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The value of Humour in Democratic Politics

Humour is the best spice of life. It makes a person popular. In the politics of a democratic state, the contest is almost always between what is right and what is popular. No matter how right a person may be, if they fail to win the favor of the masses, they will be dismissed. On the other hand, no matter how wrong or flawed another person may be, if they manage to win public favor, they will succeed. Winning the favor of the masses is the first step in a democratic power struggle. To do so, one must get the public to listen only to their views, while ignoring those of their rivals. This allows them to easily conceal their own flaws—whether in beliefs, ideas, or character—when compared to a rival with stronger, more well-developed attributes. So, how can one make the public behave in this way? By adopting a humorous persona. Popularity can be achieved by adopting a cheerful, humorous personality. However, people often equate humor with hilarity. Hilarity can be achieved through various...

हिंदू,हिंदू धर्म और हिन्दुत के विषयों पर ब्राह्मण मित्रो की आपसे क्या अपेक्षा स्वतः बनने लगती है

मैने ये बात कई बार देखी, सुनी और महसूस करी है, और मुझे यकीन है कि आप भी अगर तजुर्बा करेंगे तो आपको भी यही लगेगा, की जब जब हिन्दू धर्म और हिंदुत्व की बात आती है, हमारे आसपास में संपर्क वाले ब्राह्मण मित्र, सखा तुरंत उछल उछल कर वेद पुराणों, उपनिषदों के कुछ संस्कृत श्लोकों की बात करने लग जाते है,  जैसे मनो कि हिंदू होने का सबूत तभी माना जायेगा जब आप ऐसी श्लोकों को स्मृत कर लें, वर्ना इनके आगे नतमस्तक हो कर तर्क करना बंद कर दें। वैसे, ये तो ब्राह्मण दोस्तो का सामान्य व्यवहार बन गया है कि वह आपसे हिंदू धर्म या हिंदुत्व के विषय आने पर तर्क करना बंद कर देने कि प्रचंड अपेक्षा करने लगते हैं। और श्लोकों का मनगढ़ंत रचना किए जाने का प्रतिवाद तो कतई सुनना पसंद नहीं करते है। वह चाहते हैं कि उनके बताए गए श्लोक को आंख मूंद कर चिरकाल से आया, सनातन होने का सम्मान दे दिया जाए ।