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Showing posts from August, 2018

Fraternity और व्यापार तथा उद्योगों के उत्थान की कहानी

किसी भी business के लिए मन और शरीर का सहयोग होना ज़रूरी है, साथ मे अपने नजदीकी रिश्तों और दोस्तों का। इतना विशाल किस्म का सहयोग बिना किसी एक धार्मिक मान्यता के संभव नही होता। कि वह मन को भी शांत रखे, शरीर को भी, और यार-दोस्तों, रिश्तों को भी सहयोग के लिए प्रेरित करता रहे। क्योंकि बिज़नेस अनिश्चितताओं से भरा होता, इसलिए इसमें stress बहोत बनता है। हर काम मे अनदेखी बाधा, गड़बड़, और न जाने क्या क्या। ऐसे में लोग तनाव ग्रस्त होकर एक दूसरे से उलझ पड़ते हैं। तनाव शरीर और पेट पर भी तुरंत असर करता है। सफल वही होगा जो शांत बना रहे,मन से प्रसन्न चित रहे, और जिसके पास अपनो से बातचीत करते हुए, मुस्कराते हुए तमाम बाधाओं का तोड़ निकालने का माहौल हो। शायद इसीलिए ज्यादातर बड़े बिज़नेस किसी न किसी धर्म गुरु के इर्दगिर्द में ही बसते हैं। शायद इसलिए गुजरात मे ही बाबा लोगों की industry भी है और देश के बड़े बिज़नेस men भी। गौर करें तो करीब करीब सभी बड़े businessmen अपनी बिरादरी की ही देन हैं। tata लोग पारसी समुदाये से, अम्बानी लोग -गुजराती माढ़वाड़ी, अडाणी - जैन माड़वाड़ी, अज़ीम प्रेमजी - बोरा मुस्लिम। गुजरात के

विविधता श्राप बन जाती है, अगर नीति निर्माण का एक-सूत्र तलाशना न आये

मात्र विविधता से कोई देश प्रजातन्त्र राष्ट्र नही बन जाता हैं। क्योंकि देश मे से राष्ट्र बनता है एक-सूत्र से बंधने पर। यहां सवाल उठेगा की सबको बांधने वाला वह एक-सूत्र क्या होगा ? कहने का मतलब है कि कोई भी देश विचारों की विविधता तो रख सकता है, मगर देश के संचालन के लिए नीतियां एक ही रखनी पड़ती है। तो असली समस्या अब शुरू होती है जो कि जन्म लेती है विविधता से ही। वह है कि विविध विचारों में से एक-सूत्र में बांधने वाली नीति कैसे निर्माण करि जाए? इसी सवाल का जवाब दूंढ सकने की काबलियत ही देश मे प्रजातन्त्र और विविधता दोनों को ही कायम रख सकेगा, अन्यथा विविधता तो एक श्राप बन जाएगी, और फिर प्रजातन्त्र और विविधता धीरे-धीरे आत्म-मुग्ध तानाशाही में तब्दील हो जाएगा। तो समझा जा सकता है कि कैसे प्रजातन्त्र को कायम रख सकने की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी है विविधता में से नीति निर्माण का आवश्यक एकाकी सूत्र ढूंढ सकने की काबलियत। इसीलिए सभी प्रजातंत्रों को संसद जैसी संस्था की आवश्यकता महसूस हुई। अब इसके आगे बात आती है उस एकाकी सूत्र की स्थिरता की। क्योंकि गलतियां और बेवकूफियां कोई समाज यूँ भी कर सकता है