क्यों हम भारतवासी अभी तक आने स्वाभविक चिंतन से एक राष्ट्र सूत्र में नहीं बंध सकें हैं

सच मायनों में हम सभी भारत वासियों को यूँ ही किसी बहती हवा ने या किसी आक्रमणकारी के डर ने धकेल के एक साथ ला खड़ा किया है,

और इस भय के प्रकोप में हम लोगों ने बिना किसी आपसी समझ, एक दूसरे के स्संकृति के ज्ञान के बगैर,

"बस, यूँ ही" हल्ला मचा मचा कर

खुद को "भारतीय" कहना, पुकारना शुरू कर दिया था, और भारत नाम का एक "राष्ट्र" घोषित कर दिया है।

जबकि, आज, social media के आने के बाद हमने एक दूसरे की संस्कृति का ज्ञान सांझा करके, एक दूसरे को जानना शुरू ह8 किया है, बस ।

अभी तो तमाम बखेड़े उठने बाकी है, इन नई नवेली जानकारियों में से

और फिर उसके बाद में, इन ज्ञान कोष का हिसाब " बिठाया जायेगा कि कैसे, कहां पर इन ज्ञान को संतुलित करें, ताकि एक आम "भारतीय संस्कृति" को तैयार किया जा सके, जो हमें वाकई में एक "भारत राष्ट्र" की सही, संतुलित पहचान दे सके

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