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Showing posts from July, 2021

नैतिकता तथा व्यापार और चोरी, डकैती, लूटपाट में अन्तर

बौद्ध की बात यह है कि डकैती, लूटपाट, चोरी के जैसे दुत्कर्मों और व्यापार के मध्य में कोई भी अन्य अन्तर नहीं होता है सिवाय नैतिकता और आदर्शों के पालन के। अगर नैतिकता को मध्य से हटा दिया जाये, तब फ़िर आसानी से whitewash करके किसी भी डकैती वाले दुत्कर्म को मेहनत वाला, लगन से किये जाने वाला व्यापार दिखाया जा सकता है। भई, गब्बर सिंह जी अपने गाँव के लोगों को बाकी डाकुओं के क़हर से सुरक्षा देते थे, और उसके बदले अगर थोड़ा से अनाज ले लिए तो क्या ग़लत किया उन्होंने? और फ़िर कितने ही लोगों को रोज़गार भी तो दिया हुआ था, अपने दल में सदस्यता दे कर।  उनके काम में जोखिम कितना था, आप सच्चे दिल से सोचिये । बहादुरी किसे कहते हैं, यह गब्बर सिंह जी के भीतर अच्छे से कूट कूट कर भरी थी। और अगर उसके बदले थोड़ी सी पी ली, मौज़ मस्ती कर ली, बसंती को नचवा लिया, तब इसमें क्या ग़लत किया ? मेहबूबा ओ मेहबूबा तो काम के समय की मीटिंग में होना कोई ग़लत नही है। शहर की डीएम साहिब लोगों की मीटिंग अपने क्या श्रीदेवी के गाने पर डांस करते नही देखा है? मसलन, नैतिकता और आदर्शों को यदि त्याग कर ही दिया जाये तब फ़िर व्यापार और डकैती में बाकी

The थू थू model of decision-making within the Sanghi House

ये तो असल मे भाजपा और संघी व्यवस्था की "खुराक" (भोजन) है। संघी व्यवस्था असल मे थू-थू किया जाने से ही चलती आयी है।    *The थू थू model of functioning within the Sanghi House*  1) सबसे पहले तो कुछ भी औनापौना कर्म कर देते हैं।  2) फ़िर लोगो की प्रतिक्रिया का इंतज़ार करते है।  3) यदि ज्यादा थू थू हो जाती है, तब चुपके से उसमे बदलाव, सुधार या  कि पूरा से वापस (roll back) कर लेते हैं।  लोग थूक कर चाटने को बेइज़्ज़ती का काम मानते हैं। संघियो ने बाकायदा इसे functioning technique बनाया हुआ है। करोना vaccine के तीन दान मोदी जी ने बाकायदा announce किये थे। वो तो जब केजरीवाल ने protocol तोड़ कर public में थू थू कर दी, तब चुपके से बदलाव कर दिया और अब free vaccine देने लगे हैं साथ मे ads दे दे कर वाहवाही लूटने में जुगत लगा रखी है

यूपी के नेताओं की working theory

पता नहीं क्या चक्कर है, मगर यूपी का हर नेता और नेता बनने की महत्वकांशा रखने वाले आदमी, उसमे एक stereotype हरकत देखी जा सकती है, कि- Twitter और Facebook पर कुछ eloquent expressions वाली post करते रहते हैं,  कुछ limited सी vocabulary में, repetititve हो कर, जैसे मानो जैसे कोई good expression सम्बधित किसी intellectual impairment बीमारी से पीड़ित है। Post एकदम संक्षिप्त सी होती है, कुछ भी नवीन नही होता - दर्शन, भावना , वर्णन - कुछ भी। और फ़िर ये पोस्ट शब्दकोश की कंगाली झलकाती से दिखाई पड़ने लगती हैं बौद्धिक साहस (Intellectual Courage) से निर्धन ये नेता , कुछ भी ज्वलंत , उत्तेजनापूर्ण , अथवा विवादास्पद लिखने से डरते है। इनकी नेतागिरी करने की एक सोच और परिपाटी होती है, एक 'working theory', जिसके अनुसार विवादास्पद कथनों और विचारो से बच कर निकल जाने से ही नेतागिरी चमकायी जा सकती है।

Consciousness और Knowledge के आपसी रूपांतरण के प्रति विचार

Consciousness को हम knowledge में transform कर सकते हैं, किसी नये शब्द का अविष्कार करके, जिसके अर्थ में बोध सलंग्न हो। Consciousness can be transformed into a Knowledge by creation of a new Word which may carry within its meaning the Conscious about something. This technique is useful. Because otherwise transfer of Consciousness from one person to another is a difficult task. However Knowledge is transferable easier.

खेल के विषय में भारतवासियों के रुख का एक संक्षिप्त इतिहास

खेलों के प्रति भारत वासियों के आचरण का सांस्कृतिक इतिहास बड़ा विचित्र रहा है। भारत में भी कई सारे खेलों का आरम्भ हुआ है, मगर इनमें से शायद ही कोई अंतराष्ट्रीय स्पर्धा में शामिल किया गया है। चौसर से आधुनिक लूडो को प्रेरणा मिली जो छोटे बच्चों में प्रिय है, मगर ये अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धा में नही होता है। शतरंज काफी समय तक भारतवासियों में प्रिय रहा है, हालांकि ये खेल फ़ारसी मूल का है। एक खेल जो कि अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धाओं में कुछ वर्षो तक पहुंचा, वो था कबड्डी। मगर अधिक प्रिय नही हो सकने पर वो आजकल शामिल नहीं होता है। बरहाल, बात है समाज के रुख की । भारत में खेलो को अधिक सम्मान से नही देखा गया है। चौसर के खेल से स्त्री के अपमान का किस्सा जुड़ा है (द्रौपदी चीरहरण, और राजपाठ को खो बैठने की कहानी) , और इसलिये ये खेल लोगों में हीन भावना से देखा गया। शतरंज से लत लग जाने का सामाजिक दोष जुड़ा हुआ है।  हालांकि खेल का चलन भारतीय समाज में था, मगर ये सब असम्मानित कर्म के तौर पर देखे गये हैं। कहीं कहीं कुछ खेल केवल राजा महाराजों की शोभा माने गये, और प्रजा में आम आदमी खुद ही एक दूसरे का तिरस्कार तथा हतोत्साहि

A Commentary on Punishing of a Govt official

किसी को दंड देना भी एक कला होती है। दंड देना आवश्यक होता है, नहीं तो इंसान उद्दंता करता ही चला जाता है। रोके टोके बिना उसको feedback नहीं मिलता कि उसके कर्म में कुछ ग़लत हो रहा है, और वो ग़लत क्या है। अब, सवाल है कि उचित दंड क्या है, और कैसे दें?  यदि सरकारी अफ़सर आपकी बात नहीं मान रहा हो, या कि आपके साथ न्याय पूर्वक पेश नहीं आया हो, तब उसे दंड कैसे दें? यह पेंचीन्द मगर महत्वपूर्ण सवाल है। यदि सरकारी अफ़सर न्यायपूर्वक अपने आप को प्रस्तुत नहीं करते हैं, तो अब क्या किया जाये?  सरकारी अफ़सर को दीर्घकालीन क्षति करना मुश्किल होता है। उसको केवल नौकरी चले जाने का भय ही एकमात्र तरीका होता है मर्यादा बद्ध (self restraining) करने का। मगर ये काम करना किसी सरकारी अफसर के संग में आसान नहीं होता है। उसकी नौकरी केवल अनुशासन टूटने पर ही जाती है। अनुशासन कैसे टूटता है, कब, यह जान सकना आम आदमी के लिए मुश्किल होता है। सरकारी आदमी के अनुशासन टूटने का खुलासा केवल उसके सहयोगी सरकारी आदमी ही बता सकते हैं।  collegiate से ही तय होता है कि किसी सरकारी आदमी से ग़लती हुई है या नहीं। इसलिये बाहरी आदमी को अनुमान लगाना म

Knowledge अलग चीज़ होती है, और Consciousness अलग

Knowledge अलग चीज़ होती है, और Consciousness अलग।  क्या क्या अन्तर पकड़ सकते हैं , इन दोनों में, आप?  Knowledge और Consciousness को किसी number line की तरह से समझें। knowledge कोई number मात्र है, जबकि consciousness पूरी की पूरी number रेखा है। यानी knowledge को ईंट ईंट करके जोड़ कर के consciousness बनती है।  Knowledge किसी एक दिशा में रखा हुआ एक नम्बर है। यानी, जब आप मात्र किसी एक ही number को देख रहे होते हैं, तब आप को सिर्फ knowledge मिल रही होती है। मगर जब आप दोनों विपरीत दिशाओं के अंकों को देखने लगते हैं, तब आपको पूरी number line दिखाई पड़ने लगती है, यानी अब आपमें consciousness आने लगती है।  नम्बरों के विशेष पहचान वाले वर्ग से आप कोई group बना सकते है, जैसे कि odd numbers , prime numbers, integers। ये ऐसे हुआ कि आप छोटे छोटे knowledge को संग रख कर आप कोई theory बना लेते हैं। मगर theory भी अभी आपको सम्पूर्ण परिचय नही करवाती है विषय से। ऐसा परिचय की आप उस विषय पर एक सिद्ध नियंत्रण करना सीख जाएं, ऐसे जैसे आप ही उसके master हो।   तो theory भी अभी थोड़ा अधूरी होती है। theory मात्र आपके देख

संतुलन - एक बौद्ध विचार

मुझे लगता है कि दलित-हिन्दू(सवर्ण) द्वन्द, शिया सुन्नी झगड़ा, और रोमन catholic - protestant  जैसे द्वन्द का ईलाज़ "संतुलन" में है। हर एक के साथ कहीं कुछ न्याय और कुछ अन्याय हो रहा होता है। यानी हर व्यक्ति कहीं अन्याय झेलता है, तो कहीं न कहीं अन्याय करता भी है। हमें इस विस्तृत प्रक्रिया में छिपे संतुलन को समझना चाहिए। संतुलन अपने आप में भी एक न्याय है - distributive justice । जब भी हम(इंसान लोग) सिर्फ़ अपने ऊपर हुए अन्याय को सोचने लगते हैं, और अपने हाथों हुए अन्याय को देखना बन्द कर देते हैं, तब हम संतुलन को बिगाड़ देने के प्रयास करने लगते हैं। और फ़िर यहाँ से दौर निकल पड़ता है जो हमें जानवर बना कर छोड़ता है। कल news beak करके यूट्यूब चैनल पर मार्कण्डेय काटजू के बारे में एक पोस्ट देख रहा था। बताया गया है कि मार्कण्डेय काटजू के अनुसार इस देश में असल जातिवाद तो ब्राह्नणों ने झेला है। !!!!! भेदभाव तो ब्राह्मणों के संग हुआ है, काटजू के अनुसार। दुराचार ब्राह्मणों के संग किया है दलितों ने । !! सामाजिक समूह के संग अन्याय का ईलाज़ हमेशा "न्याय कर देना" नही है। बात को अतीत में ग़ुम हो

पाश्चात्य संगीतकार elvis preseley का योगदान आधुनिक विश्व को

पश्चिमी जगत के आधुनिक काल के सांस्कृतिक इतिहास में elvis presley का जन्म बहोत महत्वपूर्ण माना जाता है। जैसे 16वी और 17वी शताब्दी में reniassance और reformation सांस्कृतिक इतिहास की महत्वपूर्व काल थे, वैसे ही 20वी शताब्दी में elvis presely का आगमन ! क्यों? ऐसा क्या योगदान दिया elvis ने ? आज हम जब भी बाज़ार जाते हैं तब कोई न कोई music cd यूँ ही आसान दिमाग से, बिना कोई ज्यादा सोच में समय व्यर्थ करे खरीद लेते हैं। क्या आपने कभी सोचा है कि ये music industry का आरम्भ कैसे हुआ है। और तो और, अब आज के युग में "सभी किस्म का" music सुनना और प्रस्तुत करना पसंद किया जाता है। मगर क्या आपको मालूम है कि पहले के युग में ऐसा नहीं हुआ करता था।  पहले भेदभाव और असमानता का युग था। समाज में भेदभाव का चलन था। पश्चमी जगत काले-गोरे के रंगभेद से बहोत अधिक ग्रस्त हुआ करता था। राजनैतिक आयाम में जहाँ गाँधी और लूथर किंग जैसे महान नायक सामाजिक अन्याय के विरुद्ध लड़ाई लड़ रहे थे, वही किसी एक गायक ने अनजाने में अपने सुरों और संगीत से भेदभाव को सांस्कृतिक तौर पर समाप्त करने में भूमिका निभाई थी। इतनी सफलता के साथ,

ब्राह्मणवाद - महर्षि परशुराम की अर्चना के प्रचलन की कहानी

ब्राह्मणवाद के विषय में बात आगे बढ़ाते हुए, प्राचीन वैदिक मिथक कथाओं से इस विषय पर प्रकाश डालते हुए बताये,  आज सोशल मीडिया के माध्यम से ब्राह्मणों का बड़ा गुट, फ़िर से, महर्षि परशुराम के नाम पर अस्त्र धारण कर के अपने अधिकारों और सम्मान/संपत्ति की रक्षा के लिए क्षत्रियों की भांति युद्ध करने और हिंसा करने को खुद को तैयार कर रहा है।  मगर, सच ये है की अभी सं 2000 तक के आसपास तक तो समाज में बहुतायत चलन ये था कि परशुराम जी की तो पूजा ही नहीं करि जाती थी ! परशुराम जी को एक हिंसक, अशांत साधु माना जाता था, जो कि बहोत क्रोधी व्यक्तित्व वाले थे। रामायण में उनकी लक्ष्मण से तूतूमैंमैं का कांड ही जनता में प्रचलित था , वही उनकी छवि हुआ करती थी जनता के बीच में।  इसके अलावा उनका और कोई ज़्यादा महत्व नही था, ये तक भी नही की वो सनातन विचारो के अनुसार एक "अमर" व्यक्ति थे । जनता के बीच परशुराम की छवि  ऐसी थी की वो यूँ ही आजीवन भटकते रहने वाले प्राणी थे, जिन्हें कभी भी मोक्ष की प्राप्ति नही मिलने वाली थी - शायद उनके हिंसक कर्मो के चलते !! उन्होंने अपनी माता का वध किया था, शीश काट कर।  मगर, अब कलयुग चल