चार्वाक विचारधारा क्या है ?

 चार्वाक विचारधारा अपने चरम रूप में बेहद स्वार्थी, भोगी , स्वार्थी और विलासीन व्यक्तियों की सोच समझी जाती है। ये ब्राह्मणों से पृथक हो कर निकली जरूर है, मगर बुद्ध की सोच के ठीक उल्टी है।

 चार्वाक सोच में कुकर्मों  को न्यायोचित कर देने की प्रतिभा होती है। यानी भ्रष्टाचार को पनपे के लिए यह "हमाम में तो सभी नंगे होते है" वाले विचार को समाज में व्याप्त करती है। अपने राजनैतिक चाहत में ये हमेशा भ्रष्ट व्यक्तियों को सहयोगी बनाना चाहती है, क्योंकि ऐसे ही सहयोगियों को सुविधा अनुसार ply (फिराया) जा सकता है, इच्छा अनुसार कभी तो देश भक्त, और विरोध करे तो black mail करके वापस लाइन पर, यदि बगावत कर दे तो देशद्रोह भ्रष्ट दिखाया जा सकता है।

चार्वाक सोच में इंसान घपले, घोटाले को सुख तक पहुंचने का मार्ग मनाता है। इनमे हत्या को जायज राजनैतिक जरिया भी समझा जाता है। किसी एक, विशेष राजनैतिक ideology से संलग्न होना कमजोरी समझी जाती है। ये लोग सुविधानुसार पक्ष बदल लेने की मानसिक बंधन से मुक्ति को ही सच्ची स्वतंत्रता समझते हैं। इनके अनुसार देश गुलाम इस लिए बना था, (या कोई भी इंसान गुलाम इसलिए बना दिया जाता है) क्योंकि वह किसी एक विशेष विचार से जड़ा बना रह जाता है, वो हवाओं का रुख देख कर अपनी नांव की पतवार को घुमाना भूल जाता है। "सुविधा अनुसार" चार्वाक विचारधारा का मूल मंत्र है।

चार्वाक सत्य के शोध को एक बेहद व्यर्थ प्रयास , बल्कि एक किस्म का मानसिक रोग मनाता है। वह बुद्ध की तरह संसार को दुखों का घर जरूर मनाता है, मगर उसका निवारण आत्म सयम, आत्म नियंत्रण करने के माध्यम से नही ढूढता है, बल्कि सुख की घनी तलाश करने में मनाता है। यानी सुख और इंसान के बीच जो भी बाधाएं होती है, जैसे शारीरिक बंधन, मानसिक या बौद्धिक बंधन, उनको पार लगाने में देखता है। यहां "पार लगाने" में वैधानिक कृत्य, अवैध कृत्य , न्याय संगत होना, तर्कशील होना, समानता , संविधान इत्यादि भी एक बंधन समझे जाते हैं, मगर जो शब्दो से प्रकट नही करते है सार्वजनिक तौर पर। 

चार्वाक सोच पश्चिमी उत्तरप्रदेश, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात प्रांतों की सांस्कृतिक सोच है। इन राज्यों से आए कम पढ़े लिखे व्यक्ति के तर्कों में आप इस सोच की झलक को आसानी से तलाश कर सकते हैं ।


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