Bharat बनाम India -- मुल्क का नाम बदलने की राजनीति , अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य से एक विमोचन

ऐसा नहीं है कि सिर्फ भारत ही अपने राष्ट्र का नाम बदल रहा है। हमसे पहले, बर्मा ने नाम बदल कर म्यांमार कर लिया है, कंबोडिया ने थोड़े समय के लिए नाम कम्पूचिया कर के वापस कंबोडिया कर लिया था, और सीलोन ने नाम बदल कर श्रीलंका रख लिया है।

मुल्क के नाम बदल जाना कोई बड़ी बात नहीं है, विश्व राजनीति के लिहाज से। बड़ा सवाल ये है कि नाम बदले क्यों गए, और हांसिल क्या हुआ नाम बदल देने से? क्या वह मकसद पूरा हुआ?

कंबोडिया के मामले में तो नाम बदलने का कारण सीधा सीधा अंतरिक राजनीत से था, और मात्र दस वर्ष तक नाम कम्पूचिया रहा, फिर वापस कंबोडिया पर लौट आया, जो की ब्रिटिश का दिया हुआ नाम था !

बर्मा के मामले में नाम बदलने का तथाकथित कारण बताया गया कि बर्मा नाम अंग्रेजो का दिया हुआ था। हालांकि आंतरिक राजनीत में अटकलें लगती रही कि कारण कुछ और ही है। अंग्रेजों ने जो नाम चुना था, बर्मा, वह वहां की भाषा में का ही नाम था। 

मगर सबसे पहले सवाल है कि अंग्रेजों को नाम चुनने का अधिकार किसने दिया ?
जवाब है— प्राकृतिक नियम ! अंग्रेजों और उनके नाविकों ने कुछ पक्षपात नहीं किया , मात्र अपना प्राकृतिक अधिकार का उपभोग किया था ये सब नामकरण कर के ! अधिकार कैसा? दुनिया की खोज करने से प्राप्त हुआ अधिकार ! वे अधिकार जो किसी भी अन्वेषक के पास स्वाभाविक तौर पर आ जाते हैं, जब वह प्रथम बार दुनिया का नक्शा निर्माण करता है; नक्शे को प्रकाशित करने से, उसको प्रचारित करने से। 
तो उन्होंने अपने सृजन शक्ति से जो निर्माण किया, उसपर जो नाम डाला, संसार में वही चल निकला स्वाभाविक था। बस यही उनका अधिकार था।

बरहाल, बर्मा वहां की सबसे बाहुल्य जाति की भाषा का नाम तो था ही, उनके वर्चस्व वाले क्षेत्र को भी बर्मा ही बुलाते थे, स्थानीय लोग। अंग्रेजों ने वही नाम डाल दिया भूक्षेत्र का, जो भाषा ज्ञान शायद उन्हें भारतीय लोगो से ज्ञात हुआ था। दक्षिण भारत के लोग तो बर्मा को ब्रह्म देश भी बुलाते थे, शायद उनके लोगों को ब्रह्मा की संतान समझ कर ! जी हां, वे लोग ब्राह्मण समझे जाते थे दक्षिण भारत में ! बर्मा नाम की उत्पत्ति शायद ब्रह्मदेश में से हुई थी।

फिर वहां 1989 में मिलिट्री राज आ गया । मिलिट्री राज वालों को कुछ अक्ल कम ही होती है। उन्होंने सीधे सीधे सोचा कि मुल्क के नाम में से ही केवल एक जाति के वर्चस्व होने की गंध आती है। सो उन्होंने आनन फानन में नाम बदलने की ठान ली। और बदल कर म्यांमार कर दिया। कारण ये बोल दिया कि पुराना नाम अंग्रेजों का दिया हुआ था, जो कि गुलामी की याद दिलाता था। आज 30 साल से ज्यादा बीत गए हैं नाम बदले हुए। और कितनी आजादी हासिल हो सकी है मिलिट्री राज वाले देश म्यांमार को, ये सच्चाई पूरी दुनिया पहले ही जानती है !

अंग्रेजी, पुर्तगाली, फ्रेसिसी और स्पेनिश नाविकों ने भारत के दक्षिण में स्थित टापू का नाम सीलोन रख दिया था। वही, अन्वेषक होने का स्वाभाविक अधिकार । बाद में देश के लोगों ने नाम बदल कर श्रीलंका रख लिया। हांसील क्या हुआ, पुराना सांस्कृतिक धरोहर का नाम रख कर? शायद गर्व से फूल जाने से उन लोगो के सीने में या पेट में गैस भरने को जगह बड़ गई होगी लोगो की, और फिर बदहजमी से हार्टअटैक कम आते होंगे !! 
अब तो केवल यही सोचा जा सकता है, गर्व से सीना फुलाने का सीधा सीधा व्यवहारिक लाभ। बाकी कुछ तो मुझे समझ में नहीं आ रहा दिखता है।

गौर करिए, ये जितने भी देश नाम बदले, ये सब अंतरिक राजनीति की वजहों से बदले थे। और ऊपर में, जबानी तौर पर वजह कुछ और ही कारण बताते रहे। और हुआ क्या, आखिर में?कुछ तो वापस आंतरिक राजनीति में पासा पलटने से वापस लौट आए पुराने अंग्रेजी के दिए गए नाम पर। और बाकी कुछ, नाम बदल कर भी कुछ हासिल नहीं कर सके, समाज के लिए। बर्मा तो मिलिट्री junta का आज तक शिकार बना हुआ है, और व्यापारिक अर्थव्यवस्था में एकदम पिटा पड़ा है।





Comments

Popular posts from this blog

क्या वैज्ञानिक सम्बन्ध होता है खराब राजनीतिक माहौल और विभित्स rape प्रकरणों के बीच में

Vedic Sholks have wisdom to speak "diplomatically" , the glorified name for speaking lies.

गहरी बातें क्या होती है