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Showing posts from September, 2022

Secularism सभी कोई गलत समझे बैठा है

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दलित पिछड़ों के बुद्धिजीवी ही अपने समाज के असल शत्रु होते हैं

 दलित पिछड़ा वर्ग के बुद्धिजीवी ही अक़्ल से बौड़म हैं। वे अपनी राजनैतिक महत्वकांक्षाओं के चलते अपने समाज को आरक्षण नीति के पीछे एकत्र होने को प्रेरित करते रहते हैं। ये सोच कर कि इनके लोग आरक्षण सुविधा प्राप्त करने के लिए वोट अपने जातिय नेताओं को देंगे।  और वो नेतागण फिर इन बुद्धिजीवियों को विधान परिषद् या राज्यसभा का सदस्य बना देंगे।   दलित पिछड़ा वर्ग चूंकि मध्यकाल से agarigarian(कृषि या पशुपालन करके जीविका प्राप्त करने वाले )   रहे हैं , सो वह औद्योगिक काल के बाजार के तौर तरीकों को नहीं जानते हैं, उनके भीतर में salesman ship के नैसर्गिक गुण नहीं होते हैं।  यदि कोई उनकी दुकान से उत्पाद नहीं खरीद रहा है, तो वो "भेदभाव" चिल्लाने लगते हैं, बजाये की कुछ आकर्षित करके समाज को लुभाएं सामान को खरीदने के लिए।  अब आधुनिक काल के समाज की अर्थव्यवस्था चूंकि आदानप्रदान (barter system ) कि नहीं रह गयी है, बल्कि मुद्रा चलित है (money-driven ) , तो यहाँ चलता तो सिक्का ही है , भले ही वो खोट्टा हो।  दलित पिछड़े वर्ग के लोग मुद्रा-चलन पर आधारित समाज के जीवन आवश्यक गुणों से अनभिज्ञ होते हैं, तो वो अ

ब्राह्मण बनाम बुद्ध — कब और कैसे आरंभ हुआ होगा भारतीय संस्कृति में

[9/6, X 14 PM] AHSHSHEHE: 👍👍 मेरा अपना ये मानना है कि वर्ण व्यवस्था, * जो की एक सकारात्मक पहल थी समाज को संचालित करने के लिए * , वो तो हालांकि मनुस्मृति से आरम्भ हुई है,   * मगर * छुआछूत और जातिवाद व्यवस्था (जैसे कि हम वर्तमान काल में देखते और समझते रहे हैं) ये आरम्भ हुई है शुंग काल के दौरान, जब * पुष्यमित्र शुंग * नाम के व्यक्ति ने मौर्य वंश के शासक बिम्बिसार की धोखे से हत्या करके शासन हड़प लिया था।  शुंग वंशी स्वयं को ' भुमिहार " बुलाते थे और वो तत्कालीन पारंपरिक ब्राह्मण और ठाकुरों से मिश्रित वर्ग थे। अब क्योंकि मौर्य शासक बौद्ध अनुयायी बन चुके थे, तो वो लोग पारंपरिक ब्राह्मणों को तवज़्ज़ो नहीं देते थे। समाज भी बौद्ध विचारो से प्रभावित हो कर बौद्ध हो चुका था। सो पारंपरिक ब्राह्मणों को दान दक्षिणा देना संभवतः बंद हो चुका था। आक्रोशित हुए ब्राह्मण वर्ग ने नये विचारो और प्रतिहिंसा (बदले की भावना) की ठानी और फिर नये नये "पौराणिक मिथक कथाओं" को जन्म दे कर स्वयं के लिए भूमि अर्जित करना न्यायोचित करना आरम्भ कर दिया। जबकि ब्राह्मणों को भूमि पति बनना तो "मनुस्मृति'

हिन्दू समाज में blasphemy जैसा विचार क्यों नहीं होता है

हिन्दू समाज में भगवानों और देवी-देवताओं का अपमान किया जाना कोई अपवाद नहीं होता है। भगवानों का तिरस्कार करना वर्जित नही है। ऐसा क्यों? हिन्दू देवी-देवता इंसान के स्वरूप में धरती पर अवतरित होते रहे हैं। वे मानस रूप में विचरण करते और जीवन जिये रहते है । और कभी भी ये नहीं कहते फिरते है कि वो भगवान है, या अवतार हैं। ऐसा सब आदिकालीन बहुईष्टि प्रथा का अनुसार हुआ है।    जबकि एकईष्ट प्रथा में भगवान धरती पर नही आते है, वो केवल पैग़म्बर भेजते है , या अपने मानस पुत्र को,  जो उनका संदेश ले कर आता है। और जो धरती पर सबको बताता है कि वो कौन है, और क्या संदेस लाया है उस दिव्य विभूति ईश्वर से। फिर ये संदेश भगवान का आदेश मान कर समाज में पालन किये जाते हैं। इसके मुकाबले, हिन्दू देवता तो स्वयं से वो संदेश जीवन जी कर समाज को आदर्श पाठ में प्रदर्शित करते है।समाज को स्वयं से उन गुणों की पहचान करना होता है।  भगवानों को अपने मानस जीवन के दौरान अपनी आलोचना, निंदा, अपमान, तिरस्कार सभी कुछ झेलना भी पड़ता है।  सो, हिंदु समाज में देवी देवताओं की आलोचना या अपमान कोई अवैध आचरण नही होता है।