Marketing रणनीतियों की विद्या और चुनाव प्रचार

कल्पना करिए कि आप एक Marketing Professional हैं और आपको ज़हर बेचने का कार्य पूरा करना है। अब आपके सामने चैलेंज होगा कि दुनिया को कैसे संतुष्ट करें कि आपका उत्पाद, यानी वो ज़हर , उसके लिए बढ़िया है ?

राबड़ी देवी या उनके किसी समर्थक के चलाये twitter handle की पोस्ट से एक युक्ति सुझाई पड़ती है ज़हर बेचने वाले काम को साधने की।
यह तो समझी हुई बात है कि ज़हर को सीधा बेचा जा सकना एक नामुमकिन काम हो सकता है।
तो फिर दूसरा तरीका है कि आप किसी बड़े और विपक्षी उत्पाद को ज़हर कहकर उसका दुष्प्रचार करना शुरू करो। दुनिया वाले इस वाक-विवाद में फंस जाएंगे और कम से कम कुछ एक "समझदार" बुद्धिजीवी यह बोल देंगे कि आपके बेचे जाने वाले उत्पाद को भला-बुरा कहने से पहले उसे एक बार परीक्षण के नाम पर प्रयोग करके स्वयं चेतना बनानी चाहिए।

 तो आपकी इस चालंकि से देश के बुद्धिजीवी ही अनजाने में आपके ज़हर के प्रचारक बन जाएंगे!!!

और इस तरह आपका 'ज़हर ' एक बार तो बिक जायेग।

अब अगर दुबारा बेचना हो तो फिर आप क्या करेंगे?
इसके लिए आपको दुबारा से कोई युक्ति ढूढ़नी पड़ेगी। शायद अब आप यह कहकर दुनिया को संतुष्ट करना चाहेंगे कि इस बार आपने अपने उत्पाद में कुछ आवश्यक बदलाव करके उसमें गुणवत्ता सुधार किया है। इसलिए लोगो को दुबारा से उसको उपयोग करके स्वयं तसल्ली करनी चाहिए।
या हो सकता है कि आप इस बार जनता से अपील करें कि पिछले लोगों को बहोत अवसर दिए गए थे जबकि वो ज़हर बेचते थे, मगर आपको पूर्ण अवसर नही दिया है जनता ने 'जन कल्याणकारी उत्पाद' को बेचने के।

मार्केटिंग रणनीतियों की विद्या का चुनाव प्रचार में जबरदस्त प्रयोग होता है।

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