तर्क (=Logic) देने से भी उच्च एक बौद्धिक क्रिया है जिसमे भारतीय मानसिकता अभी भी अपने एक हज़ार साल की गुलामी से बंद हुए दरवाज़े दुबारा खोल नहीं पायी है।
वह बौद्धिक क्रिया है परिमेयकरण (Rationalisation)। जिस दिन हमारे देशवासियों को किसी भी अनुभविक घटना (phenomenon) को समझ कर के उसका परिमेय (मापन, measure) करना आ जायेगा, हम न्याय करना सीख जायेंगे। तब हम इस विध्वंसक, मतभेदि छल कपट वाली राजनीति से, इस कूटनीति से मुक्ति पा लेंगे। न्याय कर सकना मनुष्य की व्यक्तिगत बौद्दिक स्वतंत्रा का सर्वोच्च शिखर होता है। जब हम परिमेयकरण करना सिखाने लगेंगे तब हम शांति और समृद्धि प्राप्त कर चुके होंगे।
न्याय वह होता है जो स्थान, समय या प्रतिष्ठा से प्रभावित हुए बिना समान सामाजिक प्रतिक्रिया के लिए हम सभी को बाध्य करता है। न्याय समरूप (homogeneous) होता है। न्याय वैचारिक भिन्नता, मतभेद, रंग भेग, वर्ण भेद, सम्प्रदाये भेद इत्यादि भेदों से ऊपर उठा कर मुक्ति दे देता है। जब हम न्याय करना सीख जाते हैं तब हम वास्तव में सामाजिक एकता के सूत्र को प्राप्त कर लेते है और एक संघटन, एक इकाई बनाना सीख लेते है।
तो परिमेयकरण इंसानी बुद्धि का वह उत्पाद है जिसे यदि हम सीख जायेगें तब हम वास्तव में एक समाज और एक राष्ट्र बनाना सीख जायेंगे। अभी तक हमने राष्ट्र के नाम पर एक साँझा किया हुए इलाका, भू-क्षेत्र बनाना ही सीखा है, जिसका की हम सब मिल कर एक साथ क्षेत्ररक्षण तो कर रहे हैं, मगर उसके बाद हम साथ में आपसी झगड़ों और विवादों में उलझ कर समृद्ध नहीं बना पा रहे हैं।
इसका कारण है की हमने भिन्न विचारों की अभिव्यक्ति को स्वतंत्रा दी हुयी है। स्वतंत्र अभिव्यक्ति का कोई दोष नहीं हैं, दोष हमारे बौद्धिक क्षमताओं का है की हम स्वतंत्र अभिव्यक्ति को न्याय को तलाशने में उपयोग नहीं कर रहे हैं।
हमारे यहाँ दोहरे मापदंडों की समस्या विकराल हो गयी है। समाचार सूचना तंत्र, कूटनैतिक दल, प्रशासन, न्यायपालिका -यह सब दोहरे मापदंडों को चिन्हित करने और निवारण करने में असफल हो गए हैं। जन जागृति में दोहरे मापदंडों को स्वीकृति मिलती है। इसलिए सामाजिक न्याय विलयित हो चूका है। यह हमारे यहाँ पिछले एक सहत्र युग से होता आ रहा है। भिन्न भाषा, बोलियाँ, विचार, पंथ, सम्प्रदाय इत्यादि के बीच सौहार्द प्राप्त करने की विवशता ने हमें दोहरे अथवा बहु-मापदंडों को स्वीकृत करना सीखा दिया है।
परिमेयकरण उस बौद्धिक क्रिया को कहा जाता है जब हम ऐसे सिद्धांत को तलाश लेते हैं जिनसे हम दो नहीं-मिलती-जुलती वस्तु अथवा विचार के मध्य भी न्याय करना सीख जाते हैं।यदि किसी अनुभविक घटना को परिमेय करने, मापने का, सिद्धांत हम खोज लें तब हम तर्क का प्रवाह भी अनुशासित करके उस सिद्धांत के अनुरूप कर सकेंगे। अन्यथा तो सिद्धांतों की अनुपस्थिति में दिये तर्क अँधेरे में तीर चलने के समान होता है; जिस वस्तु पर तीर लग जाये, उसी को उस तीर का उद्देशित लक्ष्य घोषित कर दिया जाता है।
वर्तमान युग की कूटनीति में हमारा समाचार सूचना तंत्र, हमारा मीडिया, हमारी बौद्धिक क्षमताओं में इसी परिमेयकरण के अभाव का आइना है। नीचे दिए गयी कुछ व्यंगचित्र इसी को दर्शाते हैं।
An ocean of thoughts,earlier this blog was named as "Indian Sociology..my burst and commentary". This is because it was meant to express myself on some general observations clicking my mind about my milieu...the Indian milieu. Subsequently a realisation dawned on that it was surging more as some breaking magma within . Arguments gave the heat to this molten hot matter which is otherwise there in each of us. Hence the renaming.
तर्क से उच्च बौद्धिक क्रिया है परिमेयकरण
बहरूपिया तर्क - कलयुग में उलटी गंगा के कारण
प्रभु यीशु ने एक बार एक कुलटा स्त्री की जान जनता के आक्रोश से बचाई थी जब उन्होंने यह कहा था की इस स्त्री को पहला पत्थर वही मरेगा जिसने आज तक कोई पाप नहीं किया है।
यह बहोत ही दयालु और ईश्वरीय कर्म था जो की प्रभु ही निभा सकते थे। मगर कलयुग में जहाँ गंगा उल्टी बहती है, घनघोर पापी लोग भी प्रभु यीशु के इसी तर्क को प्रयोग करके अपना साहस प्राप्त करते हैं, और अधिक बेशर्मी के साथ पाप करने के लिए। उन्होंने प्रभु के तर्क का एक मिलता जुलता, बहरूपिया तर्क विकसित किया हुआ है जिसे वह बुलाते है की "हमाम में तो सब ही नंगे हैं"।
आप को याद होगा की कैसे सलमान खुर्शीद से लेकर न जाने कितनों ही पॉलिटिशियन ने यही fundae दे कर अपने घोटालों के पकड़े जाने का क्षेत्र रक्षण करने की कोशिश करी थी।
आज आम आदमी पार्टी के आशीष खेतान के मुंह से भी प्रशांत भूषण के लगाये आरोपों में कलयुग वाला यही तर्क सुनाई दिया है। खेतान प्रशांत भूषण पर 'जनहित याचिकाओं की फैक्ट्री' चलाने के दोष लगा रहे हैं , की ज़रूर इन भूषण पिता-पुत्र जोड़े ने अपनी संपत्ति सिर्फ जनहित याचिकाओं से तो नहीं कमाई होगी। वकील भाषा में समझें तो आशीष खेतान इस समय खुद insinuation(इशारे बाज़ी में आरोप लीपा पोती करना) में व्यसन कर रहे है। क्योंकि प्रशांत भूषण ने अपने कारण बताओ नोटिस के ज़वाब में खेतान के बारे में खुलासा किया है की खेतान का आचरण किस संभावित वजहों से अनुचित निर्णय लेने के लिए प्रेरित है।
बहोत दुख़द बात है की आज अरविन्द केजरीवाल ऐसे लोगों के गुट में जुड़ गए है जिनका दर्शन बहोत कमज़ोर और क्षुद्र है। भ्रष्टाचार की जंग में इस सन्दर्भ को समझना बहोत ज़रूरी था की मकसद सिर्फ प्रशासन और न्यायपालिका से भ्रष्टाचार निवारण का था, जनता को अपने मनवांछित सदमार्ग पर चलना सिखाने का नहीं। आधे से अधिक लोग तो इस समय इसी दुविधा के चलते अपने उद्देश्य से भटक जा रहे है की जब हमें लोगों को सदमार्ग पर चलने की बुद्धि नहीं देने है तब फिर भ्रष्टाचार उन्मूलन कैसे होगा ।! फिर यह लोग अपनी दुविधा का इलाज़ करते हुए या तो खुद को साधू संत मानने लगते हैं, या फिर चुपके से समझौता करके खुद भ्रष्ट हो जाते हैं।
यह निरंतर शक्ति संतुलन का सन्दर्भ और मार्ग अभी भी लोगों की बुद्धि में अच्छे से समाया नहीं है। उद्देश्य एक तंत्र, एक व्यवस्था के निर्माण का था, मगर बहोत से लोग बार बार भ्रमित हो कर इसे जनता के नैतिक उत्थान समझ बैठते हैं।
यह समरण रखना और व्यवहारिकता में लागू करना ज़रूरी है की प्रजातंत्र में सरकारों का कार्य सिर्फ आर्थिक और राजनैतिक स्वतंत्रता का वातावरण तैयार करना है, जनता को किसी निश्चित सदमार्ग पर चलवाने का नहीं है। संयुक्त राज्य अमेरिका के स्वतंत्रता उदघोषणा पत्र (Declaration of Independence) में रचित प्रसिद्द पंक्ति In Pursuit of Happiness ( जीवन आनंद की तलाश में) के दार्शनिक प्रसंग में इस विचार को ही केंद्र रखा गया है की प्रत्येक नागरिक अपनी ख़ुशी खुद ब खुद ढूंढेगा, सरकारों का कार्य सिर्फ नागरिक की आर्थिक और राजनैतिक स्वतंत्रता को कायम रखने का है। प्रजातंत्र में जीवन संतुष्टि इसी प्रकार से प्राप्त करने का मार्ग स्वीकृत किया गया है। यही प्रजातंत्र की विशिष्ट कसौटी है।
मगर लगता है की हमारे देश में आयत कर के लाये गए 'प्रजातंत्र' में लोगो को अभी तक इस विशिष्टता को समझने में दिक्कत आ रही है। लोग बार बार भ्रष्टाचार उन्मूलन को नैतिक उत्थान से जोड़ कर देखने लगते है। फिर वह "हमाम में सब नंगे है" का तर्क लगा कर, एक मुर्ख अयोग्य व्यवस्था को क्षेत्र-रक्षण दे रहे हैं। वह भरष्टाचार को संरक्षण दे रहे है, जिसमें की अयोग्यता को भी नेतृत्व का भरपूर मौका मिलता है। नतीजा यह होता है की अयोग्यता ही बार बार योग्यता पर विजयी होने लग गयी है।
सिंगापोर गणित पहेली का समाधान
सिंगापोर वाली गणित पहेली का समाधान
मधु ने राम को जो संभव जानकारी दी है: मई , जून, जुलाई, अगस्त
मधु ने मोहन को जो संभव जानकारी दी है : 14, 15, 16, 17, 18, अथवा 19
अब हम राम और मोहन की बातचीत का पंक्ति दर पंक्ति विश्लेषण करेंगे
1) राम : मुझे नहीं पता है की मधु के जन्मदिवस की तारिख क्या है, लेकिन मैं यह कह सकता हूँ की मोहन अंदाज़ा नहीं लगा पाया है की मधु की जन्मदिवस तारिख क्या है।
यानि की, मात्र महीना की जानकारी पर राम तारिख का अंदाज़ा नहीं लगा पाया है। मगर यदि मोहन भी मात्र दिनांक की जानकारी से महीने का अंदाज़ा नहीं ले पाया है तब फिर तो वह दिनांक कम-से-कम 18 अथवा 19 नहीं है, क्यों 18 दिनांक का ज़िक्र सिर्फ जून महीने में है, और 19 दिनांक का ज़िक्र सिर्फ मई महीने का ही है।(यदि मोहन को मधु न 18 अथवा 19 की दिनांक बताई होती तब तो मोहन महीना भी तुरंत ही आभास कर लेता। मगर ऐसा नहीं हुआ, जिसका मतलब की मधु ने मोहन को 18 अथवा 19 दिनांक नहीं बोली है)
तो हम अंदाज़ा लेते है की मधु ने मोहन को सिर्फ 14, 15, 16 अथवा 17 ही बोली हैं, (18 और 19 नहीं)।
2) मोहन: ok. तब तो अब मैं अंदाज़ा लगा सकता हूँ की राम को मधु ने संभवतः कौन कौन सा महीना बताया होगा।
यानि,मोहन को आभास हो गया है की राम मोहन के प्रति आश्वस्त है की मोहन तो मात्र दिनांक की आधार पर महीना का अंदाज़ा नहीं मिल सकता है। क्योंकि मई और जून ही ऐसे दो महीने है जिनको सिर्फ दिनांक के आधार पर भी जाना जा सकता है।
इसका मतलब महीना मई अथवा जून नहीं है।
तो मोहन को पता लग गया है की राम शायद जुलाई अथवा अगस्त महीने में से कोई जानकारी रखता है।
तो इसका मतलब की संभावित महीना जुलाई अथवा अगस्त ही है।
3) राम: ओह! तब फिर तो अब मैं समझ की मधु के जन्मदिवस की तारीख क्या है।
यदि राम को आभास हो गया है की मोहन को तारिख आश्वस्त है तो यानि की तारिख 14 की नहीं है, क्योंकि सिर्फ 14 की तारिख ही दोनों महीने जुलाई और अगस्त में आती है।
तो इसका मतलब की तारिख 15, 16 या 17 ही है।
तो अब यदि राम सिर्फ महीना की आश्वस्त ज्ञान, और दिनांक के संभावित ज्ञान (15, 16 अथवा 17) पर भी समझ लेता पूर्ण दिनांक-महीना क्या है, तो इसका मतलब की महीना जुलाई ही है और दिनाक 16 .
क्योंकि यदि अगस्त महीना होता तो राम को अभी भी पूर्ण आश्वस्त नहीं मिलता ।इसलिए की अगस्त में अभी भी तो दिनांक संभव है (15 अथवा 17)।
निष्कर्ष: 16 जुलाई
सिंगापोर में बच्चों से पूछी गयी गणित की पहेली
सिंगापोर में हाल ही में पांचवी कक्षा के छात्रों से गणित विषय में एक ऐसा प्रश्न पूछ लिया गया जिसने न सिर्फ बच्चों को बल्कि दुनिया भर में वयस्कों को भी स्तब्ध कर दिया।
नीचे उस पहेली का हिंदी रूपांतरण लिखा है।
पूछी गयी गणित की पहेली:
राम और मोहन ने अभी हाल ही में मधु से दोस्ती करी है। वह दोनों मधु का जन्मदिवस जानना चाहते हैं। मधु उन दोनों को ही 10 संभावित तारीखों का समूह बताती है .
15 मई, 16 मई, 19 मई
17 जून, 18 जून
14 जुलाई, 16 जुलाई
14 अगस्त, 15 अगस्त, 17 अगस्त
फिर मधु जा कर बारी बारी से राम और मोहन को क्रमश: सिर्फ (और सिर्फ) महीना और तारिख बताती है।
राम और मोहन के बीच कुछ इस प्रकार बातचीत होती है की दोनों अपनी अपनी जानकारी न आदान प्रदान करते हुए भी मधु के जन्म दिवस का सटीक अंदाज़ा लगा लेते हैं। वह बातचीत कुछ इस प्रकार है
राम : मुझे नहीं पता है की मधु के जन्मदिवस की तारिख क्या है, लेकिन मैं यह कह सकता हूँ की मोहन अंदाज़ा नहीं लगा पाया है की मधु की जन्मदिवस तारिख क्या है।
मोहन: ok. तो अब मैं अंदाज़ा लगा सकता हूँ की राम को मधु ने संभवतः कौन कौन सा महीना बताया होगा।
राम: ओह! तब फिर तो अब मैं समझ गया की मधु के जन्मदिवस की तारीख क्या है।
मोहन: और मैं भी समझ गया।
🏢🏣🏥🏦🏫💒💒✈🌄🏬✈🔰🚎💈
क्या आप अंदाज़ा लगा कर बता सकते है की मधु की जन्मदिवस तारिख कौन सी है ??
In the absence of a Policy, Its left to discretion -which is, Favourtism and Discrimination
जहाँ-जहां भी कोई अधिकारी किसी कार्य को अपने स्व:निर्णय(discretion) से करता है, समझ लीजिये की उस कार्य में पक्षपात अथवा भ्रष्टाचार किया जा रहा है।
जहाँ नीति नहीं होती, वहां साधारण न्याय का बोध कर सकना संभव नहीं होता। और जहाँ साधारण न्याय स्व:प्रकट नहीं होता, वहां पारदर्शिता भी नहीं होती है। इसलिए वह कार्य पक्षपात और भ्रष्टाचार के लिए खुला द्वार होता है।
Where ever an official has freedom to excersie his discretion, it should be freely assumed that those acts are being done either under discrimination on someone, or under Corruption.
Whenever there is a lack of policy on performance of any acts, the standard justice is not apparent to one and all in those decisions. When the Standard Justice is not readily known, there is ample of room for the Discrimination and the Corruption to happen.
My disappointment on the AAP's conduct on 28th March NC meet
Agreebly, Kejriwal and the AAP themselves failed to follow the course of Justice. Indeed Kejriwal himself can be heard having become a victim of Swaraj, Democratic Politics and unfathomable Tolerance !! This made it sound as if Kejriwal was prescribing those medicines to the world whose bad effects he himself was an example !!!
I think Kejriwal should have taken help of professional lawyers even during the NC meet to produce his case before everyone. Instead we can hear a crying, emotional Kejriwal who claims to have shown tolerance and suffering in high doses.
I would rather Kejriwal had taken this moment to showcase to the world how internal bickering and power-game could be resolved through the Jurisprudence available in his model of Swaraj and Democracy.
Kejriwal himself has now failed to practise what he preaches. This makes it all very sad.
Deserving or Not deserving the Parliamentary Immunity
Can you name of the AAP MLAs or the Office Bearers who have Criminal Records, a police Chargesheet , etc on the condition that such record has not risen out of Political Protest or Demonstration.
The Administrative Theory upholds that person WHO HAS BEEN CHARGESHEETED should be taken off from those posts where he may influence the investigation, and the evidences.
AND OFCOURSE, the entire idea has the delimitation to excluding those Chargesheeted on Political Protests and Demostrations. That means that Civil Society should also help to provide PARLIMENTARY IMMUNITY to those "criminally chargedsheeted" people whose crimes have risen in course of protest against the suppressive policies of the government of the day.
AAP has so far not given ticket to anyone who is CHARGESHEETED while not being worthy of PARLIAMENTARY IMMUNITY by the Civil Society's Standards. There is NONE.
As far as I know
****ALL other parties have CRIMINAL historysheeted people, NOT WORTHY OF PARLIAMENTARY IMMUNITY by any Civil Society Standards.****
Message to Prashant Bhushan ji
[02/04 03:26] Manish Singh: dear Prashant ji,
just read your post "No. that is a misreading. ...."
I think that there is a Ideological Gap between You and Arvind ji at present.
BBC Hindi news line very craftly describes this gap when it says about expulsion of you and YY as जीत की राजनीति की जीत ।
I think we should put to Public Vote, a referendum, what *Should be*( the agreeable Moral, ethical, legal, or Utilitarian) approach to this dilemma.
I would like to make an attempt to accurately phrase the dilemma in a philosophical note :
Should a person who swears to erradicate Corruption, be allowed (or disallowed) Tactical Means , the so-called winning Strategies to defeat his rivals ??
Further, for a reminder, from the Vedic Epics of Ramayan , Lord Ram had used a tactical means to defeat and kill Raja Bali, in a fight between Bali and Sugreev.
In Mahabhrata, Krishn had designed lots of means to defeat the Kauravs, which included Killing of Bhishm, Dronacharya, Duryodhan ,etc.
_________________________________________________________________________
[02/04 03:27] Manish Singh: Let's put the matter with the help of another elaboration.
there are police cases registered even against Kejriwal, as per the records of the NGO Association for Democratic Reforms. In LS2014 The candidate with hightest criminal cases was Mr SP Udaykumar an AAP candidate from Kanyakumari.
But we quite know and BEAR A CONSCIENCE that these cases deserve the PARLIMENTARY IMMUNITY as the way it should be. Their police cases have accured in way of a public interest protest and demonstration, not by a "political conspiracy and Vendetta Politics by the political opponents".
Within the AAP, the difference of opinion between AK and PB is about the THRESHOLD at which a candidate should be rejected by the AAP.
PB is of the view that we will have to guided by the Public Image AND NOT JUST the police record antecedent since sometimes the wrong guys manage to pull the police not to register any cases, complaints against them.
PB claims that certain such anti-social elements have come into the AAPs fold.
AK claims that he had made ample enquiries on those PB flagged nominations "through various resouces" and nothing was found.
The question before us, the Volunteers, is to lay down the Gold Standards Rule as to how a nomination shall be passed and failed.
I am of the view that PB proposed Public Image standard should NOT be used, as this will result into unjustified, discretionary actions of the AAP itself and may cause internal Corruption-of-sorts.
However, answering to the possibility angle proposed by PB, we may proceed onto select a perceivably 'wrong' guy on the following two reasonings:
1) Our Internal Constitution and the Working Process must be strictly followed as pre-decided So to ensure that the suspect wrong guys do NOT usurp away the AAP party and its principles.
I believe that our binding principles will themselves have the strength and ability to catch the wrong guy who has penetrated within our folds by giving any slips to the PAC or the Selection Committee. He still runs the risk of being caught even while he has successfully gotten with us. The police administration and the independent CBI kinds AAP policies will ensure his culpability which he might have escaped until.
Therefore, at the the PAC and the Selection Committee , a rational objective criteria should be used, not the Vogue Public Perception.
2) In the current political climate, we have more enemies than our friends. The rivals and the media will leave no stone unturned to expose any of the wrong guys who has yet managed to break ranks within us.
The Inquisition (प्रश्नकाल शिविर)
Inquisition (प्रश्नकाल शिविर) मध्यकालीन युग में अपविचार (heresy) को नियंत्रित और सजा देने का चर्च का बहुउपयोगी न्यायिक तरीका था। ऐसा कोई विचारक जिसके विचार से समाज में चर्च द्वारा चलाये जा रहे तंत्र में बाधा आ जाये या फिर आ सकने की सम्भावना हो, उस विचार को heresy कहते हैं, और ऐसे विचारक को heretic.
अन्धकार वाले उस युग में करीब करीब सभी वैज्ञानिक विचारधारा वालों को heretic माना गया था और उन्हें Inquisition के द्वारा या तो यातनाएं दी गयी अथवा मृत्यु दंड दिया गया।
प्रजातंत्र आते आते तक ईशनिंदा (blasphemy) और अपविचार (heresy) को ही गैर कानूनी घोषित कर दिया गया था। अब स्वतंत्र अभिव्यक्ति का युग है।
बरहाल, Inquisition का अभिप्राय नए युग में बदल कर प्रश्न शिविर के रूप में हो गया है। जहाँ अन्धकारयुक्त मध्ययुग में अपविचार समाज को अव्यवस्थित करने के दोषी प्रेरक माने जाते थे, आज वर्तमान में ऐसे ही कार्य दोष विचारों को षड्यंत्र या साज़िश (Conspiracy) कहा जाता है।
षड्यंत्र हैं क्या ? षड्यंत्र ऐसा कार्य विधि है जिससे कुछ अव्यस्थित करने का उद्देश्य प्राप्त किया जाता है, बिना स्पष्ट आक्रमण करे। आक्रमण के दौरान विरोधी स्पष्ट होता है, वह सभी लोगो के द्वारा सीधा सीधा पहचाना जा सकता है, उसके तरीके तेवर सीधे हानि पहुचने के होते है।
मगर षड्यंत्र में हानि पहुचाने वाला छिपा हुआ होता है। उसको सब कोई नहीं पहचान सकता है। वह भीतर घात की विधि प्रयोग करता है और मित्र के रूप में रह कर शत्रुता निभाता है। वह सीधा तारिका तेवर नहीं लगता है बल्कि भ्रम, अस्पष्टता, और कार्य बाधा लाता रहता है।
मगर इन प्रकार की युद्ध शैली, षड्यंत्र, को पार लगाने का तरीका आज भी वही है। Inquisition. यानी प्रश्नकाल शिविर। जब षड्यंत्र के संदेह वाले पात्र से दीर्घकाल तक सबके समक्ष और सभी के द्वारा पूछताछ करवा कर तथ्यों और उनके प्रेरणा स्रोतों को खोजा जाता है।
judicial enquiry (न्यायिक जांच) नए युग में Inquisition का ही एक दूसरा रूप है।
25 सितम्बर 2003 को ब्रिटेन में लार्ड हट्टन (Lord Hutton) के द्वारा करी गयी Judicial Enquiry का BBC पर सीधा प्रसारण किया गया था। enquiry का विषय था ब्रिटेन के एक बड़े जैवयुद्ध के रक्षा वैज्ञानिक डॉक्टर केली की अबुझ मृत्यु का कारण पता लगाना। डॉक्टर केली ही वह जैवयुद्ध रक्षा वैज्ञानिक थे जिनकी रिपोर्ट की आधार बता कर कई सारे समाचार पत्रों ने इराक़ के पास रासायनिक हथियारों का जखेड़ा होने की खबरें प्रकाशित करी थी। बाद में इन्ही खबरों को आधार बता कर अमेरिका और ब्रिटेन ने इराक़ पर हमले किये थे।
इसी तरह अमेरिका में एक Inquisition हिलेरी क्लिंटन पर भी चला था । 23 जनवरी 2013 को इसका सीधा प्रसारण कई सारे टीवी चैनलों पर किया गया था। हिलेरी क्लिंटन तब राष्ट्रपति ओबामा के प्रशासन में गृहमंत्री (सेक्रेटरी ऑफ़ स्टेट) थीं। लीबिया में बेंगज़हि शहर में अमेरिकी दूतावास पर हमले जिसमे की अमेरिकी राजदूत को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा, के तुरंत बाद हिलेरी की प्रतिक्रियाओं को संदेह की नज़रों से देखा गया था।
Inquisition या फिर Judicial Enquiry (न्यायिक जांच) षड्यंत्रों का पर्दा फाश करने के लिए आज भी उपयोगी विधि हैं।J
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