An ocean of thoughts,earlier this blog was named as "Indian Sociology..my burst and commentary". This is because it was meant to express myself on some general observations clicking my mind about my milieu...the Indian milieu. Subsequently a realisation dawned on that it was surging more as some breaking magma within . Arguments gave the heat to this molten hot matter which is otherwise there in each of us. Hence the renaming.
Politics - the means of controlling the Fate
ग्रीक और जापानी संस्कृति ,बनाम हिंदुओं की संस्कृति
ग्रीक और जापानी संस्कृति ,बनाम हिंदुओं की संस्कृति
कबीर दास जी ने कहा हुआ है
पानी केरा बुदबुदा, अस मानस की जात।
देखत ही छिप जायेगा, ज्यों तारा परभात।।
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एक औसत बनारसी (और भारत वासी) का दिमाग केवल इस हद तक ही चलता है।
जापानी और ग्रीक(यूनानी ) हमसे श्रेष्ठ सभ्यताओं के दो नाम हैं, जो की अपनी सोच जीवन की अनिश्चितताओं के आगे ले जाने की काबिलियत रखती हैं। वो केवल ये नही सोचती है कि कैसे इंसान का जीवन भाग्य की डोर पर लटकता रहता है, कुछ भी तय शुदा नही है। अपितु वो ये भी सोचती है कि कही, कुछ तो फिर भी, निश्चित होता है,पूर्व तयशुदा होता है, जिसके बारे में पूर्व घोषणा,भविष्यवाणी सटीकता से करी जा सकती है। वो क्या क्या है, और कैसे उसके दम पर हम इंसान के जीवन को सुरक्षित बना सकते है, भाग्य की लटकाने वाली डोर से छुड़ा सकते है।
राजनीती में क्यों दिलचस्पी लेनी चाहिए? अमीर लोग क्यों राजनीती में दिलचस्पी रखते हैं?
राजनीती में क्यों दिलचस्पी लेनी चाहिए?
अमीर लोग क्यों राजनीती में दिलचस्पी रखते हैं?
क्यों कोई भी समाज Plebeian और Patrician में विभाजित हो ही जाता है , चाहे कितना भी समानता की बातें कर ले नियम बना ले।?
क्या अंतर होता है राजनीती में दिलचप्सी दिखने में -- एक Plebs वर्ग और एक Patrician वर्ग के सदस्य में ?
Quote,
ये विंध्याचल का programme ग़लत बना लिया है।
आइंदा से अगर अकेले जाओ, तब सिर्फ उतना ही कार्य करो, जितने के लिए यहाँ से बात करके निकली थी
@@र्य नया लड़का है, अभी vetting नही समझता है ,हालांकि ship पर पहुंच गया है
कहीं भी आने जाने से पहले ।मैं यहां पच्चीसों बातें सोचता हूँ, रिसर्च करता रहता हूँ, वो कहां यूँ ही मस्ती में गाड़ी बुक करके निकल ले रहा है तुन्हें और सब को ले कर 😡😡
गाड़ी , driving सड़क, driver कुछ भी नही समझता है
उसको ऐसा नही करना चाहिए
तुमहे माना करना चाहिए कि तुम्हे मेरी permission के बिना नही ले जा सकता है अब वो
😡😡😡
हो सके तो टालो
मना करो 😡😡😡
@@र्य दिमाग से अभी छोकरा किस्म का है
अंजान, अनदेखा, अज्ञात के प्रति दिमाग से खुद को तैयार नही किया है
Expect the unexpected में बिल्कुल ध्यान नही रखता है
मेने notice किया है,
गाड़ी में driver के संग आगे बगल में बैठा है, और सो गया है
तीतर ने रास्ता काटा और टकरा गया, उसने देखा तक नहीं
Level of alertness l--ow है
Low*
Driver कैसा चला रहा है, उसका judgment नही लेता रहता है
सड़क कैसी है, --- कोई judgment नहीं,
Traffic कैसा है, कोई judgment नही
गाड़ी कैसी है, कोई judgement नही
कान में plug लगा कर आराम से गाना सुनता हुआ आंख बंद करके सो जाता है, ख़यालों में खो जाता है
अगल बगल में कौन है, क्या कर रहे हैं, क्या इरादा हो सकता है उनका,
ऊपर नीचे क्या काम चल रहा है, judgment नही लेता रहता है,
Intuition कमज़ोर है, डब्बा छोड़ कर बदल लेता है, केवल शक्ल देख कर, आंखें देख कर
Full study नही मारता है व्यक्ति की, उसका डट कर सामना करने का secret plan नही रचता है दिमाग में
आकार करके बड़े आराम से उसके मुंह से निकलता रहता है, "उसमें हम क्या कर सकते है"
उसे नियंत्रण लेने की चेष्टा नही बनी रहती है
*अक्सर
उसमें क्रोध है, thinking नही है, intuition नही आया है gut feeling अशुभ को पहले से टोह लेने का
यही हाल @@रभ का है,
News paper और दुनिया की खबरों का विश्लेषण करके अपने ऊपर गिरने वाले संभावित प्रभावों पर पूरा शून्य चित्त है
Sirf शरीर की आँखों से दुनिया को देखते हैं, दिमाग की आँखों से नही, भविष्य में झांखने की कोई कोशिश नही करते हैं
राजनीति में दिलचस्पी भविष्य की टोह लेने का रास्ता होती है,ये बात नही समझते है,
दुनिया में घट रही नकारात्मक खबरों को नही पढ़ते है , अनुमान नही निर्माण करते हैं अपने दिमाग में
Corruption पर कोई टिप्पणी, कोई अंदाज़ा नही लगाते है कि कैसे, क्या हो जाता है
ISO, quality control, quality check पर कुछ हिसाब नही है
कच्ची पक्की सड़के, bridge, trains, hospitals, doctors ... सब ठन ठन हो कर केवल आँखों से देखते हैं, दिमाग से सोचते नही हैं
Police की कार्यवाही, court के तौर तरीके, .. सब दिमाग की सोच के परे बातें है
अपनी डोर आसानी से दूसरे के हाथ में थमा देते हैं
दोनों लोग
मुझ से पूछने की सोची तक नही, तुन्हें ले जाने से पहले😡😡😡
तुमने भी नही ख़याल किया 😡😡
फिलॉसोफी की पढाई करने का क्या लाभ होता है
फिलॉसोफी की पढाई करने का सबसे बड़ा लाभ यह होता है कि इंसान Root Cause Analysis(RCA ) करने में श्रेष्ठ बनता है।
प्रत्येक इंसान इस संसार को अपने अनुसार बूझ रहा होता है । ऐसा करने उसके जीवन संघर्ष के लिए आवश्यक होता है। संसार को चलाने के लिए कई सारी शक्तियां बसी हुई है। सफल जीवन के लिए इंसान को इन शक्तियों के अनुकूल या प्रतिकूल होकर जीना होता है। इसलिए उसको दो बातों का बौद्ध प्रतिपल लेना पड़ता है:-
1) किस विषय में कौन सी वाली शक्तियां प्रभावकारी है ?
2)और इस पल, उस विषय में उसे अपने जीवन निर्णयों को उन शक्तियों के अनुकूल लेना या प्रतिकूल लेना हितकारी होगा ?
प्रत्येक इंसान अपने अपने अनुसार विषयों के पीछे गहरे गर्त में छिपे "क्यों?" के सवाल को बूझता है। ये "क्यों?" से भरा हमारा जीवन -इसके पीछे में ये ऊपर वाली सच्चाई छिपी बैठी है।
क्या आपने कभी सोची थी ये बात ?
हम इंसान लोग हर पल गुत्थियां क्यों सुलझाते रहते हैं? क्यों हमें सच या सत्य की तलाश बनी रहती है ? क्यों हम सच को ढूंढ रहे होते है ? और क्यों हमें अक्सर सच का सामना करने में डर लगने लगता है ?
ये ऊपर लिखी बातें शायद आपको बोध करवा सकें।
बरहाल, हर एक इंसान अपने अपने अनुसार "क्यों " को कुछ भी , अपनी सुविधानुसार बूझ कर आगे बढ़ता रहता है। वो RCA करता है , हल पल। वो politics को बूझता है --अपनी सुविधा अनुसार। वो दूसरे लोगों के निर्णयों के पीछे के अनकहे कारणों को बूझता है -- अपनी सुविधा अनुसार। वो डॉक्टरों की रिपोर्ट को समझता है --अपनी सुविधा अनुसार। वो अख़बार पढता और घटनाओं के कारणों का संज्ञान लेता है --अपनी सुविधा अनुसार।
और फिर इन सभी "--अपनी सुविधा अनुसार" के चक्कर में आपस में, एक दूसरे से- सहमत और असहमत होता रहता है --अपनी सुविधा अनुसार।
ये ही इंसान के अस्तित्व में उसकी सोच के अंश का योगदान और सारांश है।
फिलॉसोफी का अध्ययन लाभ ये देता है कि वो बेहतर तरीके से RCA करने में योगदान दे सकता है। बिखरी हुई पढाई -- जो कि स्कूलों से हमें मिलती है - history civics , science maths laws arts करके , वे तब तक व्यवहारिक तौर पर लाभकारी नहीं हो सकती है जब तक उन्हें वापस सयोंजन नहीं किया जाये। फिलॉसोफी का अध्ययन यही संयोजन करने का कार्य करता है।
इसके अध्ययन के उपरांत हम जो RCA करते हैं, वो थोड़ा बेहतर होने की उम्मीद करि जा सकती है। वो प्रकृति से बेहतर तालमेल में हो सकते है , और हमें अनैच्छित तरीके से शक्तियों के विपरीत की स्थिति में ले जाने में बचा सकते है। हमें सच का सामना करने के लिए तैयार कर सकते है ऐसे कि सच हमें कडुवा न लगने पाए क्योंकि हमारा मन और भावनाएं पहले से ही सही अपेक्षा बनायीं हुई है।
फिलॉसोफी हमें आपसी सहमति और असहमति के अनंत चक्र से मुक्ति दिलवा सकती है। हमारे तर्क को प्रवीण और तीव्र करती है। हमारी भावनाओं को बहने के मार्गे में आने वाले भाषा और ज्ञान की कमी वाले रोहड़ों को सफा करती है। भावनाओं को बेहतर से बहने का मार्ग प्रशस्त करती है , और इस प्रकार से हमें अपने जीवन के श्रेष्ठ शिखर तक पहुँचवाने का अवसर दिलवाती है।
फिलॉसफी सिर्फ विषय का नाम नहीं है। ये एक चिन्तन करने की शैली है। तर्क करने की बौद्धिक क्रिया। एक प्रकार का योग है। जो इंसना तर्क ही नहीं करता है , वो बेहतर जीवन निर्णय लेने में कमज़ोर हो जाता है। तर्क करने का साधन होता है आपसी विमर्श। मगर आपसी विमर्श में ही तर्कों की भुलभुलैया भी बन जाती है। लोग आपसी विमर्श करते करते पथ भ्रमित हो सकते है और किसी गहरे गर्त में गिर कर खत्म हो सकते है। यहाँ पर आपको किताबी ज्ञान काम आता है। वही जो स्कूली शिक्षा से मिलता है। हमें आपसी विमर्श के दौरान वो पथ भ्रमित होने से बचा सकता है।
मगर एक हद के बाद इन स्कूली ज्ञान का आपस में विखंडन एक नया रोहड़ा बनने लगते है जो अपना उद्देशय पूरा कर सके हमें पथ भ्रमित होने से बचाने में। अब यहाँ पर फिलॉसोफी विषय का ज्ञान काम आ सकता है। इसकी सहायता से हम स्कूली subjects के history civics , science maths laws arts को वापस सयोजन कर सकते है , और एक बहु-उपयोगी नवज्ञान विक्सित कर सकते है।
क्या आपने कभी बूझा है कि स्कूली अध्ययन में subjects को क्यों विखंडित किया गया है ? किसने ऐसे किया होगा, और क्या सोच कर?
क्या आपको 17 वी शताब्दी के project encyclopedia के बारे में कुछ पता है? यदि नहीं , तो तलाश करिये। वो आपको सवालो के जवाब पर ले जायेगा। छोटे बालको के अविकसित मन और बुद्धि में आसानी से नव अर्जित विज्ञान को बीज-रोपित करने के उद्देश्य से ये subjects विक्सित हुए थे। project encylopedia का उद्देश्य था संसार में उपलब्ध समस्त ज्ञान को संग्रहित करने का। और इसके दौरान जब ये महसूस किया गया कि कैसे इस विशाल ज्ञान संग्रह को लाभकारी बनाएंगे तब subjects की नीव डाली गई , आधुनिक school सिस्टम चालू किये गए और बच्चों को आयु के अनुसार वर्गीकृत करके streaming पद्धति के अनुसार classes में विभाजित करके ये ज्ञान प्रदान किया जाने लगा।
इसमें दिक्कत यह थी कि वास्तविक जीवन और प्रकृति में तो कुछ भी घटना के पीछे के "क्यों " के तर्क विखंडित नहीं होते है, subjects के अनुसार। ये बात कुछ ऐसे हुई कि प्रकिति में तो सब कुछ raw यानि कच्चे रूप में बस्ता है , मूल तत्व रूप में शायद ही कुछ होता है। प्रकृति सिर्फ मिटटी देती है , लोहा aluminium copper zinc gold diamond नहीं। तो फिर ऐसा न हो कि स्कूली शिक्षा से आया इंसान सिर्फ इन मूल तत्वों को किताबी ज्ञान से जानता हो, इन्हे प्रकृति की दी हुई मिटटी में से निकालने की कला भुला बैठे। या कि, अगर उसे वापस मिटटी मिल जाये तो बालक रुपी इंसान मिट्टी को पहचान कर अपने खपत के लिए तब्दील करने की कला बुला दे।
ये स्कूली शिक्षा की हद का सवाल है। आपको इन हदों को पहचानने और खुद से बूझने का सवाल है।
philosophy का ज्ञान यहाँ कार्य सिद्ध करता है।
राजनीति आदर्शों से करनी चाहिए, या पैंतरेबाजी से ?
क्यों हो रहा है विश्व व्यापक प्रजातंत्र का पतन?
क्यों हो रहा है विश्व व्यापक प्रजातंत्र का पतन?
क्योंकि शायद प्रजातंत्र अव्यवहारिक, निरर्थक हो गए हैं समाज को स्थिर और उन्नत बनाए रखने में? क्या ऐसा कहना सही है?
यदि समाज में विज्ञान औ प्रोद्योगिकी नही बढ़ रही हो, तब शायद प्रजातंत्र निर्थक हो जाते हैं। अलग अलग गुटों को बारी बारी से जनधन को लूट खसोट करने का मौका देते है बस, और कुछ नहीं। इस प्रकार से प्रजातंत्र मूर्खता और पागलपन का दूसरा पर्याय समझे जा सकते हैं।
इसी लिए कुछ अंतर के साथ नए प्रकार के चरमवादी प्रजातंत्र निकल आए हैं। शुरुआत दक्षिणपंथियों ने करी है। समूचा तंत्र जीवन पर्यंत हड़प लेने की पद्धति लगा दी है, प्रत्येक संस्था पर अपने लोगो तैनात करके।
इनमे स्थिरता है या नहीं, समाज और दुनिया को शांति देने का चरित्र है या नही , ये अभी देखना बाकी है।
फिलहाल ये नए चरमवादी प्रजातंत्र परमाणु बमों की धमकी पर विश्वशांति कायम कर रहे हैं। जो कि अत्यंत असुरक्षित है,कभी भी खत्म हो सकती है, एक छोटी सी चूक से।
देश के भीतर ये तंत्र तीव्र असंतुष्टि को जन्म दे रहे हैं। ये अमीर गरीब के फासले बढ़ा रहे हैं। बेरोजगारी और शोषण ला रहे हैं, भ्रष्टाचार को एक पक्षिय कर के सारा धन केवल कुछ सत्ता पक्ष घराने की झोली में डाल रहे हैं। सरकारी संरक्षण वाला वर्ग खुल कर खा रहा है। झूठ, मक्कारी, अल्पसंख्यकों का दमन सरकारी संरक्षण में हो रहा है। नागरिक स्वतंत्रता की गुपचुप निगरानी हो रही है। सरकार ही शोषण भी कर रही है, और बचाव का ढोंग भी।
देखना होगा, कहां ले कर जायेंगे देश दुनिया को, नए चरमपंथी प्रजातंत्र।
सुंदरता क्या होती है — एक विचार- लेख
जब कैमरे में कैद तस्वीर हमें हमारा चित्र दिखाती है, तब हम में आत्म मुग्धता आती है
यादें वो नहीं होती है जो आप कैमरा में कैद करते हैं, chip के ऊपर। यादें वो होती हैं जो आपका दिमाग और दिल दर्ज करता है, आपकी भावनाओं के पटल पर। कैमरा सिर्फ दृश्य रखता है, यादें दिल में रखी जाती है।
कूटनीति के अन्त महायुद्धों से होता है
संकुचित (संकीर्ण) मानसिकता और बद व्यवहार से इंसान अपने शत्रु बढ़ाता है
प्रभुत्ववादी सरकारें क्यों अपेक्षा के विपरीत, और अप्रत्याशित व्यवहार रखने को बाध्य बनी रहती हैं?
कूटनीति और 'कारण' बनाम 'भावना'
(borrowed from the Internet)
कूटनीति यानी जनता से वोट बटोर कर शासन शक्ति को अपने स्वार्थ के लिए हड़पने वाली राजनीतिHow to work with the self-congratulatory, megalomaniac governments?
(borrowed from the Internet)
This is a megalomanic's Govt . It is more narcissistic in its approach, It doesn't think that our country needs to do anything TO ACHIEVE the greatness. It wants to do things TO PROVE that the greatness is already here.
That's the way one can work with these people. Don't tell them targets which may look as if they are striving for improvement . Tell them targets which may help them prove to the rest of the Indians, their rivals and the whole world that the greatness is already with them .
राजा का असल धर्म दान दक्षिणा करना, या देशद्रोहियों को पहचान कर दंड देना नही होता है
प्रजातंत्र हड़प लिए जाने से क्या फर्क पड़ा है देशों पर
Why we are either Far-right wingers, or the Far -left wingers ? Why are most people so? Why are we bigoted?
क्या राजनैतिक झगड़ा चल रहा है वर्तमान भारत में 'इतिहास' और 'हिन्दू राष्ट्र' के इर्दगिर्द
सिग्मंड फ्रॉएड और शिक्षित तथा अशिक्षित व्यक्ति का अंतर
–भाग २
इंसान संसार को जिस आधारों से देखता, समझता, उच्चारण करता है, वे cognitive schemas कहलाने वाले बिंदु इंसान को अपने पर्यावरण,निकट संबंधियों,मित्रो और शिक्षा से प्राप्त होते हैं। प्रत्येक इंसान अपने मतानुसार संसार को चलाने वाली शक्तियों को बूझता रहता है,ताकि वो इन शक्तियों को अपने हित में, सुख सुविधा के लिए नियंत्रित कर सके। इस शक्तियों का बोध प्रत्येक इंसान में भिन्न होता है–ये क्या है, कैसी हैं, इत्यादि।
शिक्षित व्यक्ति और गंवार(अशिक्षित) का अंतर यही से आता है।
इन शक्तियों को बेहतर समझते बूझते और फिर जीवन में अधिक सफल होते हैं, वे अक्सर ऐसे लोग होते हैं, जो किन्हीं अकादमी में जा कर पुराना, संजोया हुआ, संरक्षित ज्ञान किताबों से प्राप्त करते हैं। वे शिक्षित लोग समझे जाते हैं।
और गंवार वे होते हैं, जो इन शक्तियों का बोध अपने जीवन अनुभव, मित्रो, पर्यावरण से निर्मित करते हैं। अक्सर ऐसे लोग कम सफल होते हैं।
छोटे बालको को कंप्यूटर का इतिहास पढ़ाया जाना क्यों जरूरी होता है ?
साहित्य (यानी कहानियां , कविताओं, फिल्मों, टीवी नाटकों , उपन्यासों इत्यादि) को छोटे बच्चों को कैसे पढ़ाया जाना चाहिए?
ब्राह्मणवाद क्या है? इसको कैसे समझा जाये?
गैर–ब्राह्मण हिंदू समाज में ब्रह्म की पूजा क्यों नहीं करी जाती है
धरती पर सिर्फ एक ही मंदिर था, पुष्कर (राजस्थान) में, जहां कि ब्रह्मा की पूजा होती थी।
जानते हैं क्यों?
पुराने लोग आपको बताएंगे कि तीनों महादेवों में सिर्फ ब्रह्म जी की ही पूजा नहीं करी जाती है क्योंकि उन्होंने एक बार झूठ बोला था ।
मगर आजकल ऐसा नहीं है। दरअसल ये चलन टीवी के युग में चुपके से ब्राह्मणों ने साजिश करके बदल दिया है ! क्योंकि ब्राह्मण लोग खुद को ब्रह्म की संतान बताते हैं, तो फिर वो कैसे अपने परमपिता, ब्रह्मा, की संसार में ऐसी अवहेलना होते देख सकते हैं। इसलिए उन्होंने थोड़ा हिंदूवाद, धर्म-पूजा पाठ, आस्था का चक्कर चलाया और नई पीढ़ी को हिंदू – मुस्लिम करके बेवकूफ बना लिया है।
पुराने लोग आपको शायद ये भी बताते कि कैसे हिंदुओं का कोई भी त्रिदेव अवतार जिसकी पूजा हुई है संसार में, वो ब्राह्मण वंश में नहीं जन्मा। और यदि किसी त्रिदेव ने ब्राह्मण वंश में जन्म लिया भी, —तो फिर उसकी पूजा नहीं करी गई संसार ने। जैसे कि, —
राम चंद्र जी — विष्णु अवतार, क्षत्रिय वंश में थे, और संसार में पूजा होती है
भगवान कृष्ण — विष्णु के अवतार , क्षत्रिय हुए और संसार में पूजा होती है
वामन — विष्णु के अवतार , ब्राह्मण कुल में थे, मगर उनकी पूजा नहीं हुई संसार में।
दक्षिण भारत में मात्र दो वर्ण माने जाते रहे है - क्षत्रिय और ब्राह्मण।
जबकि उत्तर भारत में चार वर्ण हैं — ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, और शूद्र।
ऐसा क्यों ? और उत्तर भारत में ये "भूमिहार" जाति का क्या चक्कर है?
मान्यता यूं थी कि ब्राह्मण थे ब्रह्मा के वंशज, जबकि क्षत्रिय थे विष्णु के वंशज। संसार की मान्यताओं के अनुसार सबसे महान और आदिदेव थे— सदाशिव, महादेव। और फिर विष्णु को स्थान मिला। और सबसे नीचे के पद पर आए ब्रह्म जी। तमाम पौराणिक कथाएं इस बात को प्रतिपादित करती रहती हैं, जैसे कि दक्षिण भारत, केरल में राजा बलि और वामन की कथा। टीवी युग से पहले, मूल मान्यताओं में दक्षिण भारत में ओणम के पर्व में वामन देवता की पूजा नहीं करी जाती थी, जबकि वामन को विष्णु का अवतार जरूर मानते थे।
सोचिए, कि वामन की पूजा क्यों नहीं होती थी?
क्योंकि वामन, जो की विष्णु जी का ब्राह्मण जाति अवतार माना गया है, उसने धोखे से अपनी प्रजा में प्रिय राजा, बलि, को बातों में फंसा कर के उससे उसका राज्य हड़प लिया था। इस कथा से जनता के मन में यह बात घर कर गई थी कि ब्राह्मण, जो बुद्धि से और वाकपटुता में अधिक सुसज्जित होता है दूसरी जातियों से, वो अपने कौशल और गुणों का प्रयोग छल करने के लिए करता है, तथा बातों में फंसा कर आप से संपत्ति हड़प लेता है।
इससे पहले ब्रह्मा जी के रावण से झूठ बोल देने की बात तो पहले ही संसार में जानी जाती रही थी, और जिसके लिए संसार में ब्रह्मा की पूजा करने का चलन समाप्त हो गया था।
आजकल , मगर , टीवी युग में फिर से ब्राह्मणों ने चतुर चंटई करके नए नए चलन निकाल दिए हैं।
आजकल महर्षि परशुराम जी की भी जयंती मनाई जाने लगी है। जबकि टीवी युग से पूर्व , मूल मान्यताओं में, परशुराम की भी पूजा नहीं करी जाती थी। ये सब बदलाव ब्राह्मण समुदाय की चालाकी का कमाल है, जिसे कि हमारे अनजान, नादान बच्चे टीवी से देख सीख कर असली सामाजिक और पौराणिक ज्ञान को भुलाते जा रहे हैं।
परशुराम भी तो ब्राह्मणों के भगवान है, खासतौर पर भूमिहार लोगों के जनक देवता।
भूमिहार कौन हैं? और उनकी उत्पत्ति की क्या कहानी है? संसार में इनके प्रति क्या आस्था थी, टीवी युग से पूर्व?
दरअसल एक समय ऐसा भी आया था समाज में, जब ब्राह्मणों की सभी गैर–ब्राह्मण जनों से शत्रुता हुआ करती थी। ये हुआ था भगवान बुद्ध के आगमन के बाद। भूमिहार की उत्पत्ति ब्राह्मणों में से हुई मानी गई है, — वो ब्राह्मण जिन्होंने शास्त्र रख दिए थे और शस्त्र उठा लिया थे। भूमिहार शब्द के प्रयोग उत्पत्ति की कहानी यूं है कि जिन ब्राह्मणों ने धरती यानी भूमि का आहार लेना शुरू कर दिया था, वे भूमिहार कहलाने लगे। मूल मान्यताओं में ब्राह्मण केवल दक्षिणा लेकर ही आहार करते थे, खुद से खेती करके भूमि से उगा कर के नहीं। मगर बुद्ध के आगमन के बाद में, बुद्ध की शिक्षा से जब संसार प्रभावित होने लगा तब लोगों ने धीरे धीरे करके ब्राह्मणों से नाता तोड़ लिया और दक्षिणा देने का चलन करीबन समाप्त हो गया। ऐसे में ब्राह्मणों को मजबूरी में खुद से खेती और पशुपालन करने पर उतरना पड़ गया था। ऐसा मौर्य शासन काल में अधिक प्रसारित हुआ संसार में। बौद्ध लोग अहिंसा में आस्था रखते थे ,और भगवान बुद्ध की तरह अपने शत्रु को प्रेम के बल पर विजई होने की आस्था रखते थे, ठीक वैसे जैसे भगवान बुद्ध ने डाकू अंगुली मल का हृदय परिवर्तन करके उस क्रूर डाकू पर विजय प्राप्त करी थी।
ब्राह्मण का आरोप बौद्धों पर,आजतक, ये है कि बुद्ध की ऐसी शिक्षा के चलते ही भारत कमजोर हुआ और तब यहां के क्षत्रियों ने शस्त्र उठाना बंद कर दिया। जिससे की भारत हारता रहा हर एक आक्रमणकारी से, खासतौर पर मुस्लिमों के हाथों।
फिर जब मौर्य काल और नंद वंश के दौरान यूनानी सम्राट alexander ने हमला किया था, उस दौरान ब्राह्मणों ने अपनी खेती बाड़ी की भूमि की रक्षा करने के लिए शस्त्र उठाना शुरू कर दिया और वही लोग भूमिहार कहलाने लग गए।
भूमिहारों की बौद्धों और जैनियों से नहीं बनती थी, क्योंकि भूमिहार अपने दार्शनिक विचारों से हिंसा करने में आस्था रखते थे, जबकि बौद्ध और जैन दोनो ही अहिंसा के पुजारी थे।
कहा जाता है कि इसी युग काल के दौरान जैन लोग भगवान महावीर और चार्वाक संस्कृति में आ गए, नास्तिक बन गए और इन लोग ने ब्राह्मणों के रचे शास्त्रों में आस्था रखना बंद कर दिया। जैन समुदाय आज भी ब्राह्मणों के रचे वेद ,उपनिषद और अन्य शास्त्रों में आस्था नहीं रखते हैं हालांकि अपना ये रवैया वो लोग छिपा कर गुप्त रखते हैं।
और गुप्त क्यों रखते है, ये सवाल आपको खुद से बुझना होगा इस लेख को पढ़ने समझने के बाद में।
भूमिहारों के प्रथम राजा, पुष्यमित्र शुंग, ने नंद राजा बिम्बिसार की छल से हत्या करके शासन अपने कब्जे में कर लिया। नंद और मौर्य राजा लोग बुद्ध और जैन दोनो में आस्था रखते थे, और ब्राह्मण के रचे शास्त्रों से विमुख हो चुके थे। मौर्य काल में ब्राह्मणों का शासन में प्रभुत्व नहीं हुआ करता था । मगर अब भूमिहार राजा, शुंग के आ जाने के बाद से वापस ब्राह्मण खुद ही राजा बन कर वापस सत्ता और प्रभुसत्ता में लौट आए । और इसके बाद भूमिहारों ने बौद्ध भिक्षुओं और जैन मुनियों पर बहुत सितम किए और कईयों का वध कर दिया। कुछ जैन मुनियों के दावे कहते हैं की एक रात में आठ हजार से अधिक जैन मुनियों का सिर काट दिया गया था, भूमिहारों द्वारा।
मौर्यों और नंदों के शासन के समय भारत की भूमि आज तक की सबसे विशाल क्षेत्रफल की थी। मगर भूमिहारों के बाद से ये वापस छोटे छोटे राज्यों में टुकड़ों में विभाजित हो गई , और छोटे छोटे नए राज्य निकल आए जो आपस में शत्रुता रखते थे।
आपसी शत्रुता इसलिए शुरू हुई, क्योंकि इससे पूर्व मौर्यों के दौरान बौद्ध शिक्षा की जब शासन पर मजबूत पकड़ थी, तब राजा लोग अच्छे शासन करने पर अधिक व्यसन करते थे, बजाए की अपने अहम को पालते रहे और महत्वाकांक्षी बन आपस में द्वंद करें।
ब्राह्मण महत्वकांक्षी होते हैं, अहम पालते हैं मन ही मन में और प्रभुत्व रखने की गुप्त इच्छा रखते हैं। जबकि बौद्ध और जैन अपने आत्म संयम से अहम को नियंत्रित या विजई होने में व्यसन करते हैं। इसलिए ही बौद्ध अक्सर अधिक विनम्र और शांतिप्रिय होते हैं, ब्राह्मणों के मुकाबले।
मगर जब संसार पर बौद्ध शिक्षा का प्रभाव समाप्त होने लग गया , तब संसार में अहम और अभिमान , प्रभुत्व करने की लालसा वाली शक्ति पैर जमाने लग गई। बस यही से भारत में टुकड़े टुकड़े हो कर छोटे छोटे राज्य निकल आए जो आपस में शत्रुता पालते थे।
ये सब ब्राह्मणी सोच और शिक्षा का कमाल था, और जो की बौद्ध और जैन शिक्षा से वैमनस्य पालते हुए निर्मित हुई थी। बौद्ध की सोच से ठीक उल्टी सोच।
ब्राह्मण बनाम बौद्ध तथा जैन के संघर्ष की कहानी
भूमिहारों के सत्ता में आने से संसार भूमिहार राजाओं के चलाए गए ब्राह्मणवाद के चपटे में आ गया। शायद इसी काल के दौरान जातिवाद ने वो चिरपरिचित ऊंच–नीच वाला चरित्र पकड़ लिया था, जिसमे कि शूद्रों के साथ अमानवीय , अछूत व्यवहार करने का सामाजिक चलन निकल पड़ा था। ये शायद ब्राह्मणों के प्रतिशोध में से निकला व्यवहार था, समाज में। ये सभी इतिहासिक घटनाएं उत्तर भारत में घटित हुई थीं। और शायद ये बात उत्तर दे सके कि क्यों उत्तर भारत में चार सामाजिक वर्ण बने जबकि दक्षिण भारत में दो सामाजिक वर्ण रह गए।
ब्राह्मण–भूमिहार राजाओं ने बौद्धों को समाप्त तो किया ही, साथ में उनकी अनाथ संतानों को परिवर्तित करके हिंदुओं में वापस ले लिया तथा नीचे की वर्ण व्यवस्था निर्वाचित कर के पीढ़ियों तक अपना दास बनाने हेतु तैयार करना आरंभ कर दिया। तब से ले कर आज तक पीढ़ी दर पीढ़ी लोग ब्राह्मणी सोच से ही संसार को देखते समझते हैं। खुद को 'हिंदू' मानते है, और ये तक स्मरण कर सकते हैं कि कभी किसी युग में उनके पूर्वज बौद्ध अनुयाई हुआ करते थे। हालांकि अद्भुत बात ये है कि समाज में ब्राह्मणों के प्रति विरोध आज भी व्याप्त है, मगर जो की जातिवाद के रूप में देखा और जाना पहचाना जाने लगा है । आज उत्तर भारत कि राजनीति जातिवाद के मुद्दो पर चलती हुई जानी और देखी जाती है, जिसमें झगड़े की हड्डी (bone of contention) की भूमिका निभाता है आरक्षण का विषय। तो देशवासी, जो ब्राह्मणवाद, पुष्यमित्र शुंग या भूमिहार की उत्पत्ति के विषय में सत्य ज्ञान नहीं रखते हैं, वे समाज में व्याप्त ब्राह्मण विरोध की ललक को आरक्षण की राजनीति के रूप में देखते- समझते हैं ।
इधर, बाद के समय में भूमिहारों ने भी अपने उत्पत्ति की कथा वैदिक घटनाओं से होने की रच –बुन ली और समाज में प्रसारित करना आरंभ कर दिया, की कैसे भूमिहार लोग महर्षि परशुराम से उत्पत्ति करें है, वैदिक युग से। ऐसा प्रसारण हो जाने से समाज में अबोधता और अज्ञानता व्याप्त हो गई ,जिसने सत्य सामाजिक–इतिहासिक ज्ञान को अगोचर हो जाने में सहायता किया।
बौद्ध धर्म भारत में उत्पत्ति हुआ और कई सारे अन्य देशों में प्रचलित हुआ, जिसमे पूर्व के देश –चीन , जापान, कोरिया, वियतनाम, थाईलैंड, बर्मा, तिब्बत,श्रीलंका, कंबोडिया, मलेशिया, इंडोनेशिया, वगैरह विशेष है । मगर ये इतिहासकारों में आश्चर्य का विषय रहा है कि आखिर ये धर्म भारत में ही क्यों इतना कम प्रचलित छूट गया। इस सवाल का जवाब भी शायद ये बौद्ध–भूमिहार संघर्ष की कहानी में छिपा हुआ है।
आज कल अपना कुलनाम "सिंह" कोई भी रख लेता है और तर्क देता है की इसका अर्थ तो क्षत्रिय वंश के संबद्ध होने से होता है, मात्र।
जबकि आज भी बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के पुराने लोग आपको बताएं वास्तव में "सिंह" कुलनाम इस क्षेत्र में केवल भूमिहार लोग रखते थे, जो की उनके प्रथम राजा, पुष्यमित्र शुंग, के नाम में से उत्पत्ति हुई थी। तत्कालीन युग में केवल शक्तिशाली भूमिहार जाति के लोग ये नाम रखते थे और दूसरे लोगो को ये कुलनाम नहीं रखने दिया जाता था — ताकि कोई छल से उनके समाज में न बैठने लग जाए ! और फायदा निकाल ले ।
जी हां, ये अजीबोगरीब बात है, मगर दूसरी जातियों आज वही कुलनाम प्रयोग करने लगी है, जो की किसी समय उनके पूर्वजों के सितमगर हुआ करते थे। 🙀🤫🤫😳
इतिहास और समाजशास्त्र में दुखद मगर कड़वा सच ये है की संसार में कई बार जब वंशवध घटे हैं, नरसंहार किए गए है, तब कोई कहानी बताने वाला भी जीवित नहीं बचा है। और ऐसे में मरने वालो की अनाथ हुई संतानों ने अनजाने में उसे ही अपना जनक मान कर उसकी प्रथा को निभाना शुरू कर दिया जो कि उसके वास्तविक माता पिता का हत्यारा था ! 😳😥🤫
भारत भूमि पर तो खास तौर पर इस प्रकार की कष्टदाई घटनाएं आपको बार बार देखने को मिलेंगी जब बड़े ही फक्र से, किसी उलूम जुलूल तर्क के लपेटे में फंसे हुए, कुछ लोग बड़ा विचित्र काम कर रहे होते है, जिसकी उनको टोह भी नहीं होती है कि सांस्कृतिक इतिहास की दृष्टि से इसका क्या अर्थ होता है, ये कितना बड़ा अनर्थ कर्म है।
संसार में लोगों को शायद ये भी नहीं एहसास होगा कि आज जो इतने दमखम से हिंदू बने हुए हिंदू धर्म को मुसलमानों से बचाने के लिए जमे हुए है, वो सब कभी किसी युग में बौद्ध थे और ब्राह्मणों के रचे शास्त्रों से अलग हो चुके थे।
ऐसा सब कमाल हुआ है नृशंस नरसंहारों की बदौलत, जिसमे कोई भी जीवित नहीं बचा था कहानी बोलने और लिखने को। बस कुछ दंतकथाएं ही रह गई हैं, और कुछ एक अजीब से दिखने वाले व्यवहार और घटनाएं, जो अवशेष बनी हुई गवाही देती है की कहीं, कुछ तो अटपटा रहस्यमई है, जिसके सच को आधुनिक काल में लोग भूल चुके हैं।
चाणक्य और अर्थशास्त्र के प्रति क्या अजीब बात है? क्या जानते हैं आप इसके बारे में?
चाणक्य मौर्य शासन काल का चरित्र है। मौर्य शासन के बारे में पुरातत्व विज्ञानी, जो की इतिहासकारों का कर्मवादी प्रमाण देने वाला वर्ण होता है, वो बताते हैं कि करीब २ री शताब्दी ईसा पूर्व में थे। मगर चाणक्य नामक के बारे में जो भी जानकारी जानी जाती है, वो ६ वी शताब्दी में रचे गए एक काव्य में से मिलता हैं –मुद्राराक्षस — जिसे विष्णुगुप्त नामक किसी कहानीकार ने लिखा था। चाणक्य के व्यक्तिगत जीवन के बारे में कुछ भी तथ्य उपलब्ध नहीं है, कि उसका जन्म कब हुआ, माता - पिता कौन थे, पत्नी और संतान कौन थी। सिवाय इसके कि वो ब्राह्मण था। ये सब बातें इशारा करती हैं कि संभवतः ये काल्पनिक चरित्र है, जिसे ब्राह्मणों ने रचा था लोगों की स्मृति में से बौद्ध अनुयायी शासकों की, जो अशोक के वंश के थे, उनके सुशासन की उपलब्धियों को हड़पने के लिए ! (To appropriate the legacy of good governance by the Mauryan Rulers) ।
भूमिहार ब्राह्मणों के हाथों से जैन मुनियों की प्रताड़ना का इतिहास भी आज करीबन विलुप्त हो कर भुलाया जा चुका है। सिवाय कुछ एक जैनियों के, लगभग सभी इस ऐतिहासिक सांस्कृतिक घटना को भूल चुके है। फिर भी, आचार्य ओशो रजनीश , जो की जैन थे, उनका 1980 के आसपास का रिकार्ड किया हुआ एक अभिभाषण सहज उपलब्ध है इंटरनेट पर, जिसमे वो प्रश्न कर रहे हैं कि चार्वाक का साहित्य क्यों नष्ट कर दिया – ब्राह्मणों ने । और फिर एक विस्तृत वाचन देते हैं कि ब्राह्मणों को क्या दिक्कत थी चार्वाक की नास्तिक विचारधाराओं से, जो ब्राह्मणों ने जैनों की प्रताड़ना तो करी ही, साथ में उन के साहित्यों ग्रंथों को भी नष्ट कर दिया था।
क्यों एक इंजीनयर या डॉक्टर को कदापि IAS IPS नहीं बनाना चाहिये
जन्मजात पंडित और व्यक्तिव का confidence का भारत के जनमानस पर धाक
हमारे एक मित्र, मxxष मिश्रा, कुछ भी लेख लिखते समय confidence तो ऐसा रखते हैं जैसे विषय-बिंदु के 'पंडित' है, जबकि वास्तव में ग़लत-सलत होते हैं। तब भी, उनके व्यक्तित्व में confidence की झलक होने से उनके लाखों followers है !
सोच कर मैं दंग रह जाता हूँ कि देश की कितनी बड़ी आबादी अज्ञानी है, जिसका कि जगत को पठन करने का तरीका ही मxxष मिश्रा जैसे लोगों के उल्टे-शुल्टे लेखों से होता है, सिर्फ इसलिये क्योंकि मxxष जी जन्मजात पंडिताई का confidence रखते हुए लोगों को आसानी से प्रभावित कर लेते हैं ।
भारतीय सांस्कृतिक परिवेश में तमाम प्रबंधन शिक्षा के गुरु लोग ऐसे ही नहीं बार-बार 'व्यक्तिव में confidence' रखने की बात दोहराते रहते हैं। बल्कि वो लोग तो सफाई भी देते रहते हैं कि अगर आप के व्यक्तिव में confidence है, तब अगर आप ग़लत भी हो, तब भी आप अपनी बात को जमा सकते हैं।
प्रबंधन गुरु लोग ग़लत नहीं हैं। हमारे देश की आबादी में औसत आदमी किताबी अध्ययन करने वाले बहोत ही कम हैं। ऐसे हालात में लोगों को किसी भी विषय पर सही-ग़लत का फैसला करने के संसाधन करीब न के बराबर होते हैं। ये देश अज्ञानियों का देश है। मूढ़ लोगों का देश, जहां की संस्कृति में मूर्खता समायी हुई है। कम संसाधनों के चलते लोग बाग हल्के तरीकों से गूढ़ विषय पर तय करने को बाध्य होते हैं कि बात सच है या कि झूठ। सत्यज्ञान है, या कि नहीं। ऐसे में, व्यक्तिव का confidence , भले ही बनावटी हो, विषय की गहन पकड़ में से नहीं उभरता हो, सत्यज्ञान के स्वाभाविक आवेश में से नहीं उद्गम करता हो, तब भी लोगों की बीच वो धाक जमा सकता है।
यानी,
अगर आप असल ज्ञानी पंडित न भी हो, बनावटी अथवा जन्म-जात पंडित होने से भी यदि "व्यक्तिव का confidence" रखते हो, तब भी , कम से कम भारतीय संस्कृति में तो आपकी धाक जम जायेगी !
आरएसएस का देश के बौद्धिक चिंतन, जागृति पर दुष्प्रभाव
What is the difference between Caste and Community
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