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Showing posts from October, 2022

रूस यूक्रेन युद्ध में भारत का रुख – भारत की डमाडोल विदेश नीति के सूचना चिन्ह

दिन-रात democracy का राग अलाप कर भारत अमेरिका की मैत्री को बांछने वाला भारत अब एक व्यापारी मानसिकता के आदमी के सत्ता में आ जाने से यकायक मूल्यों से समझौता करके " सबसे बड़े प्रजातंत्र "(India) और " सबसे शक्तिशाली प्रजातंत्र "(the US) की "आजमाई हुई दोस्ती" को खड्डे में डालने लगा है।  व्यापारी आदमी की पहचान यह है कि वो थोड़े से फायदे के लिए मूल्यों और आदर्शों से आसानी से समझौता कर लेता है।  भारत का प्रजातंत्र खतरे में है, ये बात सिर्फ भारत में संसदीय विपक्षी नेतागण ही नहीं बोल रहे हैं, अपितु अब विश्व समुदाय भी इसको महसूस कर रहा है। भारत ने यूक्रेन रूस युद्ध के विषय में जबान पर तो निष्पक्ष बने रहने की इच्छा जाहिर करी है, मगर कर्मों में उल्टा कर दिया है। भारत रूस से सस्ते में कच्चा तेल खरीदने चला गया है। ये एक तरह से पश्चिमी देशों के रूस को शांति के मार्ग पर रहते हुए युद्ध को रोकने के प्रयासों के लिए लगाए गए आर्थिक प्रतिबंधों के विपरीत का कदम हो गया है। यानी भारत ने न सिर्फ पश्चिमी देशों से, जो को अधिकांश संख्या में प्रजातांत्रिक व्यवस्थाएं है, उनके विपरीत का

आरक्षण नीति भेदभाव से लड़ने की खराब युक्ति होती है

भेदभाव से लड़ने का तरीका आरक्षण कतई नहीं है।  शोषण किये जाने वाली सोच तो शोषण की भावना को मन में बसाने का आमंत्रण होती है।  शोषण क्या है?   शोषण वास्तव में attitude होता है life के प्रति। अगर आप सोचने लगेंगे की आपके संग शोषण किया जा रहा है, तब वाकई में आपको शोषण लगने लगेगा। दुर्व्यवहार और भेदभाव सभी इंसानों को झेलना होता है जीवन में। मगर समझदार व्यक्ति इससे लड़ कर उभर जाते है। जो शोषण को भेदभाव से जोड़ लेते हैं, वह कदापि उभर नही सकते। और जो आरक्षण में इसका ईलाज़ ढूंढते है, वो तो कदापि शोषण से बचने की सद युक्ति नहीं कर रहे होते हैं ।   तो शोषण से बचने का सही मार्ग क्या होता है? सही मार्ग है शक्तिवान बनना । आरक्षण आपको शक्तिवान नही बनाता है, केवल शासकीय शक्ति वाले पदों तक पहुँचाता है।  तो फ़िर शक्तिवान कैसे बनते है?  बाधाओं से उभर कर। और बाधाएं कौन सी होती है? भेदभाव वाली बाधाएं। रास्ते में अड़चन लगाए जानी वाली बाधाएं। कौन लगाता है बाधाएं? रास्ते में अड़चन कौन लगाता है और क्यों? आपके प्रतिद्वंदी जो कि शक्तिवान होने की स्पर्धा में आपके समानान्तर दौड़ रहे होते हैं। वो ये बाधाएं मिल कर समूह गत हो

भरपूर वजहें हैं कि क्यों रौंदा जाता रहा है ये देश हर एक आक्रमणकारी से

आलोचना किये जाने लायक तमाम अन्य देशों की संस्कृति की तरह यहां की संस्कृति में भी खोट मौजूद है । लेकिन अभिमानी आलोचक लोग कड़वे सच से मुंह फेर कर अपने घमंड में डूबने का आनंद लेना चाहते हैं।  भारत की संस्कृति में उगते सूरज को प्रणाम करने का चलन हैं। क्या इसका अभिप्राय मालूम है आपको?   क्या आप आज भी देख रहे हैं कि कैसे लोग दल बदल कर शासन में बैठे दल में घुस लेते हैं? लोग कमजोर आदर्शों वाले व्यक्ति को अपना नेता चुनते हैं, जो कि आसानी से समझौता कर लेते हैं मूल्यों पर। ( या शायद अच्छे नेतृत्व की सूझबूझ की निशानदेही होती है कि जरूरत अनुसार मार्ग बदल लेना काबिल नेतृत्व का प्रमाण है।) भारत के लोग कैसे हैं ? ऐसे लोग जो अपने कान जमीन से लगाए रहते हैं, आने वाली शक्ति की आहट को पहले से ही सुन कर पूर्वानुमान लगा लेने के लिए। और इससे पहले की वो शक्ति सूरज की तरह उगती हुई उनके सर पर चढ़े, वो पहले ही जा कर उगते सूरज को सलाम कर आते है। यानी पाला बदल के उसके आगे झुक कर संधि कर लेते हैं।  भारत में तन कर खड़े होने की संस्कृति और चलन नहीं है। यदि किसी ने भी ये सोच कर खड़े होने की कोशिश करी कि बाकी लोग साथ द

क्यों कोई भी समाज अंत में संचालित तो अपने हेय दृष्टि से देखे जाने वाले बुद्धिजीवी वर्ग से ही होता है?

बुद्धिजीवियों को लाख गरिया (गलियों देना) लें , मगर गहरा सच यह है कि किसी भी समाज में अतः में समाज पालन तो अपने बुद्धिजीवियों के रचे बुने तर्क, फैशन, विचारों का ही करता है। बुद्धिजीवी वर्ग कौन है, कैसे पहचाना जाता है? बुद्धिजीवी कोई उपाधि नही होती है। ये तो बस प्रत्येक व्यक्ति का व्यक्तिगत दृष्टिकोण होता है किसी दूसरे व्यक्ति के प्रति, कि किसे वह अपने से अधिक पढ़ा- लिखा, ज्ञानवान और अधिक प्रभावशाली मानता है। अब चुकी हर व्यक्ति का अपना एक अहम होता है, तो फिर वह स्वाभाविक तौर पर हर एक आयाराम–गयाराम को तो अपने से श्रेष्ठ नहीं समझने वाला है। सो, वह बहोत छोटे समूह के लोगों को ही "बुद्धिजीवी" करके देखता है। नतीजतन, बुद्धिजीवी वर्ग प्रत्येक समाज में एक बहोत छोटा वर्ग ही होता है, मगर ऐसा समूह जो की समाज की सोच पर सबसे प्रबल छाप रखता है। और बड़ी बात ये है कि बुद्धिजीवी माने जाने का कोई मानक नही होता है। यानी, कोई शैक्षिक उपाधि ये तय नहीं करती है कि अमुक व्यक्ति बुद्धिजीवी है या नहीं। हालांकि प्रकट तौर पर सबसे प्रथम बात जो कि हमारे भीतर दूसरे व्यक्ति के प्रति सम्मान उमेड़ती है, वो उ