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Showing posts from July, 2023

क्या अहंकार और आत्ममुग्धता में अंतर होता है? यदि हां, तो क्या?

 जब इंसान में ज्ञान आने लगता है तब उसमे ego जन्म लेने लगता है, और जब इंसान में ज्ञान नहीं होता है, तब इंसान में narcissism जन्म लेने लगता है। इंसान दोनो दिशाओं में फंसा हुआ है।आत्मबोध के बगैर बच पाना मुश्किल होता है। Ego वाला इंसान स्वयं को दूसरे से अधिक श्रेष्ठ साबित करने में व्यसन करता है, जबकि narcissism वाला इंसान दूसरे को स्वयं से तुच्छ साबित करने में व्यसन करता है। Ego ज्ञान यानी बाहरी सासंकारिक बोध का प्रतिनिधत्व करती है। Knowledge से ego जन्म लेती है। जबकि Narcissism अत्यधिक self knowledge का प्रतिनिधित्व करती है। जब इंसान बहुत अधिक अपने में तल्लीन हो जाता है कि वह बाहर की दृष्टि से स्वयं को देखने छोड़ देता है, तब आतम्मुग्ध हो जाता है। अत्यधिक आत्म बोध करने से आत्म मुग्धता आती है। Knowledge : Self Knowledge : : Ego : Narcissism

भारत वासियों में शाकाहारी होने के पीछे क्या कथा छिपी हुई है ?

  भोजन प्रकृति के विषय में एक गहरा, क्रमिक-विकास सांस्कृतिक सत्य बताता हूँ आप सभी को ------- मनुष्य जाति आरम्भ से धरती के सभी भूक्षेत्रों में सर्वाहारी (वे जीव जो दोनों, मांस एवं वनस्पति, का भक्षण करते है ) रही है।   इस कारण से मनुष्य जाति में आरम्भ से ही कई सारे शारीरिक कष्ट भी रहे है।  जैसे कि , मांस में जल्दी कीड़े लग जाते हैं, सूक्षम बीमारी वाले जीवाणु  जल्दी मांस युक्त भोजन को ख़राब कर देते हैं, और यदि मांसाहारी मनुष्य उन जीवाणुओं को भी भक्षण कर ले ये सोच कर कि वह तो पहले ही माँसाहारी पाचन तंत्र से लैस है, उन्हें पचा जायेगा -- तब वह पूरी तरह गलत है ! सूक्ष्म बीमारी वाले जीवाणु (बैक्टीरिया , वायरस , अमीबा ) इंसानी शरीर में प्रवेश करके जटिल बीमारियां देते है।  युवा अवस्था में तो इंसान भले इन बिमारियों को झेल जायेगा, मगर उम्र बढ़ने के साथ मुश्किल आने लगती है।   आरम्भिक युग में समाज को बीमारियां इंसान के शरीर और मन के कष्ट बन कर दिखाई पड़ती थी। संभवतः इसरायली यहूदी लोग प्रथम समूह था मानव जाति का जिन्होंने भोजन और शरीर के कष्टों के बीच का सम्बन्ध कुछ कुछ समझा था।  तो उन्होंने अपने समाज मे

We become polarised when we ...

We become polarised when we We become polarised when we start to see only one face of the coin  we hear only one side of the story We become polarised when we  abjure the Middle Path  we renounce the Enlightenment  we abandon the Buddha We become polarised when we  adopt too much of Lokniti  we become the Charvaks  we begin to think that searching for the Truth ... .      ...is the most futile exercicse We become polarised when we  forget the Rational Thinking,  When we  become versed in tampering the evidence  when we  forget to show our humble acceptance... ... ........ of the proof

बच्चों को ताश का खेल सिखाना

 सोच रहा था कि बच्चों को ताश खेलना सिखाऊँ।   ताश के खेल में बहुत किस्म की अक्ल को विक्सित और प्रयोग करने की ज़रुरत पड़ती है, जिनको व्यावहारिक जिंदगी से हासिल करना बहुत दुर्लभ होता है।  मिसाल के तौर पर -  १) दूसरे के पत्तों को बूझना उसकी अभी की चाल को देखते हुए -- inference और deduction बुद्धि कर प्रयोग करके।   २) अपनी अभी की चाल को decide करना भविष्य में आने वाली चाल या हालात की पूर्व दृष्टि क मद्देनज़र। prudence  ३) पहचान करना सीखना की कब हमारे खेल में सही चाल नहीं  चलने की वजह से हम हार गए हैं, और कब वाकई में पत्ते ख़राब आने से हमारा हार जाना तय था (जिसमें कुछ दुखी /बुरा नहीं मानना चाहिए। ) ४) और यदि नक़ल या cheating  हो रही है , तब उसे पकड़ना , और साथ में सफलता पूर्वक cheating  करना सीखना।  मगर तभी एक बात कौंधी दिमाग में -- कि , ताश का खेल (या कोई भी खेल ) बच्चों को मात्र सीखा देने से आप ये सब हांसिल नहीं कर सकते है।  खेल इस लिए नहीं पसंद या नापसंद किये जाते हैं क्योंकि उन्हें खेलना नहीं आता है , बल्कि इसलिए कि उन्हें खेलने की रूचि- है , अथवा नहीं है।    तो बच्चों को ताश खेलना सिर्फ सीखन

क्या होता है "पौरुष प्राप्त कर लेना"

जब इंसान का जीवन रस मयी हो जाता है, तब वह विश्वास से ओत प्रोत रहने लगता है, तमाम सफलताएं उनके कदम चूमने लगती है, सब उसे पसंद करने लगते हैं, वह लोगों की रुचि का केंद्र बनने लगता है, उसकी बातें सभी को मंत्रमुग्ध सुनाई पड़ने लगती हैं, उसका शरीर कष्ट मुक्त अनुभव करने लगता है, वह दीर्घायु प्राप्त करने लगता है, उसके रिश्ते मधुर बनने लगते हैं,  शायद इसी अवस्था को हिंदी भाषा में कहते हैं, "पौरुष प्राप्त कर लेना " (pinnacle of his existence)। वैसे शाब्दिक रूप में "पौरुष" का अर्थ होता है पुरुष होने वाले गुण और भाव अनुभव कर लेना। मगर , अभिप्राय में पौरुष प्राप्ति के मार्ग कुछ अन्य है, जैसा कि आगे विमर्श में लिखा है। पौरुष प्राप्त करने का सबसे महत्वपूर्ण कदम होता है भावनाओं को बहने का मार्ग उपलब्ध करवाना ।  और भावनाओं को बहने का मार्ग मिलता है कलाओं में से। आरंभिक युग में ये मार्ग होता था गीत गुंजन से, संगीत वाद्य यंत्र बना लेने से, gymnastics इत्यादि शरीर की बेहद कठिन कलाओं को अर्जित कर लेने से। Gymnastics करने हेतु शरीर और मस्तिष्क को एक sync में संचालित करने की योग्यता लगती

सांस्कृतिक आधुनिकता का मार्ग— तार्किक मंथन को अनुमति देना कि समाज में न्याय नीति में परिवर्तन कर सके

लेख में मैं विज्ञान के लिए एक दूसरा, नया शब्द प्रयोग करना चाहूंगा, तार्किक मंथन (Rational Thinking)। तो ,पश्चिमी समाज में भी, भारत की ही तरह, औरतों को कमज़ोर, निर्बुद्ध, गुलाम , "ताड़न के अधिकारी", करके समझा जाता था, जब तक की उनके समाज ने तार्किक मंथन करने का मार्ग नहीं पकड़ा था। ये तार्किक मंथन क्रिया ही थी जिसने इंसानों को यह बताया कि ऐसा सोचना गलता है। तार्किक मंथन से ही वह प्रमाण निकल सके जिन्होंने ये सिद्ध कर दिया कि औरतों पुरुषो से कम नहीं होती हैं, यदि उनको भी पर्याप्त अवसर प्रदान किए जाए।   तार्किक मंथन समाज के समस्त पुरुषों में उपलब्ध कभी , किसी जमाने में नही था। केवल कुछ चुनिंदा व्यक्ति ही तार्किक मंथन कर सकने के काबिल थे, और आज भी, होते हैं। ये ही वह लोग थे(और होते हैं) जिन्होंने तार्किक मंथन को अपने जन्मजात मिली न्याय और नैतिकता को बदल जाने देना का अधिकार दिया होगा। तब जाकर उन्होंने महिलाओं को समाज में उनको सर्वोच्च स्थान को प्राप्त कर सकने का अवसर दिलवाने का मार्ग स्वीकृत किया होगा। अन्यथा , आप इतिहास टटोल कर देख लीजिए, महिलाओं ने कोई युद्ध थोड़े न लड़ाई लड़ कर

कितना उचित समझा जाना चाहिए ISRO के वैज्ञानिकों का तिरुपति दर्शन ?

 ISRO के वैज्ञानिक चंद्रयान ३ के प्रक्षेपण से पूर्व तिरुपति जा कर भगवान के दर्शन करके आशीर्वाद लेकर आते हैं। क्यों न करे वे ऐसा? आखिर 1947 की आजादी तो केवल शारीरिक बेड़ियों को तोड़ने वाली आजादी थी बस; गोरी चमड़ी वाले अंग्रेजो की आर्थिक गुलामी से केवल एक राजनैतिक मुक्ति थी वह। मानसिक गुलामी तो हजारों सालों की हो चुकी है भारत वासियों की।  किस प्रकार की मानसिक गुलामी ?  तर्क और कुतर्क का मिश्रण कर देने वाली कुबुद्धि; आस्था और विवेक में भेद नहीं कर सकने की बेअक्ल; श्रद्धा और logic को सहवास करवाने की अयोग्यता; गंगा और गंदे नाले को मिला देने की संस्कृति।  भारत के समाज में विज्ञान का प्रवेश धर्म के प्रधानों के खिलाफ संघर्ष करके  नही हुआ है, अपितु किताबों के माध्यम से हुआ है। स्कूली शिक्षा से "माता सरस्वती" का नाम प्राप्त करके हुआ है। धर्म के प्रधानों ने विज्ञान को समाज में आने से पूर्व ही द्वारपाल बन कर उसको लाल कपड़े में लपेट दिया था। और उसके बाद से समाज में विज्ञान का परिचय " माता सरस्वती " करके दिया हुआ है।  आज उसी परिचय से विज्ञान को जानने समझने वाला वर्ग ISRO का वैज्

कुछ देश गरीब क्यों होता हैं? समृद्धि लाने का उचित मार्ग क्या है?

जानते है कोई समाज अमीर और कोई समाज गरीब क्यों होता है ? आज यूट्यूब पर एक प्रोग्राम देख रहा था जिसमे बताया जा रहा था कि कैसे श्रीलंका में उनके देश के railways ने भारत से उपहार में दी गई कुछ बसों को थोड़ा बहुत "जुगाडू (jerry-rigging)" फेरबदल करके train में तब्दील कर दिया है, और उन्हें अच्छे से चला रहा है। ये "जुगाड़" सोच मेरे दिमाग को सुराग दे रहा था कि आखिर क्यों, कुछ देश बेहद समझदार, चतुर होने के बावजूद गरीब क्यों हैं। मुझे सबसे पहले तो सन 2012 वाली उन्नाव के खजाना बाबा की घटना याद आ गई, जब अखिलेश यादव की सरकार में बैठे किसी मंत्री ने एक साधु बाबा के सपने में देखे गए गड़े सोने के खजाने की तलाश में खुदाई करवाई थी। ये घटना पूरे देश के अखबारों में चर्चा का सबब बनी थी। उन्ही दिनों मैं ये सोचने और बूझने में रम गया था कि क्या वाकई में , जैसा कि वो साधु बोलता देखा गया था किसी टीवी इंटरव्यू में, सोना दिलवा कर टनों की वजन मात्र में, देश को फिर से अमीर "सोने की चिड़िया" बनवाना चाहता था, — तो क्या सोना मिल जाने से देश अमीर बनता है? अगर अमेरिका अमीर है तो क्या वाकई ca

ISRO के वैज्ञानिक और भारत का गुलामी मानसिकता से निर्मित तंत्र

 ISRO के वैज्ञानिकों का दल, चंद्रयान–४ के मिशन के शीर्ष  के साथ तेलंगाना में तिरुपति दर्शन करके आशीर्वाद ले कर आए हैं, प्रक्षेपण से पहले। ये आचरण बेहद अंतर्द्वंद्व मचाने वाला, विरोधाभासी है।  क्योंकि विज्ञान और अंधस्था के बीच संगम होना स्वीकृत नहीं होना चाहिए सभ्य समाज में। ये गंगा और गंदे नाले का संगम स्वीकृत कर लेने जैसा है, समाज वालों से। दुखद ये है कि भारतीय तंत्र, जो वास्तव में एक हजार वर्षों की गुलामी में से पैदा हुआ है, उसमे ऐसे संगम को स्वीकार कर लेने की प्रवृत्ति अभी भी बनी हुई है, और अब ये लोग बड़े हठ के साथ वैश्विक धरोहर में भी यही संगम प्रचारित कर रहे है, विज्ञान संपन्न देशों में प्रवास करते हुए। भारत का गुलामी मानसिकता से निर्मित तंत्र, इसमें ऐसे विरोधाभासी लोगों को एक सफल, समाज का पथ प्रदर्शक बना देने की योग्यता है। ऐसे ही लोग देश पर शासन कर रहे हैं, विदेशों में जा कर देश का "गुणगान" करते हुए, अपनी ऐसी सोच प्रचारित करते हैं।  दुनिया को समझना होगा की भारतीय संस्कृति गुलामी के बेड़ियों को संघर्ष करके, तोड़ कर नही निकली है, यहूदियों के जैसे। हम लोग गुलामी में विलय

Recalling one television serial of early 90’s - “Bharat ki Chhap”

Recalling one television serial of early 90’s - “Bharat ki Chhap”   For the fifteen years of life, starting immediately after school, I went to sea on voyages doing what?   Perhaps, the measurement of the globe, and that of my own expedition to search for a new one . Although, geographically the world had already been discovered completely well before the time I came to sea, I believed there was still much left to discover, at least personally for myself.   The long voyages gave me enough time to browse through the diaries that I would write privately when I was at school. Oh by the way, I have not given up that habit even to this day. And so sometimes, I feel amazed with my own memory of how it sometimes succeeds in keeping almost a photographic record of events and occurrences and pops back at me every now and then, just by a random search. Or mayb e, while it is dusting down its library where it keeps all those records.   One such good memory that I wish to share with you all

Why the US maybe suffering decadence ...

 The tragic point about the American Politics is that the next gen of the immigrants have taken it over, particularly those from South Asia (India in more particular terms), and these people see the US as a priviledged land -- as if built by an act of God, not by the discourse of its philosophers,  So the next gen of these immigrants want to protect the US from getting spoiled-- BUT from whom? From more of immigration -- because, according to them, the US is suffering because of excess of the immigrants itself, not by some naturally occuring defects in its politics and public administration system, which may have seen modifications and adaptations, those coming from the already accepted influx of the immigrants ! In this way, these nexgen of immigrants want to shift away the blame of spoiling of the US, from their generation, to the generation of immigrants who are the following, and thereof protecting their own generation of the immigrants from being blamed away.  The big point in thi

चार्वाक विचारधारा क्या है ?

 चार्वाक विचारधारा अपने चरम रूप में बेहद स्वार्थी, भोगी , स्वार्थी और विलासीन व्यक्तियों की सोच समझी जाती है। ये ब्राह्मणों से पृथक हो कर निकली जरूर है, मगर बुद्ध की सोच के ठीक उल्टी है।  चार्वाक सोच में कुकर्मों  को न्यायोचित कर देने की प्रतिभा होती है। यानी भ्रष्टाचार को पनपे के लिए यह "हमाम में तो सभी नंगे होते है" वाले विचार को समाज में व्याप्त करती है। अपने राजनैतिक चाहत में ये हमेशा भ्रष्ट व्यक्तियों को सहयोगी बनाना चाहती है, क्योंकि ऐसे ही सहयोगियों को सुविधा अनुसार ply (फिराया) जा सकता है, इच्छा अनुसार कभी तो देश भक्त, और विरोध करे तो black mail करके वापस लाइन पर, यदि बगावत कर दे तो देशद्रोह भ्रष्ट दिखाया जा सकता है। चार्वाक सोच में इंसान घपले, घोटाले को सुख तक पहुंचने का मार्ग मनाता है। इनमे हत्या को जायज राजनैतिक जरिया भी समझा जाता है। किसी एक, विशेष राजनैतिक ideology से संलग्न होना कमजोरी समझी जाती है। ये लोग सुविधानुसार पक्ष बदल लेने की मानसिक बंधन से मुक्ति को ही सच्ची स्वतंत्रता समझते हैं। इनके अनुसार देश गुलाम इस लिए बना था, (या कोई भी इंसान गुलाम इसलिए बना दिय