रस्मों रिवाज़ को जानना और पालन करना क्यों जरूर है

याद है, एक बारी मैं जब रात में बाथरूम करने के लिए उठा था, तब अचानक से चक्कर खा कर गिर पड़ा था।

एक बारी तुम भी तो कोलxxx में xxxक्ष्मी के मंदिर में अचानक से गिर पड़ी थी, चक्कर खा कर।

निxxx भी आज X ray करवाते समय अचानक से चक्कर खा कर गिर पड़ा था।

ये सब ठीक नहीं, हालांकि ऐसा होना कोई अत्यंत गंभीर बात नहीं है। हमने कई बार अपने स्कूल के दिनों में बच्चों को चक्कर खार गिर पड़ते देखा है। कई कई बार मैने खुद भी चक्कर को महसूस तो किया हैं, मगर समय रहते ही संभल गए और तनिक ठहर गए, वही रुक गए, आसपास कही बैठ गए, या किसी चीज का सहारा ले कर टेक लगा लिया, गिरने से बचने के लिए।

व्यक्ति को अपने खुद के भीतर के हालात को महसूस करने वाले तंत्र हमेशा सचेत रखने चाहिए और पूर्वाभास लेने को हमेशा तत्पर रहना चाहिए। यूं गिर पड़ना ठीक नही है।

ये चक्कर आने के हालात भी यूं तो ठीक नहीं होते है, हालांकि कई सारे लोगो को ऐसा चक्कर का आ जाना कुछ खास हालातों में होता है, जिन आम हालातों के बारे में हमेशा जानकारी रहनी चाहिए। जैसे कि, किसी अंधेरे कमरे से अचानक से रोशनी में जाने पर चक्कर आ सकते हैं; या कि, ठीक उल्टा, अधिक रोशनी से अंधेरे में जाने पर चक्कर आ सकते हैं।

वैसे ही, खाना खाने के तुरंत बाद कुछ चहल कदमी, उछल कूद या अधिक शरीर को हलचल देने वाली कोई भी क्रिया कर देने से चक्कर आ सकता है। 

 और वैसे ही, अधिक ताप परिवर्तन , यानी गर्म से ठंडे में प्रवेश कर देना, या ठंडे से गर्म में प्रवेश हो जाने से भी चक्कर आ सकता है।

बाथरूम में अचानक से तेज pressure को निवृत करने पर भी शरीर में दौड़ते हुए लहू में दिशा परिवर्तन होने से लहू की धिम्नियों के भीतर में तीव्र हलचल होती है, जिसे physics की भाषा में turbulance बुलाया जाता है। उससे भी चक्कर आता है मस्तिष्क को।

गहरी नींद में सोते हुए व्यक्ति को अचानक से झटका देकर जगा देने से भी ऐसे हालात बन सकते है। इसीलिए इंसान को नींद से धीरे धीरे मधुर, और धीमी आवाज देकर ही जगाना चाहिए।

ये जानना जरूरी है कि हर बार बात केवल चक्कर तक नहीं सीमित रहने की गारंटी होती है। लहू को इधर उधर दिमाग में चढ़ जाने से stroke में तब्दील हो जाने का खतरा भी बना रहता है। 
इंसान को इसके प्रति हमेशा सचेत होना चाहिए।

बेहतर होगा कि हम अपनी दिन प्रतिदिन की आदतों में ही ऐसे रस्मों- रिवाज डालें कि गलती या अनजाने से भी हमसे एहतियात न टूटे इन हालातों के प्रति।

रस्मों रिवाज़ यहीं पर जरूरी पड़ते है व्यक्ति को, जिन्हे वह समाज से देख देख कर सीखता रहता है। एक ऐसा ही रस्मों रिवाज़ का उदाहरण है— किसी भी मेहमान के घर पर आने पर उसे कुछ मीठा दे कर पानी पिलाना, या की शरबत पिलाना, शिकंजी या lemon juice पिलाना। गर्मी के हालातों में अधिक पसीना बहने से शरीर में ऊर्जा की कमी आती है, तकनीकी शब्दों में बोलें तो sugar कि कमी हो जाती है। तो फिर मीठा शरबत वही कमी को तुरंत पूर्ति करने का लक्ष्य साधता है। 

है तो ये छोटी सी रस्म, मगर इसके पीछे में कारण बड़ा है।

किसी भी अधिक ध्यान आकर्षित करने वाले काम को लंबे समय तक करने के अध्यस्त हो जाने से भी मस्तिष्क इस तरह की चक्कर खा जाने के लिए कमज़ोर होता है। जैसे, अधिक देर तक किताबों से पढ़ाई लिखाई करने की आदत, या कि वीडियो game या कंप्यूटर गेम, या कि यूं ही कम्प्यूटर पर काम भी करते रहना।

ये सभी आदतें मस्तिष्क को कमज़ोर बनाती हैं। मतिष्क की क्रिया से ही इंसान ध्यान को प्राप्त कर पाता है। वह बौद्धिक तौर पर सशक्त होने लगता है। मगर यही, अधिक ध्यान के केंद्रित होने से मस्तिष्क शारीरिक तौर कमज़ोर होने लगता है ।

इसीलिए एक रिवाज यह भी कहता है कि laughter is the best medicine। और laughter केवल टीवी पर commedy show देख कर नही मिलता है।

 दिमाग के हर एक कोने में, हर एक कोशिका में लहू को दौड़ाने वाला laughter हमें आपसी संवाद या social interactions के दौरान अकास्मकता से मिलता है। वो laughter जो कि न तो commedy shows से मिल सकता है, और न ही laughter योग करने से । वह केवल भावनाओं के बहने से उत्पन्न होता है, यानी social interactions के दौरान।

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