तर्क से उच्च बौद्धिक क्रिया है परिमेयकरण
तर्क (=Logic) देने से भी उच्च एक बौद्धिक क्रिया है जिसमे भारतीय मानसिकता अभी भी अपने एक हज़ार साल की गुलामी से बंद हुए दरवाज़े दुबारा खोल नहीं पायी है। वह बौद्धिक क्रिया है परिमेयकरण (Rationalisation)। जिस दिन हमारे देशवासियों को किसी भी अनुभविक घटना (phenomenon) को समझ कर के उसका परिमेय (मापन, measure) करना आ जायेगा, हम न्याय करना सीख जायेंगे। तब हम इस विध्वंसक, मतभेदि छल कपट वाली राजनीति से, इस कूटनीति से मुक्ति पा लेंगे। न्याय कर सकना मनुष्य की व्यक्तिगत बौद्दिक स्वतंत्रा का सर्वोच्च शिखर होता है। जब हम परिमेयकरण करना सिखाने लगेंगे तब हम शांति और समृद्धि प्राप्त कर चुके होंगे। न्याय वह होता है जो स्थान, समय या प्रतिष्ठा से प्रभावित हुए बिना समान सामाजिक प्रतिक्रिया के लिए हम सभी को बाध्य करता है। न्याय समरूप (homogeneous) होता है। न्याय वैचारिक भिन्नता, मतभेद, रंग भेग, वर्ण भेद, सम्प्रदाये भेद इत्यादि भेदों से ऊपर उठा कर मुक्ति दे देता है। जब हम न्याय करना सीख जाते हैं तब हम वास्तव में सामाजिक एकता के सूत्र को प्राप्त कर लेते है और एक संघटन, एक इकाई बनाना सीख लेते है।