो व्यक्ति होते हैं जिनके विचार सरकारों को बाध्य बनाते है कि वह निरंतर बदलते equilibrium की टोह लेती रहे और नीति में समय-आवश्यक परिवर्तन करती रहे। Chomsky स्वयं को एक anarchist के रूप में ही पहचान करते हैं और वर्तमान में विश्व के सबसे प्रभावशाली बुद्धिजीवी हैं - राजनैतिकविज्ञान -अर्थनीति-समाजशास्त्र विषयों पर ।

#भारत की मनोरोगी प्रथाएं और संस्कृति

 भक्त गण sadistic pleasure लेने वाले psychopath हैं।  इंदौर में पुलिस द्वारा हिरासत में लिए comedian मुन्नवर फ़ारूक़ी को आरोप के कोई भी सबूत नहीं होने के बावज़ूद कैद करके जेल में रखे जाने की घटना से भक्तगण उसके संग हुए अन्याय के प्रति रुष्ट नहीं है, बल्कि आनंद निकाल रहे हैं कि comedian ने कैसे #CAA कानून  के प्रति अपना विरोध दिखाया था। मनोचिकित्सा विज्ञान में इसे sadistic pleasure लेना माना गया है, जब एक इंसान कि संवेदनशीलता किसी अन्य के संग हुए अन्याय के प्रति नही हो कर, किसी अन्य कारण से अन्याय के पलों में आनंद लेने की हो जाती है। यह एक मनोरोगी होने के लक्षण होते हैं। कल्पना करिये की जिस प्रकार एक अन्यायी कानून से आज हम सबके सामने मुसलमानों को जबर्दस्ती उनके कागज़ दिखाने के लिए मज़बूर किया जा रहा है, और फ़िर असम्बद्ध आरोप लगा कर प्रताड़ित करके sadistic pleasure ले रहे हैं,  तब फ़िर अतीत में दलितों और पिछड़ों को कैसे असम्बद्ध कारणों से कुँए से पानी लेने, स्कूलों में विद्यालयों में प्रवेश पर पाबंदी, इत्यादि करके अन्याय के प्रति संवेदनशीलता नही रख कर उल्टे sadistic pleasure लिए गये होंगे ! #भारत

भोजपुरी समाज में anti-intellectualism

भोजपुरी समाज में अक्सर करके एक anti learning आचरण दिखाई पड़ता है। लोगों में दूसरे के विचारों को सुनने , समझने और सोचने की बौद्धिक क्षमता क्षीर्ण होती है। और वो इस कमी से विचलित होने की बजाये इस पर गर्व करते हैं।  यह बौड़मता संस्कृति से प्रसारित होती आ रही है।  लोगों के चिंतन में एक शोर noise कहीं से बचपन से ही प्रवेश कर जाती है। तमाम किस्म के दरिद्रता से निकले complex उनके दिमाग में भरे हुए रहते हैं और वह उनके दिमाग में एक शोर मचा रहे होते हैं। नतीज़ों में व्यक्ति अपनी युवा अवस्था से ही learning resistive आचरण भर लेता है।

'शक्तिशाली होने में' और 'प्रभावशाली होने में' अंतर होता है

  ' शक्तिशाली होने में ' और ' प्रभावशाली होने में ' अंतर होता है। गांधी एक प्रभावशाली व्यक्ति थे, शक्ति तो उनके पास कोई थी ही नहीं। देखा जाये तो वह किसी भी औपचारिक पद पर नहीं थे ! मगर तब भी, ब्रिटिश उनसे ही वार्तालाप करते थे, क्योंकि जनता के दिलों पर गांधी का ही राज था। शक्ति आखिर में क्या होती है? तमाम तरह की परिभाषाओं में एक बिंदु यह भी है कि प्रभावशाली होना ही तो वास्तविक शक्ति होती है। वो जो दिलो पर राज करें, वो जिनकी बातों को जनता सुनने को तैयार हो, बिना किसी ज़ोर ज़बरदस्ती , भय या दबाव के - वही जनप्रिय व्यक्ति ही वास्तविक शक्तिशाली होता है। वर्ना, शक्ति यानी Power तो सरकारी ओहदों पर बैठे हुए व्यक्तियों के पास भी होती है - प्रशासनिक शक्ति , जिसमे राज्य की तमाम सैनिकिय शक्ति कानून के व्यूह से बंधी हुई आदेशों का पालन करने हेतु बाध्य होती हैं। मगर ऐसी प्रशासनिक शक्ति के प्रयोग से कोई भी दीर्घ प्रभावी उद्देश्य प्राप्त नही किया जा सकता है। न ही इस शक्ति के प्रयोग से सत्य निष्ठा से इंसानो को बदला जा सकता है। तो प्रशासनिक शक्ति (Administrative Power) होती तो तुरंत

बच्चों में प्रोत्साहन ऊर्जा क्यों क्षीर्ण हो जाती है

XYZ Singh एक निहायत ही talent less, skill less "बेरोज़गार" किस्म का युवक है, जो कि इधर-उधर यार दोस्तों में घूम-घूम कर अपने आप को कामगार साबित करने की मिथ्या रचते हुए अपना समय जाया करता रहता है। XYZ Singh का world view भी विकृत है, वो short cuts से  तुरन्त और सस्ते अवगुणी तरीकों से achievement प्राप्त करना चाहता है अपने जीवन में। achievement जैसे कोई  स्थान, पद, व्यापरिक कामयाबी, धन सम्पति, इत्यादि। सवाल है कि XYZ Singh ऐसा बना ही कैसे?  उसमें यह सब ऐब आये कहां है? आखिर जन्म से तो कोई भी ऐसा नही होता है, फ़िर XYZ Singh ऐसा कैसे हुआ? इसके राज XYZ Singh के मातापिता के जीवन-निर्णयों में छिपे हुए हैं। कौन थे XYZ Singh के मातापिता और कैसा व्यक्तिव था उनका, शायद यह जान कर हमें पता चल सके कि XYZ Singh के लालनपोषण में क्या कमियां रेह गयी कि XYZ Singh एक निट्ठल्ला , झूठा, टालू, बहानेबाज, स्वाभिमान से ख़ाली व्यक्ति बना युवावस्था में। निर्णय ले सकने की काबलियत की दृष्टि से संसार में दो किस्म के लोग होते है - वो जो अपने खुद के चिंतन से निर्णय ले सकने के काबिल होते है Conscious man , और वो ज

छोटे बच्चों को जादू सीखाना

  छोटे बच्चों को जादू सीखाना बहोत बड़ी कला होती है। असल में मासूम बच्चों को जादू सीखाने में वास्तविक बात जो कि उनको सिखाए जाने के लिए कठिन होती है, वह होती है दूसरे को मंत्रमुग्ध करते हुए अपनी tricks को पूरा कर गुज़रना, बिना पकड़ में आये। मगर अक्सर करके सीखाने वाले जो ग़लती करते हैं, वह यह कि वो tricks की पोलपट्टी उजागर करने में ज़्यादा ज़ोर दे देते हैं, जिससे कि बच्चे दूसरे को विस्मयी बनाने की कला को पकड़ ही नही पाते हैं। वास्तविक कला जो कि सिखाई जानी होती है, वह है presentation यानी दूसरे को मंत्रमुग्ध करते हुए अपनी tricks को पूरा करने की कला। देखा जाये तो आज की दुनिया भी "जादू की कला" पर ही चलती है - दूसरे को बुद्धू बनाने की कला , दूसरे को उल्लू/बेवकूफ़ बनाने की कला। और हम लोग ग़लती यह कर देते हैं की अपमे बच्चों को "जादू करना" सीखने की बजाये "जादू की पोलपट्टी पकड़ना" सीखने पर बल दे देते हैं। यह ग़लती है। बच्चे दुनिया को चलाने वाली शक्ति के संग नही हो कर उसके विपरीत चलने लगते हैं। बच्चों की मासूमियत अक्सर करके रास्ते का रोहड़ा होती है, उनको जादू करना सीखने में। मगर