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Showing posts from December, 2019

Democractic Systems and mental health issues of leadership

One peculiar threat that looms on a Democracy comes from the unfamiliar department of Psychiatry. People who have anti-Social and aggressive , dominating temperament are better at rising in certain  roles of leadership  The trouble is that they are by nature itself anti-democractic, and they can exploit the easy climb of Secular Humanism to reach on top, and then destroy the very ladder by which they had climbed to top. Such people, who have aggressive dominating temperament, are poor at understanding the Rights of people - Constitutional , legal and human . Infact this very trait is what brings them the success to reach to role of leadership.  But can imagine the havoc they bring to the organisation and the society once they come to top ? They kill their own gurus and choke up the freedoms of the country, while remaining in denial about the consequences of their decisions Impeachment of the POTUS is a telling tale. He lies through his teeth, had a conduct unbecoming of a Presi

इंटरनेट search, और कानून के उच्चारण की घटना पर एक विचार लेख

एक विधिशात्र विषय का सवाल सामने आया है जब हाल फिलहाल के घटनाक्रम में दिल्ली के जामिया मिलिया विश्वविद्यालय और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्रों पर पुलिस ने लाइब्रेरी में प्रवेश करके "हमला" कर दिया था। जानेमाने फ़िल्म क्षत्रे की हस्ती श्री जावेद अख़्तर जी ने एक ट्वीट के माध्यम से अपने विचार रखे कि भारत भूक्षत्र के कानून के अनुसार पुलिस को बिना अनुमति प्रवेश करके कार्यवाही करने प्रतिबंधित होगा। उनके ट्वीट के एक जवाब में किसी पुलिस अधिकारी संदीप मित्तल (आई पी एस) ने जावेद जी पर व्यंग कसते हुए पूछा कि हे कानून के श्रेष्ठ ज्ञाता जरा यह भी बता दो की किस कानून की किस धारा के अनुसार पुलिस को प्रतिबंधित किया गया है। इसके कुछ ही पलों उपरांत जामिया विश्वविद्यालय के कुलपति ने भी एक ट्वीट करके अपनी मांग रखी कि उनकी अनुमति के बिना करि गयी पुलिस की कार्यवाही की जांच होनी चाहिए। * सवाल का दिलचपस पहलू इन सब घटनाक्रम के बाद आता है ।* बहोत सारे लोगो ने जावेद अख्तर और संदीप मित्तल के बीच हुए अपवाद में उठे सवाल का सही जवाब जानने की कोशिश करि है। The Lallantop करके एक जानीमानी व

Stop-work Industrial culture and Clerk-led bureaucracy

A _* Stop Work Obligation *_ cannot co-exist with the * _Refused to Obey Orders_ * What it means is that if the superior is more of a Discipline-psychopathic person, then every event where a shipboard personnel has acted his power to call STOP_WORK because he felt something was unsafe, the superior Disciplinarian-person will rather see the act of STOP-WORK as a REFUSAL to obey orders. He will then relay the message to the management, and his immediate seniors, that an act of INDISCIPLINE has occurred from that person. So, here is the dilemna of an organization, where the officer staff, largely of *Clerk* set-up, not much familiar with the Industrial practices. It will rather go after the person who had acted his good judgment to save the loss of his own life, or maybe the property of the organization, or of someone else.

बलात्कार - क्या इसका आरम्भ कपट कारी राजनीति और कुप्रशासन से नही है ?

कहते हैं की ऊपर वाले की लाठी में आवाज़ नही होती है। घटनाओं के होने के क्रम में ऊपर वाले की लाठी के होने की पहचान आपको और हमे खुद ही करनी पड़ेगी। 21 october के चुनावों के उपरान्त महाराष्ट्र और हरियाणा में जो कुछ राजनैतिक उठापटक चली सरकार बनाने को लेकर, वहां से शुरू करिये अपने प्रयास , लाठी की आवाज़ को सुनने के। आलोचकों ने दलील दी थी की जिस तरह से लोगों को अपराधी घोषित करके जेल में रखा जाता है, और फिर जिस तरह से वास्तविक अपराधियों को राजनैतिक जरूरतों के चलते आज़ाद कर दिया जाता है, तो फिर दिसम्बर 2012 वाला निर्भया प्रकरण का आरम्भ वही से होता है। जब राजनीति इतनी छलावा बन जाती है की वह सत्य और न्याय को ही समाज में से ख़त्म कर देती है, तब पुलिस और प्रशासन का खुद ही आये दिन बलात्कार ही हो रहा होता है राजनेताओं के हाथों। और तब भीषण रूप लेते हुए एक दिन निर्भया घट जाता है। भक्त लोगों ने आलोचकों की निंदा करि की यह लोग तो कुछ भी कही से भी जोड़ देते हैं, बिना तर्क के। यही सब कुतर्क है आलोचकों के। तब तक आंध्रप्रदेश की बलात्कार घटना घट गयी। आलोचकों ने इशारा किया कि देखो भक्तों, तुम्हें जवाब मिल गया न

हैदराबाद encounter प्रकरण, भारत के जनजाति समूह और आक्रोश में पलती हुई क्रूरता, अमानवीयता

आज़ादी से पहले , अंग्रेजों के ज़माने में criminal tribe act हुआ करता था। अंग्रेजों ने जब भारत की सभ्यता पर अध्ययन किया था, तब उन्होंने पाया था कि भारत में बहोत सारी ऐसी जातियां अभी भी बाकी थीं जो कि जंगली, वन मानव ही थे। वह असभ्य थे, क्योंकि उनके यहां धर्म और संस्कृति ने अभी जन्म नही लिया था।  आश्चर्य कि बात नही है, क्योंकि देश में आज भी उनके अस्तित्व के प्रमाण के तौर पर अंडमान निकोबार द्वीप समूह पर येरवा और चौरा जनजाति मौजूद है, जो दुनिया की सबसे प्राचीन जनजातियां है और आज भी मानव भक्षण करती हैं। अभी 2019 के आरम्भ में ही उन्होंने एक अमेरिकी नागरिक को मार कर भक्षण कर लिया था, (cannibalism) जिसकी सूचना देश के तमाम अखबारों में प्रकाशित हुई थी। बात यूँ है की आज़ादी से पूर्व यह लोग सिर्फ अंडमान द्वीप समूह तक सीमति नही थे।  यह भारत की मुख्य भूमि, केंद्रीय भारत के पठार के जंगलों में भी मौजूद थे। इनकी आबादी और संख्या कहीं अधिक थे आज के बनस्पत। आप इनके अस्तित्व के जिक्र रामायण और महाभारत के ग्रंथों में भी ढूंढ सकते हैं। वर्तमान की आरक्षण नीति भी उसी तथ्य के इर्दगिर्द में से ही उपजी है।  कई जगह

जर्मनी के बच्चे क्यों अधिक बुद्धिमान होते हैं भारतीय बच्चों के मुक़ाबले

https://www.facebook.com/palaknotes/videos/426884821520114/ जर्मनी के बच्चे क्यों अधिक बुद्धिमान होते हैं भारतीय बच्चों के मुक़ाबले : १) सम्पूर्ण निंद्रा , *Proper Sleep* २) कहानी सुनने  की आदत व क़ाबलियत  - *Listening to Stories* ३) प्रत्येक बच्चे को उसकी क्षमता के अनुसार पहचानना व विक्सित होने का अवसर देना - *All kids are unique* ४) पदार्थवादी नहीं है , भावनाओं को महसूस करना व भावना के अनुसार  प्रतिक्रिया करना शुरू से ही सिखाया जाता है - *Creating Memories* ५) बच्चों को शुरू से ही सिखाया जाता है की पदार्थ/वस्तु से प्रेम नहीं करें, उनका त्याग करना सीखें - *Sharing* 6) स्वयं को व्यस्त करना , बिना किसी पैतृक नियंत्रण के , पैसे की कदर, अर्थशास्त्र का सामाजिक ज्ञान सहज उपलब्ध है - *Self Engagement*