सांस्कृतिक आधुनिकता का मार्ग— तार्किक मंथन को अनुमति देना कि समाज में न्याय नीति में परिवर्तन कर सके


लेख में मैं विज्ञान के लिए एक दूसरा, नया शब्द प्रयोग करना चाहूंगा, तार्किक मंथन (Rational Thinking)।

तो ,पश्चिमी समाज में भी, भारत की ही तरह, औरतों को कमज़ोर, निर्बुद्ध, गुलाम , "ताड़न के अधिकारी", करके समझा जाता था, जब तक की उनके समाज ने तार्किक मंथन करने का मार्ग नहीं पकड़ा था।

ये तार्किक मंथन क्रिया ही थी जिसने इंसानों को यह बताया कि ऐसा सोचना गलता है। तार्किक मंथन से ही वह प्रमाण निकल सके जिन्होंने ये सिद्ध कर दिया कि औरतों पुरुषो से कम नहीं होती हैं, यदि उनको भी पर्याप्त अवसर प्रदान किए जाए।

  तार्किक मंथन समाज के समस्त पुरुषों में उपलब्ध कभी , किसी जमाने में नही था। केवल कुछ चुनिंदा व्यक्ति ही तार्किक मंथन कर सकने के काबिल थे, और आज भी, होते हैं। ये ही वह लोग थे(और होते हैं) जिन्होंने तार्किक मंथन को अपने जन्मजात मिली न्याय और नैतिकता को बदल जाने देना का अधिकार दिया होगा। तब जाकर उन्होंने महिलाओं को समाज में उनको सर्वोच्च स्थान को प्राप्त कर सकने का अवसर दिलवाने का मार्ग स्वीकृत किया होगा। अन्यथा , आप इतिहास टटोल कर देख लीजिए, महिलाओं ने कोई युद्ध थोड़े न लड़ाई लड़ कर अपने लिए स्थान पा लेने का अवसर जीत लिया था ! 

कहने का मतलब ये है कि जब तक तार्किक मंथन को हमारा समाज सहर्ष अधिकार नहीं करेगा कि ये हमारी जन्मजात मिली न्याय और नैतिकता को प्रभावित और बदलाव कर सके, तब तक तार्किक मंथन समाज में पांव कैसे जमाएगा और समाज को आगे कैसे बढ़ाएगा?

 जैसे, कल तक महिलाओं के प्रति जो सामाजिक दृष्टिकोण तार्किक मंथन के माध्यम से बदल गया, वैसे ही आगे भी हमें तार्किक मंथन को आगे के विषयों में हमारी जन्मजात न्याय और नैतिकता समझ को बदलने का असवार देते रहना होगा।

मामला homosexual और transexual व्यक्तियों का लीजिए। समाज अपनी जन्मजात सोच को बदलने में कितना घर्षण दे रहा है, जबकि तार्किक मंथन बार बार दरवाजे पर खड़ा दस्तक कर रहा है। सोचिए, ऐसा ही तो महिला अधिकारों के प्रति भी हुआ होगा ? और आज वही लाभान्वित महिलाएं, तार्किक मंथन की दूसरी दरखत को सुनने से मना कर दे रही हैं।

तार्किक मंथन के प्रति हमारे समाज को, ईश्वर की आस्था, प्रयोगशालाओं में किए जाने वाले विज्ञान और प्रौद्योगिकी के संबंधों के बारे में सोचने समझने की जरूरत है।

पूर्वी देशों के लोग अभी भी तार्किक मंथन और ईश्वर की तलाश, मोक्ष प्राप्ति को अलग अलग समझते है। जबकि पश्चिमी देशों के लोग तार्किक मंथन को साधन मानते हैं, ईश्वर तक पहुंचने का, मोक्ष की प्राप्ति का। वे तार्किक मंथन कर सकने की योग्यता को अपने भीतर ईश्वर का निवास का प्रमाण समझते हैं। 

पूर्व में लोग तार्किक मंथन को ईश्वर का विरोधी देखते हैं। और इसलिए ही, जब तार्किक मंथन homosexual और transexual प्रवृत्तियों के प्रति एक नई सोच लेकर समाज के सामने प्रस्तुत हो रहा है, तब लोग इसे स्वीकार कर सकने में इतने हिचक रहे हैं, घर्षण दे रहे हैं।

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