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Showing posts from December, 2022

आत्म विश्वास की विशेषताएं क्या होती हैं?

हिंदुत्ववादियों का मानना था कि भारतीय समाज गुलाम इसलिए बना क्योंकि हमने आत्मविश्वास की कमी थी। तो उन्होंने आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए भारत देश पर गर्व करने योग्य बातें—ज्ञान तथ्य, विषयवस्तु —ढूंढ ढूंढ कर प्रचारित करना शुरू किया। मगर वे अनजाने में समाज में आत्ममुग्धता प्रसारित कर बैठे आत्मविश्वास भरे व्यक्ति में किसी से भी बातचीत कर सकने की प्रतिभा धनी होती है। चाल चलन, पहनावा और सबसे महत्वपूर्ण —जीवन आवश्यक निर्णय ले सकने की समझ — परिपक्व होती है। इस विशेषताओं के चलते कई लोग सोच बैठते हैं कि आत्म विश्वास का अर्थ है बहुत बातें कर सकना, या कि अंग्रेजी में बोल सकना, या "smart"(मिनी, midi, fashionable) कपड़े पहनना, अंग्रेजी गाने सुनना, अमेरिका यूरोप की ही बातें करना और तारीफ करते रहना, बहुत सारा ज्ञान संशय करके यहां वहां झड़ते रहना, उपलब्धियां गिनवाना, वगैरह वगैरह। मगर ये सब व्यवहार वास्तव में आत्मविश्वास के विकसित करने के बीज नही होते है , बल्कि पहले से ही उत्पन्न हुए आत्मविश्वास को दुनिया के सामने चमकाने का माध्यम मात्र होते हैं। आत्मविश्वास का मूल स्रोत दार्शनिक सोच होती है

He who dares not offend cannot be honest

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Truth is one, but it has many perspectives

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Truth is still one, although it may have many perspectives 

Purpose of arguments

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What should be the purpose of arguments 

क्यों अकबर और मुग़लों के बारे में तो विस्तृत पड़ते हैं, मगर महाराणा प्रताप के बारे में संक्षिप्त बताया जाता है

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भ्रष्टाचार मानव रचनात्मक चरित्र का नमूना होता है

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क्यों अकबर के बारे में तो पढ़ाया जाता है, मगर महाराणा प्रताप के बारे में नहीं

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अच्छे अध्यापक कैसे होते हैं? उनके चरित्र में क्या क्या चिन्हक होते हैं, एक अच्छे अध्यापक होने के?

अच्छे अध्यापक कैसे होते हैं? उनके चरित्र में क्या क्या चिन्हक होते हैं, एक अच्छे अध्यापक होने के? अच्छे अध्यापक का सर्वप्रथम चारित्रिक चिंहक होता है विशाल क्षेत्रों का ज्ञान, और जिसके प्रयोग से वो अध्यापक दर्शनशास्त्र के गहरी, अघियारी भुलभुलैया गलियां में उतरने से भयभीत नहीं होता हो, शिष्य को प्रश्नों के पूर्ण व्याख्यान समाधान खोजने के लिए ताकि उसका शिष्य विषय की वास्तविक mastery प्राप्त कर सके, न कि सिर्फ परीक्षा में उत्तीर्ण हो जाए। अब आगे, किसी भी व्यक्ति में यदि व्यापक ज्ञान आएगा, तब वो अपने आप में कुछ व्यवहारिक झलक दिखाने लगेगा — जैसे, समानता का भाव, अनुशासन पूर्व जीवन यापन, रोचक वर्तपालाप, अनुभव तथा कहानियां से भरा हुआ संवाद करना, इत्यादि।

वंशवाद कब , कहां हुआ है — इसको तय करने का मानदंड क्या होना चाहिए?

हीरो का बच्चा हीरो-हीरोइन क्यों नहीं बन सकते? क्रिकेटर का बच्चा क्रिकेटर क्यों नहीं बन सकता? राजनेता का बच्चा राजनेता क्यों नही बन सकता? क्या दिक्कत है? क्या किसी को किसी पेशे में जाने से रोकना मात्र इसलिए कि उसके पिता या पूर्वज पहले से उस क्षेत्र में नामी व्यक्ति थे,ये अपने आप में एक जातिवाद नही होता है?  होता है , न? तो फिर आखिर वंशवाद का मानदंड क्या रखना चाहेंगे आप? कैसे कहेंगे की भारत की उच्च न्यायपालिका में घोर जातिवाद/ब्राह्मणवाद होता है? जवाब है — सार्वजनिक /अथवा सरकारी पदों पर, जहां नियुक्ति किसी भी प्रकार की चयन प्रक्रिया से करी जाती है, यदि वहां पर बार बार एक वंश के व्यक्ति पहुंच रहे हों, जबकि चयन प्रक्रिया में पिता या पूर्वजों को सेंघमारी कर सकने की संभावना खुली हुई हो, तब वो "वंशवाद" माना जाना आवाशयभावी हो जाता है।

शिक्षा प्राप्ति के दौरान व्यवहारिक नीत क्या होनी चाहिए?

कई सारे आधुनिक शिक्षकगण थोड़ा " व्यवहारिक ( Practical )" हो कर बात करने लगे हैं, और वे लोग परीक्षा में उत्तीर्ण हों जाना उचित मापक मानते हैं, पढ़ाई लिखाई के उद्देश्य की सफलता पूर्वक प्राप्ति का।  जीवन एक आर्थिक संघर्ष होता है, – की दृष्टि से वे लोग गलत नहीं हैं। मगर ऐसी सोच रखने पर जीवन संघर्ष में केवल जी लेना और चुनौतियों को पार लगा लेना , दो अलग बाते बन जाती हैं। जीवन की चुनौतियों को पार करने के लिए " व्यवहारिक(Practical) " स्तर का ज्ञान चाहिए होता है — और जो पढ़ाई लिखाई के दौरान ' विषय की प्रखरता (Mastery of the subject) ' को प्राप्त करने से आता है, सिर्फ exam में उत्तीर्ण हो जाने से नहीं। सोचने का सवाल है कि — 1) आप " व्यवहारिक " किसे समझते हैं। 2) आप शिक्षा प्राप्ति के दौरान किसे अपना उद्देश्य मानेंगे— a) Mastery of the subject;      b) Passing the exam with excellent grades  आगे,  इस दोनो सवालों की गुत्थी हमे ये बताती है कि क्यों कई सारे लोग अच्छे grades वाली markssheet के बावजूद बेवूफ होते हैं, और कई सारे लोग विषय में बिना किसी उपाधि रखत

रामप्रसाद की मां उसकी पढ़ाई लिखाई में क्या भ्रष्टता कर देती है अनजाने में

रामप्रसाद की मां उसकी पढ़ाई लिखाई में क्या भ्रष्टता कर देती है अनजाने में  रामप्रसाद की मां उसकी शिक्षा दीक्षा में ऐसा करती थी कि केवल syllabus के अनुसार और कि परीक्षा में क्या पूछा जाने वाला है, बस उतना ही तैयार करवा देती थी कैसे भी, ताकि उसका बच्चा exam में पास हों जाए अच्छे नंबरों से।  कुछ गलत नही था मां की चाहत में, अपने बच्चे के प्रति। मगर मां को अभी अनुमान नहीं था कि पढाई लिखाई के दौरान किसी विषय की mastery करना, वास्तविक ज्ञान प्राप्त करना कैसे एक अलग प्रक्रिया होती है, मात्र exam पास कर लेने भर के प्रयासों से। ये भी अनुमान नहीं था कि वास्तविक ज्ञान या mastery प्राप्त करना क्यों उसकी संतान के हित में था, भविष्य की शिक्षा दीक्षा के लिए आवश्यक था अभी से ही वैसे तर्क, प्रयत्न करने की आदत डालने के लिए। मां के अनुसार तो दुनिया का व्यवहारिक सत्य यही था कि जो बच्चा परीक्षा अच्छे नंबरों से पास करता है वही आर्थिक संघर्ष में विजयी होता है, अच्छी नौकरी पाता है, अच्छी तनख्वा कमाता है।  मगर ये सब सोच – आर्थिक संघर्ष में विजई हो जाने वाला भविष्य का परिणाम– कैसे गलत थी , ये अभी मां को अनुमान न

Dunning Kruger Effect या देहातों में जाना जाने वाला Over Confidence

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Dunning Kruger Effect जिसे गाँव देहात में लोग overconfidence केह कर बुलाते है, ये स्वभावतः ज्यादातर इंसानों में उनके बचपन से ही मौज़ूद होता है। कोई भी व्यक्ति स्वयं की क्षमता और योग्यता का सटीक अनुमान बिना उपयुक्त अभ्यास के, नहीं कर सकता है। मगर अक्सर इसके निराकरण में लोग दूसरे का माखौल उड़ा कर, या लज्जित करके छोड़ देते हैं कि शायद बेइज्जती और आत्म ग्लानि से परेशान हो कर वो कुछ सोच पड़ेगा और सुधर जायेगा !!! जबकि ये तरीका सच्चाई से बहोत दूर ,शायद विपरीत है। सही तरीका है बार बार ,अभ्यास परीक्षणों से गुज़ारते हुए स्वयं की योग्यता और क्षमता को सटीक से आंकलन करने का माप तैयार कर  लेना