The problem was no one would know which side the other person , that they were fighting and hitting by their weapons, belonged with.
This helped the Feudal Lords in securing a victory.
An ocean of thoughts,earlier this blog was named as "Indian Sociology..my burst and commentary". This is because it was meant to express myself on some general observations clicking my mind about my milieu...the Indian milieu. Subsequently a realisation dawned on that it was surging more as some breaking magma within . Arguments gave the heat to this molten hot matter which is otherwise there in each of us. Hence the renaming.
चुनाव आयोग को अपने आप में दूध का धुला न समझें।।यह गुप्त तरीके से देश की नौकरशाही के निजी हितों के प्रतिनिधितव करती संस्थान है। याद रखें की निर्वाचन आयोग को हमेशा से सिर्फ नौकरशाह ही चलाते आये हैं, और पूरी तरह सिर्फ वही लोग नियंत्रण करते हैं।
नौकरशाही इस देश में सबसे लाभकारी "profession" है। इसमे टैक्स दाता के पैसे पर भोग करती सुरक्षित आय है। जो की प्रतिवर्ष वृद्धि में आती है। इस 'पेशे' में नौकरी की सुरक्षा सबसे अधिक है। चाहे सैंकड़ो लोगों की जान खत्म कर देने वाले कर्म कर लो, कोई आंच नही आने वाले है। क्योंकि जांच भी तो 'जात-भाई' यानी पुलिस ही करती है। या कोई और तीसरे retired जमात के नौकरशाह।
और इन सब से अलावा रिश्वतखोरी की आय अलग से है।
तो इस देश के संविधान निर्माताओं की अक्ल की कमी का फल तो देश की वर्तमान पीढ़ी को भोगना ही पड़ेगा।
निर्वाचन आयोग चुपके से नौकरशाही के हितों का रक्षक भी समझा जाना चाहिए। वह कतई नही चाहेगा की देश की जनता में सुधारों की कोई ऐसी राह और नेतृत्व आए जो की कुछ ऐसा कुछ भी करे जिससे नौकरशाही के हित बिखरने लगें। वह evm और vvpat से मिलान में आनाकानी अवश्यम्भावी करेगा।
भले ही आप उन्हें सूट ,टाई और चमकते बूटों में देख कर चंकचौध हो जाते हो, और उनकी प्रवेश परीक्षा की कठिनता के चलते आप पहले से ही उनके प्रति नत...