तानाशाही और ज़मीदारी प्रशासन पद्धति एक नैसर्गिक प्रबंधन कला है

ऐसा सोचना गलत है की प्रबंधन सीखने के लिए इंसान का पढ़ा लिखा होना ज़रूरी है। प्रबंधन के तमाम पद्धितियों में ज़मीदारी वाला तरीका तो हर इंसान नैसर्गिक तौर पर जानता है। ज़मीदारी पद्धति में जोर जबर्दस्ती, bullying, तथकथित indiscipline की सज़ा, तिकड़म बाज़ी, धूर्तता-मक्कारी, सारे दुर्गुणी व्यवहार एक मान्य युक्तियाँ होती है प्रबंधन करने की।
बल्कि पढ़ाई लिखाई की ज़रूरत तो दूसरे उच्च मानसिक स्तर के प्रबंधन को सीखने के लिए ही होती है। जिसमे की आधुनिक प्रजातांत्रिक प्रबंधन पद्धति खास है। वरना तो अनपढ़ता या 'देहाती गिरी' की भी अपनी प्रबंधन पद्धति होती है- तानाशाही। देहाती गिरी इसलिए, क्योंकि अनपढ़ता देहात(=गाँव) में सहजता से मिलती है, वहां जीवन यापन में अनपढ़ता कोई  बाधा नहीं होती है।
कई सारे प्रबंघकिये कहावते जो हम अक्सर सुनते पढ़ते रहते हैं, वह वास्तव में देहाती प्रबंधन व्यवस्था में ही लागू होती है। जैसे Wheel that makes the loudest noise gets the largest grease . तानाशाही "देहाती" पद्धति में ही किसी प्रकार के व्यवहार को प्रसारित करने का एक वजह कारन यह भी होता है की "Management  wants  it "

भई, अब देहाती प्रबंधन पद्धति में ही तो निर्णय सिद्धांतों के बाहर "अन्य कारणों" के आधार पर होते हैं। तो फिर ज्यादा हो-हल्ला करना भी एक "अन्य" कारण दे सकता है। प्रजातांत्रिक प्रबंधन पद्धति में चलने के लिए सिद्धांत विकसित करने पड़ते हैं, जो की तमाम निर्णयों की भूमध्य रेखा का कार्य करते हैं। तो यहां हो-हल्ला , जोड़ जुगत जैसे कारण तो ज़मीदारी प्रशासन पद्धति में ही हो सकते हैं , जबकि प्रजातन्त्र पद्धति में किसी निर्णय के कारण सिद्धांत ही होते है।
इस तरह से देहाती प्रबंधन प्रद्धति की अपनी खुद की प्रबंधकीय सूत्रों की विस्तृत सूची बनायी जा सकती है। हमारे देश में सबसे प्रचुरता से दिखने वाली प्रबंधकीय पद्धति यही वाली है

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