कुछ देश गरीब क्यों होता हैं? समृद्धि लाने का उचित मार्ग क्या है?

जानते है कोई समाज अमीर और कोई समाज गरीब क्यों होता है ?

आज यूट्यूब पर एक प्रोग्राम देख रहा था जिसमे बताया जा रहा था कि कैसे श्रीलंका में उनके देश के railways ने भारत से उपहार में दी गई कुछ बसों को थोड़ा बहुत "जुगाडू (jerry-rigging)" फेरबदल करके train में तब्दील कर दिया है, और उन्हें अच्छे से चला रहा है।

ये "जुगाड़" सोच मेरे दिमाग को सुराग दे रहा था कि आखिर क्यों, कुछ देश बेहद समझदार, चतुर होने के बावजूद गरीब क्यों हैं।

मुझे सबसे पहले तो सन 2012 वाली उन्नाव के खजाना बाबा की घटना याद आ गई, जब अखिलेश यादव की सरकार में बैठे किसी मंत्री ने एक साधु बाबा के सपने में देखे गए गड़े सोने के खजाने की तलाश में खुदाई करवाई थी। ये घटना पूरे देश के अखबारों में चर्चा का सबब बनी थी।

उन्ही दिनों मैं ये सोचने और बूझने में रम गया था कि क्या वाकई में , जैसा कि वो साधु बोलता देखा गया था किसी टीवी इंटरव्यू में, सोना दिलवा कर टनों की वजन मात्र में, देश को फिर से अमीर "सोने की चिड़िया" बनवाना चाहता था, — तो क्या सोना मिल जाने से देश अमीर बनता है? अगर अमेरिका अमीर है तो क्या वाकई california gold rush की वजह से? तो फिर इंग्लैंड कैसे अमीर बना होगा ? भारत से कोहिनूर लूट कर? और कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी कैसे?

उन्हीं दिनों चर्चा में बात आई थी कि सोने की कीमत पर नियंत्रण करने के लिए सरकार ने Soverign Gold Bond जारी करने की सोची है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा सोने का उपभोगकर्ता देश है, सबसे अधिक सोना तो दुनिया में भारत की घरेलू महिलाओं के पास है ! 

सवाल में ही जवाब भी था , कि सोना किसी देश को अमीर नही बनाता है, वर्ना आज सबसे अमीर देश भारत होना चाहिए था। उन्नाव वाला बाबा सोना दिला कर और क्या बदल देता ?

बुद्धिजन लोगो ने बताया कि सोना आज के युग में बेहद कम उपयोगी metal है, जिसका उपयोग मात्र आभूषण बनाने में काम आता है, और ज्यादा कुछ नहीं है। और आभूषण पहनने का चलन भारत, पाकिस्तान, और खाड़ी के मुस्लिम देशों तक ही सीमित है। इसके अलावा कुछ अन्य जीविका का बहुमूल्य metal नही होता है gold।

श्रीलंका की bus train देख कर खयाल आया कि वास्तव में देश समृद्ध होते हैं उत्पादों को निर्मित करके -- ऐसे उत्पाद जो कि समाज की कोई बेहद महत्वपूर्ण जरूरत पूरी करते हों। 

अब एक नया सवाल है – आज के युग में ऐसा क्या है, जो कि समाज की जरूरतों को पूरा करके समाज को अमीर बनता हो?

जवाब— कई सारे है, ऐसे उत्पाद। और जो सभी एक विशेष विवरण में समेटे जा सकते हैं कि "अविष्कार और अन्वेषण", वह मूल मंत्र है जो आज के युग का सोना समझा जा सकता है । 

अब इसके उदाहरणों में सबसे प्रथम तो इलाज के लिए उपयोग होने वाली दवाइयों को सोचिए। दावा वैसे भारत में बनती ही हैं, मगर उनके अविष्कार के लाइसेंस अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों में है। दवाइयों की बिक्री करके पैसा भारत बना रहा है, मगर उन दवाइयों के लाइसेंस बना कर अधिक पैसा अविष्कारक देश बना रहे हैं।

ट्रेन, बस, हवाई जहाज, शिप, लड़ाई की वाहन, ईंधन वाले तेल गैस, ये सब आज के युग के सोना हैं। जो देश ये सब निर्माण कर लेते हैं, वही आज के युग में "सोने की चिड़िया" बनते हैं।

सवाल है कि यह सब निर्माण करने में दिक्कत क्या है श्रीलंका को। क्यों वह देश जुगाड़ू (jerry-rigged) तरह से बस को तब्दील करके ट्रेन की पटरी पर दौड़ा रहा है, और गरीब देश बना हुआ है। वैसे श्रीलंका के पास में ट्रेन भी हैं, वैसी वाली जैसी हमारे देश में भी है, तब फिर ये जुगाड(jerry-rigging) क्यों?

ये सवाल पहेली का भेद खोलने का सुराग देता है, मेरे अनुसार। ट्रेन निर्माण करने में केवल लोहा नहीं लगता है, बल्कि लोहे को ढालने वाला कारीगर भी लगता है, और बुद्धि लगा कर सही , आवश्यक आकार का चुनाव करने वाला अभियंता भी चाहिए होता है। जो भी समाज इन सभी कौशलों का समागम कर सकता है, वही उच्च प्रौद्योगिकी को हासिल कर सकेगा, और वही समृद्ध हो कर अमीर बनेगा ।

श्रीलंका शायद यहां पर चूक गया है।

अधिकांश गरीब देश कौशल कारीगरों का समागम करवाने की जगह आयात करवाने में अधिक व्यसन करने लगते हैं। वह वाले देश जिनमें व्यापारी एक अलग वर्ग होता है, और अविष्कार और अभियंत्रि करने वाला वर्ग अलग। व्यापारी को तो उद्योग लगाना होता है, कैसे भी। वह सस्ता आसान रास्ता पकड़ लेता है, आयात करके machinery plant लाने का । यही देश अब गरीबी के कुचक्र में फंस जाता है। यही देश जुगाड(jerry rigging) को अपना तरीका बना लेता है। और, शायद, यही लोग जुगाड(jerry rigging) में गर्व तलाश करने की बुद्धि लगाने लगते हैं।

समागम करवा सकना — तमाम कौशल कारीगरों का — यह अपने आप में बड़ी उपलब्धि होती है किसी समाज की। और इसी समागम में से उनके विकास का रास्ता खुलता है। 

किसी देश को गरीबी से मुक्ति सोने की धनवर्षा से नही मिलती है। समृद्धि का मार्ग होता है कौशल कारीगरों का समागम करवा सकने वाला आध्यात्मिक परिवेश । 




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