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Showing posts from December, 2018

The effects of Helmet laws on the Intellectual courage of liberated people

this kind of video is custom-generated just to spread scare ! Think critically, if u may, you should notice that Helmet is a mitigating device, not a preventive device. The better action is the preventing action, not the curative or mitigating action. A helmet makes ZERO contribution in preventing an accident. The helmet, may , IF AT ALL, come of use POST AN ACCIDENT, not before an accident. ___-____+____-___+____- Sometimes there is no actual horror in the story. It is only the work of cameraman by shaking the camera, taking some acute angle shots, and then the sound editors adding the background score , which give a feeling of scare. The Helmet wearing "inspirational" videos are in the same line. The logic of un-avoid-ability of the helmet device has never been found. The Video-makers generate them only from their own imaginary stories. One can create such "inspirational" stories for other devices as well -like, for driving gloves, the windsheeter jackets, the

लोक सेवा भर्ती में घटाई गयी उम्र

अब लोक सेवा की भर्ती की उम्र घटाने से देश का कौन सा भला हो जाने वाला है? एक सेवादार लोकप्रशासन किसी भी लोकतांत्रिक समाज की बुनियादी ज़रूरत है। मगर जिस तरह की अजब-गज़ब आदेश हमारे देश की सरकारें देती रहती है - जैसे कि हाल का आदेश जनता के कंप्यूटर डाटा का बे-रोकटोक ताका झाँकी, और बढ़ती महंगाई में बार बार भाजपा-कांग्रेस के कुचक्र में फँसता हुआ राजनैतिक विकल्प,-- तो आखिर आयोग में भर्ती की उम्र को कम कर देने से क्या मुक्ति मिलेगी आम आदमी को? लोकसेवा आयोग से ज्यादा तो जनता और मिडिल क्लास को यह बात समझनी पड़ेगी की लोकसेवक लोग आखिरकार समाज के आर्थिक पटल पर production से जुदा लोग है, जो की आखिरकार खाते तो हैं professionals, agriculturist और businessmen के जमा कराये टैक्स से ही हैं। तो फिर हम क्यों यह उम्मीद करें की लोक सेवा वाले कभी भी एक real solution देंगे समाज में कुप्रशासन और बढ़ती महंगाई के? Fake Reasonings की ही तरह Fake Solutions भी होते हैं। प्रबंधन शास्त्रियों के द्वारा दी जाने वाली मिसाल Dakota Indians Dead Horse Theory एक समूचा उदाहरण हैं की कैसे लोक सेवक देश में बढ़ती सड़क दुघर्टनाओं

Loyalty versus Dharma :- Challenges due to varying standards in the Indian society

They surely don't see it as a war between Good and Evil, truth and lie, righteousness and wrong, They see it as loyal versus traitors ! And that may best explain why people of this country fail to unite as one nation. There is a thread missing,  that of Morality , which should be understood in terms mutually acceptable. And that is because the best string that ties the members of a society into oneness is the thread of Morality . Morality connects with Conscientiousness. Loyalty unfortunately connects through the surrender of Voice of Reason and Voice of Conscience. Loyalty leads to bondage and Slavery . They fail to understand that.

What are the different standards of Trust in the contemperory Indian society

Most Bhakts think that Trust is an emanation of Heart, a kind of Emotion which comes when someone have devotion towards something. Of course , because they think so, and that is why they are called out as Bhakts . सभी भक्त यह समझते हैं की विश्वास (Trust) एक उत्सर्जन है मानव हृदय का, एक प्रकार की भावना है जो की तब प्रवाहित होती है जब इंसान किसी अन्य व्यक्ति में अपनी श्रद्धा डालता है। जाहिर है की ऐसे लोगों को तभी ही भक्त पुकारा गया है। -----____++++______----- Trust यानी विश्वास के अलग अलग अभिप्राय होते हैं भक्त वर्ग और secular वर्ग में। असल में trust के प्रति यह अलग अलग दृष्टिकोण वही है जो की आस्तिक और नास्तिक के विवाद केंद्र में है; जो sacramentalist और secular के विवाद के केंद्र में है, जो rationalism और superstition के केंद्र में हैं। ज्यादातर आधुनिक विज्ञान में trust मस्तिष्क के चिंतन से निकलता है,  इंद्रियों के परीक्षण से ही प्रमाणित माना गया है। पुराने युग में , जब ज्ञान के शोध इतना गहरा नही हुआ करता था, तब विश्वास एक भावना हुआ करती थी। भक्त वह वर्ग है जो आज भी tr

तीन बातें याद रखें



तानाशाही और ज़मीदारी प्रशासन पद्धति एक नैसर्गिक प्रबंधन कला है

ऐसा सोचना गलत है की प्रबंधन सीखने के लिए इंसान का पढ़ा लिखा होना ज़रूरी है। प्रबंधन के तमाम पद्धितियों में ज़मीदारी वाला तरीका तो हर इंसान नैसर्गिक तौर पर जानता है। ज़मीदारी पद्धति में जोर जबर्दस्ती, bullying, तथकथित indiscipline की सज़ा, तिकड़म बाज़ी, धूर्तता-मक्कारी, सारे दुर्गुणी व्यवहार एक मान्य युक्तियाँ होती है प्रबंधन करने की। बल्कि पढ़ाई लिखाई की ज़रूरत तो दूसरे उच्च मानसिक स्तर के प्रबंधन को सीखने के लिए ही होती है। जिसमे की आधुनिक प्रजातांत्रिक प्रबंधन पद्धति खास है। वरना तो अनपढ़ता या ' देहाती गिरी ' की भी अपनी प्रबंधन पद्धति होती है- तानाशाही। देहाती गिरी इसलिए, क्योंकि अनपढ़ता देहात(=गाँव) में सहजता से मिलती है, वहां जीवन यापन में अनपढ़ता कोई  बाधा नहीं होती है। कई सारे प्रबंघकिये कहावते जो हम अक्सर सुनते पढ़ते रहते हैं, वह वास्तव में देहाती प्रबंधन व्यवस्था में ही लागू होती है। जैसे Wheel that makes the loudest noise gets the largest grease . तानाशाही "देहाती" पद्धति में ही किसी प्रकार के व्यवहार को प्रसारित करने का एक वजह कारन यह भी होता है की " Managemen

राजनीति से ऊपर उठाने की ज़रूरत सिर्फ नेता नही, जनता की भी है

👆👆✍ यह ऊपर लिखा मैसेज व्हाट्सएप्प पर कही से त्वरित हो रहा है। अगर बात सच भी है, तो भी एक बात हर एक भारतीय को सोचनी चाहिए। * वह यह कि हम लोग कब तक ऐसी नाकामियों को कभी भाजपा का और कभी कांग्रेस पार्टी की नाकामी सिद्ध करने में अपना दम लगते रहेंगे?* ऐसी नाकामियां किसी राजनैतिक पार्टी की नही, देश की होनी चाहिए जब देश में महंगाई ताबड़तोड़ बढ़ती जाए और एक दिन बैंकिंग प्रणाली का भी भट्टा बैठ जाये तो। अगर यह सब गुज़र जाए तो हमे राजनैतिक पार्टी की व्यवस्था से ऊपर उठ कर अपने तंत्र का मुआयना करने पर ध्यान देना होगा क्योंकि तंत्र तो दोनों ही पार्टियों को एक समान मिला था। तो फिर कैसे तंत्र खुद में विफल हो गया कि ऐसी चालबाजी करने में भाजपा अकेली, या कांग्रेस पार्टी अकेली, या की दोनों ही पार्टियां आपसी किसी मिलिभगति मे सफल हो गयी? आखिर खामियाजा तो भारत के नागरिक की जेब से जाएगा? आर्थिक स्वतंत्रता ही तो राजनैतिक स्वतंत्रता और जीवन मुक्ति का प्रथम गणतव्य स्थल होता है। जब इतनी बड़ी आर्थिक त्रासदी घटती है तब ही हम सब लोग आर्थिक ग़ुलाम बनते है , और तब हम और ज्यादा भाजपा-दोषी-कांग्रेस-दोषी के खेल में फँसते ह

संविधान के ढांचे में ही गड़बड़ होने से नौकरशाही बन जाती है अल्लाद्दीन का चिराग

एक बार यदि हम इस सच को समझ लें की गड़बड़ी के बीज संविधान में ही बोये हुए हैं, और वह क्या हैं, तब इस सच के ग्रहण से अलग ही logic और विचारधारा प्रफुल्लित होने लगेगी, जिसके अलग ramifications होंगे। उदाहरण के लिए, आप केजरीवाल जी से लोकपाल की मांग को किनारे रखने की बात सहर्ष करने लगेंगे।।आप को समझ आ जायेगा कि अगर सिसोदिया जी को यूँ ही स्कूलों का निर्माण और जैन जी को मोहल्ला क्लीनिक खुलते देखना है तो एकमात्र तरीका यही हैं की इन लोगों को सत्ता में बनाये रखने के लिए वोट दो। आप यह भी समझ जाएंगे की मात्र निर्माण हो जाने से सिसोदिया जी के स्कूल और सत्येंद्र जैन जी के क्लीनिक देश निर्माण में योगदान देंगे यह आवश्यक नही है। क्योंकि जब भी सत्ता पलटेगी, वापस इनको ध्वस्त भी आसानी से किया जा सकता है।  यह सब भारत के संविधान के चौखटे में हो रहा है। यहाँ निर्माण से ज्यादा आसान है ध्वस्त कर देना। यहां नौकरशाही एक लावारिस पड़े अल्लादिन्न का चिराग की तरह है, जिसकी मर्ज़ी ही अंतिम सच है जो कि कुछ भी काम को हो जाने का तिलिस्मी भ्रम प्रदान करता रहता है आदमियों की आँखों में। सच यह है कि चिराग के जिन्न की मर्ज़

नौकरशाही अधीनस्थ समझौते में रहती है राजनेताओं के संग

यूपी पुलिस इत्मीनान से बोलती है कि वह गौहत्यारों को पकड़ने की प्राथमिकता रखती है। अब बात को समझने के लिए न ही कोई "UPSC की तैयारी"  वाला हदों का ज्ञान चाहिए, न ही कोई राकेट साइंस लगेगी की राजनेताओं और नौकरशाह के बाच में शक्ति-संतुलन किस ओर झुका हुआ है, और क्यों और कैसे ऐसा हुआ है। यह पहली बार नही है पुलिस या किसी नौकरशाह की खुद ' कर्तव्य परायणता " की इज़्ज़त खराब हुई है राजनेता के आगे। इससे पहले उन्नाव कांड में एक साल लग गए FIR ही दर्ज करने में। कठुआ में यही "कर्तव्य परायणता "की इज़्ज़त लगी थी पुलिस की। सुनन्दा केस में सब छुट्टी पर भागने के चक्कर मे लगे रहे। dk ravi कर्नाटका IAS कांड में यही दिखा। सोहराबुद्दीन कांड और गुजरात के हालात तो पूछिये ही नही। जब पुलिस या कहें तो पूरी नौकरशाही का मुखिया- भारत का राष्ट्रपति- खुद ही एक पांच वर्षीय नौकरी वाला कोई पुराना, मार्गदर्शक मंडल वाला राजनेता हो, और उसके पद का चुनाव भी संसदीय लोगो को हाथों में बागडोर हो-- तो नतीजे यही मिलना तयशुदा है। अब यह गड़बड़ खुद संविधान में ही बोई हुई है।

आखिर कौन सा नया व्यावसायिक कौशल खोज निकाला है सेवानिवृत नौकशाही ने?

सेवानिवृत्ति के बाद नौकरशाहों को आजकल भारतीय उद्योग घराने बहमुल्य वेतन पर contract सेवा में लेने लग गये हैं। सोचने वाली बात है की ऐसा कौन सा professional skill set होता है इन सेवानिवृत नौकरशाहों में की उनकी इतनी कीमत आंकी जाती है? शायद political manipulatuion , bribery और fool proof contractual scandal कर लेना भी अपने आप में एक professional skill माना जाने लगा है। वरना आखिर ऐसा कौन सा बाज़ार में चलने वाला कौशल इज़ाद कर लिए है service class लोगों ने ? किसी समय दुनिया के इतिहास में रसायन शास्त्रियों के कौशल ने साबुन बनाने के अपने कौशल से दुनिया का प्रथम multi national corporation दिया था - lever brothers। वर्तमान काल में information technology वालों ने आधुनिक दुनिया को silicon valley दी, बंगलुरु दिया।  मगर अब हज़ारो सालों की ग़ुलामी से तथाकथित ताज़ा ताज़ा "आज़ाद " हुए भारतीयों ने अपने आप में एक नया ही professional skill सेट खोज निकाला है जो की शायद न तो किसी कॉलेज में पढ़ाया जा सकता, और न ही एक इस खास पेशेवर बिरादरी के बाहर कोई आसानी से सीख ही सकता है -- manipulation

A comparison of the Indian Politico Adminitrative system

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