What are the different standards of Trust in the contemperory Indian society
Most Bhakts think that Trust is an emanation of Heart, a kind of Emotion which comes when someone have devotion towards something.
Of course , because they think so, and that is why they are called out as Bhakts.
सभी भक्त यह समझते हैं की विश्वास (Trust) एक उत्सर्जन है मानव हृदय का, एक प्रकार की भावना है जो की तब प्रवाहित होती है जब इंसान किसी अन्य व्यक्ति में अपनी श्रद्धा डालता है।
जाहिर है की ऐसे लोगों को तभी ही भक्त पुकारा गया है।
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जाहिर है की ऐसे लोगों को तभी ही भक्त पुकारा गया है।
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Trust यानी विश्वास के अलग अलग अभिप्राय होते हैं भक्त वर्ग और secular वर्ग में।
असल में trust के प्रति यह अलग अलग दृष्टिकोण वही है जो की आस्तिक और नास्तिक के विवाद केंद्र में है; जो sacramentalist और secular के विवाद के केंद्र में है, जो rationalism और superstition के केंद्र में हैं।
ज्यादातर आधुनिक विज्ञान में trust मस्तिष्क के चिंतन से निकलता है, इंद्रियों के परीक्षण से ही प्रमाणित माना गया है।
पुराने युग में , जब ज्ञान के शोध इतना गहरा नही हुआ करता था, तब विश्वास एक भावना हुआ करती थी। भक्त वह वर्ग है जो आज भी trust को वैसे ही समझता है। जाहिर भी है, आप खुद महसूस कर सकते हैं की भक्त वर्ग में आधुनिक शैक्षिक योग्यता कम है।
पुराने युग में , जब ज्ञान के शोध इतना गहरा नही हुआ करता था, तब विश्वास एक भावना हुआ करती थी। भक्त वह वर्ग है जो आज भी trust को वैसे ही समझता है। जाहिर भी है, आप खुद महसूस कर सकते हैं की भक्त वर्ग में आधुनिक शैक्षिक योग्यता कम है।
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Try imagining how a Bhakt would solve a Mathematics question :- Prove that 2 is the only even number which is also a prime number .
Try imagining how a Bhakt would solve a Mathematics question :- Prove that 2 is the only even number which is also a prime number .
A Bhakt might just write for an answer ,
" 2 IS the only even prime number , Trust me"
" 2 IS the only even prime number , Trust me"
And if his answer is marked wrong by the examiner, he will proceed only to accuse the examiner "of not having trust in him". Maybe some of the Bhakts even go on to accuse the examiner of being "a traitor", "gaddar".
For the unintiated, there is a due logical proof even to this simple looking statement in the mathematics. You can easily search it out on the internet.
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The question of having Trust or NOT having Trust on the Courts is being raised by those who themselves do not know on what principles the judiciary functions and what are the Procedural laws.
A logical man would work by demonstrating the correctness or the mistakes of the judicial process, instead of pleading to the people to accept or reject the court's judgement
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The question of having Trust or NOT having Trust on the Courts is being raised by those who themselves do not know on what principles the judiciary functions and what are the Procedural laws.
A logical man would work by demonstrating the correctness or the mistakes of the judicial process, instead of pleading to the people to accept or reject the court's judgement
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Based on their culturally ingrained judicial tendencies, the present population of India can be categorised into two broad blocks.
Based on their culturally ingrained judicial tendencies, the present population of India can be categorised into two broad blocks.
TYPE A : the Sacarmentalist type:- who use the yardstick of TRUST to accept or reject a proposition.
TYPE B : the Secularist type: who use the yardstick of SENSORY DEMONSTRATION to accept or reject a proposition.
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Trust जब भी भावना बन जाता है, तब वह शोध गंगा के प्रवाह को रोक देता है, ज्ञान का बहता पानी थम जाता है, उसमे काई जमने लगती है।
शोध, अन्वेषण और अविष्कार में ही ज्ञान का निवास है। trust जब भावना बन जाता है तब इन्ही प्रक्रियों को बंधित कर देता है। trust के तमाम स्वरूप faith, loyalty, belief सब का यही असर है इंसानी समाज पर। एक तरफ जहां इनका फायदा यह है की वह मन मस्तिष्क को शांति प्रदान करते हैं, जीवन की अनिश्चित का सामना करने का साधन प्रदान करते हैं, वही इनका नुकसान यह है की समाज की बौद्धिक, आर्थिक, मानवीय प्रगति को रोक देते हैं।
Trust जब भी भावना बन जाता है, तब वह शोध गंगा के प्रवाह को रोक देता है, ज्ञान का बहता पानी थम जाता है, उसमे काई जमने लगती है।
शोध, अन्वेषण और अविष्कार में ही ज्ञान का निवास है। trust जब भावना बन जाता है तब इन्ही प्रक्रियों को बंधित कर देता है। trust के तमाम स्वरूप faith, loyalty, belief सब का यही असर है इंसानी समाज पर। एक तरफ जहां इनका फायदा यह है की वह मन मस्तिष्क को शांति प्रदान करते हैं, जीवन की अनिश्चित का सामना करने का साधन प्रदान करते हैं, वही इनका नुकसान यह है की समाज की बौद्धिक, आर्थिक, मानवीय प्रगति को रोक देते हैं।
ईश्वर शायद दोनों जगह बसता है। हालांकि faith वाले लोग समझते हैं की ईश्वर सिर्फ आस्था में ही निवास करता है। मगर एक फिल्म Oh My God अच्छे से समझती है की ईश्वर दोनों ही जगहों पर है।
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