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Why we are either Far-right wingers, or the Far -left wingers ? Why are most people so? Why are we bigoted?


Why we are either Far-right wingers, or the Far -left wingers ? 
Why are most people so? 
Why are we bigoted? 

We all are bigoted in one way or the other. In one subject matter or the other. Every human being ever born is a bigot, thus. The default birth status of a human child is to become a bigot when he grows up UNLESS some purity of Conscience happens in him, PLUS he acquires a repertoire of knowledge by which he may have a grand view, enough to provide him a bird-eyeview of as many subject matters as possible

WE are designed by mother nature herself to see onlyone one side of the coin. We can never see both the sides of the coin together. Hence we are bigots - far right, or the far left winger. 

Only a rare amongst us attain the Buddha, the seeker of the balanced, middle path, the one who starts seeing the circle of life as an unending wave of highs and lows, and then learns to keep himself free from both- the pleasure and the pain- by a method of self-control. He who practises self-penance to teach himself to tolerate the worst of the pains, the virtue of patience and the art of asceticism.

क्या राजनैतिक झगड़ा चल रहा है वर्तमान भारत में 'इतिहास' और 'हिन्दू राष्ट्र' के इर्दगिर्द

मेरा खयाल है कि हमें बारबार इतिहास कि ओर इसलिए भी देखना पड़ जाता है क्योंकि हमारी वर्तमान काल की कई सारी समस्याओं के मूल को समझने की दिक्कत हमें इतिहास में ले जा बैठती है। 

करीबन हमेशा ही, हमारी वर्तमानकालीन समस्याओं का मूल हमारी अपनी सोच, तर्क, दर्शन, नही है। बल्कि कहीं से आयात हो कर आई है। उस आयात क्रिया का एकशब्द, संक्षिप्त विवरण है 'इतिहास'। इसलिए भारत के विधान, सामाजिक,धार्मिक, राजनैतिक, प्रशासनिक समस्याओं को बूझने के लिए 'इतिहास' जानना परम आवश्यक है। 

और फ़िर जब भी हम अपनी तफ्तीश के दौरान 'इतिहास' और वर्तमान चाहतों के बेमेले को  देखते हैं, हमें अपने से एहसास आ जाता है कि हमारा तंत्र नकल करके प्राप्त किया हुआ है, यानी हमारे अपने दर्शन की उपज नहीं है। 
इसके आगे, जब हम दोनो तर्कों को- हमारी अपनी सोच और दर्शन के तर्क, तथा आयात किए गए ‘इतिहासिक’ तर्क को देखते हैं– तब हमें प्रत्येक विचार में ‘आज़ादी’ (ब्रिटिश के लौट जाने की बाद वाली) के बाद हुई छेड़छाड़, pseudo-करण (छद्म करण) दिखाई पड़ने लगता है।

फिर, यहां से हमारे देशवासियों में दो गुटों में मत-विभाजन शुरू हो जाता है। यही दोनो गुट मत विभाजन हमारे देश की दो विपरीत राजनैतिक विचारधाराएं बन कर उभरती है · कांग्रेस पार्टी और आरएसएस पोषित भाजपा। 

एक मत (गुट) का मानना है कि आयात करी गई सोच से देश को चलाना उचित होगा। ये सोच अपना प्रतिनिधित्व करती है 'इतिहास' के सशक्त ज्ञान से, अपनी ‘इतिहासिक पृष्टभूमि’ से, भारत के वर्तमान, अंबेडकर-रचित संविधान से।

और दूसरा मत (गुट) है जो मानता है कि आयात करे गए विचारधारा, दर्शन, तर्क को विस्थापित करना होगा, उखाड़ फेंकना होगा। क्योंकि ये बारबार छद्मकरण को जन्म दे रहा है, और ऐसा इसलिए क्योंकि ये भारत के समाज का अपना 'मूल' नहीं है, बल्कि आयात किया हुआ है। ये सोच अपने अस्तित्व को छलकाती है– कमजोर तथ्यिक इतिहास के ज्ञान से, काल्पनिक इतिहास की रचना (fake history, fake narratives) से, प्रबल और अंधविश्वास भरे धार्मिक ज्ञान से, भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने की चाहत से, हिंदू धर्म और हिंदू राष्ट्र को विश्व के सर्वश्रेष्ठ धर्म और राष्ट्र साबित करने की चाहत से। 

दिक्कत यूं बढ़ जाती है कि आयात हो कर आई, यानी ‘सत्य इतिहास’(true, certified history) ज्ञान वाली सोच को समर्थन भारत के बहुजन करते हैं, जो स्वयं को ‘मूलनिवासी’ मानते हैं। और काल्पनिक इतिहास (fake history, narratives), हिंदू राष्ट्र वाले मतधारा को उच्च जाति ब्राह्मण जातियां वगैरह समर्थन करती हैं, जो सुदूर अतीत में किन्ही अन्य देशों से आ कर भारत में बस्ती चली गई है, और उसी अतीत काल के समय में कुछ हालातों के चलते अपनी सुविधानुसार 'हिंदू धर्म' को परिवर्तित कर चुकी थी। इस परिवर्तित धर्म, संस्कृति को वे "हिन्दू धर्म ' बुलाती हैं। मगर वर्तमान काल के अधिकांश भारत वासी इन अतीत वाले तथ्यीक ज्ञान से अनभिज्ञ है, और वे ‘हिंदू धर्म विचार’ धारा से प्रभावित हैं, क्योंकि वे स्वयं को हिंदू मानते हैं। ये लोग अधिक गहरा दर्शन नही रखते हैं कि ‘हिंदू’ होने का क्या मतलब होता है, क्या होना चाहिए, इत्यादि। वे बस इतना समझते हैं कि अतीत काल में हमारे ऊपर आक्रमण हुआ था, और हमारी कुछ मूल जीवन शैली को तबाह किया गया था। आगे, उनके अनुसार ‘हमें’ या तो बदला लेना होगा, या वो वाली जीवन शैली दुबारा प्राप्त करनी होगी, हिंदू राष्ट्र बना कर। 

फिलहाल भारत में ऐसी सोच वाले लोग अधिक संख्या में हैं, बहुमत में। 

दूसरी तरफ कांग्रेस पार्टी उन लोगो का प्रतिनिधित्व कर रही है जो स्वयं को मूलनिवासी तो मानते है, मगर अब वे खोई हुई, विलुप्त हो चुकी, अज्ञान,अनजान संस्कृति को वापस पाने को चाहत नहीं रखते हैं। वे लोग दर्ज़ किए गए तथ्यीक, और प्रमाणित इतिहास के ज्ञान में अव्वल लोग हैं, और इसके अनुसार देश को आगे ले जाना चाहते हैं - नए ,ताथ्यिक,प्रमाणित, सर्वसम्मत, इतिहास पर बसी नई संस्कृति के अनुसार। 

अब, इस लोगों के साथ ये दिक्कत है कि, क्योंकि नया इतिहास (उसका दर्शन, उसका तर्क) आयात हो कर आया है, इसलिए वे बारबार छद्म (pseudo, duplicate, fake) concepts में फंस जा रहे हैं। 

दूसरा वाली मतधारा इस fake ness, छद्मकरण से त्रस्त हो कर अपने वाले , पुराने concepts और ideas par लौटना चाहती है। मगर अपनी पुनर्वापसी यात्रा के पूर्ण सकने लिए वो fake history रचती है, और ऐसा करती हुई रंगे हाथों पकड़ी जा रही है।
  

सिग्मंड फ्रॉएड और शिक्षित तथा अशिक्षित व्यक्ति का अंतर

 मनोविज्ञान के जनक, ऑस्ट्रिया के सिग्मंड फ्रॉएड, का विचार था कि इंसान का व्यवहार उसकी मस्तिष्क की अवचेतन में बसी कुछ धुंधली यादें(subconscious memories), उसकी सोच(thoughts) और उसकी अस्पष्ट चाहतों(urges) से निर्धारित होता है। 
और इंसान को खुद से भी पता नही होता है उसकी ये सब अस्पष्ट, धुंधली बातें। 

  यानी इंसान खुद भी नही जानता है कि वो क्या, क्यों, किस वजह से व्यवहार कर रहा है। सिगमंड के अनुसार जो लोग अनुशासन, नियम, दबाव में जीवन जीते हैं, वे ऐसे इसलिए होते हैं क्योंकि उनके बचपन में उन्हें मल त्यागने पर घोर क्रोध से नियंत्रित किया जाता था।(Anal Retentive)

 –भाग २

इंसान संसार को जिस आधारों से देखता, समझता, उच्चारण करता है, वे cognitive schemas कहलाने वाले बिंदु इंसान को अपने पर्यावरण,निकट संबंधियों,मित्रो और शिक्षा से प्राप्त होते हैं। प्रत्येक इंसान अपने मतानुसार संसार को चलाने वाली शक्तियों को बूझता रहता है,ताकि वो इन शक्तियों को अपने हित में, सुख सुविधा के लिए नियंत्रित कर सके। इस शक्तियों का बोध प्रत्येक इंसान में भिन्न होता है–ये क्या है, कैसी हैं, इत्यादि। 

शिक्षित व्यक्ति और गंवार(अशिक्षित) का अंतर यही से आता है। 

इन शक्तियों को बेहतर समझते बूझते और फिर जीवन में अधिक सफल होते हैं, वे अक्सर ऐसे लोग होते हैं, जो किन्हीं अकादमी में जा कर पुराना, संजोया हुआ, संरक्षित ज्ञान किताबों से प्राप्त करते हैं। वे शिक्षित लोग समझे जाते हैं।

 और गंवार वे होते हैं, जो इन शक्तियों का बोध अपने जीवन अनुभव, मित्रो, पर्यावरण से निर्मित करते हैं। अक्सर ऐसे लोग कम सफल होते हैं।

छोटे बालको को कंप्यूटर का इतिहास पढ़ाया जाना क्यों जरूरी होता है ?

कंप्यूटर का इतिहास जानना क्यों आवश्यक होता है? 

कभी आप एक प्रयोग करके देखिए :–
छोटे बच्चों (करीब दस से बारह साल आयु वाले) से पूछिए कि,  'coding क्या होती है?'

और फिर इन बच्चों से बारी बारी से जो कुछ भी जवाब मिलता है, उसको इकात्रण करिए। उनको थोड़ी देर के लिए आपस में कुछ बहस करने के लिए छोड़ दीजिए कि वे एक दूसरे के विरुद्ध खुद के जवाब को सही साबित करने की कोशिश करें; एक दूसरे के जवाबों का माखौल उड़ाए; एक दूसरे से अधिक श्रेष्ठ, बुद्धिमान पुरुष होने की कोशिश करें। 

आप बस बैठ कर आनंद लीजिए, और उनके प्रयासों का खाका बनाते रहिए। 

अगर अग्नि शांत होती दिखाई पड़े, तो वापस कुछ नया घी डाल दीजिए, कोई नया सवाल पूछ कर, जैसे कि, ' कंप्यूटर क्या होता है?'
 उनके जवाबों में से ही कोई नया टांग खींचने वाला सवाल निकल लीजिए, जो उनको कुछ सोचने पर मजबूर करता रहे कि आखिर सही जवाब क्या हो सकता है। 

आप एक बात गौर कर पाएंगे, शायद – कि, कितना जटिल काम होता है बच्चों को ये समझा सकना कि computer क्या होता है, क्या नहीं ; कंप्यूटर के प्रयोग से क्या क्या काम हो सकता है, और क्या क्या नहीं।

 अधिकांश छोटे बच्चे लोग कंप्यूल्टर को किसी जादूगर की छड़ी की तरह समझते हैं, जिससे कि मानो कुछ भी किया जा सकता है। उनको लगता है कि कंप्यूटर से फ्रिज का काम भी किया जा सकता है, ac और पंखे का भी, और वाशिंग मशीन वाला भी। बस coding करनी होती है। Computer से street hawk वाले टीवी सीरियल की तरह bike भी चलाई जा सकेगी, एक दम तेज गति से। 

और शायद की अगर वो coding सीख गए तब वे भी अपने घर वाले computer से कुछ भी काम करवा सकेंगे। शायद किसी एलियन से संपर्क करके दोस्ती कर सकें, जो सुदूर ग्रह से आ कर बच्चों की उंगलियों पर लगाई चोट को पल भर में ही ठीक कर दे।  

छोटे बच्चों की computer के प्रति परोकल्पनाओं में शायद आपको ये सब दिखाई पड़े ।

और फिर जब आप उनको समझाने का प्रयास करें कि सही , संतुलित जवाब क्या होना चाहिए, तब आपको अपने मन में दुविधा महसूस होगी कि आरंभ कहां से ,कैसे किया जाए। क्या बताया जाए कि ये बच्चे लोग महज ज्ञान को नहीं, बल्कि concept को पकड़ ले कि कम्प्यूटर से क्या क्या काम किए जा सकते हैं, क्या क्या नहीं। 

इसी दुविधा का जवाब  , कि शुरू कहां से करें, आपको मिलता है computer का इतिहास पढ़ाने से।

मगर अकसर करके टीचर लोग computer (या किसी भी अन्य विषय में उसका इतिहास ) पढ़ाने में भूलवश से कुछ यूं करने लगते हैं कि मानो इतिहास का ज्ञान पढ़ने का उद्देश्य concept को हस्तांतरण करने का नहीं है, बल्कि इतिहास खुद महज एक बोझ नुमा विषय होता है , किसी परीक्षा को पास कर देने के उद्देश्य भर से। और किसी authority ने विवश किया हुआ है इतिहास को पढ़ने के लिए। 

कंप्यूटर के विषय में इतिहास को पढ़ाए जाने का असल उद्देश्य होता है – concepts का ज्ञान हस्तांतरण (transfer) करना कि computer होता क्या है, उसकी क्षमताएं और सीमाएं क्या होती हैं।

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