इतिहासिक त्रासदी के मूलकारक को तय करने में दुविधा क्या है?

देखिये, इतिहास में ज्यादा कुछ नही रखा है जिसके लिए हम आपसी संघर्ष करके अपना भविष्य बर्बाद कर लें। मगर संक्षिप्त में संघ के 'हिंदुत्व' पक्ष और विरोधी liberal पक्ष में जो disagreements हैं, वो ये कि संघ कहता है कि हिन्दू लोग बहोत अच्छे,भोले, शांतिप्रिय लोग थे और मुग़लों ने इनकी धार्मिक प्रवृत्ति का फ़ायदा उठा कर आक्रमण करके इनके देश को ग़ुलाम बना लिया।


और liberal पक्ष जो की वो भी हिन्दू है, उसका दावा है कि हिन्दू सिर्फ मुग़लों से नही, बल्कि हर एक आक्रमणकारियों से रौंदा गया क्योंकि हिन्दू आन्तरिक पक्षपात,भेदभाव और ऊंच नीच करने वाला , ब्राह्मणी कुतर्कों से संचालित दो-मुँहा समुदाये था, जिसके चलते ये कदापि कोई राजनैतिक और सैन्य शक्ति बन ही नही सकता था।

Liberals के अनुसार,
जो हुआ इतिहास में, ये तो कर्मो का फल था। हिन्दू क्या है? वास्तव में ब्राह्मणों का फैलाया कुतर्क और धूर्त प्रथाओं का नाम है, 'ब्राह्मण धर्म"(व्यंग), जो ब्राह्मणों को समाज पर वर्चस्व बनाने का षड्यंत्र के समान है। 19वीं शताब्दी में, बाबा अम्बेडकर के संघर्षों से आरक्षण नीति के आने से पूर्व, आज के जो "सवर्ण"(अथवा अनारक्षित) वर्ग है, वो हज़ारो वर्षो से उन्हीं जातियों को अधिक  शिक्षित, समृद्ध, धन और वैभव सम्पन्न होने के अनुसार 'ब्राह्मण धर्म'(=हिन्दू धर्म) रचा-बुना हुआ था( और आज भी है।)  

कैसे? हिन्दू वर्ण व्यवस्था के न्याय प्रकिया, प्रमाण प्रक्रिया उनके(सवर्ण) हितों के अनुसार बनी हुई है। हिन्दू धर्म प्रथाओं से स्वतः शारीरिक श्रम करने वाला वर्ण शोषण किया जाता है, और वैदिक प्रथाएं उनमें (श्रम करने वाला वर्ण) शिक्षा को प्रोत्साहित ही नहीं होने देती हैं।

आज भी, कोर्ट व्यवस्था तथा प्रशासन के उच्च पदों पर  अनुपात से कही अधिक "सवर्ण" लोग कब्ज़ा जमाये हुए है । "सवर्ण" कौन हैं? वो जो कि अतीतकाल के "उच्च जाति" के थे।

ऐसा कैसे हुआ? क्या ये योग्यता के चलते हुआ है? 
नहीLiberals के अनुसार ये योग्यता नहीं है, बल्कि सवर्ण जातियों के पास आरम्भ से ही बेहतर साधन-सुविधा के चलते प्राप्त हुआ ऐश्वर्य है, क्योंकि निम्म जातियाँ कोई भी competetion कर सकने के लिए "हिन्दू" प्रथाओं के प्रवाह में "निहत्थी" पड़ी हुई थी, (और आज भी है)। 

तो,आन्तरिक भेदभाव से कमज़ोर हुए हिन्दू समाज का, मुग़लों के अलावा भी प्रत्येक बाहरी आक्रमणकारियों के द्वारा रौंदा जाना तो तय भाग्य था (और है)। 

तो फिर आगे के भविष्य को कैसे देखते है दोनों पक्ष?

Liberals का आरोप है कि मोदी काल ने वापस न्याय करने की सहज़ प्रक्रिया में सेंघमारी कर दी है, प्रमाणों के संग छेड़छाड़  कर देना सामान्य आसान बात हो गयी है। दस्तावेजो को राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर गोपनीय करार दे करके सामाजिक न्याय पर हमला किया जाता है। इस प्रकार से आपसी अविश्वास , शंका संदेह को बढ़ावा दिया गया है। "ब्राह्मणवादी कुतर्क" ने मीडिया में घर बना लिया है। न्यायपालिका, पुलिस प्रशासन पर पक्षपात, धूर्तता ने  रंग दिखाना आरम्भ कर दिया है। अब धीरे-धीरे करके वापस समाज में प्रशासनिक(तंत्रीय) पक्षपात, भेदभाव, ऊँच नीच, vipव्यक्ति बनाम आमव्यक्ति की सोच प्रशासनिक और सामाजिक चलन बन जायेगी। ऐसा काल आयेगा की मोदी के भक्तगण वाले  एक वर्ण के लोग अधिक समृद्ध, अधिक शिक्षित, (बेहतर और गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा से सुसज्जित),  और वैभवशाली होंगे। और दावा करते रहेंगे कि ये सब उनकी "योग्यता" के चलते प्राप्त हुआ है।

जबकि संघी हिंदुओं का दावा है कि मोदीकाल में भारत वापस  अपने अतीत के "हिन्दू" धर्म के "वैभवशाली" दौर  (सोने की चिड़िया) की ओर बढ़ने लगा है।

संघी "हिन्दू" और liberal-हिन्दू में ये सब वैचारिक मतभेद है। इतिहास में घटी दीर्घकालीन त्रासदी का मूलकारक इस लिये सवाल बना हुई है, कि भारत को सदियों से रौंदे जाने का मूल कारक किसके विचारो के अनुसार तय किया जाये।

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