मनगढंत रचा हुआ इतिहास और पुरातत्व विज्ञान से लिखा हुआ इतिहास

इतिहास और पुरातत्व विज्ञान में अंतर भी है और संबंध भी। "इतिहास रचने" की घुड़क मनुष्यों में बहोत पुराने काल से रही है। सभी ने अपने अपने हिसाब से अपना आज का ब्यूरा लिखा था, इस हिसाब से सोचते हुए कि यही लेखन भविष्य काल में पलट के देखे जाने पर "इतिहास" कहलायेगा, और तब हम उस इतिहास में साफ़-सफ़ेद दिखयी पड़ जाएंगे।।
ये सब इतिहास मनगढंत था।

तो, अब सत्य इतिहास कैसे पता चलेगा? कैसे इंसानियत को अपने आज के काल की समाज के तमाम क्रियाएं बूझ पडेंगी? सत्य कारण किसे माना जाये? - ये कैसे तय करेंगे इंसानो के मतविभाजित समूह? ऐसे निर्णयों के लिए तो सत्य इतिहास मालूम होना चाहिए, मनगढंत वाला इतिहास नहीं।

जवाब है --पुरातत्व की सहायता से!

पुरातत्व एक विज्ञान होता है। और वो जब इतिहास लिखता है तब वो मनगढंत को और सत्य दमन को - अन्वेषण करके अलग कर देता है। पुरातत्व ज्ञान जो लिखता है, वो सत्य की ओर खुद-ब-खुद जाता है ।
तो फ़िर कोई भी व्यक्ति लाख बार अलाउदीन खिलिजि और पद्मावती लिख के इतिहास लिख ले, एलेक्सजेंडर और पोरस का इतिहास लिख ले, ग़ज़नी और पृथ्वीराज चौहान का इतिहास लिख ले, चाणक्य और विष्णुगुप्त का इतिहास लिख के "इतिहास रच ले",
मगर पुरातत्व विज्ञान खोज ही लेता है कि सत्य वाला इतिहास क्या था , और मनगढंत क्या ।

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