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Showing posts from September, 2019

आर्थिक मंदी का क्या अर्थ और अभिप्राय होता है ?

कल बात चल रही थी कि आर्थिक मंदी का क्या मतलब हुआ? और यह कैसे आती है? कैसे पता चलता है की मंदी आ गयी है? इसके आने से समाज पर क्या असर होता है? अपने संक्षिप्त ज्ञान के आधार पर सभी कोई अपना अपना मत प्रस्तुत कर रहा था, जो की शायद किसी विस्तृत ज्ञान या प्रत्यय को समझने की सबसे उचित पद्धति होती है -- वार्तालाप एवं चर्चा। एक मत के अनुसार सवाल उठ रहा था कि आखिर सारा पैसा (/धन) कहां गायब हो जाता है? क्या लोग धन को अपने घरों में छिपा लेते हैं, तिजोरियां भर ली जाती हैं, जिससे की बाज़ार म ें घन की कमी आ जाती है? आखिर क्यों लोगों ने घर, मोटर कार और यहाँ तक की biscuit भी खरीदने बन्द कर दिये हैं ? एक दूसरे मत के अनुसार हमारे देश का सच ही यह हुआ करता था की यहां एक parallel economy चक्र था, जिसमे की कारोबार cash अवस्था वाले घन में ही चलता था (जिसे की काला धन भी बुलाया जाता है ), और जहां की सरकार को टैक्स देने की कोई फिक्र नही हुआ करती थी व्यापारियों को। यह वाली economy में हमारे देश का कुल धन का करीबन 80% अंश प्रयोग में था। इसमे सामान के फैक्टरी उत्पादन से लेकर विक्री तक , छोटे उद्योग पूरी तरह युग

मार्क टुली और भारत की मिलावट संस्कृति

भारतीय संस्करण में मिलावट का मामला प्रचुर होता है। उल्हासनगर करके एक  मुम्बई शहर का एक क्षेत्र अकसर लघुउपहासों में आता है जहां हर चीज़ का डुप्लीकेट तैयार कर दिया जाता है। डुप्लीकेट , जैसे दूध में पानी मिलाना। बल्कि आजकल तो बिल्कुल synthetic दूध ही बना डालते, कपड़े धोने वाले पाउडर से। क्या करें कलयुग चल रहा है। और यह डुप्लीकेट उत्पाद हमारे स्वास्थ्य के लिए परम हानिकारक होते है। तो मार्क टुली , पूर्व बीबीसी संपादक, जो काफी समय भारत में तैनाती पर थे, और अच्छी खासी हिन्दी भी बोलते है, वह कहते है कि भारत में पंथ निरपेक्षता यानी secularism के नाम पर असल में तुष्टिकरण ही हुआ है। असल में यह मामला एक भारतीय संस्करण की मिलावट का था, जो secularism वाले "उत्पाद" में दिखाई पड़ा और जनचेतना में आया। अभी राजनैतिक विज्ञान के ऐसे और भी "डुप्लीकेट उत्पाद" पकड़े जाने बाकी हैं। भारत की Democracy भी मिलावट वाली ही है। अफसरशाही यानी Bureaucratism को ही यहां बोतल पर लेबल बदल कर democracy समझा जाता है। इस मामले में तो मिलावट खुद संविधान ही कर देता है। (जी हाँ, संविधान अपनी मंशा में तो नही, म

मद्यअध्यात्म, यौन सक्रियता और समाज में बढ़ता आपराधिक आचरण

सेक्स और धर्म के बीच का संबंध बहोत गेहरा है। हालांकि यह संबंध मात्र आपराधिक घटनाओं तक का नही है, वरण मनोवैज्ञनिक स्तर का भी है। सिर्फ चिन्मयानंद , आसाराम इत्यादि तक बात सीमित नही है, याद करें की जब मुल्लाह ओमर और ओसामा-बिन-लादेन को भी पकड़ा गया था तब उनके ज़ब्त किये सामान में अश्लील साहित्य और चलचित्र भी खूब बड़ी मात्रा में पकड़े गये थे। इसी तरह church व्यवस्था में भी आजतक बाल-यौन शोषण के inquisition चल रहे हैं और समय-समय पर उच्च स्तर के चर्च अधिकारियों को सज़ा दी जाती रही है ताकि जनता का चर्च व्यवस्था में विश्वास क़ायम रहे। ओशो रजनीश ने कभी, किसी ज़माने में "संभोग से समाधि तक" करके पुस्तक रची थी जिसमे की संभोग (सेक्स क्रिया) के माध्यम से ईश्वरीयता को प्राप्त करने के मार्ग को तलाश किया था। "प्राणिक उपचार" जैसे कुछ एक गैर-वैज्ञानिक, मगर परंपरागत , विषयों में भी सेक्स क्रिया, सेक्स सक्रियता और ईश्वरीयता(spiritual awakening) के बीच के रिश्ते की चर्चा स्पष्ट शब्दावली में करि जाती है। 'प्राणिक उपचार' विधि में यह माना जाता है की जैसे-जैसे इंसान में ईश्वरीयता का विकास

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The failure and lessons to learn from Vikram lander

Just to update about the story of the perils during moon landing, how many of you know that there is, right now, a Rover on the surface of moon, moving and sending the images back ! Yes, if may google it through , you will find about the *Chang-4* from China . The story of *Chang 3*, the one Rover which the Chinese had sent just before this one, met the nearly the  same fate as ours. Infact they were better off than what we have achieved in our mission . The central line of the reason of failure was same - " *Communication lost* ". However , the Chinese , in their first attempt, had managed to atleast land successfully. Do you know that ? Chang-3 , also called as *Jade Rabit* mission, or the *Yutu* , had landed successfully and the rover vehicle , *Yutu* , emerged out from the lander unit. It even transmitted back the images which the Chinese put up on the Twitter handle . However, being a communist country, their space programs do not reveal much neither to the own public

The Unscientifically decided penalties under the Motor Vehicle Act

There are a few questions regarding Dinesh Madan episode, the man who has trended on the social media since 03rd Sep after getting a driving ticket amounting to ₹23000,  thereby becoming the first of the famous culprit under the new Motor Vehicle Act Many people are justifying the amendment arguing the righteousness of the police action, judging from the number of offences and the nature of offences he had committed. However, here are the questions :- Q1) What made him getting caught for so many of the offences , which apparently he must have been doing since ages, only after the Fine amount has increased ? Is the commissioning of offense new, or the catching of the culprit the new-found incident which could happen only as the apathetic police has found a new zing since the fine amount has zoomed up ? Q2) Now , what will guarantee that "the most unavoidable, most honored" *the police discretion* will not come in way of catching all such offenders , and not letting an

प्रजातंत्र में तानाशाही के क़ाबिज़ होने के गुप्त रास्ते - न्यायपालिका में सेंध

तानाशाही की यही पहचान होती है। प्रजातन्त्र में तानाशाही ऐसे ही क़ाबिज़ होती है। कि, पहले तो न्यायपालिका में अपने आदमियों को पदुन्नति दे कर जज और शीर्ष पदों तक पहुंचाती है। फिर उनके माध्यम से न्याय को ही पक्षपाती बना देती है। जिन अपराधों के मुक्कदमों में अपने आदमियों को रिहा कर दिया जाता है - कभी सबूतों की कमी का बहाना लगा कर, कभी निर्दोष दिखा कर, कभी जांच की कमियां दिखा कर-- वहीं पर अपने राजनैतिक विरोधोयों के हल्के हल्के मुक़द्दमों को भी "गंभीर" बता कर जेल भेज दिया जाता है। इससे विरोधी जनता के बीच नेता प्रतिपक्ष की कमी हो जाती है, और विरोधी जनता का मनोबल भी टूटने लगता है। फिर तानाशाही पार्टी को और ज्यादा छूट मिल जाती है अपनी मनमर्ज़ी करने की। द्वितीय विश्व युद्ध से पूर्व जर्मनी में एडोल्फ हिटलर ने में ऐसे ही सत्ता में अपने विरोधयों को साफ़ किया था। इटली में मुससोलिनी और जापान में भी इसी तरह राजनैतिक विरोधियों को रास्ते से हटा कर तानाशाही आयी थी और फिर देश को महाविनाशकारी विश्वयुद्ध में झोंक दिया था।

तानाशाही प्रवृत्ति और जनसंख्या नियंत्रण के सीधे तरीकों का चयन

ज़्यादातर विचारकों के अनुसार देश की तम्माम समस्याओं का मूल यहां की विशाल , अनियंत्रित आबादी को समझा जाता है। कुछ भी हो -- सड़कों पर यातायात क्यों बेकाबू है?, स्कूलों में शिक्षक क्यों नहीं आते? अच्छी, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा क्यों नही दी जाती?, अस्पतालों में बेड की कमी क्यों है?, गुणवत्तापूर्ण ईलाज़ क्यों नही दिया जाता?, न्यायपालिका में सुनवाई में देर क्यों लगती है? , घूस क्यों देनी पड़ती है जल्दी सुनवाई के लिए?, पुलिस क्यों नही fir प्राथिमिकी दर्ज करती है?, समय पर जांच और बचाव कार्यवाही क्यों नही करती है?- ---- लाखों सवालों का एक जवाब आसानी से दे दिया जाता है -- *बड़ी, विशाल आबादी* । और फिर विशाल आबादी को नियंत्रित नही कर सकने के लिये देश की प्रजातंत्र व्यवस्था को दोष दे दिया जाता है क्योंकि यह जनसंख्या को सीमित करने वाले सीधे तरीकों को लागू करने में सभी के हाथ बांध देती है - सीधे तरीके क्या हैं-- जैसे, जबरदस्ती नसबंदी, दो से अधिक संतानों पर दंड, जुर्माना; या कि बच्चों के जन्म से पूर्व सरकार की अनुमति लेना, इत्यादि। तो, कहने का मतलब है कि प्रशासनिक विफलता किसी अयोग्यता का नतीजा नही है, बल्क