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Showing posts from April, 2015

तर्क से उच्च बौद्धिक क्रिया है परिमेयकरण

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तर्क (=Logic) देने से भी उच्च एक बौद्धिक क्रिया है जिसमे भारतीय मानसिकता अभी भी अपने एक हज़ार साल की गुलामी से बंद हुए दरवाज़े दुबारा खोल नहीं पायी है।    वह बौद्धिक क्रिया है परिमेयकरण (Rationalisation)। जिस दिन हमारे देशवासियों को किसी भी अनुभविक घटना (phenomenon) को समझ कर के उसका परिमेय (मापन, measure) करना आ जायेगा, हम न्याय करना सीख जायेंगे। तब हम इस विध्वंसक, मतभेदि छल कपट वाली राजनीति से, इस कूटनीति से मुक्ति पा लेंगे। न्याय कर सकना मनुष्य की व्यक्तिगत बौद्दिक स्वतंत्रा का सर्वोच्च शिखर होता है। जब हम परिमेयकरण करना सिखाने लगेंगे तब हम शांति और समृद्धि प्राप्त कर चुके होंगे।      न्याय वह होता है जो स्थान, समय या प्रतिष्ठा से प्रभावित हुए बिना समान सामाजिक प्रतिक्रिया के लिए हम सभी को बाध्य करता है। न्याय समरूप (homogeneous) होता है। न्याय वैचारिक भिन्नता, मतभेद, रंग भेग, वर्ण भेद,  सम्प्रदाये भेद इत्यादि भेदों से ऊपर उठा कर मुक्ति दे देता है। जब हम न्याय करना सीख जाते हैं तब हम वास्तव में सामाजिक एकता के सूत्र को प्राप्त कर लेते है और एक संघटन, एक इकाई बनाना सीख लेते है।  

बहरूपिया तर्क - कलयुग में उलटी गंगा के कारण

प्रभु यीशु ने एक बार एक कुलटा स्त्री की जान जनता के आक्रोश से बचाई थी जब उन्होंने यह कहा था की इस स्त्री को पहला पत्थर वही मरेगा जिसने आज तक कोई पाप नहीं किया है।    यह बहोत ही दयालु और ईश्वरीय कर्म था जो की प्रभु ही निभा सकते थे। मगर कलयुग में जहाँ गंगा उल्टी बहती है, घनघोर पापी लोग भी प्रभु यीशु के इसी तर्क को प्रयोग करके अपना साहस प्राप्त करते हैं, और अधिक बेशर्मी के साथ पाप करने के लिए। उन्होंने प्रभु के तर्क का एक मिलता जुलता, बहरूपिया तर्क विकसित किया हुआ है जिसे वह बुलाते है की "हमाम में तो सब ही नंगे हैं"। आप को याद होगा की कैसे सलमान खुर्शीद से लेकर न जाने कितनों ही पॉलिटिशियन ने यही fundae दे कर अपने घोटालों के पकड़े जाने का क्षेत्र रक्षण करने की कोशिश करी थी।     आज आम आदमी पार्टी के आशीष खेतान के मुंह से भी प्रशांत भूषण के लगाये आरोपों में कलयुग वाला यही तर्क सुनाई दिया है। खेतान प्रशांत भूषण पर 'जनहित याचिकाओं की फैक्ट्री' चलाने के दोष लगा रहे हैं , की ज़रूर इन भूषण पिता-पुत्र जोड़े ने अपनी संपत्ति सिर्फ जनहित याचिकाओं से तो नहीं कमाई होगी। वकील भाषा में

सिंगापोर गणित पहेली का समाधान

सिंगापोर वाली गणित पहेली का समाधान मधु ने राम को जो संभव जानकारी दी है: मई , जून, जुलाई, अगस्त मधु ने मोहन को जो संभव जानकारी दी है : 14, 15, 16, 17, 18, अथवा 19 अब हम राम और मोहन की बातचीत का पंक्ति दर पंक्ति विश्लेषण करेंगे 1) राम : मुझे नहीं पता है की मधु के जन्मदिवस की तारिख क्या है, लेकिन मैं यह कह सकता हूँ की मोहन अंदाज़ा नहीं लगा पाया है की मधु की जन्मदिवस तारिख क्या है।            यानि की,  मात्र महीना की जानकारी पर राम तारिख का अंदाज़ा नहीं लगा पाया है। मगर यदि  मोहन भी मात्र दिनांक की जानकारी से महीने का अंदाज़ा नहीं ले पाया है तब फिर तो वह दिनांक कम-से-कम 18 अथवा 19 नहीं है, क्यों 18 दिनांक का ज़िक्र सिर्फ जून महीने में है, और 19 दिनांक का ज़िक्र सिर्फ मई महीने का ही है।(यदि मोहन को मधु न 18 अथवा 19 की दिनांक बताई होती तब तो मोहन महीना भी तुरंत ही आभास कर लेता। मगर ऐसा नहीं हुआ, जिसका मतलब की मधु ने मोहन को 18 अथवा 19 दिनांक नहीं बोली है)     तो हम अंदाज़ा लेते है की मधु ने मोहन को सिर्फ 14, 15, 16 अथवा 17 ही बोली हैं, (18 और 19 नहीं)। 2) मोहन: ok. तब तो अब मैं अंदाज़ा लगा

सिंगापोर में बच्चों से पूछी गयी गणित की पहेली

सिंगापोर में हाल ही में पांचवी कक्षा के छात्रों से गणित विषय में एक ऐसा प्रश्न पूछ लिया गया जिसने न सिर्फ बच्चों को बल्कि दुनिया भर में वयस्कों को भी स्तब्ध कर दिया। नीचे उस पहेली का हिंदी रूपांतरण लिखा है। पूछी गयी गणित की पहेली: राम और मोहन ने अभी हाल ही में मधु से दोस्ती करी है। वह दोनों मधु का जन्मदिवस जानना चाहते हैं। मधु उन दोनों को ही 10 संभावित तारीखों का समूह बताती है . 15 मई, 16 मई, 19 मई 17 जून, 18 जून 14 जुलाई, 16 जुलाई 14 अगस्त, 15 अगस्त, 17 अगस्त फिर मधु जा कर बारी बारी से राम और मोहन को क्रमश: सिर्फ (और सिर्फ) महीना और तारिख बताती है। राम और मोहन के बीच कुछ इस प्रकार बातचीत होती है की दोनों अपनी अपनी जानकारी न आदान प्रदान करते हुए भी मधु के जन्म दिवस का सटीक अंदाज़ा लगा लेते हैं। वह बातचीत कुछ इस प्रकार है राम : मुझे नहीं पता है की मधु के जन्मदिवस की तारिख क्या है, लेकिन मैं यह कह सकता हूँ की मोहन अंदाज़ा नहीं लगा पाया है की मधु की जन्मदिवस तारिख क्या है। मोहन: ok. तो अब मैं अंदाज़ा लगा सकता हूँ की राम को मधु ने संभवतः कौन कौन सा महीना बताया होगा। राम: ओह! तब

In the absence of a Policy, Its left to discretion -which is, Favourtism and Discrimination

जहाँ-जहां भी कोई अधिकारी किसी कार्य को अपने स्व:निर्णय(discretion) से करता है, समझ लीजिये की उस कार्य में पक्षपात अथवा भ्रष्टाचार किया जा रहा है।    जहाँ नीति नहीं होती, वहां साधारण न्याय का बोध कर सकना संभव नहीं होता। और जहाँ साधारण न्याय स्व:प्रकट नहीं होता, वहां पारदर्शिता भी नहीं होती है। इसलिए वह कार्य पक्षपात और भ्रष्टाचार के लिए खुला द्वार होता है। Where ever an official has freedom to excersie his discretion, it should be freely assumed that those acts are being done either under discrimination on someone, or under Corruption.     Whenever there is a lack of policy on performance of any acts, the standard justice is not apparent to one and all in those decisions. When the Standard Justice is not readily known, there is ample of room for the Discrimination and the Corruption to happen.

My disappointment on the AAP's conduct on 28th March NC meet

Agreebly, Kejriwal and the AAP themselves failed to follow the course of Justice. Indeed Kejriwal himself can be heard having become a victim of Swaraj, Democratic Politics and unfathomable Tolerance !! This made it sound as if Kejriwal was prescribing those medicines to the world whose bad effects he himself was an example !!!     I think Kejriwal should have taken help of professional lawyers even during the NC meet to produce his case before everyone. Instead we can hear a crying, emotional Kejriwal who claims to have shown tolerance and suffering in high doses.    I would rather Kejriwal had taken this moment to showcase to the world how internal bickering and power-game could be resolved through the Jurisprudence available in his model of Swaraj and Democracy.    Kejriwal himself has now failed to practise what he preaches. This makes it all very sad.

Deserving or Not deserving the Parliamentary Immunity

Can you name of the AAP MLAs or the Office Bearers who have Criminal Records, a police Chargesheet , etc on the condition that such record has not risen out of Political Protest or Demonstration. The Administrative Theory upholds that person WHO HAS BEEN CHARGESHEETED should be taken off from those posts where he may influence the investigation, and the evidences.    AND OFCOURSE, the entire idea has the delimitation to excluding those Chargesheeted on Political Protests and Demostrations. That means that Civil Society should also help to provide PARLIMENTARY IMMUNITY to those "criminally chargedsheeted" people whose crimes have risen in course of protest against the suppressive policies of the government of the day.     AAP has so far not given ticket to anyone who is CHARGESHEETED while not being worthy of PARLIAMENTARY IMMUNITY by the Civil Society's Standards. There is NONE. As far as I know ****ALL other parties have CRIMINAL historysheeted people, NOT WORTHY OF

Message to Prashant Bhushan ji

[02/04 03:26] Manish Singh: dear Prashant ji, just read your post "No. that is a misreading. ...." I think that there is a Ideological Gap between You and Arvind ji at present. BBC Hindi news line very craftly describes this gap when it says about expulsion of you and YY as जीत की राजनीति की जीत । I think we should put to Public Vote, a referendum, what *Should be*( the agreeable Moral, ethical, legal, or Utilitarian) approach to this dilemma. I would like to make an attempt to accurately phrase the dilemma in a philosophical note : Should a person who swears to erradicate Corruption, be allowed (or disallowed) Tactical Means , the so-called winning Strategies to defeat his rivals ?? Further, for a reminder, from the Vedic Epics of Ramayan , Lord Ram had used a tactical means to defeat and kill Raja Bali, in a fight between Bali and Sugreev. In Mahabhrata, Krishn had designed lots of means to defeat the Kauravs, which included Killing of Bhishm, Dronachary

The Inquisition (प्रश्नकाल शिविर)

Inquisition (प्रश्नकाल शिविर) मध्यकालीन युग में अपविचार (heresy) को नियंत्रित और सजा देने का चर्च का बहुउपयोगी न्यायिक तरीका था।  ऐसा कोई विचारक जिसके विचार से समाज में चर्च द्वारा चलाये जा रहे तंत्र में बाधा आ जाये या फिर आ सकने की सम्भावना हो, उस विचार को heresy कहते हैं, और ऐसे विचारक को heretic.    अन्धकार वाले उस युग में करीब करीब सभी वैज्ञानिक विचारधारा वालों को heretic माना गया था और उन्हें Inquisition के द्वारा या तो यातनाएं दी गयी अथवा मृत्यु दंड दिया गया।    प्रजातंत्र आते आते तक ईशनिंदा (blasphemy) और अपविचार (heresy) को ही गैर कानूनी घोषित कर दिया गया था। अब स्वतंत्र अभिव्यक्ति का युग है।    बरहाल, Inquisition का अभिप्राय नए युग में बदल कर प्रश्न शिविर के रूप में हो गया है। जहाँ अन्धकारयुक्त मध्ययुग में अपविचार समाज को अव्यवस्थित करने के दोषी प्रेरक माने जाते थे, आज वर्तमान में ऐसे ही कार्य दोष विचारों को षड्यंत्र या साज़िश (Conspiracy) कहा जाता है।    षड्यंत्र हैं क्या ? षड्यंत्र ऐसा कार्य विधि है जिससे कुछ अव्यस्थित करने का उद्देश्य प्राप्त किया जाता है, बिना स्पष्ट आक