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Showing posts from 2021

Defence वालों के घोटाले

नेवी वाले सफ़ेद, चमचमाती uniform पहन कर scams करने में उस्ताद लोग होते हैं। मुम्बई के कोलाबा क्षेत्र में आदर्श सोसाईटी घोटाला क्या किसी को याद है। इस घोटाले के उजागर हो जाने के बाद लंबे समय तक ये मामला court की सुनवाई में चलता रहा है, और अंततः कोर्ट ने मामले को घोटाला करार देते हुए बिल्डिंग की कुर्की करवा दी। आज ये बिल्डिंग उजाड़ खड़ी हुई दुनिया को गवाही देती है कि कहीं कुछ तो बहोत बड़ा घोटाला हुआ है, मगर जो सटीक जानकारी के संग दुनिया वालो को बताया नही जाता है, शायद इसलिये कि नेवी वालो की सफ़ेद पोशाक पर दाग के छीटें अच्छे नहीं दिखाई पड़ते हैं लोगों को। घोटाला क्या था? क्या गड़बड़ करि थी नेवी के आला अधिकारियों ने? कोलाबा क्षेत्र ज़मीन का छोटा सा, "लटकता हुआ" (appendix) भाग है दो तरफ से समुन्दर से घिरा है। यहां का मौसम और आबोहवा इतनी रमणीय है कि सभी लोग यहाँ बसना पसंद करते हैं। अफसोस ये है कि जमीन का भूक्षेत्र इतना कम है कि इतने लोगों को बसाना संभव नही है। उस पर भी, इतने से भूक्षेत्र पर नेवी, आर्मी ने अपनी छावनी डाली हुई हैं।  और अब नेवी वाले लोग राष्ट्रीय सुरक्षा का वास्ता दे कर कोई औ

मनगढंत रचा हुआ इतिहास और पुरातत्व विज्ञान से लिखा हुआ इतिहास

इतिहास और पुरातत्व विज्ञान में अंतर भी है और संबंध भी। " इतिहास रचने " की घुड़क मनुष्यों में बहोत पुराने काल से रही है। सभी ने अपने अपने हिसाब से अपना आज का ब्यूरा लिखा था, इस हिसाब से सोचते हुए कि यही लेखन भविष्य काल में पलट के देखे जाने पर "इतिहास" कहलायेगा, और तब हम उस इतिहास में साफ़-सफ़ेद दिखयी पड़ जाएंगे।। ये सब इतिहास मनगढंत था। तो, अब सत्य इतिहास कैसे पता चलेगा? कैसे इंसानियत को अपने आज के काल की समाज के तमाम क्रियाएं बूझ पडेंगी? सत्य कारण किसे माना जाये? - ये कैसे तय करेंगे इंसानो के मतविभाजित समूह? ऐसे निर्णयों के लिए तो सत्य इतिहास मालूम होना चाहिए, मनगढंत वाला इतिहास नहीं। जवाब है --पुरातत्व की सहायता से! पुरातत्व एक विज्ञान होता है। और वो जब इतिहास लिखता है तब वो मनगढंत को और सत्य दमन को - अन्वेषण करके अलग कर देता है। पुरातत्व ज्ञान जो लिखता है, वो सत्य की ओर खुद-ब-खुद जाता है । तो फ़िर कोई भी व्यक्ति लाख बार अलाउदीन खिलिजि और पद्मावती लिख के इतिहास लिख ले, एलेक्सजेंडर और पोरस का इतिहास लिख ले, ग़ज़नी और पृथ्वीराज चौहान का इतिहास लिख ले, चाणक्य और विष्णुग

घमंडी, arrogant नौकरशाही और भारत के बुद्धिहीन इतिहासकार

हम जब की दावा करते हैं कि नौकरशाह देश के करदाता के पैसों पर ऐश काटता है, तब नौकरशाह बहस लड़ाता है कि , फिर तो टैक्स हम भी तो देते हैं। यानी टैक्सदाता("income tax") भी हम ही तो हुए। तो फिर अपने पैसे पर ऐश काटना, इसमे ग़लत क्या हुआ?  मानो जैसे टैक्स से अर्थ सिर्फ income tax ही होता है। यहाँ ग़लती देश के इतिहासकारों की भी है, कि उन्होंने स्कूली पाठ्यक्रम में विश्व आर्थिक इतिहास को कहीं लिखा ही नही हैं। छात्रों ने इतिहास के विषय में बहोत अधिक व्यसन गाँधी-नेहरू-सुभाष-पटेल में बर्बाद किया है, और फिर अख़बर महान और महाराणा प्रताप शौर्यवान को साबित करने की बहस में खपाया है। छात्रों को समाज में आर्थिक चक्र के विकास की कहानी का अतापता नही है, वर्तमान युग की आर्थिक व्यवस्था , टैक्स व्यवस्था कहां से उद्गम हुई, और "टैक्सदाता" से अभिप्राय में मात्र "income tax payer" क्यों नही आना चाहिए , ये सब भारत की वर्तमान पीढ़ी की नौकरशाही को पढ़ाना समझना असम्भव हो चुका है।  और तो और, नौकरशाहों ऐसे उद्दंड भी चुके हैं कि उनके अनुसार टैक्स तो मात्र 1 प्रतिशत आबादी ही देती है! यानी gst और

हिंदुत्ववादियों की क्या शिकायत है इतिहासकारों से

'हिंदुत्ववादी कौन है?' का वास्तविक बिंदु ऐसी ही post में से निकलता है। हिंदुत्ववादी उन लोगों को बुलाया जा सकता है जो अतीतकाल की मुग़ल/मुस्लिम सम्राट के दौरान की घटनाओं से आजतक सदमा ग्रस्त हो कर नाना प्रकार के जलन (jealousy), कुढ़न(grudge) जैसे मानसिक विकृतियां(inferiority complexes) अपने भीतर में पाल रखें हैं। और इन complexes के चलते उनकी वर्तमान काल के इतिहासकारों से ये माँग कर रहे हैं की स्कूली पाठ्यक्रमो में मुग़लों/मुस्लिमों के प्रधानता/महानता के मूल्यांकन को नष्ट कर दें। और फ़िर अपनी इस माँग को प्राप्त करने के लिए कई सारे उलूलजुलूल "तर्क फेंक रहे है" सामाजिक संवादों में। जैसे कि, ऊपरलिखित वाक्य। ये उलूलजुलूल इसलिये हो जाता है क्योंकि मुद्दा ये नही है कि क्या ये सत्य है, बल्कि ये है की क्या जो ज्ञान ये स्कूली किताबो में चाहते हैं, वो इतिहासकारों की दृष्टि से प्रधान(गौढ़) बिंदु का विषय ज्ञान है, या नही? वर्तमान पीढ़ी के इतिहासकारों के अनुसार अकबर की महानता को जानना और समझना महत्वपूर्ण है भावी पीढ़ियों के लिए, क्योंकि अकबर ने जो कुछ योगदान दिये है , (राज्य प्रशासन रचना , ट

आकृति माप का सत्यदर्शन कर सकना भी बोधिसत्व प्राप्त करने के लिए आवश्यक होता है

जब कोरोना संक्रमण से उत्तर प्रदेश, बिहार , दिल्ली में अपार मृत्यु हो रही थी, तब भक्तगणों ने मामले को दबाने के लिए sm पर शोर उठाया था कि, " कितने सारे लोग ठीक भी तो हो कर लौट रहे हैं, मीडिया उनकी बात क्यों नही करता? ये तो negativity फैलाने की साज़िश करि जा रही है। " चिंतन का ये तरीका दिमाग को अफ़ीम खिलाने वाला है। कैसे? संसार में प्रत्येक विषय के दो या अधिक पहलू होते हैं। बोधिसत्व प्राप्त करने के लिए मनुष्य को सत्य परिस्थिति से दोनों पक्षों को तो देखना ज़रूरी होता है, मगर इसका अर्थ ये नही है कि सदैव सभी पक्षों को समान आकृति माप में करके देखना होता है।  कहने का अर्थ हैं की यदि कोई एक पक्ष अन्य से अधिक विराट हो रहा हो, तब सत्य दर्शन के अनुसार उसकी विराटता को देख और पकड़ सकना सही बोधिसत्व होगा।  अगर कोई व्यक्ति सही आकृति माप के दर्शन नही कर रहा हो, या ऐसा नही करने को प्ररित करता हो, तब वो जरूर कोई छलावा कर रहा है। सोचिये, पेट्रोल और गैस के दाम बढ़ने से जनता को हुए कष्टों पर यदि ये कहने लग जाएं कि,  " भाई, दाम के बढ़ने से, महंगाई के आने से ये भी तो देखिये कि उस लोगों को फायदा पहुँ

भाग २ -इतिहासिक त्रासदी के मूलकारक को तय करने में दुविधा क्या है?

 ज़रूरी नहीं है कि इतिहास का अर्थ हमेशा एक ऐसे काल, ऐसे युग का ही लिखा जाये जिसको जीने वाला, आभास करने वाला कोई भी इंसान आज जीवित ही न हो। इतिहास तो हम आज के युग का भी लिख सकते हैं, जिसे जीने और आभास करने वाले कई सारे इंसान अभी भी हमारे आसपास में मौज़ूद हो। और वो गवाही दे कर बता सकते हैं कि ये लिखा गया इतिहास के तथ्यों का निचोड़,मर्म , सही है या कि नहीं। मोदी काल के पूर्व मनमोहन सिंह के कार्यकाल तक का भारत का सामाजिक इतिहास टटोलते हैं। हमारा समाज एक गंगा- जमुनवि तहज़ीब पर चल रहा था। अमिताभ बच्चन मनमोहन देसाई की बनाई फ़िल्म 'अमर-अकबर-एंथोनी' में काम करके सुपरस्टार बन रहे थे। फ़िल्म भी सुपरहिट हो रही थी, और कलाकार अमिताभ भी । शाहरुख खां अपने 'राहुल' की भूमिका में फिल्मों में भी हिट हो रहा था, और फिल्मों के बाहर भी लड़कियों में लोकप्रिय था। इससे क्या फ़ायदा हो रहा था कि सामाजिक संवाद को कि भारत आखिर मुग़लों का ग़ुलाम कैसे बना था? फायदा ये था कि समाज में न्याय और प्रशासन तो कम से कम निष्पक्ष हो कर कार्य कर रहे थे। मीडिया को सीधे सीधे भांड नही बुलाता था हर कोई। सेना के कार्यो पर श्रे

इतिहासिक त्रासदी के मूलकारक को तय करने में दुविधा क्या है?

देखिये, इतिहास में ज्यादा कुछ नही रखा है जिसके लिए हम आपसी संघर्ष करके अपना भविष्य बर्बाद कर लें। मगर संक्षिप्त में संघ के 'हिंदुत्व' पक्ष और विरोधी liberal पक्ष में जो disagreements हैं, वो ये कि संघ कहता है कि हिन्दू लोग बहोत अच्छे,भोले, शांतिप्रिय लोग थे और मुग़लों ने इनकी धार्मिक प्रवृत्ति का फ़ायदा उठा कर आक्रमण करके इनके देश को ग़ुलाम बना लिया। और liberal पक्ष जो की वो भी हिन्दू है, उसका दावा है कि हिन्दू सिर्फ मुग़लों से नही, बल्कि हर एक आक्रमणकारियों से रौंदा गया क्योंकि हिन्दू आन्तरिक पक्षपात,भेदभाव और ऊंच नीच करने वाला , ब्राह्मणी कुतर्कों से संचालित दो-मुँहा समुदाये था, जिसके चलते ये कदापि कोई राजनैतिक और सैन्य शक्ति बन ही नही सकता था। Liberals के अनुसार , जो हुआ इतिहास में, ये तो कर्मो का फल था। हिन्दू क्या है? वास्तव में ब्राह्मणों का फैलाया कुतर्क और धूर्त प्रथाओं का नाम है, ' ब्राह्मण धर्म "(व्यंग), जो ब्राह्मणों को समाज पर वर्चस्व बनाने का षड्यंत्र के समान है। 19वीं शताब्दी में, बाबा अम्बेडकर के संघर्षों से आरक्षण नीति के आने से पूर्व, आज के जो " स

Criticism of the Civil Services in India and what confused role they assume on themselves hampering the proper functioning of the society

The Civil Services in India have been laid on the lines of Caste System only. And they are, without iota of doubt , unique in the world.  The passing of entrance exam to the Civil Services is equitable with the " dwij " event of the Caste System. Once the " dwij " has occurred and the "janeyu dharan" is done, the person is an upper caste for life and forever , and thence he can enjoy all the pleasures even when the rest of the people in the country are crying and dying of poverty, unemployment, calamities. Just like the how the mandir donations feed the priest and these donations guarantee for the Pandit-class of people that their private economy will stay no matter how hard is the drought in the country ,the civil services get their income from public money , and have a guaranteed private economy, no matter how hard is the inflation for rest of every person ! Pandit Nehru has repeated "Casteism" in a new avatar in the foundational roots when lay

आध्यात्मिक अनाथ समाज, साधु बाबा गुरुचंद, और अकादमी शिक्षित गुरु का रिक्त

जिन व्यक्तियों ने छात्र जीवन में नीति (public policy), न्याय (process of justice) और नैतिकता (Conscience based reasoning) नही पढ़ी होती है, उनको इन विषयों पर बातें करने में cognitive dissonance disorder की पीड़ा होती है। ये व्यक्ति बचपन " आध्यात्मिक अनाथ "( spiritual orphan) की तरह जिये होते हैं। ऐसे व्यकितयों से यदि बातें या तर्क करते हुए ऊपरलिखित विषयों का प्रयोग करना पड़ जाये तब उनको लगता है कि सामने वाला high moral grounds ले रहा है, वो कुछ ज़्यादा ही अपने आप को clean, higher moral standards, का समझता है ("महान" बनने की कोशिश कर रहा है ) (और इस तर्क से) दूसरो को तुच्छ समझता है ! 'आध्यात्मिक अनाथ' करीब पूरी आबादी है अमेरिका मनोवैज्ञनिक इन शब्दावलियों का प्रयोग अक्सर करते हैं , जिसमे sense of coherence (बौद्धिक अनुकूलता का आभास ) भी है। उनके अनुसार,इंसानो में thought disorder मनोवैज्ञानिक रोग भी होता है,इंसान को अपनी सोच में संसार, समाज समझने में दिक्कत होने लगती है। इंसान अपनी बुद्धि का प्रयोग करते हैं संसार को समझने में, इसकी राजनीति, इनकी कुटिलता,

हिन्दुओं का देश क्यों सहत्र युगों से रौंदा गया है ?

 दस सदियों से हिंदुओं को रौंदा गया और ग़ुलाम बनाया गया है। क्यों? क्या वज़ह है? A Hindu thugs but another Hindu. एक हिन्दू दूसरे हिन्दू से ही बेईमानी करता है, झूठ बोलता है, धोखाधड़ी करता। हिंदुओं के समाज में सामाजिक न्याय नही है। आपसी विश्वास नही है। और इसलिये इतिहास में कभी भी ,(सिवाय बौद्ध अनुयायी मौर्य वंश शासकों के) हिन्दू कभी भी शक्तिशाली राजनैतिक और सैन्य शक्ति नही बन सके।  मोदी काल में ही जीवंत उदहारण देखिये। EWS आरक्षण  कोटा तैयार करके सवर्णो को भी आरक्षण दे दिया है। और तो और गरीबी सर्वणों की गरीबी रेखा तय करि है 8 लाख रुपये सालाना ! EVM और उससे सम्बद्ध चुनावी प्रक्रिया पर अवैध, अनैतिक कब्ज़ा जमा लिया है। न्यायलय में दशकों से सवर्णो ने अनैतिक कब्ज़ा किया हुआ था, जिसका खुलासा अब जा कर हो पा रहा है , कि जजों की नियुक्ति में क्या जातिवाद घोटाले करते आये हैं दशकों से। मीडिया में जातिवाद का ज़हर भरा हुआ है। जनता को झूठ और गुमराह करने वाले समाचारिक ज्ञान प्रसारित हैं, विषेशतः तब जब ,जिस मामलों में  भाजपा और संघ के आदमी की गर्दन फँसी होती है। RTI को कुचल कर रख दिया है ।अपने से सम्बंधित

"Market पैदा करना" का क्या अभिप्राय होता है

Gym खोलने बनाम Library खोलने के तर्क वाद में आयी एक बात "मार्केट पैदा करो" का अर्थ ये कतई नही होता है कि पेट से पैदा करके लाएंगे ग्राहकों को library के सदस्य बनने के लिए। " Market पैदा करो " का अभिप्राय क्या हुआ, फ़िर? आज जब gym का business करना जो इतना आसान दिखाई पड़ रहा है, सत्य ज्ञान ये है कि आज से पच्चीस सालों पहले ये भी कोई इतना आसान नही था। क्यों? तब क्या था? और फ़िर ये सब बदल कैसे गया? आखिर में gym की सदस्यता के लिए "मार्केट कहां से पैदा" हो कर आ गया है? पच्चीस साल पहले लोग (और समाज) ये सोचता था कि ये सब gym और खेल कूद करके बच्चे बर्बाद ही बनते है। बॉडी बना कर बच्चा क्या करेगा? गुंडागर्दी? वसूली? सेना में जायेगा? या कुश्ती लड़ कर फिर क्या करेगा?  Gym में तो बस मोहल्ले के मवाली, आवारा लौंडे ही जाया करते थे, जिनसे सभ्य आदमियों को डर लगता था। gym के बाहर में ऐसे ही लौंडे bikes पर बैठे हुए जमघट लगाये रहते थे। तब दूर दूर तक के इलाको में जा कर एक आध ही gym मिलता था। फ़िर ये सब बदला कैसे ? यही बदलाव की कहानी ही है " market पैदा करने " की कहानी । ये

नैतिकता तथा व्यापार और चोरी, डकैती, लूटपाट में अन्तर

बौद्ध की बात यह है कि डकैती, लूटपाट, चोरी के जैसे दुत्कर्मों और व्यापार के मध्य में कोई भी अन्य अन्तर नहीं होता है सिवाय नैतिकता और आदर्शों के पालन के। अगर नैतिकता को मध्य से हटा दिया जाये, तब फ़िर आसानी से whitewash करके किसी भी डकैती वाले दुत्कर्म को मेहनत वाला, लगन से किये जाने वाला व्यापार दिखाया जा सकता है। भई, गब्बर सिंह जी अपने गाँव के लोगों को बाकी डाकुओं के क़हर से सुरक्षा देते थे, और उसके बदले अगर थोड़ा से अनाज ले लिए तो क्या ग़लत किया उन्होंने? और फ़िर कितने ही लोगों को रोज़गार भी तो दिया हुआ था, अपने दल में सदस्यता दे कर।  उनके काम में जोखिम कितना था, आप सच्चे दिल से सोचिये । बहादुरी किसे कहते हैं, यह गब्बर सिंह जी के भीतर अच्छे से कूट कूट कर भरी थी। और अगर उसके बदले थोड़ी सी पी ली, मौज़ मस्ती कर ली, बसंती को नचवा लिया, तब इसमें क्या ग़लत किया ? मेहबूबा ओ मेहबूबा तो काम के समय की मीटिंग में होना कोई ग़लत नही है। शहर की डीएम साहिब लोगों की मीटिंग अपने क्या श्रीदेवी के गाने पर डांस करते नही देखा है? मसलन, नैतिकता और आदर्शों को यदि त्याग कर ही दिया जाये तब फ़िर व्यापार और डकैती में बाकी

The थू थू model of decision-making within the Sanghi House

ये तो असल मे भाजपा और संघी व्यवस्था की "खुराक" (भोजन) है। संघी व्यवस्था असल मे थू-थू किया जाने से ही चलती आयी है।    *The थू थू model of functioning within the Sanghi House*  1) सबसे पहले तो कुछ भी औनापौना कर्म कर देते हैं।  2) फ़िर लोगो की प्रतिक्रिया का इंतज़ार करते है।  3) यदि ज्यादा थू थू हो जाती है, तब चुपके से उसमे बदलाव, सुधार या  कि पूरा से वापस (roll back) कर लेते हैं।  लोग थूक कर चाटने को बेइज़्ज़ती का काम मानते हैं। संघियो ने बाकायदा इसे functioning technique बनाया हुआ है। करोना vaccine के तीन दान मोदी जी ने बाकायदा announce किये थे। वो तो जब केजरीवाल ने protocol तोड़ कर public में थू थू कर दी, तब चुपके से बदलाव कर दिया और अब free vaccine देने लगे हैं साथ मे ads दे दे कर वाहवाही लूटने में जुगत लगा रखी है

यूपी के नेताओं की working theory

पता नहीं क्या चक्कर है, मगर यूपी का हर नेता और नेता बनने की महत्वकांशा रखने वाले आदमी, उसमे एक stereotype हरकत देखी जा सकती है, कि- Twitter और Facebook पर कुछ eloquent expressions वाली post करते रहते हैं,  कुछ limited सी vocabulary में, repetititve हो कर, जैसे मानो जैसे कोई good expression सम्बधित किसी intellectual impairment बीमारी से पीड़ित है। Post एकदम संक्षिप्त सी होती है, कुछ भी नवीन नही होता - दर्शन, भावना , वर्णन - कुछ भी। और फ़िर ये पोस्ट शब्दकोश की कंगाली झलकाती से दिखाई पड़ने लगती हैं बौद्धिक साहस (Intellectual Courage) से निर्धन ये नेता , कुछ भी ज्वलंत , उत्तेजनापूर्ण , अथवा विवादास्पद लिखने से डरते है। इनकी नेतागिरी करने की एक सोच और परिपाटी होती है, एक 'working theory', जिसके अनुसार विवादास्पद कथनों और विचारो से बच कर निकल जाने से ही नेतागिरी चमकायी जा सकती है।

Consciousness और Knowledge के आपसी रूपांतरण के प्रति विचार

Consciousness को हम knowledge में transform कर सकते हैं, किसी नये शब्द का अविष्कार करके, जिसके अर्थ में बोध सलंग्न हो। Consciousness can be transformed into a Knowledge by creation of a new Word which may carry within its meaning the Conscious about something. This technique is useful. Because otherwise transfer of Consciousness from one person to another is a difficult task. However Knowledge is transferable easier.

खेल के विषय में भारतवासियों के रुख का एक संक्षिप्त इतिहास

खेलों के प्रति भारत वासियों के आचरण का सांस्कृतिक इतिहास बड़ा विचित्र रहा है। भारत में भी कई सारे खेलों का आरम्भ हुआ है, मगर इनमें से शायद ही कोई अंतराष्ट्रीय स्पर्धा में शामिल किया गया है। चौसर से आधुनिक लूडो को प्रेरणा मिली जो छोटे बच्चों में प्रिय है, मगर ये अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धा में नही होता है। शतरंज काफी समय तक भारतवासियों में प्रिय रहा है, हालांकि ये खेल फ़ारसी मूल का है। एक खेल जो कि अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धाओं में कुछ वर्षो तक पहुंचा, वो था कबड्डी। मगर अधिक प्रिय नही हो सकने पर वो आजकल शामिल नहीं होता है। बरहाल, बात है समाज के रुख की । भारत में खेलो को अधिक सम्मान से नही देखा गया है। चौसर के खेल से स्त्री के अपमान का किस्सा जुड़ा है (द्रौपदी चीरहरण, और राजपाठ को खो बैठने की कहानी) , और इसलिये ये खेल लोगों में हीन भावना से देखा गया। शतरंज से लत लग जाने का सामाजिक दोष जुड़ा हुआ है।  हालांकि खेल का चलन भारतीय समाज में था, मगर ये सब असम्मानित कर्म के तौर पर देखे गये हैं। कहीं कहीं कुछ खेल केवल राजा महाराजों की शोभा माने गये, और प्रजा में आम आदमी खुद ही एक दूसरे का तिरस्कार तथा हतोत्साहि

A Commentary on Punishing of a Govt official

किसी को दंड देना भी एक कला होती है। दंड देना आवश्यक होता है, नहीं तो इंसान उद्दंता करता ही चला जाता है। रोके टोके बिना उसको feedback नहीं मिलता कि उसके कर्म में कुछ ग़लत हो रहा है, और वो ग़लत क्या है। अब, सवाल है कि उचित दंड क्या है, और कैसे दें?  यदि सरकारी अफ़सर आपकी बात नहीं मान रहा हो, या कि आपके साथ न्याय पूर्वक पेश नहीं आया हो, तब उसे दंड कैसे दें? यह पेंचीन्द मगर महत्वपूर्ण सवाल है। यदि सरकारी अफ़सर न्यायपूर्वक अपने आप को प्रस्तुत नहीं करते हैं, तो अब क्या किया जाये?  सरकारी अफ़सर को दीर्घकालीन क्षति करना मुश्किल होता है। उसको केवल नौकरी चले जाने का भय ही एकमात्र तरीका होता है मर्यादा बद्ध (self restraining) करने का। मगर ये काम करना किसी सरकारी अफसर के संग में आसान नहीं होता है। उसकी नौकरी केवल अनुशासन टूटने पर ही जाती है। अनुशासन कैसे टूटता है, कब, यह जान सकना आम आदमी के लिए मुश्किल होता है। सरकारी आदमी के अनुशासन टूटने का खुलासा केवल उसके सहयोगी सरकारी आदमी ही बता सकते हैं।  collegiate से ही तय होता है कि किसी सरकारी आदमी से ग़लती हुई है या नहीं। इसलिये बाहरी आदमी को अनुमान लगाना म

Knowledge अलग चीज़ होती है, और Consciousness अलग

Knowledge अलग चीज़ होती है, और Consciousness अलग।  क्या क्या अन्तर पकड़ सकते हैं , इन दोनों में, आप?  Knowledge और Consciousness को किसी number line की तरह से समझें। knowledge कोई number मात्र है, जबकि consciousness पूरी की पूरी number रेखा है। यानी knowledge को ईंट ईंट करके जोड़ कर के consciousness बनती है।  Knowledge किसी एक दिशा में रखा हुआ एक नम्बर है। यानी, जब आप मात्र किसी एक ही number को देख रहे होते हैं, तब आप को सिर्फ knowledge मिल रही होती है। मगर जब आप दोनों विपरीत दिशाओं के अंकों को देखने लगते हैं, तब आपको पूरी number line दिखाई पड़ने लगती है, यानी अब आपमें consciousness आने लगती है।  नम्बरों के विशेष पहचान वाले वर्ग से आप कोई group बना सकते है, जैसे कि odd numbers , prime numbers, integers। ये ऐसे हुआ कि आप छोटे छोटे knowledge को संग रख कर आप कोई theory बना लेते हैं। मगर theory भी अभी आपको सम्पूर्ण परिचय नही करवाती है विषय से। ऐसा परिचय की आप उस विषय पर एक सिद्ध नियंत्रण करना सीख जाएं, ऐसे जैसे आप ही उसके master हो।   तो theory भी अभी थोड़ा अधूरी होती है। theory मात्र आपके देख

संतुलन - एक बौद्ध विचार

मुझे लगता है कि दलित-हिन्दू(सवर्ण) द्वन्द, शिया सुन्नी झगड़ा, और रोमन catholic - protestant  जैसे द्वन्द का ईलाज़ "संतुलन" में है। हर एक के साथ कहीं कुछ न्याय और कुछ अन्याय हो रहा होता है। यानी हर व्यक्ति कहीं अन्याय झेलता है, तो कहीं न कहीं अन्याय करता भी है। हमें इस विस्तृत प्रक्रिया में छिपे संतुलन को समझना चाहिए। संतुलन अपने आप में भी एक न्याय है - distributive justice । जब भी हम(इंसान लोग) सिर्फ़ अपने ऊपर हुए अन्याय को सोचने लगते हैं, और अपने हाथों हुए अन्याय को देखना बन्द कर देते हैं, तब हम संतुलन को बिगाड़ देने के प्रयास करने लगते हैं। और फ़िर यहाँ से दौर निकल पड़ता है जो हमें जानवर बना कर छोड़ता है। कल news beak करके यूट्यूब चैनल पर मार्कण्डेय काटजू के बारे में एक पोस्ट देख रहा था। बताया गया है कि मार्कण्डेय काटजू के अनुसार इस देश में असल जातिवाद तो ब्राह्नणों ने झेला है। !!!!! भेदभाव तो ब्राह्मणों के संग हुआ है, काटजू के अनुसार। दुराचार ब्राह्मणों के संग किया है दलितों ने । !! सामाजिक समूह के संग अन्याय का ईलाज़ हमेशा "न्याय कर देना" नही है। बात को अतीत में ग़ुम हो

पाश्चात्य संगीतकार elvis preseley का योगदान आधुनिक विश्व को

पश्चिमी जगत के आधुनिक काल के सांस्कृतिक इतिहास में elvis presley का जन्म बहोत महत्वपूर्ण माना जाता है। जैसे 16वी और 17वी शताब्दी में reniassance और reformation सांस्कृतिक इतिहास की महत्वपूर्व काल थे, वैसे ही 20वी शताब्दी में elvis presely का आगमन ! क्यों? ऐसा क्या योगदान दिया elvis ने ? आज हम जब भी बाज़ार जाते हैं तब कोई न कोई music cd यूँ ही आसान दिमाग से, बिना कोई ज्यादा सोच में समय व्यर्थ करे खरीद लेते हैं। क्या आपने कभी सोचा है कि ये music industry का आरम्भ कैसे हुआ है। और तो और, अब आज के युग में "सभी किस्म का" music सुनना और प्रस्तुत करना पसंद किया जाता है। मगर क्या आपको मालूम है कि पहले के युग में ऐसा नहीं हुआ करता था।  पहले भेदभाव और असमानता का युग था। समाज में भेदभाव का चलन था। पश्चमी जगत काले-गोरे के रंगभेद से बहोत अधिक ग्रस्त हुआ करता था। राजनैतिक आयाम में जहाँ गाँधी और लूथर किंग जैसे महान नायक सामाजिक अन्याय के विरुद्ध लड़ाई लड़ रहे थे, वही किसी एक गायक ने अनजाने में अपने सुरों और संगीत से भेदभाव को सांस्कृतिक तौर पर समाप्त करने में भूमिका निभाई थी। इतनी सफलता के साथ,

ब्राह्मणवाद - महर्षि परशुराम की अर्चना के प्रचलन की कहानी

ब्राह्मणवाद के विषय में बात आगे बढ़ाते हुए, प्राचीन वैदिक मिथक कथाओं से इस विषय पर प्रकाश डालते हुए बताये,  आज सोशल मीडिया के माध्यम से ब्राह्मणों का बड़ा गुट, फ़िर से, महर्षि परशुराम के नाम पर अस्त्र धारण कर के अपने अधिकारों और सम्मान/संपत्ति की रक्षा के लिए क्षत्रियों की भांति युद्ध करने और हिंसा करने को खुद को तैयार कर रहा है।  मगर, सच ये है की अभी सं 2000 तक के आसपास तक तो समाज में बहुतायत चलन ये था कि परशुराम जी की तो पूजा ही नहीं करि जाती थी ! परशुराम जी को एक हिंसक, अशांत साधु माना जाता था, जो कि बहोत क्रोधी व्यक्तित्व वाले थे। रामायण में उनकी लक्ष्मण से तूतूमैंमैं का कांड ही जनता में प्रचलित था , वही उनकी छवि हुआ करती थी जनता के बीच में।  इसके अलावा उनका और कोई ज़्यादा महत्व नही था, ये तक भी नही की वो सनातन विचारो के अनुसार एक "अमर" व्यक्ति थे । जनता के बीच परशुराम की छवि  ऐसी थी की वो यूँ ही आजीवन भटकते रहने वाले प्राणी थे, जिन्हें कभी भी मोक्ष की प्राप्ति नही मिलने वाली थी - शायद उनके हिंसक कर्मो के चलते !! उन्होंने अपनी माता का वध किया था, शीश काट कर।  मगर, अब कलयुग चल

ब्राह्मण और बुद्ध विपरीत है एक दूसरे के

तुम डरते हो राम से! ब्राह्मण नही डरता हैं! अगर डरता तो 2 करोड़ की जमीन 18.5 करोड़ में खरीदकर जनता को राम के नाम की चपत नही लगाता! ब्राम्हण तो बस राम का ब्यापार करता है!   ब्राह्मण समाज को आध्यात्मिक तौर पर निर्मित करता है - शोषण किये जाने के लिये, सहन कर जाने के लिए, भ्रष्टाचार को सांस्कृतिक आदत बना देने के लिए। ब्राह्मण समाज में से पाप और पुण्य की दूरियां समाप्त कर देता है, दोहरे मापदंड स्थापित कर देता , vvip संस्कृति को जन्म देता है , भेदभाव ऊंच नीच , आम आदमी-विशेष आदमी की संस्कृति चालू करता है। राम के नाम पर "विशेष आदमी"(vvip संस्कृति/चलन) इन्हीं की हरकतों से चालू होता है।  ब्राह्मण अपनी "wisdom' से perverse और reasonable के बीच का फैसले नष्ट कर देता है। महाभारत में सब उच्च ब्राह्मण -- कृपाचार्य, द्रोणाचार्य बैठे हुए द्रौपदी का चीर हरण देख रहे थे, और भीष्म पितामह को भी दिखावा रहे थे। ये सब दुर्योधन के साथी थे। एकलव्य का अँगूठा कटवाया था, और आज तक उसे न्यायोचित बताते हैं, -- गुरु दक्षिणा ली थी ।  हिंदुओं के प्रधान ईष्ट - राम , कृष्ण - कोई भी ब्राह्मण नही है,

GMDSS Exams : Room setting and environment

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Subramanian Swamy and his opposition to the idea of Secularism

Subramanian Swamy , a brahmin of South Indian origin , would never want us to understand how the socio-cultural-religious idea of SECULARISM connects with the fight of the common people against the dominance of the PREISTLY CLASS - that is, the BRAHMINS The present form of Hinduism is essentially the *Brahminism* - a system , which has it  been laid with such crooked morality - (the right word to speak of it is PERVERSITY ) - that it brings about a dominance of the Brahmin class over the lives of people. The judiciary , the executive and the legislation is actually already dominated by the Brahmins . This is thanks to the BRAHMINCAL MORALITY which works such as to assert that everything that AKHILESH YADAV or LALU YADAV have done in the field of public governance was but JUNGLERAJ whereas whatever YOGI ADITYABATH or NITISH BABU is doing is but NATIONALISM and PATRIOTIC . That kind of thought process , the exploitation of the belief of the common people in the devine powers , and then m

Why is there Narcissism in Hindu faith

  मेरा ख्याल है कि भारत की आबादी मे आत्ममुग्धता इसलिए अधिक है क्योंकि लोगों का यह मानना है कि "घमंड" का सही उपचार होता है विनम्रता ।  "विनम्रता"   इसके अभिप्राय में औसत भारतीय क्या समझता है?  ये एक शोध करने वाला प्रश्न है।  मेरा नज़रिया है कि "विनम्रता" का अर्थ एक आम भारतीय मात्र यहां तक ही समझता है कि दूसरों से अच्छे से बातचीत करना, शायद "आप-आप" करके। लोगों से हँस कर बोलना, जमीन पर बेहिचक बैठ जाना, वो भी तब जब आपके पास बहोत अधिक पैसा हो, तब। खाना खा लेना, गरीब आदमी के जैसे। और उसको स्पर्श कर लेना, कर लेने देना, ख़ास तौर पर गले मिल कर , गले लगा लेना।  भारत के मौजूदा संस्कृति और फ़िल्मी नसीहतों के मद्देनजर यह सब आचरण पयार्प्त होते हैं खुद को "विनम्र" साबित करने के लिए।  औसत भारत वासी मे आत्म-मुग्धता के प्रति चेतना नही है। वो आलोचना सुनना और करना दोनो ही नापसन्द करता है। उसे कतई "आईना देखना " या कि "आईना दिखाना ", दोनों, ही घोर "नीच" अथवा "घमंडी" काम लगते हैं।  औसत भारतीय सदैव ही "प्रशंसा" तथ

To make it madatory or to keep it recommendatory -- A socialist dilemma

I often think if we have ever debated over the mandate on Safety Shoes, the Hand Gloves, and so. It is important that we begin to appreciate why people resist / may resist any attempt to make mandatory any of these 'safety gears'.  1) I think that one broad classification of reasoning will be that 'safety gears' hinder the body movements of the person to whom it has promised to give protection. In many situations, such restriction on his body movements may work to the disadvantage of the person.  2) Marine piloting will require person to be as much light as is possible to aid the climbing of the ladders and the gangway stairs.  3) The piloting company may see a cost on the maintenance of the equipment. Believe me, in the socialist models of the business, there are the Government Clerks sitting as the bosses of the company, and not well informed on the industrial practices. I can tell you, there are Government clerks as the boss who are debating why piloting is essential

Why the LRIT Message 'missed-out' from an approaching ship is to be seen with suspicion than an AIS message getting 'missed-out'

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#Maritime  #Ship  ,#Long_Range_Identification&_Tracking system  #Automatic_Identification_System

Suez Canal blockage and the so-called malpractice of complimenting.

Some guys are jestingly saying that the Suez Canal blockage by that large box ship happened because her Captain refused to give a small box of Marlboro as good-services compliment to the marine pilot who was suppose to help, virtually substitute as the Captain of the ship, and navigate the ship through the Canal .  Well, the trouble these days is that in all the socialists and the Communist countries , the professional services have all been turned into "paid jobs" which are controlled and operated by the Governments. Therefore, all types of practises of complimenting a service, even those which are happening from a voluntary expression of joy for receiving a good quality service, are straightforward perceived as an act of bribery and thereby, the corruption. .  There is the trouble which the Socialist system of Public Administration has brought with it, in the mass psychology .   In the free and liberal Democratic societies, the perception about the act of Complimenting is t

catholics और protestants में क्या भिन्नताएं होती है

 ईसाई धर्म में समयकाल में दो प्रमुख गुटों में विभाजन हो गया था मत-आधार पर।  क्या थे यह मत-आधार, क्या हैं इन दोनों गुटों की समानताएं, और भिन्न्नता , नीचे दिए गए चार्ट में यही ज़िक्र किया गया है (आम भारतीय की रूचि के प्रकाश में ) दो भिन्न गुटों के नाम हैं catholic  और protestants .  catholics  प्राचीन और आरम्भिक समूह का नाम हुआ, जो विभाजन के पूर्व समस्त ईसाई पंथी हुआ करते थे।  विभाजन का मुख्य कारण था चर्चों में बढ़ता हुआ भ्रष्टाचार।  धार्मिक भ्रष्टाचार का अभिप्राय था कि आम जनता को बेवक़ूफ़ बनाया जाता था उनकी दैविक आस्था का अवैध लाभ लेते हुए।  मिसाल के तौर पर :- चर्च में बैठे पादरी समूह  आम जनता  को मुफ्त में चर्च के लिए श्रमिक और कारीगरी योगदान देने के धार्मिक तर्क देते थे।   चर्च के पादरी कोई स्थाई और पूर्व घोषित नियामवली का पालन खुद तो करते नहीं थे, मगर दूसरों को किसी न किसी "ग़लती" का अपराधी बता कर उनके ऊपर धार्मिक पंचायत (inquisition ) बैठा कर उन्हें बेहद अमानवीय दंड देते थे।  आम आदमी को किसी भी साधारण तर्करेखा से यह बूझ सकना असंभव था कि  कब , किस कर्म को, किस हालत में आपराधिक ह

धर्म प्रचारकों और धर्म सुधारकों के मध्य की राजनीती क्रीड़ा

 भारत की साधुबाबा industry में बतकही करने वाले ज़्यादातर साधुबाबा लोग के अभिभाषण एक हिंदू धर्म के प्रचारक(promoter) के तौर पर होते हैं, न कि हिंदू धर्म के सुधारक(reformer ) के तौर पर। अगर आप गौर करें तो सब के सब बाबा लोग सिर्फ़ और सिर्फ़ धर्म की तारीफ़ , प्रशंसा के पक्ष से ही अपनी बात को प्रस्तावित करते हैं, आलोचना(-निंदा) कभी भी कोई भी नही करता है। यह प्रकृति एक प्रचारक (promoter) की होती। इन सब के व्याख्यान बारबार यही दिखाते है, सिद्ध करने की ओर प्रयत्नशील रहते हैं कि "हम सही थे, हमने जो किया वह सही ही था, हमने कुछ ग़लत नही किया"। मगर एक सुधारक की लय दूसरी होती है। सुधारक गलतियों को मानता है; सुधारक का व्याख्यान ग़लत को समझने में लगता है।  दिक्कत यूँ होती है कि सुधारक को आजकल "apolgists" करके भी खदेड़ दिया जाता है। उसके विचारों को जगह नही लेने दी जाती है जनचिंतन में।  वैसे promoter और reforme r के बीच का यह "राजनैतिक खेल" आज का नही है, बल्कि सदियों से चला आ रहा है।  धार्मिक promoters हमेशा से ज़्यादा तादात में रहे हैं धार्मिक reformers के। reformatio