A Commentary on Punishing of a Govt official

किसी को दंड देना भी एक कला होती है। दंड देना आवश्यक होता है, नहीं तो इंसान उद्दंता करता ही चला जाता है। रोके टोके बिना उसको feedback नहीं मिलता कि उसके कर्म में कुछ ग़लत हो रहा है, और वो ग़लत क्या है।

अब, सवाल है कि उचित दंड क्या है, और कैसे दें?

 यदि सरकारी अफ़सर आपकी बात नहीं मान रहा हो, या कि आपके साथ न्याय पूर्वक पेश नहीं आया हो, तब उसे दंड कैसे दें? यह पेंचीन्द मगर महत्वपूर्ण सवाल है। यदि सरकारी अफ़सर न्यायपूर्वक अपने आप को प्रस्तुत नहीं करते हैं, तो अब क्या किया जाये? 


सरकारी अफ़सर को दीर्घकालीन क्षति करना मुश्किल होता है। उसको केवल नौकरी चले जाने का भय ही एकमात्र तरीका होता है मर्यादा बद्ध (self restraining) करने का। मगर ये काम करना किसी सरकारी अफसर के संग में आसान नहीं होता है। उसकी नौकरी केवल अनुशासन टूटने पर ही जाती है। अनुशासन कैसे टूटता है, कब, यह जान सकना आम आदमी के लिए मुश्किल होता है। सरकारी आदमी के अनुशासन टूटने का खुलासा केवल उसके सहयोगी सरकारी आदमी ही बता सकते हैं। 

collegiate से ही तय होता है कि किसी सरकारी आदमी से ग़लती हुई है या नहीं। इसलिये बाहरी आदमी को अनुमान लगाना मुश्किल होता है कि उसकी शिकायत पर किसी सरकारी आदमी को दंड मिलेगा या नहीं । सभी सरकारी आदमी अक्सर एक दूसरे का बचाव करते ही करते हैं।

तो फिर अब सरकारी आदमी को आखिर दंड कैसे दिया जाये? 
सरकारी आदमी के पास अपने बचाव के लिए न्यायसंहिता में प्रचुर संसाधन उपलब्ध होता है। रोमन भाषा की एक न्यायसूक्ति इस सभी बातों को संक्षित करके कहती है कि king can do no wrong। तो प्रत्येक सरकारी आदमी अपनी ग़लत हरकत को सरकारी कार्य के पालन के दौरान उत्पन्न व्यावहारिक घर्षण करके दिखाता है। यानी, यदि उससे कुछ ग़लत हुआ है तब वो सरकार यानी king का भी ग़लत माना जाना चाहिए। इसे सरकारी कार्य या सेवा की ग़लत करके बख्श दिया जाता है। 

दण्ड देने का मार्ग केवल ऊपर से ही खुलता है। किसी उच्च पद अधिकारी के आदेशों का पालन नहीं करने से उतपन्न अवज्ञा , या फिर अनुपस्थिति - निरंतर और दीर्घकालीन - यहीं से कोई सरकारी आदमी अनुशासनात्मक कार्यवाही के घेरे में लिया जा सकता है अपने वरिष्ठ के द्वारा। 

तो सरकारी आदमी को काबू करने का शायद यही एक रास्ता होता है, जो कि जाहिर तौर पर आम आदमी के पास में उपलब्ध नहीं होता है।


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