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सुंदरता क्या होती है — एक विचार- लेख

जाने–अनजाने में हम सभी व्यक्ति किसी भी चीज के प्रति आकर्षित होते हैं केवल कुछ भौतकी सौंदर्य की वजहों से। 

Philosophers में सौंदर्य को समझने का सवाल हमेशा से चलता आया है। वो क्या है जो कि किसी व्यक्ति को किसी अन्य व्यक्ति या वस्तु की ओर आकर्षित करती है? इस गुत्थी को समझने और व्याख्यान देने के लिए दार्शनिक जन कई युगों से प्रयत्नशील रहें हैं। 

बाल्यावस्था में हमें कोई भी वस्तु आकर्षित करती है अपने शारीरिक रूप, रंग और स्वाद के माध्यम से। बच्चों में पसंद करी जाने वाली Gems नामक toffee सबसे आसान उदाहरण है। छोटी छोटी गोलियां केवल अपनी ऊपरी रंग में एक दूसरे से अलग होती हैं, जबकि इस ऊपरी रंग वाली त्वचा के भीतर सभी गोलियों में एक ही पदार्थ होता है, जो कि मात्र कुछ ही second कि चूसने के बाद बाहर निकल आता है। मगर फिर भी आप छोटे बच्चों को आपस में अलग अलग रंग की gems की गोली को पसंद करके उनको वितरित करते हुए आपसी संघर्ष करते देख सकते हैं। 

ये है aesthetic सौंदर्य का उदाहरण। और ज्यादातर अवसरों पर सौंदर्य की यही बाल्यकाल समझ हम में युवावस्था में भी ऐसी ही त्वरित हो जाती है। बाली अवस्था में जवां लड़के लड़कियां एक दूसरे की तरफ यौन आकर्षण भी अक्सर करके मात्र शारीरिक रूप या "हुस्न" देख कर हो जाते हैं। 

और फिर मध्यअवस्था के आते–आते हम सभी को अपने जीवन निर्णयों , जैसे कि– शारीरिक आकर्षण के आधार पर किए गए जीवनसाथी के चुनाव की वजह से हुए खट्टे अनुभव– से यह अहसास होने लगता है कि सौंदर्य केवल शारीरिक या aesthetic नही माना जाना चाहिए। हमें लगने लगता है कि सौंदर्य की विस्तृत समझ में चरित्र, व्यक्तित्व, वैभव, कीर्ति इत्यादि को भी शमाल्लित करना चाहिए। कई सारी स्त्रियां अक्सर अपने से कहीं बड़े व्यक्ति के प्रति आकर्षित हो जाने का, अकसर, यही वजह बताती हैं। पुरुष का वैभव और कीर्ति भी मध्यअवस्था वाली स्त्रीयों को उसकी और आकर्षित करने लगता है। 

बाल्यावस्था में स्वाद और शारीरिक कोमलता भी आकर्षण का एक भौतकी (यद्यपि छिछला) कारण होता है। Cake और buiscuits को पसंद किए जाने का बड़ा कारण यही होता है, जबकि प्रौढ़ अवस्था आते आते हमें यह अहसास आने लगता है कि ये सब स्वादिष्ट खाद्य पदार्थ शरीर के लिए भीतर से कितना हानिकारक होता है। इडली कठोर न लगे दातों को, इसलिए उसमें eno या baking soda मिला कर कोमल बनाने की युक्ति करी जाती है। जबकि बाद की आयु में हमें पता चलता है कि कैसे baking soda शरीर को अंदर से क्षति कर जाता है। Coke और cigrettee के प्रति भी ऐसे अहसास आते हैं। 

आकर्षण का एक बड़ा कारण उपयोगिता या utility भी होता है। कपड़े खरीदते समय अकसर कम बजट वाले लोग utility और "देखने में सुंदर" को आधार मान कर चुनाव करते हैं। "देखने में सुंदर" से स्पष्ट अभिप्राय होता है fashionable (या समकालीन दिखने वाली वेशभूषा)। श्त्रीयों में fashionable दिखने कि आवृत्ति अधिक तीव्र होती है पुरुषों के मुकाबले। पुरुष अक्सर केवल utility के आधार पर चयन करते हैं।  Fashionable होना कोई खराब विचार नहीं है, बस अक्सर करके वो वस्त्र/या सामान हमारी बजट की सीमा को लंबे से लांघने लगता है। Furniture और car के मामले में बजट को लंबे से लांघा जाना आम बात होती है। मोबाइल फोन और computer इत्यादि की खरीदारी के समय लोग अक्सर बजट थोड़ा बड़ा ही बना लेते हैं ये सोच कर कि चलो ये समय उपयोग का भी तो है, और साथ में कई सालों में एक बार खरीदना होता है। भय केवल इस बात का होता है कि यदि खरीदने के बाद जल्द ही वो सामान खरीद निकल आया, तब खर्चा बढ़ जायेंगे, जो की पहले से ही बड़े बजट में खरीदा गया है। 

फिल्मों और अन्य कलाओं में किसी उत्पाद को पसंद करने का प्रायः कारण होता है मन में खुशी का एहसास दिलवाना। हास्य रस सबसे अधिक पसंद किए जाने वाला रस होता है। जनता प्रायः हसोड़ चरित्र या फिल्म को पसंद करती है। रामायण में हनुमान एक वानर हो कर भी स्त्रीयों और पुरुषों में सबसे अधिक पसंद किए जाने वाले चरित्र हैं। फिल्मों में पहले नायक अलग होता था, और हास्य कलाकार अलग। मगर फिर बाद के समय ने हीरो बनने वाले व्यक्तियों को ये एहसास आने लगा कि जनता में तो हास्य कलाकार अधिक पसंद किया जाता है, तो गंभीर नायकों ने भी हसौड़ी अभिनय करने की ठान ली। इस प्रकार से नायक चरित्र भी हास्य कलाकारों में शामिल होने लग गए।




जब कैमरे में कैद तस्वीर हमें हमारा चित्र दिखाती है, तब हम में आत्म मुग्धता आती है

 

यादें वो नहीं होती है जो आप कैमरा में कैद करते हैं, chip के ऊपर। यादें वो होती हैं जो आपका दिमाग और दिल दर्ज करता है, आपकी भावनाओं के पटल पर। कैमरा सिर्फ दृश्य रखता है, यादें दिल में रखी जाती है। 

यादें हमारी भावनाओं को क्रियान्वित करती है। हमें संवेदनशील बनाती हैं। भावनाएं इंसानी बुद्धिमता का आधार होती है। यादें भावनाओं का बटन होती हैं। 

कैमरा में सिमटी हुई यादें हमे संवेदनहीन बना सकती हैं। क्योंकि वो दिल को रिक्त कर देती हैं। 

जब हमारा मन हमें दर्पण दिखाता है, तब हमें हमारे चरित्र की कमियां दिखाई पड़ने लगती है। उन्हें सुधार करने से हम में भीतर से निखार आता है, शुद्धता आती है, व्यक्तित्व की खूबसूरती बड़ती है। 

मगर जब कैमरे में कैद तस्वीर हमें हमारा चित्र दिखाती है, तब हम में आत्म मुग्धता आती है

कूटनीति के अन्त महायुद्धों से होता है

राजनीति अक्सर करके मानसिक लुकाछिपी, ताश का खेल, या चोर पुलिस की शक्ल ले लेती है। और तब इसे कूटनीति बुलाया जाता है। 

 कूटनीति में व्यक्ति या समूह, एक-दूसरे के दिमाग़ को पूर्व से ही पढ़ कर उसे मात देने की कोशिश में लग जाते हैं। बिना कुछ किये और करे ही दूसरा व्यक्ति पूर्वानुमान लगा लेता है कि सामने वाले का क्या अगला move होगा, और उसका कटाक्ष करने लगता है। 
 और दूसरा वाला भी ये सोचने लगता है कि सामने वाला उसके बारे में क्या पूर्वानुमान कर रहा होगा, और ऐसे में कैसे, क्या करके उसे अचंभित करा जा सकता है। 

 ये mind games ही कूटनीति कहलाता है। 

 Mind games वाली कूटनीति राज्य को चलाने की न्याय नीति से बहोत दूर भटकी हुई होती है। इसका मकसद केवल सत्ता शक्ति प्राप्त करना होता है, ताकि उसका स्वार्थी उपभोग किया जा सके। इसमें विजयी निकृष्ट मानसिकता ही होती है, चाहे जो भी पक्ष जीते। क्योंकि दोनों ही पक्ष एक से बढ़ कर एक निकृष्टता करते हैं mind games के दौरान ।

आम आदमी,जो तटस्थ रहना चाहता है, राजनीति और कूटनीति से विमुख बना रहता है, उसका तो बेमतलब शिकार हो जाना तय शुदा हो जाता है। 

कूटनीति के अन्त महायुद्धों से होता है, महाविनाश से। दर्दनाक प्रलय से।

संकुचित (संकीर्ण) मानसिकता और बद व्यवहार से इंसान अपने शत्रु बढ़ाता है

ये जरूरी नहीं की किसी व्यक्ति के शत्रु केवल तब ही बढ़ते हैं जब वो तरक्की करने लगता है। 

शत्रु तब भी बढ़ते हैं जब व्यक्ति संकुचित मानसिकता का हो जाता है। 

 संकुचित मानसिकता ?
– दूसरों को खराब, बदनीयत, द्रोही, अवगुण और निम्न बताने वाली बोली

प्रभुत्ववादी सरकारें क्यों अपेक्षा के विपरीत, और अप्रत्याशित व्यवहार रखने को बाध्य बनी रहती हैं?

प्रभुत्ववादी सरकारें क्यों अपेक्षा के विपरीत, और अप्रत्याशित व्यवहार रखने को बाध्य बनी रहती हैं? 

Why the authoritarian regimes are pressed to adopt a behaviour filled with expectation-defiance, and making rougue decisions, having in replete the elements of surprise? 

बात को समझने के लिए पहले ये समझिए कि – तब क्या होता जब दो व्यक्तियों के बीच वैचारिक मतभेद के दौरान सुलह करने के कोई भी common grounds नही मिल पाते हैं? 

आज के युग में truth और alternative truth , reality और alternative reality में बंटी आबादी में ऐसा हो जाना सहज बात होगी। कि, लोगो में समझौता कर सकने की गुंजाइश ही न मिले। 

लोग अपनी अपनी बाते पर अडिग, अड़ियल होते दिखाई पड़ेंगे। ऐसे में वे अपने अपने पक्ष की सत्यता को दूसरे के विरुद्ध सही सिद्ध करने लिए केवल अपेक्षाओं की विधि पर निर्भर करने लगते हैं। वे एक दूसरे की सोच से निकलते गलत परिणामों की भविष्यवाणी करके आम जन को सचेत करते हैं, ताकि आम जन का विश्वास जीत कर उनके मत को अपने पक्ष में कर सकें। 

Proof by forecasting 

और ऐसे हालात में, दूसरा पक्ष अपने बचाव के लिए दूसरे पक्ष की तम्मान भविष्यवाणियों, अपेक्षाओं को ध्वस्त करने की चेष्टा करने लगती है। तब वो अटपटे से, अप्रत्याशित निर्णय लेने लगती है, ताकि जनता में वो भविष्यवाणियां सत्य न साबित होने पाएं। और जनता का मत विपक्ष के साथ न चला जाए। 

उपरोक्त बात कि एक corollary ये भी निकलती है कि अगर आप किसी सरकार को बहुत ज्यादा rogue, suprising decision या expectation defying निर्णय लेते देखें, तब अनुमान लगा लें कि शायद ये लोग किसी mind game के तहत truth बनाम alternate truth की जंग लड़ रहे हैं।

कूटनीति और 'कारण' बनाम 'भावना'

 (borrowed from the Internet)

कूटनीति यानी जनता से वोट बटोर कर शासन शक्ति को अपने स्वार्थ के लिए हड़पने वाली राजनीति 

इसमें अक्सर करके निर्णय के पीछे कारण नहीं होते हैं, बल्कि भावनाएं होती हैं। 

समझें तो, कूटनीतिज्ञ अपने निर्णय कभी तो किसी कारण पर आधारित करते हैं, और कभी भावनाओं पर। 

 और इन दोनो में से किसी एक आधार को चुन लेने की प्रेरणा केवल जनता के बड़े अंश को प्रभावित करके उनके वोट बटोर लेना होता है। कारण (यानी तर्क आधारित बात) हमेशा कूटनीतिज्ञों के निर्णय का आधार नही होती है क्योंकि वे जानते हैं कि वे लोग इतने बुद्धिवान नही होते है कि हमेशा कारणों से जनता के बड़े अंश पर प्रभाव जमा सकें।

 भावनाएं ज्यादा efficient होती हैं बड़ी आबादी पर प्रभाव जमाने के लिए। बढ़ी आबादी की जनता कारण पर सहमत नही करी जा सकती है। मगर भावना पर आसानी से बड़ी आबादी को किसी दिशा में मोड़ा(=बहकाया) जा सकता है।  

 तो राजनीति को समझने के लिए किसी भी कालखंड में संबद्ध समाज में बहती हुई भावना की टोह लीजिए। कूटनीति की परतें अपने आप खुलती चली जायेंगी और आपको समझ आने लग जायेगी। 

 यदि भावनाओं में कोई दुर्भावन आ जाए जिसके प्रयोग से कोई कूटनीतिज्ञ आबादी पर प्रभाव जमा रहा हो, तब अक्सर वो दुर्भावना को छिपाने के लिए इस पर कोई 'कारण' की चादर डाल कर उसे तापने की कोशिश करता है। और फिर आम व्यक्ति चकमा खा जाते हैं नकली 'कारणों' की भुलभुलैया में। 'कारण' जब नकली आधार होते है निर्णयों के, तब कूटनीतिज्ञ blackwhite thinking का मुजाहिरा करने लगते हैं, u turn मारते दिखाई पड़ते हैं, थूक-कर–चाट करने लगते है, निर्लज्जता से। पाखंड ऐसी कूटनीति का चरित्र बन जाता है। 

 तो भावनाओं के आधार से निर्णय लेने से वोट आसानी से मिलते हैं। मगर एक व्यापक देशहित की दृष्टि से  इसकी कुछ कमी भी होती है। ये कि भावनाओं पर तैरता जनादेश देश की व्यवस्था , न्याय को बर्बाद करने लगता है। समाज ऊंच–नीच, अपना–पराया करने पर उतर आता है। अनिश्चितता बढ़ जाती है। लोगों का भविष्य भाग्य की सूली पर झूलने लगते हैं , उसके हाथो में नहीं रह जाता है

How to work with the self-congratulatory, megalomaniac governments?

 (borrowed from the Internet)

This is a megalomanic's Govt . It is more narcissistic in its approach, It doesn't think that our country needs to do anything TO ACHIEVE the greatness. It wants to do things TO PROVE that the greatness is already here


 That's the way one can work with these people. Don't tell them targets which may look as if they are striving for improvement . Tell them targets which may help them prove to the rest of the Indians, their rivals and the whole world that the greatness is already with them .

राजा का असल धर्म दान दक्षिणा करना, या देशद्रोहियों को पहचान कर दंड देना नही होता है

ये सरकार व्यापारियों को सरकार है। व्यापारी लोग स्वभाव से ही न्याय के विचार से रिक्त होते हैं। वे अपने माल का दाम बढ़ाने के लिए सामाजिक औहदो की ऊंच नीचे का उपभोग करते हैं, उसका विरोध नही करते है। एक पर्स जो आम आदमी को सस्ते दामों में मिल सकता है, उसका दाम हजारों गुना महंगा हो जाता है मात्र ब्रांड बदल देने है। और ब्रांड का मकसद क्या होता है– खरीदार को अपनी सामाजिक हैसियत साबित करनी होती है समाज में। सोंचे तो ये विचार समानता के न्याय सूत्र के ठीक विपरीत है। 

तो फिर ऐसे ही व्यापारी राजा भी देश निर्माण को न्याय के सूत्र से बांधना नहीं जानता है। न्याय के अभाव के बदले में वो दान-दक्षिणा, परोपकार कर्म करके जनता को लुभा कर शासन करता है। 

सो, व्यापारी कभी भी देश को दीर्घायु शासन नही दे सकता, क्योंकि वो राष्ट्रीय एकता को प्राप्त नहीं कर सकता है। व्यापारी राजा के शासन के दौरान न्याय की कमी से उत्पन्न असंतुष्टों की कतार खड़ी होती रहती है, जो कि एक हद के बाद विस्फोट करके देश को भंग कर देती है, राष्ट्र को तोड़ देती है, जनता को आपस में लड़ाई करने पर आमादा कर देती है। 

व्यापारी और उसके समाज को राष्ट्रीय एकता के निर्माण में न्याय के सूत्र का महत्व नहीं पता होता है। वो समझता है कि प्रजा को जो कुछ चाहिए अपने राजा से, जो सेवाएं चाहिए होती है राज्य से, वो सब एक अच्छे राजा को दान-दक्षिणा के माध्यम से उपलब्ध करवानी चाहिए। व्यापारी के अनुसार यही राजधर्म होता है। ऐसी ही ऐसी तर्ज पर कि ब्राह्मण के अनुसार राजधर्म होता है मंदिर में नितदिन पूजा पाठ करना, आरती करना, रखरखाव और साफसफाई करना। क्योंकी ब्राह्मण के अनुसार ब्राह्मण धर्म भी तो यही कुछ होता है। 

जबकि, एक राजा का असली धर्म होता है न्याय करना।क्यों? राज्य की स्थिरता और दीर्घायु तंत्र की स्थापना के लिए  ताकि जनता में असंतुष्टि न व्याप्त हो। जनता में यह विश्वास कायम रहे विधि विधान सर्वोपरि होता है, स्वयं राजा से भी। तभी जनता अपनी एकता बनाए रखने के लिए प्रेरित होती है। विधि विधान और न्याय की सर्वोपरिता को प्रमाणित करने के लिए राजा को अपने सगे संबंधियों, संतान और बंधुओं पर भी न्याय का वही दंड चलाना पड़ जाता है, जो वो दूसरों पर चलाता है। ये होता है असली राजधर्म। राजा की गद्दी पर असली कठिन कार्य यह होता है। ऐसे ही कठिन विधान को स्थापित करने के लिए राजा रामचंद्र ने वो न्याय किया था जब उनको माता सीता का त्याग करना पड़ा था। त्याग करने का उद्देश्य मात्र ये विधान स्थापित करना था कि उनके राज्य में प्रजा में अनैतिक, कामग्रस्त निर्लज्ज अशिष्ट आचरण को स्वीकार नहीं किया जाएगा। 

अन्याय होते रहने देने वाला राजा दान–दक्षिणा करके प्रजा की हमदर्दी तो खरीद लेगा मगर केवल वो सब खुद की सुरक्षा के लिए होगी। जबकि ऐसा राजा लोगो को आपस में एक दूसरे पर आपसी विश्वास बनाने को प्रेरित नही कर सकेगा। उसके चले जाने के बाद, तुरंत, लोग एक दूसरे से शंका से ग्रस्त हो चुके, आपस में लड़ पड़ेंगे, देश के प्रति अपनी निष्ठा को भुला कर। जो कुछ भी वे अन्याय झेले होंगे न्याय से सुन्न राजा के शासन में, उनकी जो भी असंतुष्टि रही होगी, वे एक दूसरे से हिसाब चुकता करने को आमादा रहेंगे।


तो फिर सोचिए, एक राजा का असल धर्म क्या होता है? दान दक्षिणा करना? देशभक्त और देशद्रोहियों की पहचान करना? देशद्रोहियों को दंड देना? 

या फिर, न्याय करना? न्याय की सर्वोपरिता स्थापित करना?

प्रजातंत्र हड़प लिए जाने से क्या फर्क पड़ा है देशों पर

पश्चिमी देशों के अखबारों को पढ़ कर मालूम पड़ता है कि वे लोग राहुल गांधी के कैंब्रिज अभिभाषण से पहले से भी जागृत है कि दुनिया के कई सारे तथाकथित 'प्रजातांत्रिक' देश वास्तव में वहां के किसी न किसी कट्टरपंथी Right Wing नेता के हाथों तंत्र को हड़प लिए जा चुके हैं। 

मगर आजतक पश्चिमी देशों ने इन हड़पे गए  देशों में प्रजातंत्र बहाल करने के लिए कोई आक्रमण नहीं किया है। आर्थिक पाबंदियां तक नहीं लगाई है, अलबत्ता देशों के हालात ने खुद से ही उनकी आर्थिक प्रगति पर लगाम लगा दी है।  रूस में पुतिन के कर्मों को आज पूरी दुनिया देख रही है कि कैसे यूक्रेन पर हमला कर दिया है, और विश्व शांति व्यवस्था को खतरे में डाल रखा है। कितनी ज्यादा जानमाल की तबाही करी हुई है। और उल्टे चार कोतवाल डांटे की तर्ज पर , बयाना दे रहे हैं कि कैसे रूस ही यूक्रेन के हमले का पीड़ित देश हैं ! 

चीन में शी जिनपिंग ने कब्जा किया है। और ताइवान, भारत, वियतनाम, जापान से छूती हुई सीमाओं को युद्ध गर्जना कर करके त्रस्त कर रखा है। संग में, वैश्वीकरण (globalisation) के सिद्धांतों को हाशिए पर रख कर अमेरिका की IT कंपनियों के प्रजातंत्रीय नीति नियमों (जैसे कि स्वतंत्र अभिव्यक्ति, मानवीय श्रमिक कानूनों) को अपने देश के गुप्तवादी, दमनकारी सरकारी नीतियों के आगे झुकाने की कोशिश में व्यापार बंद दिया है। 

सीरिया में बशीर अल असद ने अपने शासन को बनाए रखने के लिए अपने ही देशवासियों पर अपनी ही फौजों से हमला करवा दिया था। बहुत ज्यादा जानमाल की तबाही झेली देशवासियों ने। रूस के पुतिन ने इन हमलों में बशीर का सहयोग किया था ! 

तुर्की में एरडोगन ने मुस्लिम·ईसाई दंगे करवाए। विपक्ष को तो देश के बाहर जान बचा कर भागने पर मजबूर कर दिया। आज तुर्की में विपक्ष है ही नही। उनके नेता अमेरिका में जीवन जी रहे हैं, जान बचा कर। बदले में तुर्की यूरोपीय देशों और अमेरिका से आर्थिक असहयोग झेल रहा है। तुर्की वासियों को अमेरिकी या यूरोपीय वीजा मिलना मुश्किल होता है। एरडोगन रूस के संग सैनिकियी सहयोग करके यूक्रेन रूस युद्ध में मानवरहित ड्रोन उपलब्ध करवा रहा है, और वैमनस्य मोल ले रहा है। खुद तुर्की पर व्यापार की आर्थिक असहयोग के चलते महंगाई ताबड़तोड़ बढ़े जा रही है। एरडोगन जिसकी चर्चा भी नही करते हैं। केवल अमेरिका में बढ़ रही महंगाई की बात करते हैं, और अपने देश की महंगाई का छींटा अमेरिका की महंगाई पर फोड़ देते हैं। 

हंगरी के हालात भी कुछ ऐसे ही हैं। महंगाई की समस्याएं बढ़ रही है, व्यापार में वैश्विक समुदाय के असहयोग के चलते। 

प्रजातंत्र अंतरराष्ट्रीय व्यापार को बढ़ावा देने में सहायक होता है। देशों को अपने अपने balance of trade को निगरानी में रखने में सहायता मिलती है। बिना निगरानी, और सत्यनिष्ठ economic data को सांझा किए, एक तानाशाह देश दूसरे प्रजातांत्रिक देश के धन और संपदा को हड़पने की अवैध, अनैतिक कोशिश कर सकता है। अडानी–हिंडेनबर्ग मामले में वही घटना घटने की गंध आने से विश्व समुदाय चौकन्ना हो गया है मोदी सरकार के प्रति। 

इजरियल में नेतेन्याहु के फिलिस्तीनियों पर बढ़ते जुल्मों सितम ने यूरोपीय देशों और पश्चिमी देशों को इजरायल के विरुद्ध स्थान लेने को मजबूर कर दिया है।आजतक ऐसा हुआ नही था की विश्व समुदाय इजरायल के साथ नहीं हो। मगर फिलिस्तीनियों के जानमाल की त्रासदी ने समूचे विश्व के मानववाद को झंकझोर दिया है। 

मोदी सरकार की भी मुस्लिमों और अलपसंखको पर हो रही घटनाओं ने पाकिस्तान के प्रति विश्व समुदाय को नरम रवैया लेने को बाध्य कर दिया है। पाकिस्तान से  प्रसारित होते आतंकवाद के खिलाफ भारत के दशकों की विश्व समुदाय से करवाई गई किलाबंदी की मेहनत पर पानी फेर दिया है मोदी सरकार के कारनामों ने।

मोदीजी रूस से तेल खरीद कर यूक्रेन रूस युद्ध में हो रही जानमाल की तबाही को बढ़ावा ही देते दिख रहे हैं।और तो और, अडानी बाबू जा कर military junta से शासित अप्रजातंत्रीय देश म्यांमार में बंदरगाह निर्माण के अपने धंधे को जमाते हुए पकड़े गए हैं अमेरिका के द्वारा। अडानी की कंपनी को अमेरिका के स्टॉक एक्सचेंज से निष्कासित किया गया है इसके लिए 

श्रीलंका में घटे जन विद्रोह को तो आपने नजदीक से देखा होगा। वहां पर भी राजपक्षे परिवार द्वारा प्रजातंत्र हड़प लिए जाने से बेहद आर्थिक तबाही आई, महंगाई बढ़ी, और अंत में जानमाल के नुकसान के बाद जनविद्रोह ही हो गया, जिसमे राजपक्षे को झोला उठा कर भागना पड़ गया था। 

कुल मिला कर, जहां जहां प्रजातंत्र ध्वस्त हुआ है, उन देशों में महंगाई और आर्थिक तबाही के मंजर निश्चित तौर पर दिखे हैं। बेरोजगारी बढ़ी है, गरीबी बढ़ी है, अमीर गरीब के मुद्रा संपदा के फासले बढ़े है, और कुछ एक व्यापारिक घराने रातोरत, दिन दूना रात चौगुना, बेहद अमीर हो गए हैं, जो कि तानाशाह डकैत सरकार को धन दे कर मीडिया को खरीद खरीद कर काबू करने में सहयोग देते रहे हैं। और फिर मीडिया वालों ने बदले में पैसा खा खा कर, जनता को गुमराह रखने का अभियान चलाया है, कि महंगाई "वैश्विक घटनाक्रमों के चलते आई है".। ये तानाशाह अमीर लोग अपने देश के प्रजातंत्र को ध्वस्त करके अमीर हुए, और खुद अपने देश छोड़ छोड़ कर दूसरे, प्रजातंत्रीय देशों में जा कर बस कर आज़ादी की सांस ले कर आराम से जी रहे हैं, प्रजातंत्र आज़ादी के मजे उड़ाते हुए ।

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