उन्नत मुखी होने का क्या अर्थ होता है?

उन्नत मुखी बनने के प्रत्येक युग में अलग अलग अर्थ होते हैं।

उन्नत मुखी बने रहना इंसान की जिंदगी का सबसे बड़ा challenge होता है।
और कौन रोक रहा होता है इंसान को उन्नत मुखी, यानी progressive होने से?

इंसान को progressive होने से रीत रिवाज, प्रथाएं रोक रही होती है।

प्रत्येक युग में उन्नत मुखी होने के अलग अलग मानक रहे हैं। मगर इन सभी के बीच में एक विचार सर्व विदित था — कि, सभी को किसी तत्कालीन विचार से, या व्यवस्था से, या प्रथा से संघर्ष करके, उसे तोड़ कर आगे आना पड़ा है।

ये जितनी भी चीज है– प्रथा, व्यवस्था, विचर, ये सब के सब समाज के माध्यम से कार्य करती हैं।समाज सभी इंसानों से बने समूह को बुलाया जाता है, जब इन सभी को एक इकाई की तरह देखा, सुना और बात करी जा रही होती है।
जाहिर है, ऐसे में समाज का अभिप्राय बन जाता है, बहुमत आबादी का मन। यानी , majority की बात, उसके दर्शन, उसकी सहमति, इत्यादि से।

तो समाज इंसान को हमेशा रोकने का कार्य करता है। ध्यान रहे कि समाज ऐसा करने में गलत नहीं होता है, क्योंकि वह सही मंशा से, इंसान को किसी संभावित गलत, किसी खतरे, किसी अनजान मुश्किल में पड़ने से रोकने के लिए ऐसा करता रहता है। बस ऐसा करते करते, समाज इंसान को कुछ नया अजमाने में भी रोकता है, क्योंकि समाज को पता नहीं होता है नए का परिणाम, आने वाला प्रभाव क्या होगा।

जब शहर नए नए बने थे, तब गांव से शहर जाना एक खराब प्रथा थी क्योंकि लोग अपने रीत रिवाज, गांव की मर्यादाएं भूल जाते थे शहर जा कर। तो इस काल में उन्नत मुखी होता था, शहर की और चल निकालना।

बाद में शहरी लोग अपने बूढ़े मां बाप की सेवा नही करते थे, उन्हे गांव में छोड़ कर उनकी बुढ़ापे में देख रेख नही करते थे। ये प्रथाएं रोकने लगी इंसान को nuclear परिवार में बसने से। तो उन्नत मुखी बन गया, nuclear परिवार में रह सकना। समाधान में।पेंशन सिस्टम और बहुमंजिला ईमारत बना कर flat नुमा घरों में रहना, बिल्डिंग वालों के संग सोसाइटी बना कर। इससे बूढ़ों को देख रेख़, सुरक्षा और मित्र समाज मिल गया। घर के पास में चिकिसालय और स्कूल , मिस्त्री, टैक्सी, ड्राइवर, ताजा सब्जियां, मेहरियां, सब मिलने लग गए ।

प्रथाएं थोड़े की बजाए लांघी जा सकती है। उन्नत मुखी होने का ताजा सारांश यह है।


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