बलात्कार - क्या इसका आरम्भ कपट कारी राजनीति और कुप्रशासन से नही है ?

कहते हैं की ऊपर वाले की लाठी में आवाज़ नही होती है।

घटनाओं के होने के क्रम में ऊपर वाले की लाठी के होने की पहचान आपको और हमे खुद ही करनी पड़ेगी।
21 october के चुनावों के उपरान्त महाराष्ट्र और हरियाणा में जो कुछ राजनैतिक उठापटक चली सरकार बनाने को लेकर, वहां से शुरू करिये अपने प्रयास , लाठी की आवाज़ को सुनने के।
आलोचकों ने दलील दी थी की जिस तरह से लोगों को अपराधी घोषित करके जेल में रखा जाता है, और फिर जिस तरह से वास्तविक अपराधियों को राजनैतिक जरूरतों के चलते आज़ाद कर दिया जाता है, तो फिर दिसम्बर 2012 वाला निर्भया प्रकरण का आरम्भ वही से होता है। जब राजनीति इतनी छलावा बन जाती है की वह सत्य और न्याय को ही समाज में से ख़त्म कर देती है, तब पुलिस और प्रशासन का खुद ही आये दिन बलात्कार ही हो रहा होता है राजनेताओं के हाथों। और तब भीषण रूप लेते हुए एक दिन निर्भया घट जाता है।

भक्त लोगों ने आलोचकों की निंदा करि की यह लोग तो कुछ भी कही से भी जोड़ देते हैं, बिना तर्क के। यही सब कुतर्क है आलोचकों के।

तब तक आंध्रप्रदेश की बलात्कार घटना घट गयी। आलोचकों ने इशारा किया कि देखो भक्तों, तुम्हें जवाब मिल गया न अब?

भक्तों को और उनके नेताओं को आहट लग गयी की अब आंध्रप्रदेश की घटना शायद उनकी सरकार गिरा सकती है। तो चारों अरोपियों को मार गिराया गया, और आक्रोशित जनमन को नरबलि दे कर संतुष्ट कर दिया गया। और कहने को हो गया कि आये दिन घटने वाले अपराधों का राजनीतिक उठापटक से जोड़ एकदम बकवास बात है। आलोचक बेकूफ़ हैं।

तभी उन्नाव घटना की पीड़िता का देहवास हो गया।
अब वापस आलोचक कहने लगे है की अब अगर पुलिस में दम है तो यही encounter कर के दिखा दें। आंध्रप्रदेश की घटना में तो आरोपी आमआदमी , जनजाति लोग थे, उन्नाव में राजनीति से जुड़े अरोपियों को क्या वही "इंसाफ" कर सकेगी पुलिस और प्रशासन ?

Comments

Popular posts from this blog

क्या वैज्ञानिक सम्बन्ध होता है खराब राजनीतिक माहौल और विभित्स rape प्रकरणों के बीच में

Vedic Sholks have wisdom to speak "diplomatically" , the glorified name for speaking lies.

गहरी बातें क्या होती है