Posts

Showing posts from 2023

Character यानि शख्सियत के निर्माण क्रिया के विषय में

किसी भी इंसान में Character यानी शख्सियत को उभारने के लिए एक जरूरी कार्यवाही होती है भावनाओं को बहने देने का रास्ता देना। इंसान जब बच्चा होता है, उसका मस्तिष्क अपने आसपास के संसार को बस अपने अंदर ग्रहण करना शुरू ही करता है , तभी से उसके दिमाग में तरह तरह को भावनाएं उभरने लगती है। भय यानी डर एक प्रारंभिक और नैसर्गिक भावना होती है जो कि प्रकृति सभी जीव जंतुओं में जन्म से ही सुसज्जित करके जन्म देती है। मगर इसके बाद आगे की भावनाएं संसार में आने के बाद में उत्पन्न होती है। माता पिता के प्रति प्रेम, दूसरे नंबर पर होती है। माता के आने से हुई खुशी तीसरी भावना , और फिर बाहर घूमने निकलने पर होने वाली जिज्ञासा शायद चौथी नंबर पर उत्पन्न हुई भावना होती है बालक के अंदर में ।  भावनाओं की ये संख्या यहीं खत्म नहीं होती है। आगे समय के संग संग और भी आती रहती हैं।  दिक्कत होती है जब ये सभी भावनाएं संसार का आनंद लेने में दिक्कत करती है , क्योंकि सही समय पर सही प्रकार की भावना के संग हम अपने माता पिता, बंधु या मित्र से अपने अनुसार, अपनी अपेक्षित प्रतिक्रिया ले सकने से बात नहीं कर पाते हैं।   दरअसल ऐसा कर ल

About the psychological, cutural and the technological impacts of the music songs

About the psychological, cutural and the technological impacts of the music songs. Jagjit Singh's gazal CDs were the ones which would run the franchise shops called as the Planet M, the Music World , all of which are now extinct. Today, I will say that this singer's work single handed ran the buisness of these shops. Because every trip to these shops meant that the customer would not return back without buying out atleast one piece of an item, — in the least he would do a purchase of one CD having a collection of Jagjit Singh's gazals. As for us, as sailors, in Indian ports we used to buy CDs of his songs; and from China, we used to buy English Songs. Sometimes me and my friends would laugh out at how many CDs we had collected of the same set of songs, in which , just the order of the songs was little different from an other collection in a CD that we already owned. The era from mid '90s upto 2010's was that of the music albums. I remember the name of one of the e

what is a काश ?

 काश Is a God's specially gifted ability to the human beings ways of thinking Not only do we  reason in  terms of  IF x, THEN y But , because, of all the creations of God, we are the only form of species of Life  having an ability to IMAGINE, we also do a thinking in terms of WHAT...IF . With काश ,  our heart and our mind blend their thoughts  The heart gives the fodder of WHAT , it has cultivated from an imagined scenario  and then ,  the mind proceeds to think out  the probable results of it,  And then,  The heart and the mind , together, they set out  To find the proofs That those imagined results are correct

क्या अंतर है एक फ़िल्म, एक news channel, एक documentary और एक गीत सुनने में

क्या अन्तर होता है दर्शक के मन पर डलते प्रभाव में,  एक news,  एक फिल्म,  एक documentary ,  और एक गीत  के माध्यम से बात पहुंचने में न्यूज केवल घटनाक्रम की जानकारी देता है। कुछ अर्थ नहीं बताता, जैसे हमें क्या मिलने वाला है :- लाभ या हानि; सुख या दुख; तरक्की या पतन; इत्यादि फिल्म से हमें juice और गूदा (Pulp) दोनो मिलता है। बस, ये अक्सर काल्पनिक होता है, यानी हमारी जबान पर स्वाद चढ़ाने के लिए निर्माता अक्सर थोड़ा अपना भी मसाला डाल देता है Documentary को देखना ऐसे होती है जैसे कि कोई solved puzzle , वो जिसे कोई और पहले ही बूझ चुका है, और अब हमें अपना दिमाग नही चलाना है, केवल स्मृति कर लेना है ! गीत को सुनना, बात को अंदर अंतरात्मा तक पहुंचाने जैसा होता है। गीत में rythm होता है, जिससे बात हमारे मन और मस्तिष्क दोनो में पहुंचती है फिल्म देखने और documentary देखने में अंतर को समझना जरूरी है। फिल्म एक unsolved puzzle होती है, जबकि documentary एक solved puzzle होती है। जाहिर है, अधिकांशतः तो किसी भी चेतनावान व्यक्ति को फिल्म ज्यादा appeal करती है, हालांकि कभी कभी कुछ जटिल, बहुत बड़े और complex व

Memories from school years : Hindi Doha and the origins of some cockney colloquials from it

Image
  Doha  I can remember that in our school times, one "cockney"(a juicy/ amusing in a sexually suggestive form) colloquial used for describing a fellow student about whom we would have perceptions that he is doing lots of academic hot pursuit was: " रगड़ा खा रह है "। Likewise , the variant for describing the state of a person who was facing severe pressure from his father/parents to do academic hars work , particularly in the field of mathematics was " घर वालों ने रगड़ दिया है ". I guess the origin of that colloquial term was from the above Doha. Another very cockney colloquial derived from this doha was  सूज गया है Meaning , Already done so much hard work, that the person is now a master , an expert , in that subject

Bicycle Riding, the Mastery Self-Test

Bicycle Riding The MASTERY Self-Test Try these manoeuvres on a bicycle and see for yourself if you can do them :- 1) what is the slowest speed you can balance a bicycle WITHOUT landing your legs.  You are allowed to do zigzagging for helping you keep the balance. 2) what narrowest gap you can pass your bicycle through, WITHOUT landing your legs even a single time  3) Can you use only one hand to hold the handle and continue riding , and doing rhe turns in the road 4) Can you ride WITHOUT holding the handle AT ALL  5) what is the fastest speed you can ride and THEN APPLY Brakes SUDDENLY, WITHOUT falling down, BUT allowed to land your legs? 6) Fastest speed you can do the turn in the road WITHOUT falling down, BUT allowed to land your legs? 7) can you follow a straight line/path while riding WITHOUT landing the legs, ? How close you can keep to the straight line ? Do not zigzag the bicycle. 8) and, can you continue on that straight path at the turn of the road ? 8) what is the narrowest

रस्मों रिवाज़ को जानना और पालन करना क्यों जरूर है

याद है, एक बारी मैं जब रात में बाथरूम करने के लिए उठा था, तब अचानक से चक्कर खा कर गिर पड़ा था। एक बारी तुम भी तो कोलxxx में xxxक्ष्मी के मंदिर में अचानक से गिर पड़ी थी, चक्कर खा कर। निxxx भी आज X ray करवाते समय अचानक से चक्कर खा कर गिर पड़ा था। ये सब ठीक नहीं, हालांकि ऐसा होना कोई अत्यंत गंभीर बात नहीं है। हमने कई बार अपने स्कूल के दिनों में बच्चों को चक्कर खार गिर पड़ते देखा है। कई कई बार मैने खुद भी चक्कर को महसूस तो किया हैं, मगर समय रहते ही संभल गए और तनिक ठहर गए, वही रुक गए, आसपास कही बैठ गए, या किसी चीज का सहारा ले कर टेक लगा लिया, गिरने से बचने के लिए। व्यक्ति को अपने खुद के भीतर के हालात को महसूस करने वाले तंत्र हमेशा सचेत रखने चाहिए और पूर्वाभास लेने को हमेशा तत्पर रहना चाहिए। यूं गिर पड़ना ठीक नही है। ये चक्कर आने के हालात भी यूं तो ठीक नहीं होते है, हालांकि कई सारे लोगो को ऐसा चक्कर का आ जाना कुछ खास हालातों में होता है, जिन आम हालातों के बारे में हमेशा जानकारी रहनी चाहिए। जैसे कि, किसी अंधेरे कमरे से अचानक से रोशनी में जाने पर चक्कर आ सकते हैं; या कि, ठीक उल्टा, अधिक रोशन

क्यों हम भारतवासी अभी तक आने स्वाभविक चिंतन से एक राष्ट्र सूत्र में नहीं बंध सकें हैं

सच मायनों में हम सभी भारत वासियों को यूँ ही किसी बहती हवा ने या किसी आक्रमणकारी के डर ने धकेल के एक साथ ला खड़ा किया है, और इस भय के प्रकोप में हम लोगों ने बिना किसी आपसी समझ, एक दूसरे के स्संकृति के ज्ञान के बगैर, "बस, यूँ ही" हल्ला मचा मचा कर खुद को "भारतीय" कहना, पुकारना शुरू कर दिया था, और भारत नाम का एक "राष्ट्र" घोषित कर दिया है। जबकि, आज, social media के आने के बाद हमने एक दूसरे की संस्कृति का ज्ञान सांझा करके, एक दूसरे को जानना शुरू ह8 किया है, बस । अभी तो तमाम बखेड़े उठने बाकी है, इन नई नवेली जानकारियों में से और फिर उसके बाद में, इन ज्ञान कोष का हिसाब " बिठाया जायेगा कि कैसे, कहां पर इन ज्ञान को संतुलित करें, ताकि एक आम "भारतीय संस्कृति" को तैयार किया जा सके, जो हमें वाकई में एक "भारत राष्ट्र" की सही, संतुलित पहचान दे सके

Why most people despise those trying to take a higher moral ground

A large part of the population does not want to talk Morality. It does not like poeple who ask the moral questions, those questions which rise from Reflective Thinking,; people who ask the question to someone's Conscience, are abhored. Self Criticism is considered weakness by the majority of human beings. Why is that "trying to" take a "higher moral ground" considered a fault, a vice behaviour, and not an appreciated conduct? Why is it so? Why do the major chunk of human populace behave so? Think critically, the answer is easy to find. Large part of population is pressed to adandon Morality in course of their life struggle. So, they see a moral crusader as an oppressor of their soul. They hold a thought that such moral crusading persons are only being a hypocrite because a wider, unspoken truth would hold it that they too must be getting pressed , like all others, in their life to adandon Morality , and they must be doing so in the dark, secretly.

Stupefyingly humourous WU Post (S.H.WU.P)

Image
 

उन्नत मुखी होने का क्या अर्थ होता है?

उन्नत मुखी बनने के प्रत्येक युग में अलग अलग अर्थ होते हैं। उन्नत मुखी बने रहना इंसान की जिंदगी का सबसे बड़ा challenge होता है। और कौन रोक रहा होता है इंसान को उन्नत मुखी, यानी progressive होने से? इंसान को progressive होने से रीत रिवाज, प्रथाएं रोक रही होती है। प्रत्येक युग में उन्नत मुखी होने के अलग अलग मानक रहे हैं। मगर इन सभी के बीच में एक विचार सर्व विदित था — कि, सभी को किसी तत्कालीन विचार से, या व्यवस्था से, या प्रथा से संघर्ष करके, उसे तोड़ कर आगे आना पड़ा है। ये जितनी भी चीज है– प्रथा, व्यवस्था, विचर, ये सब के सब समाज के माध्यम से कार्य करती हैं।समाज सभी इंसानों से बने समूह को बुलाया जाता है, जब इन सभी को एक इकाई की तरह देखा, सुना और बात करी जा रही होती है। जाहिर है, ऐसे में समाज का अभिप्राय बन जाता है, बहुमत आबादी का मन। यानी , majority की बात, उसके दर्शन, उसकी सहमति, इत्यादि से। तो समाज इंसान को हमेशा रोकने का कार्य करता है। ध्यान रहे कि समाज ऐसा करने में गलत नहीं होता है, क्योंकि वह सही मंशा से, इंसान को किसी संभावित गलत, किसी खतरे, किसी अनजान मुश्किल में पड़ने से रोकने के ल

Narcissist व्यक्ति को करुणामई , इंसानियत से हृदय परिवर्तन करके सुधारा नहीं जा सकता है

Narcissist व्यक्ति का एक गंभीर चरित्र दोष होता है। — वो जितना भी दोस्ती और बैर करता है, सब अपनों से ही करता है, पराए, अनजान के संग वो बहुत सादगी, और विनम्रता से पेश आता है !! यानी, अपनों पे सितम, गैरों पे करम भारत के टीवी वाले इस समय कैनेडा मामले में जो कुछ बता रहे हैं, सच उसके ठीक उल्टा है। चीन ने एशियाई खेलों में भारत के अरुणाचल प्रदेश से जाने वाले खिलाड़ियों को वीज़ा नही दिया है। और बदले में भारत के खेल मंत्री ने चीन जा कर शामिल होने से मना कर दिया है। मगर, गौर करिए, कुछ बड़ी खबर बनी क्या ये भारत के मीडिया पर? नहीं , ना। चीन पर चूं करने की औकात नही बन रही है मोदी सरकार की । क्योंकि चीन मोदी के जितना ही ढींठ है। वो भचक कर मुंह तोड़ जवाब दे देगा। मगर कैनेडा शांतिप्रिय, मानववादी, मित्र देश है। तो चढ़ा हुआ है भारत का मीडिया उस पर । घमंडी आदमी अपने सारे बैरभाव केवल उनके संग करता है, जो उनको किसी रिश्ते के चलते, या अपने हृदय के मानववाद के चलते बर्दाश्त करता है। और, जो पलट कर जवाब देता है, उसके साथ कायदे से रहता है। Shakespear ने एक नाटक लिखा था, taming of the shrew।

हिंदुओं की सोच में अभी Logic जैसी शुद्धि नहीं हुई है

ब्रिटिश उपन्यासकार जॉर्ज ऑरवेल ने दो शब्द, Blackwhite Thinking और Doublespeak का सृजन किया था , इंसानों की सोच में ऐसी प्रवृत्ति को दिखाने के लिए जो एक संग दो विरोधास्पद तर्कों का पक्ष लेते हुए (blackwhite), जब चाहा तब पल्टी मारते रहते हैं, और अपने विरोधी को गलत और दुष्ट साबित कर देते हैं। सभी हिंदू यानी सनातन धर्म पालक स्वभाव से ऐसे doublespeak करते हैं, blackwhite सोच प्रकृति के होते हैं। कई सारे video clips हैं,जिनमें हिंदू संत लोग अपने अंतर–विरोधी चरित्र का गुणगान करते सुने जा सकते हैं, कि '"मैं ही सुर हूं, असुर भी मैं ही; मैं ही आकाश हूं, और पाताल भी मैं ही।" दरअसल समस्त मानवता पहले के युग में ऐसी blackwhite सोच की हुआ करती थी। मगर पश्चिमी philosophy में aristotle और उसकी रची गई Logic की philosophy ने पाश्चात्य लोगों की सोच को शुद्ध और निश्छल बना कर,उनको श्रेष्ठ कर दिया। हिंदू लोग अभी तक अशुद्ध और छल(कूट) सोच में फंसे हुए हैं।

इतिहास कैसे लिखा जाता है ? किस मंशा के साथ ?

इतिहास क्यों पढ़ाया जाता है, इस विषय पर तो बहुत कुछ मंथन किया जा चुका है, मगर अब एक मंथन की ज़रुरत है कि इतिहास लिखा कैसे जाता है?  किस मंशा के साथ? इतिहासकार इतिहास को लिखते समय निम्मलिखित दो मंशाओं को केंद्र में रख सकते हैं:- १) मंशा : सामाजिक इतिहास का लेखन इस प्रकार के लेखन का उद्देश्य ये होता है कि पाठक छात्र  जल्द से जल्द अपने समाज को संचालित करती अदृश्य , अगोचर शक्तियों को अपने मस्तिष्क में ग्रहण कर सके और फिर स्वयं को तीव्रता से समाज में अपने स्थान के संघर्ष के लिए तैयार कर ले। २) मंशा : समाज के बीच सत्ता को प्राप्ति करने के लिए संघर्ष कर रहे समूहों का रहस्य उदघोटन कि, वे कौन कौन से समूह हैं, क्या उद्देश्य हैं उनके, वे किस दूसरे समूह के विरुद्ध संघर्ष रत हैं, क्या विवाद के मुद्दे हैं उनके बीच आपस में, कैसे संचालित करते हैं वे समुदाय अपने बीच में, अपने अधीन समाज को , क्या हैं उनके धार्मिक दर्शन, विश्व दर्शन, अन्य philosophy के विचार, और क्या क्या घट कर बीत चुका है उनके संघर्ष की गाथाओं के दौरान। ये दूसरा वाला इतिहास वास्तविक विषय होता है समाज की और देश की राजनीत

जीवन के नौ रस क्या हैं? इनका क्या अभिप्राय है, हमारे जीवन से क्या संबंध है?

जीवन के नौ रस क्या हैं? इनका क्या अभिप्राय है, हमारे जीवन से क्या संबंध है? 1963 में प्रकाशित हुई एक किताब the Power of Subconscious Mind ने दुनिया में तहलका मचा दिया था ,ये दावा पेश करके कि कोई भी इंसान अपने दिमाग की सोच की बदौलत कुछ भी बन सकता है, कुछ भी हासिल कर सकता है । कहने का सीधा मतलब दुनियावालों के अनुसार ये था कि बस बैठे- बैठे, यूं सोच - सोच कर गरीब आदमी ,अमीर और अमीर आदमी गरीब बन सकता है।  किताब में दावा की theory ये थी कि जब इंसान के दिमाग में, भीतर में उसका अवचेतन मन, यानी sub conscious mind, किसी विचार में यकीन करने लग जाता है, तब वह खुद से ही ऐसी क्रिया प्रतिक्रिया को इंसान के शरीर में से त्वरित करवाने लगता है की वाकई में वैसा हो भी जाता है जैसा उसका अवचेतन मन सोच रहा था। सवाल था कि क्या जो कुछ हम सोच रहे होते हैं, ये हमारे अवचेतन मन से नही सोचते हैं क्या?  यदि नही, तो फिर हम अपने दिमाग के किस हिस्से से सोचते हैं? और क्या हमारा ये तथाकथित अवचेतन मन हमारे बाकी दिमाग से अलग हट कर सोचता है क्या? और, अवचेतन मन को हम कैसे वो चीज सोचवाए जो हम चाहते हैं, अपने उस दिमाग की सोच

A small list of names of nations assigned to them by the "Foreign Powers"

The first Explorerer have assigned their own names to almost all the nations  India  Japan (Nippon in local language) China ( Zhongguo in local language ) West Indies (from India) America (named after a Spaniard) Burma , now Myanmar  Ceylon , now Srilanka  Singapore, indian origin name  There is a comprehensive list  Now Think ,who all have chosen to remove the assigned name and adopt only the local language name  And then think of what is the motivation? Now decide , which action  is genuinely "Political Motivation" and which is not?

Lessons of Secularism from GB Shaw's play "Saint Joan", and risks to Democracy and Secularism, lessons from George Orwell's "1984"

 Some old memories , from the play * Saint Joan  * by GB Shaw  1) what was the the Role of Inquisitor in the trial of Joan? 2) Did Joan receive a fair trial? 3) What happened in the Epilogue ? How is the trial of Joan pronounced now? Do you still think that Joan received a fair trial ? _________ गधा in the Context of the present Opposition mean a Stupid person,  But Same गधा in the Context of the Dear Leader means Hard Working person ! Do you think you are giving a fair trial ? Your views are not pathologically polarised ? _____ [9/11, 11:00 PM]   What is * Blackwhite * style of thinking in George Orwell's play " 1984 "? What is a doublespeak  ? [9/11, 11:00 PM]   ( You are free to use Google Search ) [9/11, 11:06 PM]  What is the lesson learnt on a necessity to separate the Government institutions from the Religious Service , if you think any, from the play * Saint Joan* ?  Do you agree that the necessity is applicable universally ?,  Or, you think that your own religion

Mariners should collectively reject the name change from India AND/OR Bharat , to EXCLUSIVELY Bharat

I think that we as Marine fraternity must not accept the name change theory as correct We are Mariners, the posterity of the erstwhile Explorers . And  so we must all stand to defend that it is a God-bestowed NATURAL RIGHT  of every explorer to call the place that he lands on before anyone else, by what nane he thinks fit and whatever he knows of it. By assigning a name, an explorer has done just what any other explorer, from any other country or a civilizations would do - Yesterday, Today or Tomorrow. Aren't we , as the Human species , giving names to places of the Moon and the Mars, and other cornors of the outer space, as how we think of them as on today !! Imagine , if we have called a place in the outer space  by some name today, and many many centuries later , some species of Aliens rises up to accuse us of having done then a wrong by assigning them non-native name, or an incorrectly spelled name , or whimiscial name of our own thought, How right will that accusat

Bharat बनाम India -- मुल्क का नाम बदलने की राजनीति , अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य से एक विमोचन

ऐसा नहीं है कि सिर्फ भारत ही अपने राष्ट्र का नाम बदल रहा है। हमसे पहले, बर्मा ने नाम बदल कर म्यांमार कर लिया है, कंबोडिया ने थोड़े समय के लिए नाम कम्पूचिया कर के वापस कंबोडिया कर लिया था, और सीलोन ने नाम बदल कर श्रीलंका रख लिया है। मुल्क के नाम बदल जाना कोई बड़ी बात नहीं है, विश्व राजनीति के लिहाज से। बड़ा सवाल ये है कि नाम बदले क्यों गए, और हांसिल क्या हुआ नाम बदल देने से? क्या वह मकसद पूरा हुआ? कंबोडिया के मामले में तो नाम बदलने का कारण सीधा सीधा अंतरिक राजनीत से था, और मात्र दस वर्ष तक नाम कम्पूचिया रहा, फिर वापस कंबोडिया पर लौट आया, जो की ब्रिटिश का दिया हुआ नाम था ! बर्मा के मामले में नाम बदलने का तथाकथित कारण बताया गया कि बर्मा नाम अंग्रेजो का दिया हुआ था। हालांकि आंतरिक राजनीत में अटकलें लगती रही कि कारण कुछ और ही है। अंग्रेजों ने जो नाम चुना था, बर्मा, वह वहां की भाषा में का ही नाम था।  मगर सबसे पहले सवाल है कि अंग्रेजों को नाम चुनने का अधिकार किसने दिया ? जवाब है— प्राकृतिक नियम ! अंग्रेजों और उनके नाविकों ने कुछ पक्षपात नहीं किया , मात्र अपना प्राकृतिक अधिकार का उपभोग किया था

Because Philosophy is the mother of Arts and Sciences, embrace the changes in moral, religious and cultural values introduced by the technology

Image
 

Don't suffer from Nostaligia

Image

इनमें से कितने किस्म की चिंतन शैली को जानते हैं आप?

इनमें से कितने किस्म की चिंतन शैली को जानते हैं आप?   Critical Thinking  Lateral Thinking  Analytical Thinking  Logical Thinking  Reflective Thinking Emotional Thinking Strategic Thinking Abstract Thinkng

Mental Control की कला

Psychology या mind self control के भरोसे किए जाने वाले कुछ क्रियाओं की सूची १) चलना, लटकना, दौड़ना, २) ऊबड़ खाबड़ सड़क पर हिचकोले खाने वाली जगहों को झेल जाना ३) लटकना, हवा में लटकते हुए पलटी मार लेना,  ४) mid air में body पर control कर लेना ६) लटकती हुई रस्सी पर balance बनाए रखते हुए चढ़ना  7) दूसरे बच्चे , व्यक्ति को आदेश देना ९) आदेशों को अपने विवेक अनुसार पालन करना, या अवज्ञा करना  १०) अनदेखा, अनेपक्षित कार्य या हालात के आने पर सामना कर गुजरना ये सब ऐसे काम हैं, जिन्हें आप यदि अपना दिमाग में सोच लें, मन बना लें तब कर गुज़र सकते हैं।  बिना mental preparedness  के , ये काम बहुत कष्टकारी हो जाते हैं।  

सिगमंड फ्रायड का छाता को खोलने वाला एक्सपेरिमेंट

Psychology (साइकोलॉजी) यानी मनोविज्ञान के जनक कहे जाने वाले जर्मनी के पडोसी देश ऑस्ट्रिया में जन्मे, विख्यात वैज्ञानिक सिगमंड फ्रायड (Sigmund Freud) ने 1938 (के करीब) एक एक्सपेरिमेंट किया था, जिससे उन्होंने इंसान की बुद्धि में " चेतन मन "और " अचेत मन " के अस्तित्व की पुष्टि करी थी। हुआ यूं कि फ्रायड के जान–पहचान के एक डॉक्टर ने अपने कुछ मरीजों का इलाज करते समय सम्मोहन क्रिया (Hypnosis) करके आदेश दिया कि जब मैं तुम्हें अपने सम्मोहन से मुक्त करने के बाद वापस कमरे में प्रवेश करूंगा, तब तुम एक छाता खोल कर मेरे सर पर छतरी से ढक कर मेरा स्वागत करोगे।  और इसके बाद डॉक्टर वैसा करते हुए, व्यक्ति को सम्मोहन से आजाद करके ,पुनः कमरे में प्रेवश करता। व्यक्ति, अनजाने में, छाता खोल लेता और डॉक्टर के शीश को छतरी से ढकते हुए उनका स्वागत करने लगता।  और बाद में जब व्यक्ति से पूछताछ करी जाती कि उसने ऐसा क्यों किया, तब अलग–अलग व्यक्ति अलग–अलग "वजह" बताने लग जाते। जैसे, एक व्यक्ति ने कहा वो सिर्फ छाते का परीक्षण कर रहा था कि छाता कोई मरम्मत तो नही मांगता है। एक व्यक्ति ने कह

भारत में कहां से और कैसे आते हैं आज के ये कन्हैया कुमार, दिलीप मंडल और उमर खालिद ?

भारत की असलियत ये है कि ये जिसको हम लोग " आधुनिक भारत " के कर पुकारते हैं, इसमे ये "आधुनिक" वो अंश है जो कि ब्रिटेन और दूसरे देशों से आयात करके, या फिर चुरा करके लाया गया है। और जिन-जिन क्षेत्रों में इस "आधुनिक" को भोग किया गया, जिस समाजों के द्वारा सर्वप्रथम, अग्रिम पंक्ति में अर्जित किया गया, वे सब छोड़ कर, बाकी सभी जन पिछड़ा, " ग्रामीण " भारत बन कर रह गए थे।  मगर पिछली शताब्दी के अंत में जैसे-जैसे यातायात के संसाधन में तकनीकी विकास हुआ, ये " आधुनिक" भारत और " ग्रामीण भारत " को आपस में एक दूसरे को मटमैला करने की आवृत्ति बढ़ती गई है। 'आधुनिक' ने 'ग्रामीण' को गंदा किया, 'ग्रामीण' ने 'आधुनिक' को। कुल मिला कर भारत मैला होता रहा है। ग्रामीण भारत का नवयुवक जब शहर में आता है, तब उसको सबसे प्रथम दिक्कत होती है ये समझने में कि "क्या चल रहा है, ....चल क्या रहा है?" उसका मन अपने आसपास के समाज को, व्यवस्थाओं को, कोर्ट को, पुलिस को, यातायात के नियमों से लेकर विश्वविद्यालय के नियमों तक किसी भी च

What is this achievment?

Is the achievement only about doing a race with the entire world, and reaching some point earlier than everybody else? Are we so self-centered, so much self-loving that we are still going to search out some mean "objective" and rush out to label that as our "achievement" in order to be able to tell our story to the world? Are we going to see in it (#moonlanding) some race event happening and that our achievement being only about getting there first? And are we always going to see the achievements as something that is centred around our country? Are we so much self-centered? Tell me, what other thing can you think of for calling out as your achievement ? How important, do you think, it is for you to do show out some achievement in what you have secured just now? What if we let the moment pass quietly, without calling out any achievment?   or Can we not wait for a while before we tell the world what our achievement is? Can we not be patient enough to give ti

The four types of Conversations

Image
 Credit.: Sourced from the Internet The Four types of Conversation (by Mr David W Angel)

क्या मतलब होता है, जब हम किसी अमुक व्यक्ति को एक Historian (इतिहासकार) के तौर पर चिन्हित करते हैं?

क्या मतलब होता है, जब हम किसी अमुक व्यक्ति को एक Historian (इतिहासकार) के तौर पर चिन्हित करते हैं? आम तौर पर हम सभी लोग इतिहासकारों को एक बुड्ढा सा, बेमतलब का ज्ञान कुंड रखने वाला व्यक्ति समझते हैं। एक, ऐसी बातें का संग्रहण करने वाला व्यक्ति जिसका आधुनिक या वर्तमान काल से कोई वास्ता नहीं है, जो अतीतकाल में जीवन यापन कर रहा होता है। हम ऐसा समझते हैं इतिहासकारों के प्रति। मगर कभी गहराई से अपने आसपास में वर्तमान की किसी भी समस्या का अपने पूर्ण निर्मोह(objectivity) और निष्पक्षता (neutrality) से हो कर समाधान ढूढने की कोशिश करी है? कभी एक सच्चे दिल से एक सार्थक प्रयास करके आजमाइए अपने आप को। तब आपको समस्या को उसके मूल से समझने की आवश्यकता महसूस होगी, उसका सरस्वीकृत समाधान और न्याय करने हेतु।  और ये "मूल से समझने " की बात आपको बता देगी की इतिहासकारों का वर्तमान काल से क्या वास्ता और महत्व होता है। किसी भी समस्या को गहराई से समझने के लिए उसके मूल से ज्ञान अर्जित करना आवश्यक होता है। ऐसे में इतिहासकारी कर सकना एक कौशल बन जाता है, क्योंकि इस कला को अभ्यास कर सकने वाले लोगों में निर्मोह

क्या अहंकार और आत्ममुग्धता में अंतर होता है? यदि हां, तो क्या?

 जब इंसान में ज्ञान आने लगता है तब उसमे ego जन्म लेने लगता है, और जब इंसान में ज्ञान नहीं होता है, तब इंसान में narcissism जन्म लेने लगता है। इंसान दोनो दिशाओं में फंसा हुआ है।आत्मबोध के बगैर बच पाना मुश्किल होता है। Ego वाला इंसान स्वयं को दूसरे से अधिक श्रेष्ठ साबित करने में व्यसन करता है, जबकि narcissism वाला इंसान दूसरे को स्वयं से तुच्छ साबित करने में व्यसन करता है। Ego ज्ञान यानी बाहरी सासंकारिक बोध का प्रतिनिधत्व करती है। Knowledge से ego जन्म लेती है। जबकि Narcissism अत्यधिक self knowledge का प्रतिनिधित्व करती है। जब इंसान बहुत अधिक अपने में तल्लीन हो जाता है कि वह बाहर की दृष्टि से स्वयं को देखने छोड़ देता है, तब आतम्मुग्ध हो जाता है। अत्यधिक आत्म बोध करने से आत्म मुग्धता आती है। Knowledge : Self Knowledge : : Ego : Narcissism

भारत वासियों में शाकाहारी होने के पीछे क्या कथा छिपी हुई है ?

  भोजन प्रकृति के विषय में एक गहरा, क्रमिक-विकास सांस्कृतिक सत्य बताता हूँ आप सभी को ------- मनुष्य जाति आरम्भ से धरती के सभी भूक्षेत्रों में सर्वाहारी (वे जीव जो दोनों, मांस एवं वनस्पति, का भक्षण करते है ) रही है।   इस कारण से मनुष्य जाति में आरम्भ से ही कई सारे शारीरिक कष्ट भी रहे है।  जैसे कि , मांस में जल्दी कीड़े लग जाते हैं, सूक्षम बीमारी वाले जीवाणु  जल्दी मांस युक्त भोजन को ख़राब कर देते हैं, और यदि मांसाहारी मनुष्य उन जीवाणुओं को भी भक्षण कर ले ये सोच कर कि वह तो पहले ही माँसाहारी पाचन तंत्र से लैस है, उन्हें पचा जायेगा -- तब वह पूरी तरह गलत है ! सूक्ष्म बीमारी वाले जीवाणु (बैक्टीरिया , वायरस , अमीबा ) इंसानी शरीर में प्रवेश करके जटिल बीमारियां देते है।  युवा अवस्था में तो इंसान भले इन बिमारियों को झेल जायेगा, मगर उम्र बढ़ने के साथ मुश्किल आने लगती है।   आरम्भिक युग में समाज को बीमारियां इंसान के शरीर और मन के कष्ट बन कर दिखाई पड़ती थी। संभवतः इसरायली यहूदी लोग प्रथम समूह था मानव जाति का जिन्होंने भोजन और शरीर के कष्टों के बीच का सम्बन्ध कुछ कुछ समझा था।  तो उन्होंने अपने समाज मे

We become polarised when we ...

We become polarised when we We become polarised when we start to see only one face of the coin  we hear only one side of the story We become polarised when we  abjure the Middle Path  we renounce the Enlightenment  we abandon the Buddha We become polarised when we  adopt too much of Lokniti  we become the Charvaks  we begin to think that searching for the Truth ... .      ...is the most futile exercicse We become polarised when we  forget the Rational Thinking,  When we  become versed in tampering the evidence  when we  forget to show our humble acceptance... ... ........ of the proof

बच्चों को ताश का खेल सिखाना

 सोच रहा था कि बच्चों को ताश खेलना सिखाऊँ।   ताश के खेल में बहुत किस्म की अक्ल को विक्सित और प्रयोग करने की ज़रुरत पड़ती है, जिनको व्यावहारिक जिंदगी से हासिल करना बहुत दुर्लभ होता है।  मिसाल के तौर पर -  १) दूसरे के पत्तों को बूझना उसकी अभी की चाल को देखते हुए -- inference और deduction बुद्धि कर प्रयोग करके।   २) अपनी अभी की चाल को decide करना भविष्य में आने वाली चाल या हालात की पूर्व दृष्टि क मद्देनज़र। prudence  ३) पहचान करना सीखना की कब हमारे खेल में सही चाल नहीं  चलने की वजह से हम हार गए हैं, और कब वाकई में पत्ते ख़राब आने से हमारा हार जाना तय था (जिसमें कुछ दुखी /बुरा नहीं मानना चाहिए। ) ४) और यदि नक़ल या cheating  हो रही है , तब उसे पकड़ना , और साथ में सफलता पूर्वक cheating  करना सीखना।  मगर तभी एक बात कौंधी दिमाग में -- कि , ताश का खेल (या कोई भी खेल ) बच्चों को मात्र सीखा देने से आप ये सब हांसिल नहीं कर सकते है।  खेल इस लिए नहीं पसंद या नापसंद किये जाते हैं क्योंकि उन्हें खेलना नहीं आता है , बल्कि इसलिए कि उन्हें खेलने की रूचि- है , अथवा नहीं है।    तो बच्चों को ताश खेलना सिर्फ सीखन

क्या होता है "पौरुष प्राप्त कर लेना"

जब इंसान का जीवन रस मयी हो जाता है, तब वह विश्वास से ओत प्रोत रहने लगता है, तमाम सफलताएं उनके कदम चूमने लगती है, सब उसे पसंद करने लगते हैं, वह लोगों की रुचि का केंद्र बनने लगता है, उसकी बातें सभी को मंत्रमुग्ध सुनाई पड़ने लगती हैं, उसका शरीर कष्ट मुक्त अनुभव करने लगता है, वह दीर्घायु प्राप्त करने लगता है, उसके रिश्ते मधुर बनने लगते हैं,  शायद इसी अवस्था को हिंदी भाषा में कहते हैं, "पौरुष प्राप्त कर लेना " (pinnacle of his existence)। वैसे शाब्दिक रूप में "पौरुष" का अर्थ होता है पुरुष होने वाले गुण और भाव अनुभव कर लेना। मगर , अभिप्राय में पौरुष प्राप्ति के मार्ग कुछ अन्य है, जैसा कि आगे विमर्श में लिखा है। पौरुष प्राप्त करने का सबसे महत्वपूर्ण कदम होता है भावनाओं को बहने का मार्ग उपलब्ध करवाना ।  और भावनाओं को बहने का मार्ग मिलता है कलाओं में से। आरंभिक युग में ये मार्ग होता था गीत गुंजन से, संगीत वाद्य यंत्र बना लेने से, gymnastics इत्यादि शरीर की बेहद कठिन कलाओं को अर्जित कर लेने से। Gymnastics करने हेतु शरीर और मस्तिष्क को एक sync में संचालित करने की योग्यता लगती

सांस्कृतिक आधुनिकता का मार्ग— तार्किक मंथन को अनुमति देना कि समाज में न्याय नीति में परिवर्तन कर सके

लेख में मैं विज्ञान के लिए एक दूसरा, नया शब्द प्रयोग करना चाहूंगा, तार्किक मंथन (Rational Thinking)। तो ,पश्चिमी समाज में भी, भारत की ही तरह, औरतों को कमज़ोर, निर्बुद्ध, गुलाम , "ताड़न के अधिकारी", करके समझा जाता था, जब तक की उनके समाज ने तार्किक मंथन करने का मार्ग नहीं पकड़ा था। ये तार्किक मंथन क्रिया ही थी जिसने इंसानों को यह बताया कि ऐसा सोचना गलता है। तार्किक मंथन से ही वह प्रमाण निकल सके जिन्होंने ये सिद्ध कर दिया कि औरतों पुरुषो से कम नहीं होती हैं, यदि उनको भी पर्याप्त अवसर प्रदान किए जाए।   तार्किक मंथन समाज के समस्त पुरुषों में उपलब्ध कभी , किसी जमाने में नही था। केवल कुछ चुनिंदा व्यक्ति ही तार्किक मंथन कर सकने के काबिल थे, और आज भी, होते हैं। ये ही वह लोग थे(और होते हैं) जिन्होंने तार्किक मंथन को अपने जन्मजात मिली न्याय और नैतिकता को बदल जाने देना का अधिकार दिया होगा। तब जाकर उन्होंने महिलाओं को समाज में उनको सर्वोच्च स्थान को प्राप्त कर सकने का अवसर दिलवाने का मार्ग स्वीकृत किया होगा। अन्यथा , आप इतिहास टटोल कर देख लीजिए, महिलाओं ने कोई युद्ध थोड़े न लड़ाई लड़ कर

कितना उचित समझा जाना चाहिए ISRO के वैज्ञानिकों का तिरुपति दर्शन ?

 ISRO के वैज्ञानिक चंद्रयान ३ के प्रक्षेपण से पूर्व तिरुपति जा कर भगवान के दर्शन करके आशीर्वाद लेकर आते हैं। क्यों न करे वे ऐसा? आखिर 1947 की आजादी तो केवल शारीरिक बेड़ियों को तोड़ने वाली आजादी थी बस; गोरी चमड़ी वाले अंग्रेजो की आर्थिक गुलामी से केवल एक राजनैतिक मुक्ति थी वह। मानसिक गुलामी तो हजारों सालों की हो चुकी है भारत वासियों की।  किस प्रकार की मानसिक गुलामी ?  तर्क और कुतर्क का मिश्रण कर देने वाली कुबुद्धि; आस्था और विवेक में भेद नहीं कर सकने की बेअक्ल; श्रद्धा और logic को सहवास करवाने की अयोग्यता; गंगा और गंदे नाले को मिला देने की संस्कृति।  भारत के समाज में विज्ञान का प्रवेश धर्म के प्रधानों के खिलाफ संघर्ष करके  नही हुआ है, अपितु किताबों के माध्यम से हुआ है। स्कूली शिक्षा से "माता सरस्वती" का नाम प्राप्त करके हुआ है। धर्म के प्रधानों ने विज्ञान को समाज में आने से पूर्व ही द्वारपाल बन कर उसको लाल कपड़े में लपेट दिया था। और उसके बाद से समाज में विज्ञान का परिचय " माता सरस्वती " करके दिया हुआ है।  आज उसी परिचय से विज्ञान को जानने समझने वाला वर्ग ISRO का वैज्

कुछ देश गरीब क्यों होता हैं? समृद्धि लाने का उचित मार्ग क्या है?

जानते है कोई समाज अमीर और कोई समाज गरीब क्यों होता है ? आज यूट्यूब पर एक प्रोग्राम देख रहा था जिसमे बताया जा रहा था कि कैसे श्रीलंका में उनके देश के railways ने भारत से उपहार में दी गई कुछ बसों को थोड़ा बहुत "जुगाडू (jerry-rigging)" फेरबदल करके train में तब्दील कर दिया है, और उन्हें अच्छे से चला रहा है। ये "जुगाड़" सोच मेरे दिमाग को सुराग दे रहा था कि आखिर क्यों, कुछ देश बेहद समझदार, चतुर होने के बावजूद गरीब क्यों हैं। मुझे सबसे पहले तो सन 2012 वाली उन्नाव के खजाना बाबा की घटना याद आ गई, जब अखिलेश यादव की सरकार में बैठे किसी मंत्री ने एक साधु बाबा के सपने में देखे गए गड़े सोने के खजाने की तलाश में खुदाई करवाई थी। ये घटना पूरे देश के अखबारों में चर्चा का सबब बनी थी। उन्ही दिनों मैं ये सोचने और बूझने में रम गया था कि क्या वाकई में , जैसा कि वो साधु बोलता देखा गया था किसी टीवी इंटरव्यू में, सोना दिलवा कर टनों की वजन मात्र में, देश को फिर से अमीर "सोने की चिड़िया" बनवाना चाहता था, — तो क्या सोना मिल जाने से देश अमीर बनता है? अगर अमेरिका अमीर है तो क्या वाकई ca

ISRO के वैज्ञानिक और भारत का गुलामी मानसिकता से निर्मित तंत्र

 ISRO के वैज्ञानिकों का दल, चंद्रयान–४ के मिशन के शीर्ष  के साथ तेलंगाना में तिरुपति दर्शन करके आशीर्वाद ले कर आए हैं, प्रक्षेपण से पहले। ये आचरण बेहद अंतर्द्वंद्व मचाने वाला, विरोधाभासी है।  क्योंकि विज्ञान और अंधस्था के बीच संगम होना स्वीकृत नहीं होना चाहिए सभ्य समाज में। ये गंगा और गंदे नाले का संगम स्वीकृत कर लेने जैसा है, समाज वालों से। दुखद ये है कि भारतीय तंत्र, जो वास्तव में एक हजार वर्षों की गुलामी में से पैदा हुआ है, उसमे ऐसे संगम को स्वीकार कर लेने की प्रवृत्ति अभी भी बनी हुई है, और अब ये लोग बड़े हठ के साथ वैश्विक धरोहर में भी यही संगम प्रचारित कर रहे है, विज्ञान संपन्न देशों में प्रवास करते हुए। भारत का गुलामी मानसिकता से निर्मित तंत्र, इसमें ऐसे विरोधाभासी लोगों को एक सफल, समाज का पथ प्रदर्शक बना देने की योग्यता है। ऐसे ही लोग देश पर शासन कर रहे हैं, विदेशों में जा कर देश का "गुणगान" करते हुए, अपनी ऐसी सोच प्रचारित करते हैं।  दुनिया को समझना होगा की भारतीय संस्कृति गुलामी के बेड़ियों को संघर्ष करके, तोड़ कर नही निकली है, यहूदियों के जैसे। हम लोग गुलामी में विलय

Recalling one television serial of early 90’s - “Bharat ki Chhap”

Recalling one television serial of early 90’s - “Bharat ki Chhap”   For the fifteen years of life, starting immediately after school, I went to sea on voyages doing what?   Perhaps, the measurement of the globe, and that of my own expedition to search for a new one . Although, geographically the world had already been discovered completely well before the time I came to sea, I believed there was still much left to discover, at least personally for myself.   The long voyages gave me enough time to browse through the diaries that I would write privately when I was at school. Oh by the way, I have not given up that habit even to this day. And so sometimes, I feel amazed with my own memory of how it sometimes succeeds in keeping almost a photographic record of events and occurrences and pops back at me every now and then, just by a random search. Or mayb e, while it is dusting down its library where it keeps all those records.   One such good memory that I wish to share with you all