क्या होता है "पौरुष प्राप्त कर लेना"

जब इंसान का जीवन रस मयी हो जाता है, तब वह विश्वास से ओत प्रोत रहने लगता है, तमाम सफलताएं उनके कदम चूमने लगती है, सब उसे पसंद करने लगते हैं, वह लोगों की रुचि का केंद्र बनने लगता है, उसकी बातें सभी को मंत्रमुग्ध सुनाई पड़ने लगती हैं, उसका शरीर कष्ट मुक्त अनुभव करने लगता है, वह दीर्घायु प्राप्त करने लगता है, उसके रिश्ते मधुर बनने लगते हैं, 

शायद इसी अवस्था को हिंदी भाषा में कहते हैं, "पौरुष प्राप्त कर लेना " (pinnacle of his existence)। वैसे शाब्दिक रूप में "पौरुष" का अर्थ होता है पुरुष होने वाले गुण और भाव अनुभव कर लेना। मगर , अभिप्राय में पौरुष प्राप्ति के मार्ग कुछ अन्य है, जैसा कि आगे विमर्श में लिखा है।

पौरुष प्राप्त करने का सबसे महत्वपूर्ण कदम होता है भावनाओं को बहने का मार्ग उपलब्ध करवाना । 

और भावनाओं को बहने का मार्ग मिलता है कलाओं में से। आरंभिक युग में ये मार्ग होता था गीत गुंजन से, संगीत वाद्य यंत्र बना लेने से, gymnastics इत्यादि शरीर की बेहद कठिन कलाओं को अर्जित कर लेने से। Gymnastics करने हेतु शरीर और मस्तिष्क को एक sync में संचालित करने की योग्यता लगती है, जिसे प्राप्त करने के लिए बेहद जोखिम तो उठाना ही पड़ता है, साथ में कठोर अभ्यास करते रहने का अत्यधिक श्रम भी लगता है।

तो सोच सकते हैं कि पौरुष प्राप्त करना प्रत्येक मनुष्य के लिए संभव नहीं होता है।

दार्शनिक भाषा में "पौरुष प्राप्त कर लेने" का विवरण होता है कि ईश्वर का संग प्राप्त कर लेना मनुष्य जीवन में रहते रहते।

भावनाओं को बहते रहने का मार्ग बेहद कठिन परियोजना होती है। इसके लिए इंसान को किसी न किसी क्षेत्र में उच्च शिखर की कला या कौशल आना चाहिए। कलाओं के माध्यम से इंसान अपने भीतर के गर्त के आभास को बाहर निकालने का मार्ग देना सीख जाता है। दूसरे शब्दों में, वह अपने आप को महसूस करना सीख लेता है। 

उस क्षेत्र की प्रवीणता उसके भीतर में विश्वास भरने लगती है, कि वह अब कैसे भी,कितना भी खराब मूड में क्यों न हो, उस क्षेत्र में तो वह सदैव विजयी हो कर ही रहेगा। ये विश्वास उसे खुशी देता रहता है, और इस प्रकार कला की प्रवीणता उसके mood संचालित करने का केंद्र भी बन जाती है। ज्यों वह खराब मूड को महसूस करता है, त्यों वह अपनी श्रेष्ठ कला का अभ्यास करने लगता है, और थोड़ी ही देर में वह वापस बेहतर mood में आने लगता है।

यदि मूड को बहने का मार्ग न मिले तब भीतर से घुटन लगने लगती है, और वह घुटन माहौल बना देती है तमाम नकारात्मक विचारों को घर बना लेने देने की। Frustration, ego, narcissism शायद यही से पलने लगते हैं।

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