In the absence of a Policy, Its left to discretion -which is, Favourtism and Discrimination

जहाँ-जहां भी कोई अधिकारी किसी कार्य को अपने स्व:निर्णय(discretion) से करता है, समझ लीजिये की उस कार्य में पक्षपात अथवा भ्रष्टाचार किया जा रहा है।
   जहाँ नीति नहीं होती, वहां साधारण न्याय का बोध कर सकना संभव नहीं होता। और जहाँ साधारण न्याय स्व:प्रकट नहीं होता, वहां पारदर्शिता भी नहीं होती है। इसलिए वह कार्य पक्षपात और भ्रष्टाचार के लिए खुला द्वार होता है।

Where ever an official has freedom to excersie his discretion, it should be freely assumed that those acts are being done either under discrimination on someone, or under Corruption.
 
  Whenever there is a lack of policy on performance of any acts, the standard justice is not apparent to one and all in those decisions. When the Standard Justice is not readily known, there is ample of room for the Discrimination and the Corruption to happen.

Comments

Popular posts from this blog

विधि (Laws ) और प्रथाओं (Customs ) के बीच का सम्बन्ध

गरीब की गरीबी , सेंसेक्स और मुद्रा बाज़ार

राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ और उनकी घातक मानसिकता