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Showing posts from March, 2023

सुंदरता क्या होती है — एक विचार- लेख

जाने–अनजाने में हम सभी व्यक्ति किसी भी चीज के प्रति आकर्षित होते हैं केवल कुछ भौतकी सौंदर्य की वजहों से।  Philosophers में सौंदर्य को समझने का सवाल हमेशा से चलता आया है। वो क्या है जो कि किसी व्यक्ति को किसी अन्य व्यक्ति या वस्तु की ओर आकर्षित करती है? इस गुत्थी को समझने और व्याख्यान देने के लिए दार्शनिक जन कई युगों से प्रयत्नशील रहें हैं।  बाल्यावस्था में हमें कोई भी वस्तु आकर्षित करती है अपने शारीरिक रूप, रंग और स्वाद के माध्यम से। बच्चों में पसंद करी जाने वाली Gems नामक toffee सबसे आसान उदाहरण है। छोटी छोटी गोलियां केवल अपनी ऊपरी रंग में एक दूसरे से अलग होती हैं, जबकि इस ऊपरी रंग वाली त्वचा के भीतर सभी गोलियों में एक ही पदार्थ होता है, जो कि मात्र कुछ ही second कि चूसने के बाद बाहर निकल आता है। मगर फिर भी आप छोटे बच्चों को आपस में अलग अलग रंग की gems की गोली को पसंद करके उनको वितरित करते हुए आपसी संघर्ष करते देख सकते हैं।  ये है aesthetic सौंदर्य का उदाहरण। और ज्यादातर अवसरों पर सौंदर्य की यही बाल्यकाल समझ हम में युवावस्था में भी ऐसी ही त्वरित हो जाती है। बाली अवस्था में जवां लड़के

जब कैमरे में कैद तस्वीर हमें हमारा चित्र दिखाती है, तब हम में आत्म मुग्धता आती है

  यादें वो नहीं होती है जो आप कैमरा में कैद करते हैं, chip के ऊपर। यादें वो होती हैं जो आपका दिमाग और दिल दर्ज करता है, आपकी भावनाओं के पटल पर। कैमरा सिर्फ दृश्य रखता है, यादें दिल में रखी जाती है।  यादें हमारी भावनाओं को क्रियान्वित करती है। हमें संवेदनशील बनाती हैं। भावनाएं इंसानी बुद्धिमता का आधार होती है। यादें भावनाओं का बटन होती हैं।  कैमरा में सिमटी हुई यादें हमे संवेदनहीन बना सकती हैं। क्योंकि वो दिल को रिक्त कर देती हैं।  जब हमारा मन हमें दर्पण दिखाता है, तब हमें हमारे चरित्र की कमियां दिखाई पड़ने लगती है। उन्हें सुधार करने से हम में भीतर से निखार आता है, शुद्धता आती है, व्यक्तित्व की खूबसूरती बड़ती है।  मगर जब कैमरे में कैद तस्वीर हमें हमारा चित्र दिखाती है, तब हम में आत्म मुग्धता आती है ।

कूटनीति के अन्त महायुद्धों से होता है

राजनीति अक्सर करके मानसिक लुकाछिपी, ताश का खेल, या चोर पुलिस की शक्ल ले लेती है। और तब इसे कूटनीति बुलाया जाता है।    कूटनीति में व्यक्ति या समूह, एक-दूसरे के दिमाग़ को पूर्व से ही पढ़ कर उसे मात देने की कोशिश में लग जाते हैं। बिना कुछ किये और करे ही दूसरा व्यक्ति पूर्वानुमान लगा लेता है कि सामने वाले का क्या अगला move होगा, और उसका कटाक्ष करने लगता है।   और दूसरा वाला भी ये सोचने लगता है कि सामने वाला उसके बारे में क्या पूर्वानुमान कर रहा होगा, और ऐसे में कैसे, क्या करके उसे अचंभित करा जा सकता है।   ये mind games ही कूटनीति कहलाता है।    Mind games वाली कूटनीति राज्य को चलाने की न्याय नीति से बहोत दूर भटकी हुई होती है। इसका मकसद केवल सत्ता शक्ति प्राप्त करना होता है, ताकि उसका स्वार्थी उपभोग किया जा सके। इसमें विजयी निकृष्ट मानसिकता ही होती है, चाहे जो भी पक्ष जीते। क्योंकि दोनों ही पक्ष एक से बढ़ कर एक निकृष्टता करते हैं mind games के दौरान । आम आदमी,जो तटस्थ रहना चाहता है, राजनीति और कूटनीति से विमुख बना रहता है, उसका तो बेमतलब शिकार हो जाना तय शुदा हो जाता है।  कूटनीति के अन्

संकुचित (संकीर्ण) मानसिकता और बद व्यवहार से इंसान अपने शत्रु बढ़ाता है

ये जरूरी नहीं की किसी व्यक्ति के शत्रु केवल तब ही बढ़ते हैं जब वो तरक्की करने लगता है।  शत्रु तब भी बढ़ते हैं जब व्यक्ति संकुचित मानसिकता का हो जाता है।   संकुचित मानसिकता ? – दूसरों को खराब, बदनीयत, द्रोही, अवगुण और निम्न बताने वाली बोली

प्रभुत्ववादी सरकारें क्यों अपेक्षा के विपरीत, और अप्रत्याशित व्यवहार रखने को बाध्य बनी रहती हैं?

प्रभुत्ववादी सरकारें क्यों अपेक्षा के विपरीत, और अप्रत्याशित व्यवहार रखने को बाध्य बनी रहती हैं?  Why the authoritarian regimes are pressed to adopt a behaviour filled with expectation-defiance, and making rougue decisions, having in replete the elements of surprise?  बात को समझने के लिए पहले ये समझिए कि – तब क्या होता जब दो व्यक्तियों के बीच वैचारिक मतभेद के दौरान सुलह करने के कोई भी common grounds नही मिल पाते हैं?  आज के युग में truth और alternative truth , reality और alternative reality में बंटी आबादी में ऐसा हो जाना सहज बात होगी। कि, लोगो में समझौता कर सकने की गुंजाइश ही न मिले।  लोग अपनी अपनी बाते पर अडिग, अड़ियल होते दिखाई पड़ेंगे। ऐसे में वे अपने अपने पक्ष की सत्यता को दूसरे के विरुद्ध सही सिद्ध करने लिए केवल अपेक्षाओं की विधि पर निर्भर करने लगते हैं। वे एक दूसरे की सोच से निकलते गलत परिणामों की भविष्यवाणी करके आम जन को सचेत करते हैं, ताकि आम जन का विश्वास जीत कर उनके मत को अपने पक्ष में कर सकें।  Proof by forecasting  और ऐसे हालात में, दूसरा पक्ष अपने बचाव के लिए दूसरे पक्ष की

कूटनीति और 'कारण' बनाम 'भावना'

 (borrowed from the Internet) कूटनीति यानी जनता से वोट बटोर कर शासन शक्ति को अपने स्वार्थ के लिए हड़पने वाली राजनीति  इसमें अक्सर करके निर्णय के पीछे कारण नहीं होते हैं, बल्कि भावनाएं होती हैं।  समझें तो, कूटनीतिज्ञ अपने निर्णय कभी तो किसी कारण पर आधारित करते हैं, और कभी भावनाओं पर।   और इन दोनो में से किसी एक आधार को चुन लेने की प्रेरणा केवल जनता के बड़े अंश को प्रभावित करके उनके वोट बटोर लेना होता है। कारण (यानी तर्क आधारित बात) हमेशा कूटनीतिज्ञों के निर्णय का आधार नही होती है क्योंकि वे जानते हैं कि वे लोग इतने बुद्धिवान नही होते है कि हमेशा कारणों से जनता के बड़े अंश पर प्रभाव जमा सकें।   भावनाएं ज्यादा efficient होती हैं बड़ी आबादी पर प्रभाव जमाने के लिए । बढ़ी आबादी की जनता कारण पर सहमत नही करी जा सकती है। मगर भावना पर आसानी से बड़ी आबादी को किसी दिशा में मोड़ा(=बहकाया) जा सकता है।    तो राजनीति को समझने के लिए किसी भी कालखंड में संबद्ध समाज में बहती हुई भावना की टोह लीजिए। कूटनीति की परतें अपने आप खुलती चली जायेंगी और आपको समझ आने लग जायेगी।   यदि भावनाओं में कोई दुर

How to work with the self-congratulatory, megalomaniac governments?

 (borrowed from the Internet) This is a megalomanic's Govt . It is more narcissistic in its approach, It doesn't think that our country needs to do anything TO ACHIEVE the greatness. It wants to do things TO PROVE that the greatness is already here .   That's the way one can work with these people. Don't tell them targets which may look as if they are striving for improvement . Tell them targets which may help them prove to the rest of the Indians, their rivals and the whole world that the greatness is already with them .

राजा का असल धर्म दान दक्षिणा करना, या देशद्रोहियों को पहचान कर दंड देना नही होता है

ये सरकार व्यापारियों को सरकार है। व्यापारी लोग स्वभाव से ही न्याय के विचार से रिक्त होते हैं। वे अपने माल का दाम बढ़ाने के लिए सामाजिक औहदो की ऊंच नीचे का उपभोग करते हैं, उसका विरोध नही करते है। एक पर्स जो आम आदमी को सस्ते दामों में मिल सकता है, उसका दाम हजारों गुना महंगा हो जाता है मात्र ब्रांड बदल देने है। और ब्रांड का मकसद क्या होता है– खरीदार को अपनी सामाजिक हैसियत साबित करनी होती है समाज में। सोंचे तो ये विचार समानता के न्याय सूत्र के ठीक विपरीत है।  तो फिर ऐसे ही व्यापारी राजा भी देश निर्माण को न्याय के सूत्र से बांधना नहीं जानता है। न्याय के अभाव के बदले में वो दान-दक्षिणा, परोपकार कर्म करके जनता को लुभा कर शासन करता है।  सो, व्यापारी कभी भी देश को दीर्घायु शासन नही दे सकता, क्योंकि वो राष्ट्रीय एकता को प्राप्त नहीं कर सकता है। व्यापारी राजा के शासन के दौरान न्याय की कमी से उत्पन्न असंतुष्टों की कतार खड़ी होती रहती है, जो कि एक हद के बाद विस्फोट करके देश को भंग कर देती है, राष्ट्र को तोड़ देती है, जनता को आपस में लड़ाई करने पर आमादा कर देती है।  व्यापारी और उसके समाज को राष्ट्री

प्रजातंत्र हड़प लिए जाने से क्या फर्क पड़ा है देशों पर

पश्चिमी देशों के अखबारों को पढ़ कर मालूम पड़ता है कि वे लोग राहुल गांधी के कैंब्रिज अभिभाषण से पहले से भी जागृत है कि दुनिया के कई सारे तथाकथित 'प्रजातांत्रिक' देश वास्तव में वहां के किसी न किसी कट्टरपंथी Right Wing नेता के हाथों तंत्र को हड़प लिए जा चुके हैं।  मगर आजतक पश्चिमी देशों ने इन हड़पे गए  देशों में प्रजातंत्र बहाल करने के लिए कोई आक्रमण नहीं किया है।  आर्थिक पाबंदियां तक नहीं लगाई है, अलबत्ता देशों के हालात ने खुद से ही उनकी आर्थिक प्रगति पर लगाम लगा दी है।   रूस में पुतिन के कर्मों को आज पूरी दुनिया देख रही है कि कैसे यूक्रेन पर हमला कर दिया है, और विश्व शांति व्यवस्था को खतरे में डाल रखा है। कितनी ज्यादा जानमाल की तबाही करी हुई है। और उल्टे चार कोतवाल डांटे की तर्ज पर , बयाना दे रहे हैं कि कैसे रूस ही यूक्रेन के हमले का पीड़ित देश हैं !  चीन में शी जिनपिंग ने कब्जा किया है। और ताइवान, भारत, वियतनाम, जापान से छूती हुई सीमाओं को युद्ध गर्जना कर करके त्रस्त कर रखा है।  संग में, वैश्वीकरण (globalisation) के सिद्धांतों को हाशिए पर रख कर अमेरिका की IT कंपनियों के प्रजातं