An ocean of thoughts,earlier this blog was named as "Indian Sociology..my burst and commentary". This is because it was meant to express myself on some general observations clicking my mind about my milieu...the Indian milieu. Subsequently a realisation dawned on that it was surging more as some breaking magma within . Arguments gave the heat to this molten hot matter which is otherwise there in each of us. Hence the renaming.
दलित पिछड़ों के बुद्धिजीवी ही अपने समाज के असल शत्रु होते हैं
दलित पिछड़ा वर्ग के बुद्धिजीवी ही अक़्ल से बौड़म हैं। वे अपनी राजनैतिक महत्वकांक्षाओं के चलते अपने समाज को आरक्षण नीति के पीछे एकत्र होने को प्रेरित करते रहते हैं। ये सोच कर कि इनके लोग आरक्षण सुविधा प्राप्त करने के लिए वोट अपने जातिय नेताओं को देंगे। और वो नेतागण फिर इन बुद्धिजीवियों को विधान परिषद् या राज्यसभा का सदस्य बना देंगे।
दलित पिछड़ा वर्ग चूंकि मध्यकाल से agarigarian(कृषि या पशुपालन करके जीविका प्राप्त करने वाले ) रहे हैं , सो वह औद्योगिक काल के बाजार के तौर तरीकों को नहीं जानते हैं, उनके भीतर में salesman ship के नैसर्गिक गुण नहीं होते हैं। यदि कोई उनकी दुकान से उत्पाद नहीं खरीद रहा है, तो वो "भेदभाव" चिल्लाने लगते हैं, बजाये की कुछ आकर्षित करके समाज को लुभाएं सामान को खरीदने के लिए।
अब आधुनिक काल के समाज की अर्थव्यवस्था चूंकि आदानप्रदान (barter system ) कि नहीं रह गयी है, बल्कि मुद्रा चलित है (money-driven ) , तो यहाँ चलता तो सिक्का ही है , भले ही वो खोट्टा हो। दलित पिछड़े वर्ग के लोग मुद्रा-चलन पर आधारित समाज के जीवन आवश्यक गुणों से अनभिज्ञ होते हैं, तो वो अधिक मुद्रा कमाने की नहीं सोचते हैं, बस जीवनयापन आवशयक धन से खुश हो जाते हैं -- जो की कोई नौकरी करे के कमाया जा सकता है। उद्योगिक युग का सत्य ये है कि बड़ी मात्रा का धन केवल व्यापार और उद्योग करने वाले समाज ही कमाते हैं।
यानी प्रजातंत्र व्यवस्था वास्तव में औद्योगिक युग की राज व्यवस्था है , जो कि धन्नासेठों से ही चलती है, क्योंकि वो ही लोग इतना पैसा रखते हैं की राजनेताओं को चंदा दे-दे कर उनको अपनी जेब में रख लें। आजकल तो धन्नासेठ लोग अपने puppet व्यक्ति को प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री बनाने लगे हैं। और यदि दलित पिछड़ा वर्ग का लाया व्यक्ति कुछ मंत्री-संत्री बन भी जाता है , तब धन्नासेठ लोग भ्रष्टाचार के भरोसे उन्हें खिला-पीला पर दल्ला बना कर अपना काम फिर भी सधवा लेते हैं। कैसे ? भई ,आखिर दलित पिछड़ वर्ग को धंधा थोड़े ही चाहिए होता है। उन्हें तो बस नौकरी चाहिए होती है। तो दलित पिछड़ा लोग के नेता गण करते रहते हैं भर्ती घोटाले, transfer posting घोटाले। और इधर धन्नासेठ लोग करते हैं multicrore आवंटन scams .
दलित पिछड़ा वर्ग ने अभी तक प्रजातंत्र में पैसे की कड़ी से देश की राजव्यवस्था के लगाम के जोड़ को जाना-समझा नहीं है। प्रजातंत्र वास्तव में पैसे वालों की व्यवस्था है। और संग में तकनीक, विज्ञान , अन्वेषण , अविष्कार की भी व्यवस्था है। यदि देश में विज्ञान का राज चाहिए , तो प्रजातंत्र लाना पड़ेगा। और यदि प्रजातंत्र आएगा तब समाज का अर्थतंत्र मुद्रा-आधारित बन जायेगा। और फिर आगे, ऐसे किसी भी प्रजातान्त्रिक समाज की लगाम धन्नासेठों के हाथों में खुद-ब-खुद फिसल कर जाने लगेगी।
आरक्षण नीति की सुविधा ले कर आये नौकरी शुदा लोग केवल हुकुम बाजते रहते थे, और रहेंगे। प्रजातंत्र व्यवस्था में भी। हुकम देने वाले लोग परदे के पीछे बैठे धन्नासेठ लोग होंगे।
दलित पिछड़ों के बुद्धिजीवी लोग समाज, प्रजातंत्र, अर्थ तंत्र और प्रशासनिक व्यवस्था की लगाम के समबन्धों के सच को देख कर भी अनजान बने हुए है-- केवल अपनी निजी राजनैतिक महत्वकांक्षा की पूर्ती के लिए।
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