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Showing posts from 2015

इंटरनेट में digital equality के नाम पर चल रहा यह बदलाव है क्या ?

अमीरी गरीबी को अधिकांशतः हम लोग एक सामाजिक भेदभाव के रूप में ही पहचानते है जो की धन सामर्थ्य के अंतर पर प्रसारित होता है। मगर व्यापारिक और औद्योगिक दृष्टि से यह भेदभाव कई सारे धनाढ्य लाभ के रास्ते के पत्थरों को साफ़ करने का समाधान भी समझा जा सकता है।     हमारे देश में अभी कुछ वर्ष पहले 2G और 3G स्पेक्ट्रम घोटाला हुआ था । क्या आपने कभी सोचा है की 2G तकनीक के आने के चंद वर्षों बाद ही 3G तकनीक का इज़ाद हो जाये तब फिर 2G तकनीक का व्यापर करने वाले उद्योगों का क्या होगा ? मंत्री जी ने गरीबों के नाम पर 2G और 3G का लाइसेंस सस्ते में नीलम कर दिया था, बदले में रिश्वत ले कर। अब आजकल जो 4G तकनीक के बाजार में आने की तैयारी है तब फिर 2G और 3G तकनीक के उद्योगों वाली कंपनियों का क्या होगा? ख़ास तौर पर उनका जिन्होंने शायद 2G और 3G के लाइसेंस को करोड़ों रुपये की कीमत और रिश्वत, दोनों, देकर हासिल किया होगा ??     digital दुनिया की यह समस्या इनसे जुड़े उद्योग और उद्योगपतियों की भी है, जो की प्रत्येक मोबाइल फ़ोन प्रेमी की समस्या है--- "हर नया मॉडल बस कुछ ही महीनों और सालों में पुराना हो जाता है"। को

किस धोखे का नाम है Free Basics और Digital Equality

फेसबुक को जब internet (dot)org  के माध्यम से इंटरनेट के उपभोग से मुनाफा कमाने के नए तौर तरीक में सफलता नहीं मिल रही है तब उसने एक नए अवतार में जनता को उल्लू बनाने के तरीका निकला है।  फेसबुक ने खुद को गरीबों का साथी बता का Free Basics नाम से एक नया मार्केटिंग का तरीका निकला है। इसी को वह मार्केटिंग के दौरान digital equality भी कह कर पुकार रहे हैं। बात को गहराई से समझने के लिए पहले अपने अंतर्मन में कुछ पैमानों को पुख्ता कर लेते हैं:-   !) क्या आपको अमीरी और गरीबी के सामाजिक ओहदों को महसूस करके सुख महसूस होता है ? ध्यान से समझियेगा : अमीरी और गरीबी की धन सम्पदा अवस्था की  बात नहीं हो रही है , बल्कि सामजिक स्थान की भी बात हो रही है ।   यानि , जैसा की आज की तारिख में हम किसी bmw कार को देख कर ही अंदाज़ा लगा लेते हैं की इसका स्वामी ज़रूर कोई बड़ा अमीर व्यक्ति होगा,   किसी की iphone को देख कर अंदाज़ा लगा लेते हैं की ज़रूर कोई मालामाल आदमी है ।  उसके पहनावों के ब्रांड से , उसके पर्स के ब्रांड से, उसके सामाजिक औहदे का पता चल जाता है। यह सामाजिक ओहदा हैं, मात्र धन सम्पदा का अंतर भाव नहीं ।     यद

On collaboration of knowledge streams

I hope you appreciate that for justice to happen, all fields of learning have to collaborate with each other, instead of insulting each other for lack of knowledge of the other's domain. Therefore, it is not a disadvantage that a Navigator leaps into the laws, or a policeman takes interest into Navigation. You will be shocked to learn this aspect of cultural history of the world that many of the laws and Cardinal principles of  Constitution have actually surfaced from lawsuits which came from the Shipping industry. This includes the supremacy of federal structure over the provincial laws, often described as Federalism. Tort laws have their oldest and widest citations from lawsuits which are of Shipping and Cargo disputes. Owing to the historical fact that Shipping was the oldest form of trade taken by mankind, when it comes to laws, a wealth of legal knowledge resides in the field of transportation by sea. So much so that even the modern Indian Penal Code, although re-written in 1

Vessel agrouding incident at Elephanta Island

      Recently a 300mtr container vessel being piloted inward by JNPT pilot had run aground at the south west corner of Elephanta Island.     As a consequence of this incident the port management has decided to reduce the tonnage of the Pilot involved in it.      Whereas the defendant pilot maintained that the leading cause of the incident was incessant working of 22hours in the 24hour watch schedule, during which he had piloted 8  large size vessels in and out, the port management apparently has chosen the pick fault in complacency of the pilot.      These material facts in the aftermath of this incident are causing concerns to me about non-conformity to the principles of natural justice during an investigation and employing an irrational root cause analysis technique.       I have growing feeling that port managements have not yet geared themselves to take the fatigue factor in  vessel piloting job with as much seriousness as is the prevailing industrial standards.    In this c

अरुंधति रॉय भी इसे ब्राह्मणवाद मानती है

लालू प्रसाद अकेले नहीं हैं भाजपा और आरएसएस की राजनीति को ब्राह्मणवाद का आरोप लगाने में। भई कब तक पंडित जी की भावनाओं से तय किया जाता रहेगा कि क्या सही है और क्या गलत है ?  भक्त गण, जो की अधिकांशतः पंडितजी लोगों का ही जमावड़ा है, वह pervert लॉजिक को मानता है। यानि सब कुछ उल्टा-पुल्टा है। वह केजरीवाल के लोकल ट्रेन यात्रा को ड्रामा और जनता को असुविधा बोलता है, जबकि मोदी की यात्रा को एक नयी शुरुआत, vvip कल्चर का खात्मा , और एक नयी प्रेरणा बोलता है।     कोई स्थिर पैमाने नहीं है भक्तगणों के। यह व्यवहार सामाजिक न्याय के विरुद्ध है। इससे स्वतः सामाजिक न्याय की मांग रखने वाली लॉबी, यानि sc, st और obc वर्ग को ब्राह्मणवाद की याद आ जाती है जब इंसानों के एक वर्ग को तो खुद ब्रह्मा की संतान कह दिया गया, और दूसरे वर्ग को इंसानी जीवन से भी निम्म श्रेणी में कर दिया गया।    फिर इसके आगे भाजपा और आरएसएस आरक्षण नीति के विरोधी भी बन गए। साथ ही में वह लोग प्राचीन भारत की ऋषि मुनियों की अघोषित उप्लधियां, जैसे वायुयान का निर्माण, अंतरिक्ष यात्रा, चिकित्सा, गणित में कैल्कुलस, गुरुत्वाकर्षण, जैसे पर अपना अधिका

अरुंधति रॉय भी इसे ब्राह्मणवाद मानती है

भई कब तक पंडित जी की भावनाओं से तय किया जाता रहेगा कि क्या सही है और क्या गलत है ?  भक्त गण, जो की अधिकांशतः पंडितजी लोगों का ही जमावड़ा है, वह pervert लॉजिक को मानता है। यानि सब कुछ उल्टा-पुल्टा है। वह केजरीवाल के लोकल ट्रेन यात्रा को ड्रामा और जनता को असुविधा बोलता है, जबकि मोदी की यात्रा को एक नयी शुरुआत, vvip कल्चर का खात्मा , और एक नयी प्रेरणा बोलता है।     कोई स्थिर पैमाने नहीं है भक्तगणों के। यह व्यवहार सामाजिक न्याय के विरुद्ध है। इससे स्वतः सामाजिक न्याय की मांग रखने वाली लॉबी, यानि sc, st और obc वर्ग को ब्राह्मणवाद की याद आ जाती है जब इंसानों के एक वर्ग को तो खुद ब्रह्मा की संतान कह दिया गया, और दूसरे वर्ग को इंसानी जीवन से भी निम्म श्रेणी में कर दिया गया।    फिर इसके आगे भाजपा और आरएसएस आरक्षण नीति के विरोधी भी बन गए। साथ ही में वह लोग प्राचीन भारत की ऋषि मुनियों की अघोषित उप्लधियां, जैसे वायुयान का निर्माण, अंतरिक्ष यात्रा, चिकित्सा, गणित में कैल्कुलस, गुरुत्वाकर्षण, जैसे पर अपना अधिकार ज़माने लगे। कुल मिला कर के भाजपा और आरएसएस आधुनिकता और वास्तविक विज्ञानं के तो विरोधी बन

एक देश को राष्ट्र समझने के भ्रम से ग्रस्त है भाजपा और आरएसएस।

पशु जगत में बहोत सारे जीव अपना एक वर्चस्व क्षेत्र बनाते हैं और उसे सीमाबद्ध करते है अपने खारों के निशान बना कर या मूत्र गंधक छोड़ कर । इस क्षेत्र में खपत का प्रथम अधिकार उनका होता है। वहां की मादाएं और भोजन स्रोतों पर वह एकाधिकार रखते है। अपने क्षेत्र की रक्षा के लिए वह आपस में जीवन नाशक युद्ध प्रतिस्पर्धा भी करते है।     सवाल यह है कि क्या आप इस व्यवहार को राष्ट्र निर्माण मानेंगे ?    क्या इस प्रकार का वर्चस्व क्षेत्र, यानी एक देश या फिर "इलाका", एक राष्ट्र माना जा सकता है? यदि नहीं तो फिर एक देश और एक राष्ट्र में क्या अंतर होता है ?     भाजपा और आरएसएस कुछ pervert लोगों का जमावड़ बन कर उभरा है। हिंसा और सैन्य जीवन शैली को उत्तम समझने वाली मानसिकता सुनने में बहोत शौर्यवान, गौरव शैली भले ही लगे मगर वास्तव में एक देश में से एक राष्ट्र के निर्माण का सबसे बड़ी बाधा यही मानसिकता है।    राष्ट्र एक मानवीय बौद्धिकता का उत्पाद है। भले ही कोई ऐसा डायलाग सुनने में अधिक प्रभावशाली लगे की "जब कोई सैनिक अस्सी हज़ार फिट की उचाईंयों पर अपनी हड्डियां गला कर जान देकर देश की रक्षा करता है

RSS and BJP are house of pervert people

RSS and BJP are house of pervert people.      It is not hypocrisy. It is something above that. It's perversity.    Dogs, lions, and many other mammals go around putting scratch marks or urine marks in an area to demarcate their territory. That does not mean that such a Territory is a Nation !!   The Nation state theory says that a Nation is a territory where  people have enough commonality between them (of language, culture beliefs), so to eliminate all possible fuels for  ignition. Then, the people live in peace and work for a common and mutual good, to bring about prosperity in their territory. That is how a nation is formed.    Most certainly, the animals don't do all of these intellectual reasoning to transform their territory into a Nation.    But surely, the need for protection of the territory from all other animal kinds who are barbaric and uncivilized is most fundamental to making a nation.     The perversity of BJP and RSS is that they have regularly in their h

क्यों मोदी सरकार और आरएसएस का यह प्रयोग असफल हो जायेगा ?

मुझे लगता है की कांग्रेस वापस आ रही है...भाजपा और मोदी जी इस गणित में पूरी तरह हार गए हैं। मेरी गणना में 2019 चुनाव तो क्या 2024 में भी कोंग्रेस का आना तय है। मोहन भागवत और नरेंद्र मोदी बदस्तूर चालू रहे, बस।    यह देश छोटे छोटे वर्गों में बंटा है। कई सारी छोटी क्षेत्रीय पार्टियां इस पर राज करती हैं। उन छोटी पार्टियों में ज्यादा कुछ एक दूसरे से सम्बन्ध बनाने के लिए common नहीं है। और जो कुछ है, वह कांग्रेस ही संभाल सकती है । दो सबसे बड़ी वोट कुञ्ज हैं 1) मुसलमानो को सुख शांति और भागीदारी 2) आरक्षित और पिछड़ा वर्ग को हिस्सेदारी। भाजपा ने दोनों पर ही आत्म घात कर लिया है 1) मुस्लमान विरोधी है 2) आरक्षण विरोधी है। यानि की भाजपा ने अपने ही गोल में गोल दाग दिए हैं। हिट विकेट आउट हो गयी है। मोदी और भाजपा की सरकार ने यह सबक लेने में बहोत देर लगा दी है। मोदी शासन में आरएसएस की छवि एक जाति ब्राह्मणवादी संस्था के रूप में तो स्थापित हुई ही है, जो की माड़वाड़ियों और बनियों के समर्थन में एक दम निर्लज है। धूर्तता , यानि अस्थिर न्यायायिक मापदंड का गुण हमेशा से जाति वादी ब्राह्मणों और बनियों/माड़वाड़ि