अरुंधति रॉय भी इसे ब्राह्मणवाद मानती है

लालू प्रसाद अकेले नहीं हैं भाजपा और आरएसएस की राजनीति को ब्राह्मणवाद का आरोप लगाने में।

भई कब तक पंडित जी की भावनाओं से तय किया जाता रहेगा कि क्या सही है और क्या गलत है ?  भक्त गण, जो की अधिकांशतः पंडितजी लोगों का ही जमावड़ा है, वह pervert लॉजिक को मानता है। यानि सब कुछ उल्टा-पुल्टा है। वह केजरीवाल के लोकल ट्रेन यात्रा को ड्रामा और जनता को असुविधा बोलता है, जबकि मोदी की यात्रा को एक नयी शुरुआत, vvip कल्चर का खात्मा , और एक नयी प्रेरणा बोलता है।
    कोई स्थिर पैमाने नहीं है भक्तगणों के। यह व्यवहार सामाजिक न्याय के विरुद्ध है। इससे स्वतः सामाजिक न्याय की मांग रखने वाली लॉबी, यानि sc, st और obc वर्ग को ब्राह्मणवाद की याद आ जाती है जब इंसानों के एक वर्ग को तो खुद ब्रह्मा की संतान कह दिया गया, और दूसरे वर्ग को इंसानी जीवन से भी निम्म श्रेणी में कर दिया गया।
   फिर इसके आगे भाजपा और आरएसएस आरक्षण नीति के विरोधी भी बन गए। साथ ही में वह लोग प्राचीन भारत की ऋषि मुनियों की अघोषित उप्लधियां, जैसे वायुयान का निर्माण, अंतरिक्ष यात्रा, चिकित्सा, गणित में कैल्कुलस, गुरुत्वाकर्षण, जैसे पर अपना अधिकार ज़माने लगे। कुल मिला कर के भाजपा और आरएसएस आधुनिकता और वास्तविक विज्ञानं के तो विरोधी बने है, समाज की जागरूकता और सामाजिक न्याय के विरोधी बन गए। ऊपर से सेकुलरिज्म का विरोध जम कर के करते है। यानी, वर्तमान बहु सांस्कृतिक समाज में उस विचार के विरोधी भी बन गए हैं जिससे किसी भी बहुमत निर्णय  या न्याय को प्राप्त किया जा सके। सेकुलरिज्म का सम्बन्ध वैज्ञानिकता है। वैज्ञानिक और तकनीकी विशेषज्ञता के आधार पर ही सर्वसम्मत निर्णय किये जा सकते है जो की तमाम समुदायों को स्वीकृत हो। मगर भाजपा और उसका पैतृक संघटन, आरएसएस, इस सांस्कृतिक विचारधार जिसको सेकुलरिज्म कहा जाता है, उसके भी विरोधी बन गए है।
    तो भाजपा और आरएसएस वास्तव में देश में सामाजिक न्याय और विकास के अवरोधक बन कर उभरे है। समस्या जातवाद नहीं है, समस्या ब्राह्मणवाद है जो की आधुनिकता के तमाम सुधारों को अवरोधित करने के षड्यंत्र कर रहे है , कभी हिंदुत्व के नाम पर और कभी राष्ट्रवाद के नाम पर।

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