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Showing posts from August, 2022

क्या बुराई है भारत के दलित पिछड़ा समाज विज्ञानियों में

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ये JNU छाप जितने भी तथाकथित दलित/पिछड़ा समाजविज्ञानी लोग है, सब से सदैव सावधान है क्योंकि ये सब एक से बड़ कर एक मूर्ख, बेअकल लोग हैं। ये लोग जितने भी  भेदभाव और ऊंच नीच का आरोप दूसरी जातियों , समूहों, समुदायों पर लगाते रहते हैं,  असल में जब भी इनके पक्षधर पार्टी सत्ता में आती है, तब वो भी यही बुराईयां उन दूसरी जातियों पर करने लगती है। क्या आपने कभी सोचा है, कि किसी को भी कमियां और बुराईयां गिनाने में सबसे कठिन मानक क्या होता है? ये कि उन बुराइयों का व्याख्यान ऐसे प्रकार से किया होना चाहिए कि यदि आप सत्तारूढ़ हो जाए तब कुछ बदलाव आ जाए जो उस बुराई को समाज में से समाप्त कर दे। मगर अधिकांशतः तो सत्तारूढ होने पर सिर्फ प्रतिहिंसा कर रहे होते है या बदले की भावना से काम करने लगते हैं, जबकि सोचते ये है कि ऐसा करने से ही बुराई खत्म होती है। ये सरासर गलत है । और ऐसा करने से ही दलित/पिछड़ा समाजविज्ञानियो की मूर्ख बुद्धि होने की पोल खुल जाती है। पश्चिमी जगत में उनके दर्शन शास्त्रियों ने जब भी अपने समाज की बुराइयों को देखा, तब ऐसे व्याख्यान दिए, चारित्रिक विशेषता बताई कि यदि उनको सुधार दिय

ईश्वर में आस्था रखने से क्या योगदान मिलता है समाज के निर्माण में

क्या ईश्वर में आस्था और गहन पूजा पाठ की क्रियाओं ने वाकई में ब्राह्मण तथा अन्य जातियों को अग्रिम बना दिया है, दलितों और पिछड़ों से? नव–समृद्ध ( nouveau riche) दलित वर्ग में कुछ एक व्यवहार एक प्रायः आवृत्ति में देखें जा सकते हैं। कि, वो लोग समाज को बार बार प्रेरित करते हुए से दिखाई पड़ते हैं कि ईश्वर में आस्था एक पिछड़ी मानसिकता का व्यवहार है, और लोग इसके कारण ही शोषण झेलें हैं। मगर यदि हम एक विलक्षण और विस्मयी (abtrusive) बुद्धि से विशेषण करें कि समूचे संसार में ईश्वर की पूजा करने वाला वर्ग की आज की तारीख में अपने अपने समाज में क्या स्थिति है – वो अग्रिम वर्ग है  या पिछड़ा है , तब हम एक समानता से इस वैज्ञानिक observation का एक समान उत्तर यही पाएंगे कि सभी पुजारी वर्ग अपने अपने समाज के अग्रिम वर्ग हैं। सोचिए, कि क्या theory दी जा सकती है इस वैज्ञानिक observation के कारणों को बूझने के लिए। ईश्वर में आस्था ने मनुष्य के समाज को उनके वनमानुष अथवा गुफ़ा मानव दिनों से एक ग्राम निवासी , सामाजिक मानव बनने में प्रधान योगदान दिया था। बूझिए , कि ईश्वर में आस्था और पूजापाठ का चलन कहां से