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Showing posts from February, 2019

The system of Democracy is not meant for non-market people

Democracy as a system is not meant for two class of people - the farmers and the soldiers .  (Actually the soldiers are just an extended job of the farmers of the olden era of mankind.) The system of Democracy is simply not designed for the agriculturalists class -- this includes all such people who do NOT engage in the Market activities for earning their means of suvival. It is not that the agricultural produce is not required by the society , but then the method of transacting the produce by socialist means is just what the Democracy despises. These are the people who have failed to create a space for themselves in markets. Anyone who fails to create the market-space is surely going to be a loser in the Democractic system of Governance.

आरक्षण नीति के प्रति आकर्षण पर लाभर्ती वर्ग की आलोचना

पिछड़ों और दलितों की आलोचना भी जम कर करनी होगी।  इसलिए क्योंकि यह लोग और इनके "बुद्धिजीवी" अपना सारा दम आरक्षण नीति के इर्दगिर्द लगा रहे हैं, न कि खुद को - अपने समुदाये को- एक व्यापारिक शक्ति में तब्दील करने में। यह युग व्यापार का ही युग है। और आरक्षण नीति एक साम्यवाद मानसिकता से प्रवाहित होती है। आरक्षण नीति को समर्थन देने का मतलब है कि आप निजी उद्यम को अभी भी प्रजातन्त्र का मुख्य आर्थिक इंजिन समझने में अल्पबुद्धि हैं। आप अभी भी "लोकसेवा " के जंजाल में फंसे हैं, जो कि हमारे देश मे अथाह भ्रष्टाचार , सामाजिक त्रासदियों, और व्यवसायी कौशल की कमी के असल अभियन्ता वर्ग है। दलित और पिछड़ा वर्ग वह वर्ग है जिसके पास व्यवसायी कौशल होता है। यह वर्ग हाथों के काम मे धनी है, बनस्पत ब्राह्मणों के जो कि कलम और बुद्धि कार्यों में तेज़ होते है। या की बनिया माड़वाड़ी वर्ग, जो कि हेंकड़ी गिरी से श्रमिक शोषण और कमीशन-खोरी से ही खाता आया है। विदेशों में उनके देश को उद्योगिक प्रधानता उनके व्यसायिक वर्ग ने दी है। हमारे यहां पहले तो कौशल-कार्य करने वाला वर्ग सामाजिक शोषण का शिकार हुआ। और अ

लोक सेवा आयोग का भारतीय मूर्खतन्त्र में योगदान

बड़ा सवाल है कि जो व्यक्ति दिन-रात एक करके मेहनत से पढ़ाई करता है और IAS/IPS बनता है, तो क्या वह इतनी मेहनत समाज सेवा में योगदान देने के लिए कर रहा होता है? ज्यादा बड़ी गड़बड़ है। यह कि देश मे आर्थिकी ज्ञान और सम्बद्ध चेतना कमज़ोर है। लोग * सेवा* (services) और * व्यवसाय * (profession) को एक ही विचार के पर्यायवाची शब्द समझते हैं। यह दिक्कत सिर्फ आम आदमी की नहीं है, बल्कि सेना और लोक सेवा में बैठे बड़े-ऊंचे पद के अफसरों की भी है।   नतीज़ों में इन लोगों ने तंत्र को मरोड़ दिया है, शायद अपने निजी स्वार्थ हितों में । यहाँ * सेवादारी * ज्यादा आर्थिकी लाभ का कार्य हो गया है * व्यवसायों * से । क्योंकि सेवादारों की आमदनी टैक्स दाताओं (कर दाताओं) से आती है, इसलिए यह लोग एक सुनिश्चित आय का भोग करते हैं। दूसरा, की निजी कंपनियों में जहां आय में वृद्धि कपंनी के मुनाफे से जुड़ती है, और इसलिए market force पर निर्भर करती है, वही सरकारी सेवादारों की आय में वृद्धि भी सुनिश्चित है --प्रतिवर्ष वार्षिक वृद्धि, एक निश्चित क्रम में पदुन्नति पर  वृद्धि, हर पांच वर्ष पर pay आयोग से महंगाई आने पर वृद्धि, हर तीन या छ

अगर Lord Dicey भारत में पैदा हुए होते तो...

Lord Dicey ने जो न्याय के सिद्धांत दिए थे वह मात्र संभावना की बुनियाद पर टिके थे कि ' कोई भी इंसान खुद अपने विरुद्ध फैसले नही सुनाता है । ' Lord Dicey के सिद्धांत दुनिया भर के rational समाज मे स्वीकृत किये गए। मगर कल्पना करिए यदि यही कोई D icey जैसा व्यक्ति भारत के ब्राह्मणवादी समाज मे ऐसी कुछ बात कहता तो उसको कैसे-कैसे उत्पीड़न से उसके सिद्धान्तों को स्वीकार नही किया जाता -- यह dicey तो हर इंसान को झूठा और मक्कार समझता है -- dicey को लगता है कि बस वही सच बोलता है। - dicey दूध का धुला है, बाकी सब चोर हैं -- भारत की संस्कृति को बदनाम करने की कोशिश कर रहा है dicey। यहां राजा हरिश्चंद्र से लेकर सचिन तेंदुलकर तक ईमानदार लोग रहे हैं जो कि आउट हो जाने पर खुद ही पवेलियन लौट जाते है अंपायर के इशारे का इंतज़ार किये बिना। - dicey जजों को बदनाम करने की कोशिश कर रहा है कि सब जज झूठे होते हैं। - dicey न्यायपालिका पर उंगली उठ्ठा रहा है, -- dicey ने सारे जजों को चोर कहा -- निर्वाचन आयोग का कहना है कि dicey ने कोई भी empirical सबूत नहीं दिया है कि जज झूठ बोल सकते हैं अपने खिलाफ मुक़द

Labour Exploitation reports by the CAG in the Indian Railways

Via Whatsapp unknown So the tragedy-comic story goes something like this:- The Railways does not keep any "gold standards" about the labour conditions for their contractors to follow. The contractors pick the half-baked railways contracts and make profit by exploiting the labour under sub-standard work conditions. As a result , when dis-hygiene comes around, the bureaucracy, instead of auditing on the labour conditions, employs the tactics of marketing through the powerful ministers and influential celebrities that the people should do the brooming by themselves.! Labour exploitation -->buisness profits--> marketing --> vote politics ....An unimaginable poisonous cocktail where all the wrong is happening, and yet no one is responsible.

Labour Welfare, too ,is a component of the Market Forces, which must be freed for achieving the genuinly world-class goods and services.

Labour Welfare , too ,is a component of the Market Forces , which must be freed, so for achieving the genuinely world-class goods and services . Via Whatsapp unknown Regarding hi-skill professionals, there are some observation and thoughts which i have learnt after some experiences. The foremost is that, contrary to how many of us think, the hi-skill develops NOT in the laboratories, but in the market. The core reason why democracy became successful in alleviating the problems , such as the unemployment and mass indigence which plague most of the societies, is that democracies managed to bring about technological advance with it. But the question is how do the Democractic systems manage to bring about the scientific and technological development? Here is where most of our Desi thinkers go amiss. Most of our thinkers like to talk about Democratic system only from the social justice , and human (political) equality perspective only, whereas there is also an economics offshoo

Its a process, not an event

Post dated 01stFeb2017 Democracy is a process, not an event. Republicanism is a process, not an event or a day. Freedom is a way of life, not an outcome of a revolt.

The social impact of the violence sences in the B-grade movies

Post from 03rd Feb 2016 The ugly aspect of the B-grade movies, southern India made,or even those rural language movies is that those movies "spread the awareness" in the patrons of their class about the entire machinery that the police, the investigation and the judiciary can, and perhaps very regularly, collude to sustain the wrong. The wrong has become a social norm in these societies, possibly due to the social awareness tendered by such products of arts,which make a wide public reach and impacts.     Therefore, we see in the Karnataka IAS, #DKRavi murder issue the entire crowd of the possible suspects walk into the crime scene and tamper the evidence such as fingerprint even before they could be collected. This was a typical scene from a B-grade movie. True to it spirit, the police never followed-up the matter of tampered evidence , much to affirm the chapters of b Grade violence action movie, where all the state institutions are so regularly shown to be in collusion. I

मूर्ख देश मे शैतान बौनों की मचाई तबाही

यदि किसी देश मे आपको दो-दूनी-चार भी साबित करने में लोहे के चने चबाने पड़ रहे हैं, तो फिर आप मूर्ख देश मे खड़े हैं। मूर्ख देश की सबसे बड़ी पहचान यही है। कि यहां का न्याय उल्टा होता। इसलिये यहां उल्टे तर्कों का ही सिक्का चलता है। और इसलिए मूर्ख देश मे सबसे बड़ी जानलेवा ग़लती मानी जाती है समझदार बनने की कोशिश करना।  आप जितना ज़्यादा कोशिश करेंगे सच समझाने की, उतना ज्यादा आप बेवकूफी के दलदल में धंसते जाएंगे। बेवकूफियां करते रहना ही मूर्ख देश मे एक सांस्कृतिक आचरण होता हैं। यहां छोटे शैतान बौनों का राज चलता है। असल मे जनता का नियुक्त किया गया राजा कोई और होता है, मगर सच मायनों में उसकी कही बातों का कोई मतलब नहीं होता है। शैतान बौने (little devils) ही आपस मे मिल कर जो कुछ तय करते हैं, वही घटता है देश मे। ऐसा नहीं कि देश मे पढ़े लिखे computer engineers, scientist उन सब की कोई कमी है। मगर शैतान बौनों ने मिल कर अगर ठान ली कि उनकी करिश्माई electronic machine में कोई गड़बड़ नही है, वह सब कुछ दुरुस्त तरीके से वोट दर्ज करती है, तो फिर अब यही मूर्ख देश का सच है। अब अगर ज्यादा कोशिश करेंगे साबित करने की की