हैदराबाद encounter प्रकरण, भारत के जनजाति समूह और आक्रोश में पलती हुई क्रूरता, अमानवीयता
आज़ादी से पहले , अंग्रेजों के ज़माने में criminal tribe act हुआ करता था। अंग्रेजों ने जब भारत की सभ्यता पर अध्ययन किया था, तब उन्होंने पाया था कि भारत में बहोत सारी ऐसी जातियां अभी भी बाकी थीं जो कि जंगली, वन मानव ही थे। वह असभ्य थे, क्योंकि उनके यहां धर्म और संस्कृति ने अभी जन्म नही लिया था।
आश्चर्य कि बात नही है, क्योंकि देश में आज भी उनके अस्तित्व के प्रमाण के तौर पर अंडमान निकोबार द्वीप समूह पर येरवा और चौरा जनजाति मौजूद है, जो दुनिया की सबसे प्राचीन जनजातियां है और आज भी मानव भक्षण करती हैं। अभी 2019 के आरम्भ में ही उन्होंने एक अमेरिकी नागरिक को मार कर भक्षण कर लिया था, (cannibalism) जिसकी सूचना देश के तमाम अखबारों में प्रकाशित हुई थी।
बात यूँ है की आज़ादी से पूर्व यह लोग सिर्फ अंडमान द्वीप समूह तक सीमति नही थे। यह भारत की मुख्य भूमि, केंद्रीय भारत के पठार के जंगलों में भी मौजूद थे। इनकी आबादी और संख्या कहीं अधिक थे आज के बनस्पत। आप इनके अस्तित्व के जिक्र रामायण और महाभारत के ग्रंथों में भी ढूंढ सकते हैं। वर्तमान की आरक्षण नीति भी उसी तथ्य के इर्दगिर्द में से ही उपजी है। कई जगह तो यह सभ्यता में मिश्रित हो कर सभ्य हो गये, और बाकी जगह में यह लोग नये युग के "विकास" और शहरीकरण के दबाव में यह लोग jeans और shirt पहन कर गोचर हो गये, हालांकि सभ्यता और संस्कृति और धर्म से अबोध बने हुए हैं। यह मानव करुणा से अपरिचित है, और प्राचीन आदिमानव सभ्यता से अधिक वास्ता रखते हैं। भारत की आज़ादी की घटना ने इन्हें आसानी से मुख्य धारा में प्रवेश दे दिया, बिना शिनाख़्त किये है। इनमें अंतर्मन अभी इतना विकसित नही हुआ है, यह लोग अपराध को न तो जानते है, न ही किसी अपराध कानून का पालन करते है, भारतीय दंड संहिता को तो भूल ही जाइये। यह लोग व्यापार , कृषि , पशुपालन से भी दूर हैं,और किसी भी नये युग की सभ्यता के कानून को नही जानते हैं।
अंगरेज़ों ने जो काला पानी की सज़ा ईज़ाद करि थी, दूर टापू पर ले जा कर क़ैद में रखने वाली, उसकी मंशा शायद इन्हीं लोगों से प्रेरित थी। सभ्यता के महत्व को इंसान तब तक नही समझता है जब तक की और अधिक क्रूरता, यातना और दुख को नज़दीक से नही देखता है। अंग्रेज़ मानते थे की उनकी ईश्वरीय उत्तरदायित्व है की वह असभ्य लोगों को भगवान की शरण में ला कर सभ्यता से परिचित करवाये, it is a White Man's duty to civilize the world.
हुआ यूँ कि बाद में अंग्रेजों ने कालापानी की सज़ा में राजनैतिक कैदियों को भी भेजना शुरू कर दिया था। तो बस, आज़ादी के बाद जब राजनैतिक कैदी लोग आज़ाद किये गये, तब उनके संग में ही यह आदिमानव वनमानुष लोग भी आज़ाद हो लिए, जंग ए आज़ादी के सिपहसालार के भ्र्म में होते हुए।
विशाल भारत की तमाम समुदायों का हिसाब किताब आज भी आम भारतीय की जानकारी से ओझल है। इसलिये हम यह सब ज्ञान न तो जानते है, न ही कुछ आवश्यक प्रशासनिक सुधार करते हैं। उनको दंड देने के चक्कर में खुद भी असभ्य और मानव करुणा से दूर चले जा रहे, अमानव बनते जा रहे हैं। हमे सचेत होने की ज़रूरत है।
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