हिंदुओं की सोच में अभी Logic जैसी शुद्धि नहीं हुई है

ब्रिटिश उपन्यासकार जॉर्ज ऑरवेल ने दो शब्द, Blackwhite Thinking और Doublespeak का सृजन किया था , इंसानों की सोच में ऐसी प्रवृत्ति को दिखाने के लिए जो एक संग दो विरोधास्पद तर्कों का पक्ष लेते हुए (blackwhite), जब चाहा तब पल्टी मारते रहते हैं, और अपने विरोधी को गलत और दुष्ट साबित कर देते हैं।

सभी हिंदू यानी सनातन धर्म पालक स्वभाव से ऐसे doublespeak करते हैं, blackwhite सोच प्रकृति के होते हैं। कई सारे video clips हैं,जिनमें हिंदू संत लोग अपने अंतर–विरोधी चरित्र का गुणगान करते सुने जा सकते हैं, कि '"मैं ही सुर हूं, असुर भी मैं ही; मैं ही आकाश हूं, और पाताल भी मैं ही।"

दरअसल समस्त मानवता पहले के युग में ऐसी blackwhite सोच की हुआ करती थी। मगर पश्चिमी philosophy में aristotle और उसकी रची गई Logic की philosophy ने पाश्चात्य लोगों की सोच को शुद्ध और निश्छल बना कर,उनको श्रेष्ठ कर दिया।

हिंदू लोग अभी तक अशुद्ध और छल(कूट) सोच में फंसे हुए हैं।

Comments

Popular posts from this blog

क्या वैज्ञानिक सम्बन्ध होता है खराब राजनीतिक माहौल और विभित्स rape प्रकरणों के बीच में

Why do the poor people like, admire and observe the politics with so much enthusiasm

राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ और उनकी घातक मानसिकता