नैतिकता तथा व्यापार और चोरी, डकैती, लूटपाट में अन्तर

बौद्ध की बात यह है कि डकैती, लूटपाट, चोरी के जैसे दुत्कर्मों और व्यापार के मध्य में कोई भी अन्य अन्तर नहीं होता है सिवाय नैतिकता और आदर्शों के पालन के।

अगर नैतिकता को मध्य से हटा दिया जाये, तब फ़िर आसानी से whitewash करके किसी भी डकैती वाले दुत्कर्म को मेहनत वाला, लगन से किये जाने वाला व्यापार दिखाया जा सकता है।

भई, गब्बर सिंह जी अपने गाँव के लोगों को बाकी डाकुओं के क़हर से सुरक्षा देते थे, और उसके बदले अगर थोड़ा से अनाज ले लिए तो क्या ग़लत किया उन्होंने?
और फ़िर कितने ही लोगों को रोज़गार भी तो दिया हुआ था, अपने दल में सदस्यता दे कर। 
उनके काम में जोखिम कितना था, आप सच्चे दिल से सोचिये । बहादुरी किसे कहते हैं, यह गब्बर सिंह जी के भीतर अच्छे से कूट कूट कर भरी थी।

और अगर उसके बदले थोड़ी सी पी ली, मौज़ मस्ती कर ली, बसंती को नचवा लिया, तब इसमें क्या ग़लत किया ? मेहबूबा ओ मेहबूबा तो काम के समय की मीटिंग में होना कोई ग़लत नही है। शहर की डीएम साहिब लोगों की मीटिंग अपने क्या श्रीदेवी के गाने पर डांस करते नही देखा है?

मसलन, नैतिकता और आदर्शों को यदि त्याग कर ही दिया जाये तब फ़िर व्यापार और डकैती में बाकी कोई भी फर्क नही होता है।

एक रत्ती भी नहीं।





Comments

Popular posts from this blog

विधि (Laws ) और प्रथाओं (Customs ) के बीच का सम्बन्ध

गरीब की गरीबी , सेंसेक्स और मुद्रा बाज़ार

राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ और उनकी घातक मानसिकता